आजकल भारत के समाचार
चैनलों पर स्पीड न्यूज़ का बोलबाला है। स्पीड न्यूज़ यानी तेज़ रफ्तार खबरें, तेजी
से खबरों को पेश करने का तरीका। आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में लोगों के पास आराम
से बैठकर टेलीविजन पर न्यूज़ बुलेटिन देखने का वक्त नहीं होता और लोग जल्दी-जल्दी दिन
की तमाम प्रमुख खबरों की जानकारी चाहते हैं- इसी समझदारी के तहत सन 2002 के आसपास कई
भारतीय निजी समाचार चैनलों पर स्पीड न्यूज़ के बुलेटिन शुरु किए गए थे। जल्दी-जल्दी
खबरे, ढेर सारी खबरें, खबरों का पूरा डोज़ जैसी कई टैगलाइन और न्यूज़ टॉप 10, टॉप
10 प्लस, न्यूज़ नॉनस्टॉप, स्पीड न्यूज़, रफ्तार समाचार जैसी अलग-अलग आकर्षक ब्रांडिंग
के तहत समाचार चैनलों पर तेज़ी से खबर देनेवाले बुलेटिन शुरु किए गए। शुरुआती दौर
में इस तरह के बुलेटिन्स के लिए जो स्लॉट तय किए गए, उनमें खास ख्याल दर्शकों की
जल्दबाजी का रखा गया यानी ऐसा वक्त जब लोग जल्दी-जल्दी खबरें देखना चाहते हों।
मसलन सुबह दफ्तर जाने से पहले और रात को सोने से पहले। ज़ी न्यूज़ पर सन 2003 में
जब इस तरह के बुलेटिन का सफल प्रयोग हुआ तो इसके प्रसारण का स्लॉट सुबह साढ़े 8
बजे रखा गया था- ऐसा वक्त जब लोग तेजी से खबरों पर नज़र डालकर काम पर चलना चाहते
हों। न्यूज टॉप टेन नाम के इस बुलेटिन को खूब पसंद किया गया और कई बरसों तक टीआरपी
की होड़ में चैनल को आगे बढ़ाए रखने में इसका खास योगदान रहा। न्यूज टॉप टेन में 7
सेगमेंट होते थे, जिनमें हेडलाइन खबरों के अलावा देश, राजनीति, अपराध, मेट्रो, खेल
और सिनेमा की 10-10 खबरों को समेटा जाता था। हर सेगमेंट की अवधि लगभग 3 मिनट से
ज्यादा नहीं हुआ करती थी। इस तरह आधे घंटे में 70 खबरें दिखाने का नया तरीका शुरु
किया गया। आगे चलकर इसी चैनल पर इसी कड़ी में रात के 11-11.30 बजे के स्लॉट के लिए
टॉप टेन प्लस नाम के तेज़ रफ्तार बुलेटिन की शुरुआत हुई, जिसमें हर सेगमेंट करीब 4
से साढ़े 4 मिनट का होता था, यानी खबरों को कुछ और विस्तार से दिखाने की गुंजाइश
थी। 2003 से 2005 के दो साल के दौरान लगभग हर निजी समाचार चैनल पर स्पीड न्यूज़
बुलेटिन्स के स्लॉट तय हो गए। टीआरपी की रेटिंग्स के मुताबिक, प्रतियोगिता में
एक-दूसरे को पीछे छोड़ने की होड़ में न्यूज़ चैनल्स ने अपने-अपने तरीके से स्पीड
न्यूज़ बुलेटिन्स की नई-नई ब्रैंडिंग की
और उन्हें आकर्षक तरीके से पेश करने लगे। टीवी पर रफ्तार को पसंद किया जाने लगा और
इस हद तक पसंद किया जाने लगा कि 2005 में देश के टेलीविजन समाचार जगत में अग्रणी
आजतक चैनल के समूह टीवी टुडे नेटवर्क ने तो इसी रफ्तार पर आधारित पूरा का पूरा
न्यूज़ चैनल ही लांच करने की तैयारी कर ली और 2 अगस्त 2005 को तेज़ नाम से नए समाचार
चैनल को लांच भी कर दिया गया। तेज़ को लांच करने से ज्यादा बड़ी चुनौती थी खबरों
की रफ्तार के साथ-साथ उनकी ताजगी को बरकरार रखना ताकि दर्शक को बांधे रखा जाए,
उन्हें ऊबने न दिया जाए। तेज़ भारतीय समाचार चैनलों में नवीनतम प्रयोग था जिसने
खबरें फटाफट की टैगलाइन के साथ जल्दी ही दर्शक वर्ग में खास पहचान बना ली और इस
पहचान को बरकरार भी रखा है। तेज़ के साथ हिंदी टेलीविजन समाचार जगत में एक नया
अध्याय जुड़ा है और इस तरह के टेलिविजन प्रसारण की अपनी चुनौतियां भी सामने आई
हैं। ज़ाहिर है टीवी टुडे के अलावा और कोई भी टीवी समाचार समूह इस तरह के चैनल को
लांच करने की कोशिश नहीं कर सका। लेकिन तब से अब तक आम तौर पर तमाम न्यूज़ चैनलों
पर स्पीड न्यूज़ के स्लॉट जरूर बढ़ गए, उनमें काफी नए प्रयोग और प्रस्तुति के
नए-नए तरीके देखने को मिल रहे हैं।
तेज़ चैनल की शुरुआत
आधे घंटे में दो तेज़ रफ्तार न्यूज़ बुलेटिन्स के कॉन्सेप्ट के साथ हुई थी। आगे
चलकर खेल, सिनेमा और दूसरी विधाओं में फास्ट न्यूज़ के बुलेटिन्स भी शुरु किए गए।
इस दौरान रफ्तार समाचार की होड़ इस कदर बढ़ी कि चैनलों पर बुलेटिन्स की वेराइटी
देखने को मिलने लगी। इससे पहले तत्कालीन स्टार न्यूज़ 24 घंटे 24 रिपोर्टर नाम से
फास्ट न्यूज़ बुलेटिन की शुरुआत कर चुका था। समय के साथ चलते हुए आजतक ने भी 50
खबरों, 100 खबरों और टॉप 5 जैसे फास्ट न्यूज़ बुलेटिन शुरु किए, जिन्हें आमतौर पर
सुबह, दोपहर और रात के वक्त पेश किया जाता है, ताकि ज्यादा से ज्यादा दर्शकों को
अपनी ओर खींचा जा सके। हिंदी के दूसरे समाचार चैनलों सहारा समय और इंडिया टीवी ने
भी समय के साथ अपने बुलेटिन्स में बदलाव किए और फास्ट न्यूज़ के कई नए बुलेटिन
शुरु किए। चैनल 7 से IBN7
बने चैनल पर भी सुबह और रात के वक्त स्पीड न्यूज़ के स्लॉट तय हैं।
समाचार चैनलों पर खबरों
को तेज़ तरीके से दिखाने की होड़ इतनी बढ़ी कि 50 खबरों और 100 खबरों से आगे आधे
घंटे में 200 खबरें तक दिखाने के दावे करनेवाली ब्रैंडिंग के बुलेटिन भी चैनलों पर
पेश किए जाने लगे हैं। इंडिया टीवी पर 20 रिपोर्टर, 5 मिनट में 25 खबरें, 10 मिनट
में 100 खबरें, आधे घंटे में 200 खबरें जैसे कितने ही बुलेटिन्स नए कलेवर में पेश
किए जा रहे हैं। वहीं स्टार से एबीपी न्यूज़ बने समाचार चैनल पर खबरें फटाफट, 500
सेकेंड जैसे बुलेटिन भी देखने को मिल रहे हैं, जिनमें खबरों की रफ्तार भले ही तेज़
न हो, लेकिन पहचान वही रखी जाती है। तेज़ रफ्तार में खबरें पेश करने की मार्केटिंग
बुलेटिन्स पर इस कदर हावी हो चुकी है कि अब खबर 30 सेकेंड में, 1 मिनट में दिल्ली,
1 मिनट में मुंबई, जैसे बुलेटिन भी दिखाए जा रहे हैं, जिनमें कभी-कभी एक दो खबरें
ही होती हैं और दर्शक पलभर में कई बड़ी खबरें देखने की मानसिकता लेकर चैनल पर बंधा
रह जाता है। यही स्थिति एबीपी के फटाफट बुलेटिन की भी है, जिसमें तमाम बड़ी खबरों
को समेटने की कोशिश होती है। लेकिन अगर कोई ब्रेकिंग या और बड़ी खबर हो, जिसे कुछ
देर खींचने की जरुरत समझी जाए, तो संपादकीय नीति दूसरी तमाम खबरों को गैर-जरूरी
मानकर छोड़ देते हैं। खबर की तात्कालिकता और सामयिकता का ख्याल करें तो ये बात
काफी हद तक ठीक है, लेकिन ऐसे दर्शक जो किसी समय विशेष में एक साथ 5 या 10 ब़ड़ी
खबरें देखने की मानसिकता लेकर चैनल का रुख करते हैं , वो ऐसी स्थिति में ठगे से रह
जाते हैं। खैर, ये तो चैनलों की संपादकीय नीति पर निर्भर करता है कि किस बुलेटिन
को किस तरह पेश किया जाए और किन खबरों को कितनी प्राथमिकता दी जाए। लेकिन आज के
दौर में स्पीड न्यूज़ की जो बहुतायत देखने को मिल रही है, उसको लेकर बुलेटिन
प्रस्तुति के कई पहलुओं पर गौर करना जरूरी हो जाता है।
समाचार चैनलों से
जुड़ी सबसे अहम बात ये है कि दर्शक समाचार देखने के लिए इनका रुख करते हैं। और
स्पीड न्यूज़ की सार्थकता इसी में है कि तेज़ से तेज़ रफ्तार में ज्यादा से ज्यादा
समाचारों से दर्शकों को रू-ब-रू कराया जाए। खबर एक लाइन में भी होती है और उसे
विस्तार दिया जाए तो शायद अखबार का एक पन्ना भी कम पड़ जाए। ऐसे में हमेशा ये
संपादकीय नीति पर निर्भर करता है कि किस जानकारी को खबर की श्रेणी में रखा जाए और
उसे कितनी अहमियत दी जाए। जाहिर है एक खबर अगर दिन भर के लिए ज्यादा अहम है, तो
उससे जुड़ी दाएं-बाएं की पचासों खबरें और हो सकती हैं, जो बुलेटिन की सारी अवधि
हजम कर लें। मुंबई में 26/11 के हमले जैसी किसी बड़ी घटना के मौके पर दूसरी किसी और प्रमुख खबर की
कल्पना भी नहीं की जा सकती। ऐसे में संपादकीय नीति यही कहती है कि पूरा बुलेटिन एक
ही प्रमुख घटना से जुड़ी दूसरी खबरों, जानकारियों और तथ्यों से भरा हो। ऐसे में
स्पीड न्यूज़ के प्रोड्यूसर की जिम्मेदारी और चुनौती और बढ़ जाती है क्योंकि एक
तरफ उसे खबर को अपडेट करना होता है, तो साथ ही बुलेटिन की ब्रैंडिंग के तहत 10,
25, 50 या 100 खबरों की गिनती पूरी करने के लिए भी आइटम तैयार करने होते हैं। आतंकवादी
हमलों, हादसों, चुनाव, बजट जैसे बड़े खबरिया दिनों के मौके पर तो सूचनाओं और उनसे
जुड़ी तस्वीरों और बाइट की आवक भी काफी बढ़ जाती है। ऐसे में ये तय़ करना बड़ी
जिम्मेदारी और चुनौती का काम है कि आखिर किस एलिमेंट को बुलेटिन में शामिल किय़ा
जाए और किसे छोड़ा जाए। बुलेटिन को अपडेट करते हुए भी नई खबरों और सूचनाओं के
साथ-साथ विजुअल्स और बाइट्स का तार्किक तरीके से समावेश बड़ी चुनौती है। आम तौर पर
तमाम चैनलों पर स्पीड न्यूज़ के बुलेटिन पूरी तरह से रिकॉर्डेड और एडिटेड होते
हैं, जिससे लाइव परिस्थितियों में नई जानकारियां अपडेट करने की गुंजाइश कम होती है
,साथ ही साथ ये भी चुनौती होती है कि ऐसी कोई लाइन न तो स्क्रिप्ट या ना ही खबर
पट्टियों में हो, जो पुरानी लगे। दूसरी तरफ जिन चैनलों में स्पीड न्यूज़ लाइव होते
हैं, वहां भी समय से बुलेटिन को अपडेट करने और उनमें ताजगी बनाए रखना आसान नहीं।
बात स्पीड न्यूज़ की
होती है, तो खबरों की प्रस्तुति की अहमियत भी काफी बढ़ जाती है। ऐसी अपेक्षा रहती
है कि खबरें एक समान तेज़ गति में पढ़ी जाएं, स्क्रिप्ट के मुताबिक विजुअल और
स्क्रीन पर पट्टियों के टेक्स्ट भी छोटे और पूरी खबर देने वाले हों ताकि खबरे
दर्शक के दिलोदिमाग में पूरी तरह रजिस्टर हो सकें। ऐसे में स्क्रिप्ट लिखनेवालों
की जिम्मेदारी है कि वो बुलेटिन के ड्यूरेशन के मुताबिक खबरों की छोटी-छोटी, सरल
और प्रवाहमय भाषा में स्क्रिप्ट लिखें ताकि एंकर्स या वॉयस ओवर आर्टिस्ट के लिए
उन्हें पेस बनाकर पढ़ने में दिक्कत न हो। साथ ही, ये एंकर्स और वॉयस ओवर आर्टिस्ट्स
की भी जिम्मेदारी है कि वो स्क्रिप्ट को बुलेटिन की मांग के मुताबिक पढ़ने की
मानसिकता के साथ खुद को तैयार रखें। अक्सर स्पीड न्यूज़ बुलेटिन्स में एंकर्स के
फंबल करने या शब्दों को खा जाने की दिक्कतें पेश आती हैं। इसके लिए कभी एंकर तो
कभी स्क्रिप्ट लेखक जिम्मेदार होते हैं। ऐसे में एंकर्स को TP रीडिंग पर निर्भर
रहने के बजाए मौके के मुताबिक खबरों की लाइन तय करने और उन्हें खुद ब खुद फ्रेम
करने के लिए भी तैयार रहना चाहिए। चुंकि टेलीविजन समाचार प्रस्तुति टीम वर्क है,
लिहाजा पैनल कंट्रोल रूम के सहयोगियों पर भी विजुअल, साउंड, ग्राफिक्स और बुलेटिन
के दूसरे तत्वों को उचित तरीके से इस्तेमाल करने की जिम्मेदारी बनती है ताकि
बुलेटिन की रफ्तार बरकरार रहे और खबरों का तारतम्य बना रहे। बुलेटिन में अगर 10,
20 या 30 खबरों को शामिल करना हो, तो दर्शकों को स्क्रिप्ट और विजुअल के जरिए
खबरों को रजिस्टर करने में दिक्कत नहीं होती। लेकिन जब 50, 100 और 200 खबरों के
बुलेटिन की तैयारी हो, तो हमेशा ये ख्याल रखना चाहिए कि बंदूक की गोली की जिस
रफ्तार से खबरें स्क्रीन पर गुजरेंगी, उन्हें दर्शक ग्रहण कर भी पाएगा या नहीं।
ऐसे कई सफल प्रयोग चैनलों पर हो रहे हैं, लेकिन इस बात पर गौर करना और जरूरी है कि
खबरों पर एक साथ आंख-कान और दिमाग का कंसेन्ट्रेशन होना मुश्किल है, ऐसे में स्पीड
न्यूज़ प्रोड्यूसर्स को ये जरूर मान लेना चाहिए कि आपका दर्शक या तो स्क्रिप्ट की
आवाज, या फिर तस्वीर या पट्टियों में दी जानेवाली जानकारी से ही खबर को रजिस्टर कर
पाएगा। ऐसे में तीनों ही चीजें इतनी स्पष्ट होनी चाहिए, ताकि अगर आवाज न सुन सके,
तो विजुअल या फिर पट्टी से ही खबर की जानकारी हासिल हो जाए। न्यूज़ शतक, 100 बड़ी
खबरें, न्यूज़ 100, 200 खबरें जैसे स्पीड न्यूज़ बुलेटिन्स की तैयारी में प्रोड्यूसर्स
को ये भी ख्याल रखना चाहिए कि एक खबर को कम से कम 2 से तीन हिस्सों में तोड़कर पेश
किय़ा जाए ताकि दर्शक पूरी तरह खबर से वाकिफ हो सके। ऐसे में वास्तविकता में खबरों
की संख्या 40-50 तक सिमट सकती है, लेकिन दर्शक खबरों से महरूम नहीं रहेंगे। अगर
ब्रैंडिंग के तहत 100 की 100 खबरें अलग हों, तो काफी संभव है कि कोई खबर तेजी से
निकल जाए, और दर्शक उसे याद न रख सके। ऐसे में स्पीड न्यूज़ बुलेटिन की सार्थकता
पर सवाल खड़े हो सकते हैं क्योंकि वो असलियत में दर्शकों की खबरों की भूख मिटाने
में बेअसर साबित हो सकता है। एक बड़ा सवाल ये भी है कि अगर 12 घंटे में 100 खबरों
के तीन या चार बुलेटिन किसी चैनल पर पेश किए जाते हैं, तो क्या खबरें दोहराई नहीं
जाएंगी और क्या उनकी ताजगी बरकरार रहेगी। ऐसी स्थिति में बुलेटिन को अपडेट करने की
जिम्मेदारी अहम है। कुछ खबरें जरूर दोहराई जा सकती हैं, लेकिन ध्यान रखना होगा कि
वो कितनी महत्वपूर्ण हैं और किस लिहाज से । खबरें कितनी भी बड़ी हों, और जानकारी
के स्तर पर कोई अपडेट नहीं हो, तो भी दर्शकों की दिलचस्पी उनमें बनाए रखने के लिए उन्हें
भाषा के स्तर पर अपडेट करने की गुंजाइश हमेशा रहती है। लिहाजा, स्क्रिप्ट और पट्टियों
की भाषा और शब्दों में बदलाव पर जरूर ध्यान देना चाहिए। टीवी चुंकि विजुअल माध्यम
है, लिहाजा तस्वीरों में भी जरूरत के मुताबिक बदलाव होने चाहिए ताकि खबरों में धार
भी बनी रहे और उनकी सार्थकता भी। खबरें रोचक हों और विजुअल बेहतरीन हों, पहले कभी देखे
नहीं गए हों, तो उन्हें एक-दो बार जरूर दोहराना चाहिए, क्योंकि एक समझदारी ये भी
है कि अच्छे विजुअल और रोचक खबरें देखना दर्शक पसंद करते हैं। आम तौर पर विदेशी एजेंसियों
APTN , Reuters से आनेवाली खबरें
ऐसी होती हैं, जिनमें जानकारी के स्तर पर बदलाव या उन्हें अपडेट करने की गुंजाइश
कम से कम 12 घंटे तक नहीं रहती, तो दर्शकों की दिलचस्पी से जुड़ी इस समझदारी का
फायदा उठाते हुए स्क्रिप्ट और पट्टियों को और बेहतर बनाते हुए उन्हें कई बार
दिखाने में कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए।
आम आदमी की जिंदगी
भागमभाग वाली है, तेज़ रफ्तार से चल रही है, ऐसे में टेलीविजन समाचार को सबसे कड़ी
टक्कर, रेडियो और टैबलेट जैसे समाचार संचार माध्यमों से होनेवाली है, जिनके
इस्तेमाल से इंसान आजकल कहीं भी खबरों से वाकिफ हो सकता है। रेडिय़ो तो पहले भी
टेलीविजन समाचार को कुछ हद तक टक्कर देता रहा है, स्पीड न्यूज़ के बुलेटिन्स की
शुरुआत की एक छिपी हुई वजह या प्रेरणा आकाशवाणी के सुबह और रात के प्राइम बुलेटिन
भी हो सकते हैं, जो लोगों को खबरों की भरपूर जानकारी मुहैया कराने का सशक्त माध्यम
रहे हैं। नए जमाने में इंटरनेट आधारित मोबाइल और टैबलेट लोगों को खबरों के करीब
आने में मददगार साबित हो रहे हैं और होंगे। ऐसे में स्पीड न्यूज़ टीवी के दर्शकों के
लिए खबरों के मजबूत माध्यम बन सकते हैं, बशर्ते इनका इस्तेमाल और मार्केटिंग सुलझे
हुए तरीके से हो।
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कुमार कौस्तुभ
12.04.2013, 5.13 PM
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