Tuesday, April 16, 2013

बुलेटिन की बाजीगरी!




टेलीविजन के दर्शकों के लिए बुलेटिन शब्द भले ही जाना-पहचाना न हो, लेकिन, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में काम करनेवाले लोगों के लिए ये शब्द रोजमर्रा के कामकाज से जुड़ा है। सोते-जागते, चलते-फिरते बुलेटिन की फिक्र रहती है क्योंकि टीवी पत्रकारों के लिए ये नौकरी का अहम हिस्सा है। टीवी के खबरनवीस अपनी सारी मेहनत बुलेटिन्स के लिए करते हैं, अपनी सारी ऊर्जा बुलेटिन्स को समर्पित कर देते हैं। आखिर ये बुलेटिन है क्या बला?
बुलेटिन के इतिहास पर गौर करें, तो पता चलता है कि ये शब्द फ्रेंच मूल रूप से फ्रेंच भाषा का है और व्यावहारिक तौर पर इसकी पैदाइश बुलेट शब्द से हुई मानी जाती है, जिसका इस्तेमाल लेखन में क्रम देने के लिए नंबरिंग की जगह बिंदुओं को दर्शाने के लिए होता रहा है – ऐसा भी माना जाता है। आम तौर पर समाचार जगत में बुलेटिन का अर्थ समाचारों के क्रमवार संकलन से जुड़ा है जिसे प्रसारण के लिए तैयार किया जाता है। संभवत: किसी जमाने में इसी तरीके से समाचारों का संकलन यानि कंपाइलेशन किया जाता रहा हो, तो उससे बुलेटिन के जुमले की उत्पत्ति हुई। आधुनिक दौर में प्रसारण के लिए समाचार संकलन का स्वरूप भले ही बदल चुका हो, लेकिन खबरों की क्रमबद्धता का सिद्धांत अपनी जगह बरकरार है और यही वजह है कि बुलेटिन शब्द का इस्तेमाल भी चलता जा रहा है।
बुलेटिन का एक अर्थ और देखें तो बुलेट यानी बंदूक की वो गोली जो सबसे खतरनाक होती है और इंसान की जान ले सकती है- उससे भी इसका संबंध जोड़ा जा सकता है- इस अर्थ में कि बुलेटिन का हर बिंदु समाचार के श्रोता, दर्शक या पाठक के लिए समान रुप से असरदार और महत्वपूर्ण होना चाहिए, जो ग्राहक के दिलो दिमाग में बंदूक की गोली की तरह धंस जाए और वैसा ही असर पैदा करे।
वैसे, समाचार अध्ययन की दुनिया में बुलेटिन की तमाम परिभाषाएं देखने को मिलती हैं, मसलन-
A short official statement or broadcast summary of news”,
“A regular newsletter or printed report issued by an organization or society”,
“Pamphlet-type regular or irregular periodical issued by an institution or other organization usually for announcements or news.
Bulletin is a short and official statement which can give basic information which is concise and straight to the point. They are used within business meetings and schools to ensure that the staff has a clear idea of what is going to be met and what is going to happen within that meeting and on a daily basis. They are used to make sure that the basic information can be passed around the working environment so everyone has a clear idea of what they should be doing.”[1]

जाहिर है, बुलेटिन का मतलब समाचारों के पुलिंदे या पोथी से नहीं, बल्कि, क्रमवार तरीके से सजाई गई खबरों के गुलदस्ते से है, जिसे सीधे-सरल तरीके से और तेजी से पेश किया जा सके। बुलेटिन की एक विशेषता उसका नियमित होना भी है, यानी टीवी के तरीके से देखें, तो रोजाना खास नियत समय पर प्रसारित होनेवाला खबरों का संकलन बुलेटिन की श्रेणी में आता है जिसकी अवधि भी पहले से निश्चित होती है यानी तय समय-सीमा में खबरों को पेश करने का बंधन होता है। इस मायने में टीवी या रेडियो के बुलेटिन का स्वरूप अखबार से काफी अलग होता है और होना भी चाहिए क्योंकि ये अलग-अलग माध्यम जो हैं। और इसी लिहाज से इनकी विशेषता भी अलग-अलग है।
परिभाषाओं के आधार पर ऐसा महसूस होता है कि बुलेटिन के तय ढांचे होते हैं और रूपरेखा निश्चित होती है जिससे प्रोड्यूसर्स के लिए कुछ खास रचनात्मक करने को रह नहीं जाता। लेकिन आज के दौर में वास्तविकता इससे काफी अलग है। बुलेटिन तैयार करना अब सिर्फ नौकरी का हिस्सा नहीं, एक कला है, एक तरह से बाजीगरी है और हरेक प्रोड्यूसर के लिए बड़ी चुनौती है कि कितने असरदार तरीके से उस खास समय सीमा का इस्तेमाल खबरों के प्रसारण के लिए किया जाए, जो बुलेटिन के लिए तय किया गया है। रेडियो और टेलीविजन के बुलेटिन्स में समानता समय सीमा की होती है। लेकिन टेलीविजन में ऑडियो के साथ-साथ वीडियो और तस्वीरों के इस्तेमाल से उसका कलेवर बदल जाता है, उसका अलग प्रभाव पड़ता है।
बुलेटिन का मतलब खबरों के संकलन से है- इस सिद्धांत को मानें तो इसे तैयार करना बहुत मुश्किल नहीं है। आपको ये तय करना होगा कि आपके बुलेटिन के लिए सबसे महत्वपूर्ण खबरें क्या है। कौन सी खबरें आपके दर्शक वर्ग के लिए कितनी जरूरी हैं, कितनी दिलचस्प हैं और उन्हें किस क्रम में आप पेश करना चाहेंगे। इन बिंदुओं को ध्यान में रखकर आप 5, 10 या 15 मिनट और आधे घंटे का बुलेटिन तैयार कर सकते हैं। बुलेटिन में आपको सबसे महत्वपूर्ण खबर और उससे जुड़ी स्टोरी को सबसे पहले और सबसे कम अहम खबर को सबसे अंत में रखना होगा। आम तौर पर यही सिद्धांत, यही तकनीक बुलेटिन तैयार करने के लिए इस्तेमाल की जाती है। सवाल ये उठता है कि बुलेटिन में समय सीमा के मुताबिक कितनी खबरें हों और हर खबर पर कितना समय खर्च किया जाए। यह भी इस बात पर निर्भर करता है कि आपके पास कितनी बड़ी खबरें हैं और किसी एक बड़ी खबर से जुड़े कितने एलिमेंट हैं। ये आपकी संपादकीय नीति के मुताबिक, आपको तय करना होगा कि आप किसी भी खबर को कितना वक्त देना चाहते हैं और उसे पूरा करने के लिए आपके पास क्या-क्या आइटम हैं। यदि आपके पास कोई बड़ी खबर है, और उसे ज्यादा महत्व देते हुए आप ज्यादा से ज्यादा वक्त देना चाहते, लेकिन उससे जुड़े तत्व – मसलन तस्वीरें, साउंड बाइट्स, पैकेज, बैकग्राउंडर जानकारियां, आपके पास ज्यादा नहीं हैं, तो आपके सामने छोटी सी स्क्रिप्ट को बार-बार दोहराने के सिवा कोई और उपाय नहीं बच जाता है जिससे बुलेटिन उबाऊ हो सकता है। ऐसी स्थिति से बचना चाहिए, चुंकि आप अपने दर्शक को अपने पास रोके रखने में विफल रहेंगे।
पारंपरिक तौर पर बुलेटिन से जुड़ी दो बातें अहम मानी जाती हैं- एक तो ये संतुलित हो, और दूसरा इसमें पेस हो यानी रफ्तार के साथ लय का सामंजस्य हो। बुलेटिन के संतुलित होने का मतलब ये है कि उसमें हर तरह की खबरें हों, सिर्फ एक पक्ष या एक विषय से जुड़ी खबरें न हों, क्योंकि एक तरह की खबरें देखकर दर्शक ऊब सकता है। ऐसा माना जाता है कि बुलेटिन में कुछ गंभीर खबरें हों, तो कुछ हल्की फुल्की खबरें भी हों, आपको राजनीति और बड़ी घटनाओं-दुर्घटनाओं के साथ साथ मानवीय पहलुओं , खेल और मनोरंजन से भी जुड़ी खबरें बुलेटिन में समाहित करनी चाहिए। ये पांरपरिक बुलेटिन का स्टाइल है। लेकिन, बुलेटिन किस तरह का हो, ये अलग-अलग टाइम बैंड पर भी निर्भर करता है- ये मान्यता टीआरपी की होड़ से निकलकर सामने आई है। मसलन रात नौ बजे के बुलेटिन को मेट्रो के दर्शक सबसे ज्यादा देखते हैं, तो उसमें मेट्रो की खबरों को प्रधानता देने की बात होती है। वहीं, रात 10 बजे या 11 बजे लोगों के बिस्तर पर जाने का वक्त होता है औऱ लोग दिनभर की तमाम बड़ी खबरें देखना पसंद करते हैं, तो ऐसे बुलेटिन में तमाम किस्म की खबरें हों और शुरुआत लोगों से जुड़ी किसी बड़ी खबर या राजनीतिक खबर से हो। इसी तरह तड़के 6, 7 और 8 बजे के बुलेटिन आज की बड़ी खबर और आज होनेवाली घटनाओं पर केंद्रित हो सकते हैं, साथ ही गुजरे दिन या रात की ब़डी और दिलचस्प खबरें भी उनमें रखी जा सकती हैं। दिन के 11 बजे या दोपहर के बुलेटिन में उस वक्त की सबसे बड़ी खबर या विजुअल के तौर पर मजबूत खबर से शुरुआत हो सकती है और चुनिंदा बड़ी खबरों पर फोकस हो सकता है। यानी बुलेटिन के स्ट्रक्चर पर खबर नहीं, टाइम बैंड हावी दिखता है। ये समय और परिस्थितियों के मुताबिक तय होता है कि किस बुलेटिन में कौन सी खबर को कितनी अहमियत दी जाएगी और कब क्या दिखाया जाएगा। खबरों का क्रम बदलने या कुछ खबरों को ड्रॉप करने की पूरी छूट बुलेटिन प्रोड्यूसर के पास होती है। दिन के वक्त डेवलप हो रही खबरों के मायने में कई बार बुलेटिन एक- दो खबरों तक ही सीमित रह जाते हैं और ताजा ब़ड़ी खबरें ब्रेकिंग न्यूज़ के रूप में शामिल किए जाने पर कुछ खबरों को दिनभर में प्रसारित होने का मौका नहीं मिल पाता। बड़ी खबरों या ब्रेकिंग न्यूज़ के साथ रिपोर्टर इनपुट के रूप में फोन इन और लाइव चैट लेने की गुंजाइश रहती है, लेकिन इस क्रम में अगर समय सीमा का ध्यान नहीं रखा जाए, तो दूसरी खबरों के लिए वक्त नहीं बचता।
हालांकि आज के दौर में जिस तरह टेलीविजन पर समाचार बुलेटिन पेश किए जाते हैं , उनमें पारंपरिक संतुलन की ये बात काफी हद तक बेमानी हो चुकी है। आज के दौर में कोई बुलेटिन किसी एक बड़ी खबर पर भी केंद्रित हो सकता है – बशर्ते उसमें उस खबर से जुड़े और तमाम आइटम भी हों, और मिलती जुलती खबरें भी हों, ताकि खबरों की एक कड़ी जुड़ती चली जाए- इससे दर्शक आपके पास टिका रह सकता है।
अगर बुलेटिन में हर रंग की खबरें हों, तो इस बात का ध्यान रखना भी जरूरी है कि उनसे जुड़ी स्टोरीज़ का आकार और टोन कैसा है। आम तौर पर माना जाता है कि किसी भी खबर का कोई भी पैकेज डेढ़ मिनट से ज्यादा बड़ न हो। छोटे-छोटे वाक्यों और कम शब्दों में खबर देने की कोशिश हो। ताकि तेज गति से ज्यादा से ज्यादा खबरें इस्तेमाल की जा सकें। एक खबर से जुड़े कई पैकेज हो सकते हैं, ऐसे में पैकेज के आकार के साथ साथ इस बात पर भी ध्यान देना जरूरी हो जाता है कि उनमें विजुअल किस हद तक दोहराए जा रहे हैं और क्य़ा ग्राफिक्स या एनिमेशन जैसे कुछ और तत्व हैं या नहीं, जो स्टोरी को इनटेरेस्टिंग बना सकें। सॉफ्ट स्टोरीज़ के मामले में भी पैकेज छोटे रखने और उनमें एंबिएंस और संगीत का इस्तेमाल करने की परंपरा है। लंबे पैकेज बुलेटिन की समय सीमा के हिसाब से फिट नहीं बैठते, साथ ही उसकी रफ्तार भी धीमी कर देते हैं। कुल मिलाकर बुलेटिन तैयार करनेवालों की मुख्य़ चुनौती दर्शकों की दिलचस्पी उनमें बनाए रखने की और उन्हें अपने साथ बांधे रखने की होती है। इसके लिए जरूरी है कि बुलेटिन की शुरुआत भी दिलचस्प हो। हर बुलेटिन एक ही तरीके से न खुले, उनमें ताजगी बनाए रखने की कोशिश हो। वेरायटी दिखाने की कोशिश हो। बड़ी खबरों या ब्रेकिंग न्यूज़ से शुरुआत करने पर खबर से जुड़ी कई चीजें एक साथ – विंडोज़ के जरिए दिखाने की व्यवस्था हो। ग्राफिक्स के स्तर पर भी वैरिएशन देखने को मिले – कुल मिलाकर रफ्तार तेज़ हो जिससे आप एक खबर पर टिके रहकर भी दर्शकों को अपने साथ बांधे रख सकें। इसके लिए एंकर लिंक्स भी छोटे होने चाहिए – 15 सेकेंड से ज्यादा नहीं, और बाइट अगर इस्तेमाल हो रही हों, तो वो भी पूरी बात कहें, लेकिन कुछ भी दोहराया जाता न लगे यानी खबर देख रहे दर्शक को उस पर सोचने का मौका देने से पहले ही नय़ा आइटम उसके सामने परोस दिया जाए, जिससे बुलेटिन में उसकी दिलचस्पी बनी रहे। इस तरह बुलेटिन तैयार करना आसान नहीं, भले ही आपके पास पर्याप्त समय हो और आप बुलेटिन की परिकल्पना पहले से तय करके चलें, लेकिन चीजें ऑन एयर होते वक्त अगर किसी भी स्तर पर सावधानी न रही, तो स्क्रीन पर चौंकानेवाली दुर्घटना हो सकती है और न्यूज़रूम में धमाका हो सकता है, उबाल आ सकता है। पूरे टेलीविजन समाचार के समान एक बुलेटिन का प्रसारण भी टीम वर्क है और किसी भी स्तर पर ग़ड़बड़ हुई तो निराशाजनक स्थिति पैदा होती है। इससे बचने के लिए बुलेटिन प्रोड्य़ूसर को बेहद सतर्क, सजग औऱ चौकन्ना रहने की जरूरत है। जरूरी ये है कि तैयारी मजबूत हो, साथ ही आनेवाली खबरों पर भी कान रहे, ताकि कुछ भी ऐसा छूटने न पाए, जो आपके बुलेटिन के लिए जरूरी हो। आम तौर पर अभ्यास से ही ये विशेषताएं हासिल होती हैं जिसके साथ-साथ जरूरी है समय और परिस्थितियों के मुताबिक, खबरों की सुलझी हुई सोच और समझदारी। अगर आपके पास एक राजनीतिक खबर, एक हादसे की खबर और एक महंगाई घटने या बढ़ने जैसी आम आदमी से जुड़ी –तीन बड़ी खबरें हों, तो आपके लिए तय करना मुश्किल होगा कि आप बुलेटिन की शुरुआत किस खबर से करें। जाहिर है, इसके लिए आपको खबर की तात्कालिकता और उसके इंपैक्ट का भी ख्याल रखना होगा। उलझन की स्थिति से बचने का बेहतरीन उपाय ये है कि अपने सहयोगियों और वरिष्ठ लोगों से सलाह मशविरा करें, दूसरे प्रतिद्वंद्वी समाचार चैनलों पर ध्यान रखें और फिर जो सब मिलकर तय करें, उस खबर से बुलेटिन की शुरुआत करें। बुलेटिन बनाते वक्त आपकी बाजीगरी इसी में है कि आप खबरों से किस तरह खेलते हैं, दर्शकों के लिए उन्हें कितने दिलचस्प तरीके से पेश करते हैं।
बात बुलेटिन की शुरुआत की हुई, तो थोड़ा बुलेटिन की रूपरेखा पर भी बात कर लें। आम तौर पर बुलेटिन की शुरुआत चैनल मोंटाज और स्टिंग के बाद हेडलाइंस के साथ होती है। बुलेटिन को नयापन देने के लिए इन दिनों नए-नए प्रयोग भी होते देखे जा सकते हैं। मसलन शुरुआत में आज की तीन बड़ी खबरों का इंट्रो और भी आज की तमाम बड़ी खबरें हेडलाइन के रूप में पेश की जाएं, या फिर बुलेटिन की शुरुआत ब्रेकिंग न्यूज़ से और 30 सेकेंड बाद एंकर हेडलाइन पर आए। हेडलाइंस में चुंकि 3, 5 या 8 या 10 बड़ी खबरें ली जाती हैं, लिहाजा इंट्रो खबरों में या ब्रेकिंग न्यूज़ में हेडलाइन की खबरें न हों, तो अच्छा। वैसे आज कल इसका कुछ खास ध्यान नहीं रखा जाता। लेकिन खबरों को दोहराने से बचें, तो बेहतर। इसके बाद आते हैं प्रमुख खबरों पर जिनके बारे में ऊपर चर्चा हो चुकी है, यही खबरें बुलेटिन की बॉडी तैयार करते हैं। इसके बाद मामला आता है कि बुलेटिन खत्म करने के लिए किस तरह की स्टोरी हो। आमतौर पर परंपरा य़े है कि बुलेटिन का अंत हल्की-फुल्की, मनोरंजन प्रधान या खेल की खबरों से हो। कुछ चैनलों पर बुलेटिन के अंत में अंतरराष्ट्रीय खबरें और यादगार तस्वीरें दिखाने का भी चलन है। यानी कुल मिलाकर सिद्धांत ये कि तेज़ रफ्तार और भीड़-भाड़ वाली खबरों से भरे बुलेटिन का अंत सुखद और शांतिपूर्ण तरीके से हो। कुछ समाचार चैनलों में बुलेटिन के अंत में भी खबरों के सार-संक्षेप के रूप में हेडलाइंस दिखाने की परंपरा रही है, जो अब खत्म होती जा रही है। वजह ये कि चंद मिनटों के कमर्शिय़ल ब्रेक के बाद फिर से बुलेटिन या शो की शुरुआत में हेडलाइंस आती है तो उनके दोहराव की बड़ी गुंजाइश होती है।

क्या करें क्या ना करें-
हर बुलेटिन की समय सीमा तय होती है, लिहाजा उससे हटने और खबरों को खींचने की कोशिश बिल्कुल न करें। इससे कमर्शियल्स पर असर पड़ेगा , कारोबारी हित प्रभावित होंगे, साथ ही सबसे अहम बात ये कि अगले बुलेटिन पर भी असर पड़ेगा।
जैसा कि पहले कहा जा चुका है कि बुलेटिन समाचारों का संग्रह है, उनका गुलदस्ता है, लिहाजा कोशिश ये होनी चाहिए कि खबरों की वैरायटी बनी रहे, एक या दो खबरों पर बुलेटिन केंद्रित न रहे।
बुलेटिन प्रस्तुत करनेवाले एंकर्स को खबरों का भली-भांति ज्ञान होना चाहिए। उन्हें लाइव स्थिति में रिपोर्टर्स से पूछे जानेवाले सवालों की जानकारी होनी चाहिए। इसके लिए जरूरी ये है कि उन्हें खबरों की एंकर लीड और स्क्रिप्ट पहले से मिली हो। हालांकि बुलेटिन तैयारी की भागमभाग में ये अक्सर संभव नहीं होता, लेकिन ये एंकर्स की खुद की भी जिम्मेदारी है कि वो खुद को अपडेट रखें और बुलेटिन प्रोड्यूसर से बात करके आनेवाले बुलेटिन की तैयारी कर लें। तकनीकी गड़बड़ियां कभी भी हो सकती हैं, लिहाजा एंकर को अपने दिमाग और प्रत्युत्पन्नमतित्व यानी प्रेजेंस ऑफ माइंड के इस्तेमाल की क्षमता और छूट होनी चाहिए, ताकि टेलीप्रॉम्पटर जवाब दे जाए, तो बुलेटिन पर असर न पड़े।
बुलेटिन की शुरुआत चैनल मोंटाज या स्टिंग के साथ होती है, जिसमें म्यूजिक भी होता है, लेकिन आगे बुलेटिन में म्यूज़िक का इस्तेमाल आम तौर पर नहीं करते , क्योंकि इससे अलग-अलग खबरों की लय और रफ्तार भंग होने का खतरा रहता है। हां, अलग-अलग स्टोरीज में मूड के मुताबिक, संगीत का इस्तेमाल हो सकता है। वैसे, स्वतंत्रता दिवस या गणतंत्र दिवस जैसे समारोहों पर केंद्रित या किसी बड़ी हस्ती के निधन के मौके पर लाइव बुलेटिन में संगीत का इस्तेमाल हो सकता है, चुंकि तब बुलेटिन एक थीम पर केंद्रित रहता है।
आजकल पंरपरागत बुलेटिन्स यानी हर तरह की खबरें समेटे रहनेवाले बुलेटिन्स का रिवाज खत्म होता जा रहा है। ऐसे में बुलेटिन्स के कई रूप और उन्हें पेश करने के नए-नए तरीके सामने आ रहे हैं। किसी एक बड़ी खबर का दिन होने पर आम तौर पर स्पेशल बुलेटिन्स की तैयारी होती है, जिसमें एक खबर के तमाम पहलुओं पर नज़र रहती है। कुछ समाचार चैनलों में सप्ताहांत में हफ्ते भर की प्रमुख खबरों पर आधारित बुलेटिन्स की भी परंपरा है। ध्यान इस बात का रहना चाहिए कि बुलेटिन खबरों –समाचारों पर केंद्रित हो, विचार पक्ष उस पर हावी न हो।
बुलेटिन्स की तैयारी में इस बात का खास ख्याल रहे कि खबरों का क्रम क्या हो। आम तौर पर आपके बास्केट में तीन-चार तरह की खबरें हो सकती हैं- एक तो ब्रेकिंग न्यूज़ जो जब आएं, तभी उन्हें प्रसारित करना जरूरी होगा। दूसरी वो खबरें जिन्हें आपको प्रसारित करना ही करना है। तीसरी वो खबरें जिन्हें इस्तेमाल किया भी जा सकता है और नहीं भी यानी बहुत कम महत्वपूर्ण खबरें, और कुछ ऐसी भी खबरें होती है, जिन्हें पहली नजर में आप खारिज कर सकते हैं, बुलेटिन में बिल्कुल नहीं लेना चाहेंगे। तो तमाम खबरों को आपको क्रमवार व्यवस्थित करना होगा, ताकि कोई जरूरी खबर छूट न जाए और कोई गैर-जरूरी खबर बुलेटिन में जगह न पा ले। साथ ही, ब्रेकिंग, जरूरी और गैर जरूरी खबरों के प्रसारण पर विचार करते हुए उनकी समय सीमा भी आपको तय करनी होगी। यानि अगर ब्रेकिंग खबर है तो कम से कम 30 सेकेंड उस पर खर्च करने होंगे, अगर ब्रेकिंग के साथ विजुअल और बाइट भी हैं, तो खबर को डेढ़ से 2 मिनट दिए जा सकते हैं। लेकिन सिर्फ ग्राफिक पट्टी के साथ किसी कीमत पर वो खबर 30 सेकेंड से ज्यादा की अहमियत नहीं रखती। अगर उसको सहारा देनेवाले तत्व आपके पास आ रहे हों, और खबर तेजी से विकसित हो रही हो, तो भी समय सीमा पर ध्यान रखना पड़ेगा। इसी तरह दूसरी खबरों के लिए हर खबर पर डेढ़ से दो मिनट देना काफी होगा। एक खबर से जुड़ी कई स्टोरीज़ हों, तो उन्हें एक साथ जोड़कर आप 3 से पांच मिनट का सेगमेंट बना सकते हैं। लेकिन ध्यान रखें कि दूसरी खबरों को भी बुलेटिन में जगह मिले ।
बुलेटिन प्रसारण की इस प्रक्रिया में पैनल कंट्रोल रूम के सहयोगियों पैनल प्रोड्यूसर्स , टेक्निकल डायरेक्टर्स, साउंड इंजीनियर्स के साथ मास्टर कंट्रोल रूम की भी अहम भूमिका रहती है जो बुलेटिन की शुरुआत और अंत तक समय सीमा का ध्यान रखते हैं। बुलेटिन प्रोड्यूसर्स के साथ-साथ रनडाउन प्रोड्यूसर्स की भी ये अहम जिम्मेदारी है कि वो मास्टर कंट्रोल रूम और पैनल के लगातार संपर्क में रहें, उनके काउंट डाउन का ध्यान रखें, ताकि न तो बुलेटिन की अवधि बढ़े, ना हो वो छोटा हो जाए। किसी भी स्तर पर तालमेसल गड़बड़ होने पर बुलेटिन की लय खराब हो सकती है और इसका सीधा असर ग्राहक यानी दर्शक पर पड़ेगा जो रिमोट कंट्रोल के बटन दबाकर आपसे दूर हो सकता है। खबरों से खेलने के अलावा, समय की धारदार तलवार पर खबरों का तारतम्य बनाए रखने के लिए एंकर, रनजाउन, पैनल और मास्टर कंट्रोल रूम को एक सूत्र में बांधे रखना ही बुलेटिन की सबसे बड़ी बाजीगरी है। जो इसमें सफल रहा वो बेहतरीन बुलेटिन प्रस्तुत कर सकता है।
आज कल बुलेटिन से जुड़ा सारा काम कंप्यूटरों के जरिए होता है औऱ स्क्रिप्ट्स भी कंप्यूटरों पर ही न्यूज़रूम सॉफ्टवेयर्स के जरिए लिखी जाती हैं। ऐसे में इस बात का खास ख्याल रखा जाना चाहिए कि एंकर की पढ़ी जानेवाली सामग्री में भाषा और मात्रा के दोष न हों। साथ ही वाक्य छोटे हों, बहुत लंबे न हो, ताकि लय बनाए रखी जा सके। स्क्रिप्ट टेली प्रॉम्पटर के स्क्रीन पर सही तरीके से दिखे, इसके लिए दो लाइनों के बीच स्पेसिंग और उनका एलाइनमेंट भी ठीक रहना चाहिए। अगर एंकर को प्रिंट आउट दिए गए हों, तो उन पर नंबरिंग जरूर हो, और उन्हें कभी नत्थी करके न दिया जाए। इससे उन्हें पढ़ने के लिए पन्ने अलग करने में सुविधा होगी।
संक्षेप में बुलेटिन प्रस्तुत करनेवालों के लिए जिन बातों का ध्यान रखना अत्यावश्यक है वो ये है कि हर आइटम छोटा औऱ सरल हो। एंकर लीड्स में ऐसे शब्दों का व्यवहार न हो, जो चलन में नहीं। खास उपयोग वाले शब्दों को जोर देने के लिए दोहराया भी जा सकता है, लेकिन कुछ भी हद से ज्यादा दोहराने से बचें। पॉज और विराम चिह्नों और आश्चर्य जाहिर करनेवाले चिह्नों के इस्तेमाल में सावधानी बरती जाए क्योंकि एंकर स्क्रिप्ट पढ़ते वक्त अर्थ का अनर्थ कर सकते हैं। संक्षेपित शब्दों यानी abbreviations का तभी इस्तेमाल हो, जब वो ज्यादा चलन में हों, ऐसे शब्दों के abbreviations का इस्तेमाल न हो, जो चलन में नहीं है, इससे दर्शक को समझने में दिक्कत हो सकती है। अंग्रेजी के कठिन शब्दों के उच्चारण में दिक्कत न हो, इसलिए उन्हें रोमन में लिखा जाए या फिर देवनागरी में उन्हें अलग-अलग करके लिखा जाए।
टेलीविजन और रेडियो के बुलेटिन्स में समय सीमा की समानता होती है। फर्क ये होता है कि रेडियो के लिए तैयार किए जानेवाले बुलेटिन ज्यादातर लिखित रूप में ही होते हैं- उनमें स्टोरीज की स्क्रिप्ट्स प्रमुख होती हैं। इसके अलावा रिपोर्टर्स और पत्रकारों की वॉयस रिपोर्ट्स के पैकेज भी होते हैं और स्टोरीज़ को दिलचस्प बनाने के लिए उनमें साउंड बाइट और नेचुरल एंबिएंस का भी अक्सर इस्तेमाल होता है। टेलीविजन और रेडियो दोनों  ही के बुलेटिन में खबरों की क्रमबद्धता काफी मायने रखती है और तमाम एलिमेंट्स को इस्तेमाल करने की गुंजाइश रहती है। लिहाजा दोनों ही माध्यमों में बुलेटिन प्रोड्यूसर्स को काफी समझदारी और चतुराई से काम करना पड़ता है ताकि बुलेटिन बोझिल न हों, कसे हुए हों और श्रोताओं और दर्शकों को बांधे हुए रखें।

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