प्रोड्यूसर
यानी टेलीविजन समाचार प्रसारण का कप्तान। समाचार चैनलों में प्रोड्यूसर की भूमिका कितनी
अहम होती है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि किसी भी बुलेटिन या शो,
जिसकी जिम्मेदारी उस पर होती है, उसकी पूरी कमान – यानी बुलेटिन या शो की
परिकल्पना से लेकर उसके ऑन एयर होने तक की पूरी प्रक्रिया के हर पहलू को
कार्यान्वित करने का काम प्रोड्यूसर पर होता है। इस तरह प्रसारण से जुड़े तमाम
विभाग और हर कड़ी प्रोड्यूसर से जुड़े होते हैं। बात बुलेटिन या शो के आइडियाज़
देने से लेकर उसके विकास और प्रसारण को अंजाम देने तक की है, जिसके कई चरण होते
हैं और हर चरण से जुड़े लोगों को काम शो के प्रोड्यूसर के मुताबिक करना पड़ता है,
ठीक वैसे ही, जैसे चैनल के प्रमुख – संपादक या न्यूज़ डायरेक्टर या फिर मैनेजिंग
एडिटर या एग्जेक्यूटिव प्रोड्यूसर के तहत और तमाम विभाग काम करते हैं, कुछ-कुछ
वैसे ही प्रोड्यूसर भी बुलेटिन या कार्यक्रम के मामले में चैनल की एक यूनिट के प्रसारण
की धुरी के तौर पर काम करता है, कुछ स्टाफ और कुछ विभाग उसके मातहत होते हैं, तो
बाकियों से उसे तालमेल बिठाकर काम करना पड़ता है। हिंदी में प्रोड्यूसर का पर्याय
शब्द है निर्माता यानी कार्यक्रम के निर्माण का जिम्मेदार और प्रस्तुतकर्ता यानी
प्रस्तुति के लिए जिम्मेदार। ये शब्द बड़े स्तर पर फिल्म निर्माण से जुड़ा है या
यूं कहें कि वहीं से आयात किया गया है, जैसे और भी तमाम ऐसे पदनाम हैं, जो फिल्म
से टेलीविजन में आए हैं, क्योंकि दोनों ही प्रसारण प्रणालियों में ऑडियो-वीडियो के
इस्तेमाल से जुड़ी कुछ मूलभूत समानताएं हैं, जिनके बारे में सभी जानते हैं औऱ यहां
विस्तार से चर्चा की आवश्यकता नहीं। जो फर्क सिनेमा और टेलीविजन के मनोरंजन चैनलों
तथा समाचार चैनलों के प्रोड्यूसर में होता है, वो ये है कि समाचार चैनलों में
प्रोड्यूसर की भूमिका संपादकीय अधिक है। यानी वो समाचार बुलेटिन और समाचार आधारित कार्यक्रमों
के प्रसारण के तकनीकी पक्ष को तो समझता ही है, बुलेटिन और कार्यक्रमों की संपादकीय
लाइन तय करने और संपादकीय पक्ष का ध्यान रखने के लिए भी जिम्मेदार होता है। इस रूप
में काफी हद तक वो संपादक की भूमिका में भी होता है, लेकिन अंतर यही है कि संपादक
पद नाम को धारण करनेवाले लोग आमतौर पर खुद को स्क्रिप्ट लेखन औऱ खबर की लाइन तय
करने तक सीमित कर लेते हैं, जबकि प्रोड्यूसर को उसके तकनीकी पहलुओं पर भी बारीकी
से नज़र रखनी पड़ती है। इस तरीके से देखें तो समाचार चैनलों में प्रोड्यूसर्स की भूमिका
ज्यादा बड़ी है और इसी लिहाज से चैनलों की Hierarchy में प्रोड्यूसर्स के
भी तमाम रूप नज़र आते हैं, जिनकी अलग-अलग जिम्मेदारियां होती हैं।
किसी
कार्यक्रम या बुलेटिन का प्रोड्यूसर भले ही एक आदमी हो, लेकिन इस पदनाम से जुड़े
और भी तमाम वरिष्ठ स्टाफ होते हैं, जो अलग-अलग भूमिकाओं में काम करते हैं। चुंकि प्रोड्यूसर
के साथ तकनीकी पहलू भी जुड़ा है, लिहाज इस पद से जुड़े कामकाज का वर्गीकरण कुछ इस
तरीके से किया जा सकता है-
एग्जेक्यूटिव प्रोड्यूसर- चैनल के मुख्य संपादकीय
कार्यकारी, जो आम तौर पर न्यूज़ डायरेक्टर या मैनेजिंग एडिटर को रिपोर्ट करते हैं
और चैनल के संपादकीय और प्रोडक्शन से जुड़े मामलों के प्रभारी होते हैं। एग्जेक्यूटिव
प्रोड्यूसर ऐसे कई कार्यक्रमों के भी प्रभारी हो सकते हैं, जिनके कांसेप्ट और
प्रोडक्शन में उनकी भूमिका हो। आम तौर पर खास कार्यक्रमों के वरिष्ठ निर्माताओं को
भी एग्जेक्यूटिव प्रोड्यूसर का दर्जा दे
दिया जाता है। लेकिन ये पूरी व्यवस्था अलग अलग चैनलों के प्रबंधन और कामकाज के
हिसाब से अलग-अलग हो सकती है। समाचार चैनलों में चुंकि ज्यादातर सीधा प्रसारण होता
है, लिहाजा एग्जेक्यूटिव प्रोड्यूसर FPC तय करने, उन्हें लागू करने
पर ध्यान देने और भविष्य की रूपरेखा तय करने जैसे चैनल ऑपरेशन से जुड़े काम करते
हैं। वहीं मनोरंजन चैनलों और ऩॉन-न्यूज़ चैनलों में उनका काम कार्यक्रमों के
प्रिव्यू और उन्हें हरी झंडी देने का भी हो सकता है।
डिप्टी एग्जेक्यूटिव प्रोड्यूसर- चैनल के प्रमुख
कर्ता-धर्ता, संपादकीय अधिकारी या नंबर 2 कार्यकारी हो सकते हैं, जो संपादकीय और
प्रोडक्शन के मामले समझते हों और उनसे जुड़े हों।
एसोसिएट एग्जेक्यूटिव प्रोड्यूसर- कार्यक्रमों और
बुलेटिन्स के रोजाना के मामलों का प्रभार देखते हैं। फॉरवर्ड प्लानिंग करते हैं औऱ
शिफ्ट पर भी निगरानी रखते हैं। चैनल के मैनपॉवर के प्रबंधन का भी काम इनके जिम्मे।
सीनियर प्रोड्यूसर- आम तौर पर शिफ्ट के प्रभारी,
बुलेटिनों और कार्यक्रमों के प्रसारण के लिए जिम्मेदार, अलग-अलग खास कार्यक्रमों
के निर्माण से भी जुड़े हो सकते हैं
एसोसिएट सीनियर प्रोड्यूसर/ प्रोड्यूसर- सीनियर प्रोड्यूसर के सहयोगी, बुलेटिनों औऱ अलग-अलग
खास कार्यक्रमों की तैयारी, निर्माण और प्रसारण की जिम्मेदारी संभालते हैं
एसोसिएट प्रोड्यूसर/ एसिस्टेंट
प्रोड्यूसर- चैनल के रोजमर्रा के कामकाज, रनडाउन, टिकर, स्क्रिप्टिंग, पैकेजिंग के
कामकाज देखते हैं
रनडाउन प्रोड्यूसर- एसोसिएट प्रोड्यूसर/ एसिस्टेंट
प्रोड्यूसर स्तर के स्टाफ, बुलेटिन और कार्यक्रमों के रनडाउन के प्रबंधन का जिम्मा
पैकेजिंग प्रोड्यूसर- प्रोड्यूसर से लेकर एसिस्टेंट
प्रोड्यूसर और ट्रेनी स्तर तक के तमाम स्टाफ जिन पर न्यूज़ स्टोरीज़ की पैकेजिंग
की जिम्मेदारी हो, वीडियो एडिटर्स से तालमेल बिठाना प्रमुख काम
पैनल प्रोड्यूसर- पैनल कंट्रोल रूम की कमान
संभालते हैं, बुलेटिन और कार्यक्रमों को अबाध तरीके से ऑन एयर करने का जिम्मा
लाइन प्रोड्यूसर- आमतौर पर मनोरंजन और नॉन-न्यूज़
करंट अफेयर्स चैनलों में स्टाफ के प्रबंधन का काम देखते हैं
फील्ड प्रोड्यूसर- आउटडोर शूटिंग के प्रबंधन की
जिम्मेदारी
आमतौर
पर यही माना जाता है कि टेलीविजन के प्रोड्यूसर्स वीडियो प्रोडक्शन से जुड़े तमाम
पहलुओं पर नज़र रखते हैं। लेकिन समाचार चैनलों में खबरों और खबरिया कार्यक्रमों की
स्क्रिप्ट लिखना भी उनकी जिम्मेदारियों में शुमार है। मनोरंजन चैनलों में भी
प्रोड्यूसर स्क्रिप्ट लेखक हो सकते हैं, क्योंकि उन कार्यक्रमों की रूपरेखा और
विकास का हर पहलू उनके दिमाग में होता है जिनसे वो सीधे जुड़े होते हैं, ऐसे में कार्यक्रमों
की स्क्रिप्ट तय करना भी उनका ही काम होता है, तो अगर वो अपनी जरूरत के मुताबिक, बढ़िया
लिख सकते हैं, तो अपनी इस क्षमता का इस्तेमाल क्यों न करें, लेकिन स्क्रिप्ट
कार्यक्रम निर्माण का एक हिस्सा है और बाकी तमाम ऐसे हिस्से हैं, जिन पर
प्रोड्यूसर को माथापच्ची करनी पड़ती है, ऐसे में स्क्रिप्ट लिखने के लिए अलग से
लोग होते हैं, लेकिन उसे अंतिम रूप देना या उस पर मुहर लगाना तो प्रोड्यूसर के ही
हाथों में होता है। समाचार चैनलों में भी स्थिति बहुत भिन्न नहीं है। वजह ये कि
आजकल भारत के समाचार चैनलों में खबरों के साथ-साथ खबरों पर आधारित ऐसे कार्यक्रमों
की बहुतायत हो गई है, जो डॉक्यूमेंटरी और नायकीयता से भरपूर मनोरंजन चैनलों के
कार्यक्रमों से टक्कर लेते हैं। इसके पीछे मानसिकता तो सिर्फ रचनात्मकता यानी Creativity के इस्तेमाल से
कुछ अलग कर दिखाने की है, लेकिन इसके चक्कर में समाचार चैनलों को भी प्रोड्यूसर्स
की पूरी क्षमता का इस्तेमाल करना पड़ता है, या ऐसे प्रोड्यूसर नियुक्त करने पड़ते
हैं, जो समाचारों के प्रसारण के साथ-साथ उन्हें विस्तृत कार्यक्रमों की शक्ल भी दे
सकें। 13 दिसंबर 2009 को संसद पर हुए हमलों को लेकर ज़ी न्यूज़ ने बाकायदा फिल्म की
शक्ल वाला कार्यक्रम बना डाला, जिसे प्रोड्यूस तो चैनल के प्रोड्यूसर्स ने ही किया
था, लेकिन ये कार्यक्रम मनोरंजन और दूसरे टीवी चैनलों के कार्यक्रमों को भी टक्कर
देनेवाला था। इस तरह के कई कार्यक्रम गुजरे कई बरसों में समाचार चैनलों पर देखे गए
हैं, जिनकी परिकल्पना औऱ डिज़ाइन समाचार से जुड़े प्रोड्यूसर्स ने अपनी रचनात्मक
क्षमता का इस्तेमाल करके ही की।
बात
समाचार चैनलों के प्रोड्यूसर्स की हो रही है, तो पहले ये भी जान लेना चाहिए कि बुलेटिन
प्रोड्यूसर्स की क्या जिम्मेदारी है। जैसा कि पहले कहा जा चुका है, खबरों की
स्क्रिप्ट राइटिंग तो बुलेटिन प्रोड्यूसर के काम में शुमार है ही, पदनाम के मुताबिक
उसे बुलेटिन की रूपरेखा पहले तय करनी होती है और ये तय करना होता है कि वो किन
खबरों को कितना महत्व देना चाहता है। उसे ये भी ध्यान रखना होता है कि तमाम
इस्तेमालशुदा खबरों से जुड़े पैकेज, VO यानी विजुअल्स, SOT यानी बाइट्स
और ग्राफिक्स जैसे सारे आइटम समय से और तय डेडलाइन में मिल जाएं। इसके लिए उसे अपने
सहयोगी पैकेजिंग के प्रोड्यूसर से तालमेल बिठानी पड़ती है या खुद अपना हाथ-पांव
चलाना पड़ता है। इसके अलावा खबरों को पेश करने के मामले में हर खबर के लिए अलग बैकग्राउंड
तैयार करने का चलन है, जिसे समाचार चैनलों
की भाषा में ‘सेट’, ‘क्रोमा’, ‘प्लाज़्मा’ जैसे तमाम नाम जरूरत के मुताबिक तकनीकी पहचान के
लिए दिए गए हैं। तो प्रोड्यूसर का ये भी काम है कि वो तय करे कि किस खबर के लिए
किस तरह के बैकग्राउंड की कैसी डिज़ाइनिंग होनी चाहिए, ताकि एंकर की पृष्ठभूमि के
जरिए ही खबर की पहली झलक मिल जाए। इसके लिए तस्वीरों और वीडियो के चयन से लेकर
उनके लिए दिए जानेवाले समुचित टाइटल टेक्स्ट के बारे में सोचना औऱ खुद या वरिष्ठों
की मदद से उसे तय करना भी प्रोड्यूसर का काम है। बुलेटिन प्रोड्यूर चुंकि खबरों और
उनसे जुड़े एंकर लीड्स का लेखक भी होता है, तो उसे ये भी ध्यान रखना पड़ता है कि उनकी
भाषा सरल और आसान हो, या तुकबंदियों से भरी लच्छेदार। भारतीय समाचार चैनलों में
प्रसारित होने वाले बुलेटिन्स औऱ कार्यक्रमों में आजकल टेक्स्ट्स की भरमार दिखती
है, जो टॉप बैंड, लोअर बैंड, ग्राफिक्स ब्रैंड और बार वगैरह के रूप में इस्तेमाल किए
जाते हैं, तो उनकी परिकल्पना भी प्रोड्यूसर को ही करनी पड़ती है साथ ही ये भी
ध्यान रखना पड़ता है कि उन पर लिखे जानेवाले टेक्स्ट सार्थक, समझने में आसान और
देखने में सुंदर हों, उनकी एलाइनमेंट सही हो और आकार भी फिट बैठे। प्रोड्यूसर
चुंकि पूरे बुलेटिन का या शो का मालिक होता है, तो ये उसी पर निर्भर करता है कि वो
अपने शो को सुंदर और आकर्षक बनाने के लिए उसकी कितनी और किस तरह से सजावट करे। वो चाहे
तो शो या हरेक सेगमेंट की शुरुआत और इंट्रोडक्शन के लिए विजुअल, टेक्स्ट और
म्यूजिक के मेल से बने ‘स्टिंग’ या ‘शोओपेन’ का इस्तेमाल करे या फिर चैनल मोंटाज का या
चैनल बंपर का, ये उस पर निर्भर करता है। साथ ही ये प्रोड्यूसर को ही तय करना होता
है कि वो पूरे बुलेटिन या शो में एक ही सेट का इस्तेमाल करे या कि अलग-अलग सेट
निर्माण करवाए। मकसद यही है कि शो की प्रस्तुति सुंदर दिखनी चाहिए। वैसे , तमाम
समाचार चैनलों में उच्च संपादकीय स्तर से इन मामलों को लेकर एकरूपता बनाए रखने के
लिहाज से कुछ नियम कायदे तय कर दिए जाते हैं, जिनका पालन प्रोड्यूसर को करना होता और
उन्हीं के दायरे में अपनी रचनात्म औऱ संपादकीय क्षमता की नुमाइश करने की चुनौती
होती है। बुलेटिन की तैयारी से लेकर प्रसारण तक को अंजाम देने के लिए बुलेटिन
प्रोड्यूसर को अपने डेस्क के रनडाउन प्रोड्यूसर से सहयोग मिलता है और उसे पैनल
कंट्रोल रूम के पैनल प्रोड्यूसर्स के संपर्क में भी रहना पड़ता है, जो बुलेटिन के
तमाम आइटम्स और लाइव एलिमेंट्स को सही तरीके से ऑन एयर कर सकें, इसके लिए उन्हें
जरूरी निर्देश समय-समय पर देने पड़ते हैं, ताकि बुलेटिन और शो में प्रवाह बना रहे,
कहीं कोई कड़ी टूटे नहीं और एंकर के चेहरे या किसी ग्राफिक प्लेट या चैनल के प्लेट
पर फ्रिज होकर आगे के आइटम के लिए इंतजार करने की ऐसी स्थिति न पैदा हो, जब चैनल
बिल्कुल मूक जैसा दिखे। लाइव प्रसारण की स्थिति में प्रोड्यूसर्स को फील्ड में
मौजूद संवाददाताओं और दूसरे सहयोगियों के संपर्क में रहना पड़ता है। इसके लिए
समाचार चैनलों में एसाइनमेंट डेस्क के जरिए संपर्क और तालमेल बिठाने की परंपरा है।
लेकिन कई जगह सीधे बुलेटिन प्रोड्यूसर भी संवाददाताओं से फोन पर अपडेट ले सकते हैं
और उन्हें लाइव चैट या फोन इन के लिए निर्देश दे सकते हैं। ये व्यवस्था अलग-अलग हो
सकती है, सिर्फ ध्यान इस बात का रखना होता है कि सब कुछ तय योजना के मुताबिक ऑन
एयर हो, या फिर प्रसारण के बीचो बीच भी योजना में बदलाव हो, तो इसके हर पक्ष से
जुड़े लोगों को उसकी समुचित जानकारी और निर्देश हों, ताकि प्रसारण अबाध तरीके से हो
सके। इस दौरान उन्हें बुलेटिन की शुरुआत , उसके अंत और कमर्शियल ब्रेक्स की
टाइमिंग और अवधि का भी खास ध्यान रखना पड़ता है। ये सब सुचारू रूप से चल सके इसके
लिए आम तौर बुलेटिन प्रोड्यूसर अमूमन पैनल कंट्रोल रूम में पैनल प्रोड्यूसर और
टेक्निकल डायरेक्टर्स के साथ ही बैठते हैं या फिर टॉकबैक सिस्टम के जरिए संपर्क
में रहते हैं, ताकि समय पर सही फैसले ले सकें, और सहयोगियों को अवगत करा सकें। इस
मामले में प्रोड्यूसर्स को वक्त और खबरों पर पैनी नजर रखनी पड़ती है। ये एक बड़ी
चुनौती है और इसके लिए खबरों की समझ, उन पर पकड़ के साथ साथ उनके प्रति सजगता बेहद
जरूरी है। साथ ही प्रसारण के तकनीकी पक्षों की जानकारी तो उन्हें होनी ही चाहिए,
जैसा कि पदनाम से ही जाहिर है और इसलिए भी जरूरी है ताकि वो प्रसारण की गलतियों को
समझ सकें और सुधार कर सकें, तथा पैनल और टेक्निकल डायरेक्टर्स को ये निर्देश दे
सकें कि वो किस तरह आइटम्स का प्रसारण चाहते हैं। आखिरकार प्रोड्यूसर बुलेटिन और
शो के किमांडर होते हैं, तो उन्हें इस तरह के निर्देश देने का अधिकार है और इसमें
उन्हें कोई हिचक नहीं होनी चाहिए। बुलेटिन और शो की तैयारी के दौरान प्रोड्यूसर्स
को एंकर्स के संपर्क में भी रहना चाहिए औऱ उन्हें अपने आइडियाज़ से अवगत कराना
चाहिए वो प्रसारण में कैसी प्रस्तुति और किस तरह की रफ्तार देखना चाहते हैं।
एंकर्स को बुलेटिन या शो की हार्ड कॉपी यानी प्रिंटेड लिंक भी मुहैया करा देने चाहिए,
ताकि वो प्रस्तुति से पहले उन्हें पढ़कर जानकारी अपने दिलो-दिमाग में जमा सकें। चाहे
समाचार बुलेटिन हों या फिर खबरों पर आधारित कार्यक्रम, उन्हें प्रमोट करने या खबरों
के बीच उनके विज्ञापन की भी आजकल जबर्दस्त परिपाटी है। तो प्रोड्यूसर को ही ये भी
तय करना पड़ता है कि उसे अपने शो को किस तरह प्रमोट करना है। इसके लिए आजकल कमिंग
अप बैंड, कमिंग अप ड्रॉप-अप्स, कमिंग अप कट आउट्स, प्रोमो, यानी प्रोमोशनल पैकेज़
वगैरह का इस्तेमाल होता है, जिनकी परिकल्पना बुलेटिन प्रोड्यूसर ही करता है और
ग्राफिक्स और प्रोमो सेक्शन से जुड़े प्रोड्यूसर उनका निर्माण करते हैं। साथ ही
अगली स्टोरी या अगले शो के लिए ‘Teaser’ तैयार करना भी प्रोड्यूसर का काम है। यहां
ध्यान देने की बात ये भी है कि एक बुलेटिन या शो की कमान एक आदमी के हाथों में हो,
लेकिन उसके सहयोग के लिए तमाम प्रोड्यूसर पदनाम वाले स्टाफ होते हैं, जो मुख्य
प्रोड्यूसर के कहे मुताबिक, निर्देशानुसार, उसके सहयोग के लिए बुलेटिन या शो के
छोटे-छोटे हिस्सों का निर्माण करते हैं। तो एक शो के प्रोड्यूसर से भी तमाम
प्रोड्यूसर्स की कड़ियां जुड़ी होती हैं और प्रमुख कार्यकारी की जिम्मेदारी तालमेल
बिठाए रखना है, ताकि काम तय डेडलाइन में पूरा हो सके।
बुलेटिन
या शो के लिए जिम्मेदार प्रोड्यूसर आमतौर पर ऐसे लोग होते हैं, जिन्हें इलेक्ट्रानिक
मीडिया में विभिन्न स्तरों पर काम करने का कई साल का अनुभव होता है। पत्रकारिता का
कोर्स पूरा करने के बाद समाचार चैनलों में कई स्तरों पर नौकरी करने के बाद लोग
प्रोड्यूसर के स्तर तक पहुंचते हैं, लिहाजा अनुभव काफी मायने रखता है, क्योंकि
इसके जरिए बुलेटिन और शो निर्माण के हर पक्ष की जानकारी और रिपोर्टिंग, संपादकीय,
स्क्रिप्ट लेखन, ऑडियो-वीडियो एडिटिंग, ग्राफिक्स जैसे कई पहलुओं पर पकड़ बनाने का
मौका मिलता है जिसक समग्र इस्तेमाल बुलेटिन या शो के निर्माण और प्रस्तुति का मौका
मिलने पर होता है। सबसे अहम बात है फैसले लेने की क्षमता, जो अनुभव से ही आती है,
क्योंकि आपके अनुभव और उस पर आधारित आपके कौशल के प्रदर्शन से ही चैनल के वरिष्ठ
कार्यकारी आप पर भरोसा करते हैं और काम करते-करते वरिष्ठों के अनुभवों को देखते
हुए आप भी ये समझ पाते हैं कि कब क्या फैसला लेना चाहिए। समाचार चैनल में कभी कोई
अजूबा मौका आए, या ऐसे हालात हों, जिनसे कभी आप रू-ब-रू न हुए हों, ऐसा कम ही होता
है, आम तौर पर प्रसारण से जुड़ी एक जैसी समस्याएं ही थोड़े-बहुत बदलाव के साथ
रोजाना सामने आती हैं, लिहाजा आपको अपने अनुभव से उनसे पार पाने का मौका मिल सकता
है। अगर कोई नई समस्या सामने आए, तो वरिष्ठ सहयोगियों या संपादकों से सलाह लेकर
उनसे निपटा जा सकता है। मनोरंजन चैनलों या सिनेमा से अलग समाचार चैनलों के
प्रोड्यूसर्स का काम ज्यादा पत्रकारीय है, लिहाजा उनकी नजरें खबरों और टेलीविजन
प्रसारण के लिहाज से उनकी ट्रीटमेंट पर होनी चाहिए। टेलीविजन प्रसारण टीम वर्क है,
लिहाजा उनमें अपनी न्यूज़ प्रोडक्शन टीम के साथ मिलकर काम करने की क्षमता भी होनी
चाहिए। अच्छे न्यूज़ या बुलेटिन प्रोड्यूसर की खासियत ये है कि उसके काम समय पर
पूरे हों, और संगठित तरीके से हों, बुलेटिन या शो में कोई बिखराव न हो और तारतम्य
बना रहे। उनमें कठिन शेड्यूल और भारी तनाव भरे माहौल में भी कम से कम वक्त में
आइटम्स तैयार करने, स्टोरीज़ लिखने, दूसरे विभागों से तालमेल बिठाने, आगे की
योजनाएं बनाने और कुल मिलाकर बिना घबराहट के, शांति से काम करने की क्षमता होनी
चाहिए।
समाचार
चैनलों के प्रोड्यूसर्स का काम चुंकि खबरों से जुड़ा है, लिहाजा उन्हें अपने
स्रोतों से आनेवाली खबरों पर नजर रखनी चाहिए, साथ ही एजेंसियों और वायर्स से
आनेवाली खबरों पर भी उनकी निगाह रहे, ये जरूरी है। वो वीडियो, ऑडियो खुद एडिट करना
जानते हों, तो उनका काम आसान हो जाता है। और सबसे बड़ी बात कि उनमें ‘मल्टी
टास्किंग’ और ‘वन-मैन आर्मी’ की तरह काम करने की भी क्षमता होनी चाहिए, यानी जब
जहां जैसी जरूरत हो, वहां अपना हाथ डाल सकें, ताकि काम रुके नहीं। प्रोड्यूसर
पर्दे के पीछे के बड़े खिलाड़ी होते हैं, जिन्हें टेलीविजन पर आम दर्शकों के सामने
कोई पहचान नहीं मिलती, लेकिन उनके बिना चैनल चल पाना भी संभव नहीं। ऐसे में इनकी
अहमियत समझी जा सकती है और प्रसारण उद्योग का जिस तरह से विस्तार हो रहा है, उसमें
ये भी उम्मीद की जा सकती है कि प्रोड्यूसर की चुनौतियों और जरूरतों –दोनों में
इजाफा होगा।
-
कुमार कौस्तुभ
29.04.2013, 11.38 AM
No comments:
Post a Comment