संवाददादाता खबरें लाते
हैं, खबरें निकालते हैं, समाचार संगठनों को देते हैं, और मौका पड़ने पर खबरों की
खबर लेते भी हैं, लेकिन टीवी के समाचार चैनलों में बड़ी संख्या ऐसे संपादकीय
कर्मचारियों की भी होती है, जो वास्तविक तौर पर खबरों के बीच जीते हैं और खबरें
बनाते हैं। जी हां, बात स्क्रिप्ट राइटर और कॉपी राइटर या न्यूज़ राइटर की हो रही
है। अमूमन न्यूज़ डेस्क पर काम करनेवाली इस जमात को न तो सरकारी या वैधानिक तौर पर
पत्रकार का दर्जा मिलता है, ना ही खबरों की बाइलाइन, ना ही वो अहमियत जो
संवाददाताओं को मिलती है। लेकिन ये कहना अतिशयोक्ति न होगी कि स्क्रिप्ट राइटर/ कॉपी राइटर /न्यूज़ राइटर ही खबरों को
असल में प्रसारण योग्य आइटम का स्वरूप देते हैं। चाहे वो स्टोरी पैकेज हो, या एंकर
लीड या बाइट का लीड इन या विजुअल्स और ग्राफिक्स का विवरण देने के लिए लिखी गई खबर
का हिस्सा- इनका खबरिया स्वरूप और इन्हें खबरिया भाषा देने का काम स्क्रिप्ट
लिखनेवालों के ही जिम्मे होता है। औपचारिक तौर पर स्क्रिप्ट राइटर/ कॉपी राइटर /न्यूज़ राइटर
के पद अब समाचार चैनलों में कम ही पाए जाते हैं, क्योंकि ये काम मूल रूप से
प्रोड्यूसर कैटेगरी के लोगों पर ही आ गया है, लेकिन ऐसे तमाम लोग जो खबरों और
खबरों पर आधारित कार्यक्रमों की स्क्रिप्ट्स लिखने से जुड़े होते हैं, उनकी वास्तविक
पहचान इसी रूप में होती है। समाचार चैनलों में काम करनेवाले ऐसे चुनिंदा लोग जिनकी
भाषा पर जबर्दस्त पक़ड़ मानी जाती है, स्क्रिप्ट लिखने और कॉपियों की जांच करने का
काम करते हैं। आम तौर पर वरिष्ठ और मध्यम दर्जे के लोगों को ये जिम्मेदारी दी जाती
है, जिन्हें समाचार माध्यमों खासकर इलेक्ट्रानिक मीडिया में काम करने का अनुभव हो।
वैसे नए नवेले कर्मचारियों में भी जिनकी भाषा पर ठीक-ठाक पकड़ होती है और खबरों की
समझदारी भी, उन्हें स्क्रिप्ट लिखने या कॉपी लिखने का काम दिया जाता है।
स्क्रिप्ट राइटर को
भले ही रिपोर्टर जैसी पहचान न मिले, लेकिन, इस खास जिम्मेदारी की अहमियत इस बात से
भी समझी जा सकती है कि जब भी किसी समाचार चैनल में आप नौकरी के लिए जाते हैं, तो
वहां आपके सामान्य़ ज्ञान और खबरिया समझ के साथ-साथ स्क्रिप्ट लिखने की क्षमता भी
जांची जाती है, वो भले ही लिखित परीक्षा के रूप में हो, या फिर आपके पूर्व
कार्यानुभव से बनी पहचान की बदौलत। इसी आधार पर आमतौर पर चैनलों में नौकरी के लिए
चयन होता है और उसमें मजबूती या कमजोरी के लिहाज से स्क्रिप्ट और दूसरे कामों की
जिम्मेदारी का बंटवारा होता है। यहां तक कि रिपोर्ट्स से भी ये अपेक्षा की जाती है
कि वो खबरों की स्क्रिप्ट खुद लिखें। लेकिन ऐसा आमतौर पर नहीं होता लिहाजा खबरों
को काट-छांट और मांजकर प्रसारण के लायक बनाने का जिम्मा स्क्रिप्ट लिखनेवाले पर आ
जाता है।
समाचार चैनलों में कामकाज वस्तुत: खबरिया
प्रबंधन से अधिक जुड़ा है, लिहाजा ये मानकर नहीं चला जा सकता कि यहां काम
करनेवालों की भाषा पर ऐसी पकड़ हो, कि वो साहित्यकारों को भी टक्कर दे दे, लेकिन
इतना तो है ही कि समाचार चैनलों की जरूरत के मुताबिक, लिखने का काम जरूर आना
चाहिए। इसीलिए परंपरा स्क्रिप्ट लेखन का टेस्ट लेने की भी चली आ रही है। माना जाता
है कि आमतौर पर हिंदी पट्टी से आनेवालों लोगों की हिंदी पर पकड़ अच्छी ही होती है,
उनका वाक्य विन्यास अच्छा होता है, ठीक वैसे ही जैसे अंग्रेजी चैनलों में अंग्रेजी
माध्यम में पढ़े लिखे लोग चाहिए होते हैं और अन्य भाषाओं में उनके जानकार। लेकिन हिंदी
समाचार चैनलों में असल जांच शब्दों की वर्तनी के मामले में होती है यानी परंपरा और
चलन के मुताबिक शब्दों की वर्तनी में आप कितनी गलतिय़ां करते हैं या नहीं। हालांकि
आज के दौर में परंपराएं ढहती जा रही हैं और चलन में जो कुछ ज्यादा हो, उसी पर मुहर
लगाने का रिवाज चल पड़ा है, ऐसे में शुद्धतावादी दृष्टिकोण जारी रख पाना कठिन होता
है क्योंकि उसे अक्सर चुनौतिय़ां मिलती हैं औऱ अपने को सही साबित करने के
तर्क-वितर्क और कुतर्क में पड़ना सुधी जन जरूरी नहीं समझते । ऐसे में शब्दों की सही
वर्तनी किसी वरिष्ठ सहयोगी की समझ और जानकारी से तय होती है या फिर इसके लिए ‘गूगल सर्च’ का सहारा लिया
जाता है, जहां जिस वर्तनी की बहुतायत हो, उसे सही मानकर झगड़ा खत्म कर दिया जाता
है। आजकल न तो समाचार चैनलों में किताबों लायब्रेरी की जगह रही, जहां आपको हिंदी
के शब्दकोश और थिसॉरस में वर्तनी और अर्थ तलाशने को मिले, ना ही आपके पास इतना
वक्त होता है कि आप कहीं और से एक शब्द की समस्या का निदान तलाश सकें। ऐसे में सब
कुछ स्क्रिप्ट लिखनेवाले और उसे चेक करनेवाले वरिष्ठ के विवेक पर निर्भर करता है
और जो कुछ चलन में आ जाता है, वही सही मान लिया जाता है। दसेक साल पहले तक अखबारों
के समान समाचार चैनलों में भी स्टाइल बुक के आधार पर चलने की परंपरा थी, जिनमें
तमाम अधिक व्यवहार में आनेवाले शब्दों की सही या चैनल में स्वीकार्य वर्तनियां दी
गई रहती थीं, और कर्मचारियों को उन्हीं का इस्तेमाल करना पड़ता था, ताकि प्रसारण
में टेक्सट की एकरूपता बनी रहे। लेकिन आज के दौर में ये परंपरा खत्म हो चुकी है,
लिहाजा जिम्मेदारी हरेक व्यक्ति की खुद की है कि वो किस आधार पर किसी शब्द या
वर्तनी का इस्तेमाल कर रहा है और क्या वो संस्थान में स्वीकार्य है?
बहरहाल वर्तनी के
विवाद से जूझना स्क्रिप्ट लिखनेवालों के रोजमर्रा के काम में शामिल है। लेकिन इससे
बड़ा या यूं कहें कि जरूरी जो मुद्दा है, वो खबरों का है। अनुभवी संवादादाओं की ओर
से भेजी जानेवाली जानकारियों में आमतौर पर खबरें स्पष्ट होती हैं औऱ उनका एंगल तय
होता है। लेकिन बाकी तमाम संवाददाताओं की ओर से आनेवाली जानकारियों के पुलिंदे से
खबर निचोड़ना तो वास्तव में न्यूज़ डेस्क पर बैठे खबर लिखनेवाले शख्स पर ही निर्भर
होता है। यही नहीं, अंग्रेजी या दूसरी भाषाओं के आइटम से अपने लिए खबर निकालना भी
स्क्रिप्ट राइटर की जिम्मेदारी है। हां, इस काम में वो न्यूज़ डेस्क और चैनल के
वरिष्ठ सहयोगियों की मदद ले सकता या खबर का एंगल तय करने में उनसे अपने विचार की
मंजूरी ले सकता है। मसलन, उदाहरण के तौर पर रोजाना आनेवाली हादसों से जुड़ी खबरों
की बात करें, तो उनमें समानता दिखती है। ऐसे में ये कहना कि अमुक जगह हादसा हुआ
है, ये खबर नहीं है। खबर तो हादसे में हुए नुकसान, उसकी प्रचंडता और उसके असर से
बनती है यानी अगर किसी हादसे में काफी संख्या में लोग मारे गए, या फिर ऐसा हादसा
हुआ, ऐसी टक्कर हुई , जो पहले कभी या आमतौर पर देखी नहीं गई, या हादसे में किसी
मशहूर शख्सियत की जान गई..ये तमाम ऐसे एंगल हो सकते हैं, जो खबर की पहली लाइन में
होने चाहिए। कच्ची स्क्रिप्ट में अमूमन ये सब स्पष्ट नहीं होता औऱ होता भी है, तो
कौन सी लाइन पहले होनी जरूरी है, और कौन सी बाद में, ये तो स्क्रिप्ट या कॉपी
लिखनेवाले को ही तय करना पड़ेगा। इसी तरीके से अगर किसी खबर से जुड़ा कार्यक्रम
तैयार करना हो. तो उसे कितने हिस्सों में यानी कितनी स्टोरीज़ में बांटा जाए और
हरेक स्टोरी में क्या एंगल हो, किस तरह के विवरण दिए जाएं, कितनी नाटकीयता हो,
कितना भावात्मक लहजा हो और क्या क्रम हो, ये पूरी योजना प्रोड्यूसर के साथ मिलकर
या फिर खुद स्क्रिप्ट राइटर को तय करनी पड़ती है ताकि कार्यक्रम में आइट्म्स का
तालमेल बना रहे और कहीं कुछ बिखरता हुआ नज़र न आए। इसके अलावा आजकल एक बात और
ध्यान देने लायक है कि एक ही खबर को तमाम अलग-अलग किस्म के, अलग अलग मूड के,
अलग-अलग फॉरमेट वाले बुलेटिन्स या समाचार आधारित कार्यक्रमों में इस्तेमाल किया
जाता है, ऐसे में उनकी स्क्रिप्ट भी उसी हिसाब से बदलनी होती है। मसलन, स्टोरी
पैकेज के लिए खबर की डेढ़ मिनट की जो स्क्रिप्ट होगी, उसे न्यूज़ शतक में हेडलाइन
के अंदाज में लिखी 5 लाइनों में समेटना होगा, तो मध्यम फटाफट अंदाज वाले स्पीड
न्यूज़ बुलेटिन में 6-7 लाइनों में। अगर आप टेलीविजन पर समाचार के अलग-अलग बुलेटिन
देखते हैं, तो फर्क आसानी से समझ सकते हैं। उसी एक खबर को 10 हिस्सों में तोड़कर
न्यूज़ टिकर और न्यूज़ स्क्रॉल में भी इस्तेमाल किया जा सकता है। ऐसे में भाषा तो
बदल जाएगी। कहीं सीधी-सपाट लाइनें होंगी, तो कहीं विस्तार होता, और कहीं तुकबंदी
के मेलवाली भाषा जिसमें प्रवाह हो। तो लिखनेवाला एक ही आदमी हो, या अलग-अलग लोग
हों, उन्हें इस फर्क को समझना होता है और जरूरत के मुताबिक स्क्रिप्ट लिखनी होती
है। आमतौर पर अभ्यास में आने पर इन बारीकियों की ओर ध्यान नहीं जाता, लेकिन वास्तविकता
यही है और इसका कोई किताबी सिद्धांत शायद ही कहीं मिले, क्योंकि ये आवश्यकता और
अनुभव के आधार पर विकसित की गई पद्धति है, जो हरके समाचार चैनल में अलग-अलग हो
सकती है, क्योंकि नकल करने से हर कोई बचना चाहता है, और अपनी खास शैली विकसित करना
चाहता है। पर ये भी सच्चाई है कि आजकल स्क्रिप्ट लेखन के लिए ऐसी प्रोफेशनल
ट्रेनिंग भी नहीं मिलती जिनमें इतनी बारीकी बताई जाए और इस तरह से स्क्रिप्ट लेखन
के ढांचे बने बनाए हों, जो हर चैनल में चलनेवाले हों। तो ये स्क्रिप्ट लेखक की
समझदारी और नए-नए तरीके विकसित करने की उसकी सोच पर ही निर्भर करता है कि वो किस बुलेटिन
या कार्यक्रम के लिए किस तरह स्क्रिप्ट लिखे। इस मामले में किसी तरह की आलोचना या
किसी नएपन को सराहे जाने की गुंजाइश तब तक नहीं होती, जब तक कि कोई नया तरीका
लगातार प्रैक्टिस में न देखा जाए। और एक कड़वी सच्चाई तो ये भी है कि आज के दौर
में इतने ज्यादा प्रयोग हो रहे हैं और टेलीविजन समाचार प्रसारण की रफ्तार इतनी
तेज़ हो चुकी है कि वीडियो और ऑडियो के बीच स्क्रिप्ट की पहचान ही सीमित होती जा
रही है। स्क्रिप्ट की अहमियत उन मौकों पर झलकती है, जब खबर वीडियो और ऑडियो के
स्तर पर कमजोर हो या सीमित हो या फिर खास कार्यक्रम के तानेबाने में उसका
ट्रीटमेंट किया जा रहा हो, तभी दर्शक ठहरकर स्क्रिप्ट की लाइनें सुनने औऱ खबर की
प्रासंगिकता के बारे में सोचने और विचार करने पर मजबूर होता है। यहां ये भी बात
ध्यान देने की है कि खबर के ट्रीटमेंट की परिकल्पना भी स्क्रिप्ट के हिसाब से ही
तय होती है न कि ट्रीटमेंट के हिसाब से स्क्रिप्ट लिखी जाती है, क्योंकि आखिर
वीडियो के अलावा टेक्स्ट और ग्राफिक्स से जुड़े दूसरे तत्व भी तो स्क्रिप्ट का ही
हिस्सा होते हैं, जो खबर की परतें खोलने, उसे समझने लायक बनाने में मददगार होते हैं।
समाचार चैनलों के लिए स्क्रिप्ट या कॉपी लेखन की सीमा है और ये सीमा खबरों पर केंद्रित रहने, उन्हीं के इर्द-गिर्द रहने की है। लेकिन ये समझना और जानना जरूरी है कि आखिर स्क्रिप्ट राइटर या कॉपी राइटर का पदनाम आया कहां से। मूल रूप से ये टर्म सिनेमा और रंगमंच की पैदाइश है, जहां एक्शन और तस्वीरों को शब्दों में ढालने की कोशिश होती है या फिर शब्दों के मुताबिक तस्वीरों और एक्शन का सिक्वेंस तैयार किया जाता है। टेलीविजन समाचार भी चुंकि विजुअल माध्यम है, यानी खबरों को वीडियो और तस्वीरों के जरिए पेश करना है, तो यहां भी उनके मुताबिक शब्दों का और शब्दों के मुताबिक वीडियो और तस्वीरों का तालमेल बिठानेवाले खास लोगों की जरूरत होती है जो न्यूज़ राइटर कहलाते हैं। अब के दौर में चुंकि समाचार प्रसारण में भी नाटकीयता और कल्पनाशीलता का काफी इस्तेमाल होने लगा है, ऐसे में अच्छे स्क्रिप्ट राइटर्स की जरूरत बढ़ी है। यानी ऐसे लोग जो खबरों को खबरों तक सीमित न रखें, बल्कि उन्हें विस्तार दें, और ड्रामे या फिल्म के तानेबाने में उन्हें पेश करने की कोशिश करें। खबर आधारित ऐसे कार्यक्रमों की योजना और परिकल्पना भले ही प्रोड्यूसर्स की जिम्मेदारी है, लेकिन उन्हें शब्दों में पिरोना तो अच्छे स्क्रिप्ट लेखक ही जानते हैं जो प्रोड्यूसर्स की ओर से बताई गई लाइन पर शानदार स्क्रिप्ट तैयार करते हैं। कई बार तो अच्छे प्रोड्यूसर्स खुद ही बेहतरीन स्क्रिप्ट्स भी लिखते हैं, क्योंकि उन्हें अपनी परिकल्पना के मुताबिक शो को साकार करने में इससे मदद मिलती है। समाचारों से जुड़े छोटे कार्यक्रमों के मामले में अक्सर प्रोड्यूसर्स ही पूरी स्क्रिप्ट लिखते पाए जाते हैं। वैसे ये व्यवस्था सुविधा और आपसी तालमेल पर आधारित हैं। लेकिन इतना जरूर है कि स्क्रिप्ट चाहे जो भी लिखे, उसे विषय वस्तु और पृष्ठभूमि की पुख्ता जानकारी होनी चाहिए और तथ्यों की जानकारी भी दुरुस्त होनी चाहिए, तभी वो कार्य़क्रम के साथ न्याय कर सकेगा, अन्यथा लच्छेदार भाषा की हवाबाजी के जरिए वो कार्यक्रम को कुछ भावनात्मक भले ही बना सकता है, लेकिन उसमें गहराई नहीं होगी और मजबूती नहीं होगी, ये तय है। ऐसे में खबर आधारित कार्यक्रम की स्क्रिप्ट लिखनेवालों के लिए ये भी जरूरी है कि उनके सामने खबर से जुड़ा रिसर्च भी हो, जिसमें तमाम पहलुओं की जानकारी हो। अब कौन सी सामग्री कितनी और कहां इस्तेमाल करनी है, ये तो पाककला के विशेषज्ञ के समान स्क्रिप्ट लेखक को ही तय करना होगा, नहीं तो जो कार्यक्रम बनेगा और परोसा जाएगा, वो दर्शकों के लिए बदहजमी पैदा कर सकता है। खबरों और उनसे जुड़े कार्यक्रमों की सधी हुई स्क्रिप्ट के लिए जरूरी है सुसंगत और दमदार भाषा, कम से कम शब्दों का ज्यादा से ज्यादा बातें कहने के लिए उचित इस्तेमाल, कल्पना और भावना को जाहिर करने के लिए शब्दों के बजाय़ विजुअल, ग्राफिक, एनिमेशन और ऑडियो से जुड़े तत्वों के इस्तेमाल की गुंजाइश छोड़ना। मौजूदा दौर में सीधी और सरल भाषा में स्क्रिप्ट लिखने का चलन है, ताकि वो तमाम दर्शक वर्ग की समझ में आ सके। साहित्यिक और लच्छेदार विशेषणों और उपमाओं से भरपूर भाषा को समाचार चैनलों के लिए उपयुक्त नहीं माना जाता। साथ ही, तत्सम और संस्कृतनिष्ठ शब्दों का प्रयोग भी आमतौर पर वर्जित है, इनकी जगह, वैकल्पिक उर्दू या अंग्रेजी के ऐसे शब्दों का धड़ल्ले से इस्तेमाल होता है, जो आम बोलचाल में चलन में हों। इस तरह एक बात तो स्पष्ट है कि आप किसके लिए स्क्रिप्ट लिख रहे हैं, कौन सा दर्शक वर्ग आपकी खबर या कार्यक्रम देखने और समझनेवाला है। लेकिन गौर करनेवाली बात ये भी है कि भाषा का विन्यास खबर की विधाओं के हिसाब से बदलता है। यानी जिस तरह के शब्द और वाक्य़ हार्ड न्यूज़ के लिए इस्तेमाल होते हैं, वैसे ही खेल या मनोरंजन या सॉफ्ट किस्म की खबरों में इस्तेमाल नहीं होते। खेलों से जुड़ी अपनी शब्दावली होती है, कारोबार के मामलों की खबरों के लिए भी कुछ खास शब्दों का इस्तेमाल होता है, मनोरंजन और कोर्ट कचहरी की खबरों के लिए इस्तेमाल होनेवाले शब्दों में भी काफी भिन्नता होती है, जिनकी समझ, जानकारी और इस्तेमाल का तरीका स्क्रिप्ट राइटर के पास होना बहुत जरूरी है और यही वजह भी है कि सारे स्क्रिप्ट राइटर हर विधा की स्क्रिप्ट नहीं लिख पाते। मनोरंजन की खबरें लिखनेवालों के लिए खेल और कारोबार की खबरें लिखना दुरूह होता है, वहीं सामान्य खबरें लिखनेवालों के लिए खेल और मनोरंजन की स्क्रिप्ट लिखना मुश्किल हो सकता है। वैसे फील्ड में ऐसे स्क्रिप्ट राइटर्स की भी कमी नहीं, जो हरफनमौला हैं, और हर विधा में बेहतरीन स्क्रिप्ट लिख पाते हैं। लेकिन ऐसा कैसे संभव है? ये कोई जादू नहीं। इसका जवाब ये है कि अगर आप पढ़ाकू किस्म के आदमी हैं औऱ तमाम किस्म की खबरें पढ़ने, अखबारों को चाट डालने में दिलचस्पी रखते हैं, तो इसका सीधा असर आपकी लेखन क्षमता पर भी पड़ता है, आपका शब्द भंडार मजबूत होता है, हर मुद्दे की समझदारी विस्तृत होती है जिससे आप जरूरत और अभ्यास की बदौलत हर तरह की स्क्रिप्ट लिख सकते हैं, दूसरों की लिखी हुई स्क्रिप्ट को मांज भी सकते हैं। खासकर खबरों की दुनिया में काम करनेवालों और स्क्रिप्ट से जुड़े लोगों के लिए तो ये बेहद जरूरी है कि वो हर किस्म की खबरें और दूसरी सामग्री पढ़ने में दिलचस्पी रखें, तभी उनका भाषा ज्ञान समृद्ध होगा और वो स्क्रिप्ट लेखन पर पकड़ बना सकते हैं।
हिंदी टेलीविजन समचार
जगत से जुड़े स्क्रिप्ट लेखकों की अंग्रेजी पर भी पकड़ जरूरी है, कम से कम इतनी
पकड़ कि वो अंग्रेजी में लिखे अखबारी आइटम को आसानी से समझ सकें, और हर शब्द के
लिए उन्हें डिक्शनरी पलटने की जरूरत न हो। ऐसा इसलिए क्योंकि हिंदी समाचारों का एक
बड़ा स्रोत अंग्रेजी माध्यम में खबर देनेवाली एजेंसियां हैं। उनके आइटम से खबर
निकालना या खबर बनाने के लिए अंग्रेजी के आइटम का इस्तेमाल और अनुवाद आम बात है और
ये काम अच्छी तरह से तभी हो सकता है जबकि लिखनेवालों की दोनों भाषाओं पर पकड़ हो।
इसके लिए भी ये जरूरी है कि आप सिर्फ हिंदी ही नहीं, अंग्रेजी के अखबार और
पत्रिकाएं पढ़ने में दिलचस्पी रखें। इससे आपकी जानकारी भी बढ़ेगी और भाषा को समझने
औऱ उसके उपयोग की ताकत भी। आमतौर पर हिंदी समाचार माध्यमों में ऐसा पाया जाता है
कि अंग्रेजी माध्यम से पढ़े लिखे लोग हिंदी में शानदार तरीके से काम करते हैं, ऐसा
इसलिए क्योंकि हिंदी पर तो उनकी पकड़ मातृभाषा होने की वजह से रहती ही है, अंग्रेजी
माध्यम में औपचारिक पढ़ाई से उनकी अंग्रेजी की समझ भी बेहतरीन होती है, जिसका
उन्हें न सिर्फ स्क्रिप्ट लेखन में बल्कि समाचार चैनलों के व्यावहारिक कामकाज और
अपनी खुद की अभिव्यक्ति में भी फायदा मिलता है और वो ज्यादा तेजी से उन्नति के पथ
पर अग्रसर होते हैं। देश में सरकारी कामकाज के लिए और संपर्क भाषा के तौर पर भी
अंग्रेजी का वर्चस्व है, लिहाजा अंग्रेजी पर पकड़ हो तो आप हिंदी टेलीविजन समाचार की
वैतरणी भी आसानी से पार कर सकते हैं और न सिर्फ खबरों की स्क्रिप्ट बल्कि अपनी
जिंदगी की भी बेहतरीन स्क्रिप्ट लिख सकते हैं। है ना कमाल की बात।
भाषा पर पकड़ हो तो
खबर से आप आगे भी बढ़ सकते हैं और पत्रकारिता से शुरुआत करके क्रिएटिव दुनिया में
हाथ आजमा सकते हैं। आजकल खबर से तमाम लोग विज्ञापन और जनसंपर्क के क्षेत्र में भी
काम कर रहे है, इसकी वजह है भाषा पर उनकी मजबूत पकड़। लेखन के साथ-साथ आइडियाज़ के
स्तर पर अगर आपका दिमाग तेज़ चलता है तो एंटरटेनमेंट और फिक्शन या नॉन-फिक्शन प्रोग्रामिंग
के क्षेत्र में आपके लिए जगह बन सकती है। दिक्कत यही है कि लेखन को कुल मिलाकर गौण
मान लिया जाता है, और दूसरे तमाम पहलू ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाते हैं, जो आगे
बढ़ने में आपकी सीढ़ी का काम करते हैं। लेकिन ये बात समझनी पड़ेगी कि अगर आपमें
भाषा के सही इस्तेमाल की क्षमता है, तो आपका काम कितना आसान हो जाएगा, आप न सिर्फ
अपने लिये या दूसरों के लिए अच्छी स्क्रिप्ट लिख सकते हैं, बल्कि आप सही तरीके से
संवाद भी स्थापित कर सकते हैं, Communicate कर सकते हैं, और
दूसरों को प्रभावित कर सकते हैं, जिसमें आपका ही फायदा है। तो कहने का मतलब ये है
कि अगर आपमें स्क्रिप्ट लेखन की क्षमता है, तो उसे निखारने औऱ उसका सार्थक
इस्तेमाल करने की जरूरत है, तभी आप सच्चे अर्थों में खबर बना सकते हैं औऱ खुद भी
सुर्खियों में आ सकते हैं, जैसा कि इन दिनों बॉलीवुड के कई महारथियों के मामले में
देखने को मिल रहा है। तो आप स्क्रिप्ट राइटिंग को सिर्फ समाचार चैनल तक सीमित
देखते हैं, या इसके विस्तार में जाना चाहते हैं, ये भी वैसे ही तय होगा, जैसे खबर
की स्क्रिप्ट और उस पर आधे या एक घंटे के कार्यक्रम का तानाबाना- तय आपको करना है।
-कुमार कौस्तुभ
28.04.2013, 5.02 PM
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