Friday, April 26, 2013

‘देते हैं खबर, लेते हैं खबर’




      टेलीविजन पर समाचार के स्रोतों में संवादादाताओं की भूमिका अहम हैं। खासकर समाचार चैनल के अपने संवाददाता इन दिनों खबर देने से ज्यादा उनकी पुष्टि करने में अधिक कारगर साबित होते हैं। जैसी की पहले चर्चा हो चुकी हैं, खबरों के तमाम स्रोत हो सकते हैं, लेकिन किसी भी स्रोत से आई हुई कोई खबर सही है या गलत इसकी तस्दीक करने का बड़ा जरिया आजकल संवाददाता ही होते हैं। यूं तो ये संवाददाताओं के कार्यक्षेत्र का विस्तार है, पर अगर उनके मूल कामकाज पर नज़र डालें तो पता चलता है कि वास्तव में संवाददाता खबरों की फैक्ट्री के सबसे ताकतवर अंग होते हैं।
      अंग्रेजी में संवाददाता पद के दो पर्याय हैं- रिपोर्टर और कॉरेस्पोंडेंट। असल में इन दोनों अंग्रेजी शब्दों के मूल अर्थ में बहुत ज्यादा फर्क नहीं। काम के स्तर पर बहुत हल्के फर्क इन दोनों पदों में हो सकते हैं, लेकिन मूलत: इन दोनों का काम खबर देना ही है। आमतौर पर रिपोर्टर का मतलब ऐसे संवाददाताओं से निकाला जाता है, जो फील्ड से खबरों से जुड़ी जानकारियां मुहैया कराते हैं। यानी तथ्यात्मक रिपोर्टिंग। वहीं, कॉरेस्पोंडेंट भी यही काम कुछ विस्तार में, कुछ गहराई में करते हैं, उनका काम रिपोर्टिंग के साथ-साथ खबरों के विश्लेषण से भी जुड़ा माना जाता है। यही वजह है कि समाचार संगठनों में बीट और वरिष्ठता के क्रम में आमतौर पर रिपोर्टर नीचे और कॉरेस्पोंडेंट ऊपर होते हैं। लेकिन ये कोई तय नियम नहीं है, जिसका हरेक समाचार संगठन में कड़ाई से पालन हो। कभी भी परिभाषा के आधार पर इन पदों पर नियुक्तियां नहीं होती। ये बस समझदारी और व्यवस्था का मामला है, जिसके आधार पर रिपोर्टर्स और कॉरेस्पोंडेंट्स की नियुक्तियां होती हैं। आप देखेंगे कि इन दोनों ही पदनामों को धारण करनेवाले लोग चाहे कितने ही वरिष्ठ क्यों न हों, टेलीविजन के पर्दे पर समाचार में उनका नाम हिंदी में संवाददाता के ही रूप में चलता है। यानी हिंदी में दोनों ही एक स्तर पर हैं यानी खबर देने वाले। कॉरेस्पोंडेंट शब्द मूल रूप से कॉरेसपोंडेंस से निकला है, जिसका मतलब होता है पत्र-व्यवहार। इस अर्थ में देखें, तो कॉरेस्पोंडेंट ऐसे लोग होते हैं, जो अनुभवी हों, खबर तलाशने से लेकर उन्हें प्रसारण योग्य ढांचे में फिट करने की क्षमता रखते हों। इनका काम आम दर्शकों को प्रसारण के जरिए खबरों से वाकिफ कराना ही है। चाहे वो किसी खास मुद्दे , क्षेत्र या विषय विशेष से जुड़े हों, या फिर व्यापक स्तर पर रिपोर्टिंग कर रहे हों। ये सब इस बात पर भी निर्भर करता है कि समाचार प्रसारक संस्था की ओर से उन्हें क्या जिम्मेदारी दी गई है, और कहां, किस मोर्चे पर तैनात किया गया है। रिपोर्टर के साथ खास बात ये होती है कि वो वन मैन आर्मीहो सकता है, जैसे कि स्ट्रिंगर यानी खुद ही खबर तलाशने से लेकर उसकी शूटिंग और प्रसारक तक पहुंचाने के दायित्व को निभानेवाला। जबकि आम चलन के मुताबिक, कॉरेस्पोंडेंट को कैमरा मैन और दूसरे सहयोगियों का साथ मिलता है। लेकिन और बड़े स्तर पर, मसलन जंग के मैदान या किसी आपदा से जुड़े बड़े इवेंट की बात करें तो वहां कॉरेस्पोंडेंट की पदवी वाले अनुभवी और वरिष्ठ संवादादाता भेजे जा सकते हैं, जो अकेले ही कवरेज को अंजाम देने में सक्षम होते हैं। कॉरेस्पोंडेंट्स पर ये भी जिम्मेदारी होती है कि वो खबर के दूसरे स्रोतों मसलन news wire  और दूसरे संवाददाताओं और संपादकों, विश्लेषकों के संपर्क में रहें और खबर के हर पहलू की पड़ताल करें यानी किसी मुद्दे पर खबर देने के साथ-साथ उस खबर के अंदर की खबर लेने में भी माहिर हों। टेलीविजन के लिए खबर की तैयारी करते हुए उन्हें खबर की ट्रीटमेंट भी सुझानी होती है और उसकी बेहतरीन प्रेजेंटेशन का इंतजाम करना पड़ता है। वहीं रिपोर्टर का काम फील्ड से खबर निकालकर प्रसारक तक पहुंचाना होता है। रिपोर्ट्स खबर से जुड़े तथ्य जुगाड़ सकते हैं, उनसे जुड़े आइटम्स मसलन विजुअल और बाइट्स, दस्तावेज जुटा सकते हैं। रिपोर्ट्स जहां सीधे एसाइनमेंट डेस्क या न्यूज़ डेस्क या फिर अपने बीट से संबंधित डेस्क, मसलन क्राइम, बिजनेस, एंटरटेनमेंट और स्पोर्ट्स से जुड़े डेस्क को खबरें देते हैं, वहीं कॉरेस्पोंडेंट्स संबंधित डेस्क के साथ-साथ सीधे संपादकों के भी संपर्क में होते हैं, ताकि खबर के एंगल और पहलुओं पर विचार-विनिमय जारी रहे। ये एक आम व्यवस्था है, जो हरेक समाचार चैनल और संगठन में समय, परिस्थितियों औऱ जरूरत के हिसाब से बदल सकती है – कम से कम भारतीय समाचार चैनलों में तो यही देखने को मिलता है और ये चैनलों की अंदरूनी व्यवस्था है, जिससे दर्शकों का कोई लेना-देना नहीं होता, लेकिन जो लोग टेलीविजन समाचार की दुनिया में काम करने की चाहत रखते हैं, उनके लिए ये सब जानना बेहद जरूरी है क्योंकि इसी के मुताबिक उन्हें खुद को तैयार करना पड़ता है। रिपोर्टर के लिए आमतौर पर ये जरूरी नहीं कि वो किसी विषय या किसी क्षेत्र का विशेषज्ञ हो, लेकिन कॉरेस्पोंडेंट से ये उम्मीद की जाती है कि उसे अपने क्षेत्र या विषय की अच्छी जानकारी हो, उसकी पृष्ठभूमि पता हो, तभी वो किसी खबर के बारे में गहराई से सोच सकता है। यानी रिपोर्टर की भूमिका जहां ‘Pick and throw’ वाली होती है, वहीं कॉरेस्पोंडेंट को ‘Pick and choose and use’ के तरीके से काम करना पड़ता है। संपर्कों का फायदा रिपोर्टर्स और कॉरेस्पोंडेंट्स, दोनों को ही मिलता है, लेकिन ये उन पर अलग-अलग तरीके से निर्भर करता है कि वो अपने संपर्कों का खबरों के लिए किस तरीके से कितना इस्तेमाल कर पाते हैं। इस अर्थ में रिपोर्ट्स की भूमिका खोजी पत्रकारिता में खास हो जाती है क्योंकि वो खबरों की खोजबीन और पड़ताल ज्यादा से ज्यादा करते हैं और किसी developing story में ज्यादा से ज्यादा खबरों के input दे सकते हैं।
काम के लिहाज से देखा जाए तो आमतौर पर रिपोर्ट्स का वर्गीकरण कुछ इस तरह से हो सकता है-
ट्रेनी रिपोर्ट्स- जो रिपोर्टिंग सीख रहे होते हैं
रिपोर्टर्स- आम खबरें तलाशनेवाले
क्राइम रिपोर्ट्स- क्राइम की खबरों की छानबीन करनेवाले
सिटी रिपोर्ट्स- मेट्रो, शहरी, कस्बों की खबरें देनेवाले
पॉलिटिकल रिपोर्टर्स- राजनीतिक घटनाक्रम पर नज़र रखनेवाले
बिजनेस रिपोर्टर्स – कारोबार की दुनिया की रोजाना की खबर देनेवाले
इस क्रम में उनकी वरिष्ठता स्टाफ रिपोर्टर, सीनियर रिपोर्टर, चीफ रिपोर्टर, नाइट रिपोर्टर के रूप में आम तौर पर देखी जाती है।
      वहीं, कॉरेस्पोंडेट्स का वर्गीकरण कुछ इस तरह देखा जाता है-
कॉरेस्पोंडेंट- आम खबरों पर काम करनेवाले संवाददाता
सीनियर कॉरेस्पोंडेंट- अनुभव के हिसाब से वरिष्ठ संवाददाता
स्पेशल कॉरेस्पोंडेंट- स्पेशल बीट, मसलन मंत्रालयों, कानूनी मुद्दों से जुड़ी खबरें देखने वाले
सीनियर स्पेशल कॉरेस्पोंडेंट- अनुभव के हिसाब से वरिष्ठ स्पेशल कॉरेस्पोंडेंट
पॉलिटिकल कॉरेस्पोंडेंट- राजनीतिक मामलो के सीनियर रिपोर्टर हो सकते हैं
पॉलिटिकल एडिटर- राजनीतिक मामलो के वरिष्ठ संवाददाता होते हैं, खासकर खबरों के विश्लेषण और खबरों के अंदर की खबरें लेने के लिए जिम्मेदार
स्टेट कॉरेस्पोंडेंट- राज्यों में तैनात वरिष्ठ संवाददाता
ब्यूरो चीफ- राज्यों के संवाददाताओं के ब्यूरो के कर्ता-धर्ता
नेशनल ब्यूरो चीफ- राष्ट्रीय मुद्दे देखने वाले कॉरेस्पोंडेट्स के प्रमुख- सीनिय, स्पेशल और पॉलिटिकल कॉरेस्पोंडेंट इनके तहत आ सकते हैं
स्पोर्ट्स कॉरेस्पोंडेंट- खेल की खबरों के वरिष्ठ संवाददाता
बिज़नेस कॉरेस्पोंडेंट- बिज़नेस मामलों के जानकार वरिष्ठ संवाददाता
      चाहे रिपोर्टर हों या कॉरेस्पोंडेंट- इनकी जिम्मेदारियों में खबरों के संकलन के साथ-साथ उनसे जुड़ी शख्सिय़तों का इंटरव्यू जुगाड़ना, खबरों को फॉलो करना और उनकी पड़ताल करना शामिल है। यही नहीं प्रेस कांफ्रेंस के दौरान उनसे खबरों से जुड़े उचित सवाल करने और जवाबों से खबरें निकालने का भी जिम्मा भी उन पर होता है। खबरों की कच्ची स्क्रिप्ट और बाइट्स या इंटरव्यू के ट्रांसक्रिप्ट भेजना भी इनका ही काम है। इसके अलावा जैसी समाचार चैनल की जरूरत हो, उसके मुताबिक, खबरों पर लाइव फोन-इन और लाइव चैट देना भी इनके कामकाज में आता है और इसके लिए उन्हें हर पल अपने आप को तैयार रखना पड़ता है, चाहे वो फील्ड में हों, या न हों। उनसे उम्मीद की जाती है कि वो किसी भी खबर पर दो चार पांच मिनट तो बोल ही सकते हैं। यूं तो ये ज्यादती है, लेकिन ऐसा माना जाता है कि रिपोर्ट्स या कॉरेस्पोंडेंट्स के रूप में काम करनेवाले कम समय में भी किसी खबर पर ज्यादा से ज्यादा जानकारियां हासिल कर सकने और उन्हें तुरंत अपने समाचार चैनल को मुहैया करा सकने में सक्षम होते हैं, साथ ही खबरों की पृष्ठभूमि भी उनके जेहन में होती है और कई खबरों को एक साथ जोड़कर विश्लेषण भी वो कर सकते हैं यानी अगर किसी चैनल के न्यूज़ डेस्क की ओर से ये योजना बनाई गई कि अमुक ब्रेकिंन न्यूज़ या अमुक खबर पर उन्हें कुछ खास समय रहना है, तो ये काम रिपोर्टर्स और कॉरेस्पोंडेंट्स से लाइव बातचीत के बगैर तब तक नहीं संभव जब तक कि न्यूज़ डेस्क के पास उस खबर से संबंधित पर्याप्त सामग्री ऑन एयर प्रसारित करने के लिए न हो। ऐसे में रिपोर्टर्स और कॉरेस्पोंडेंट्स से लाइव बातचीत ही खबरों पर रुकने या उन्हें खींचने का एकमात्र जरिया होता है, जिसके लिए रिपोर्टर्स और कॉरेस्पोंडेंट्स को तैयार रहना पड़ता है। इस लिहाज से एक अहम बात ये है कि रिपोर्टर्स और कॉरेस्पोंडेंट्स को न सिर्फ खबरों की पृष्ठभूमि पता होनी चाहिए और उन्हें खबरों को जोड़ने आना चाहिए, वरन उनमें अभिव्यक्ति की जबर्दस्त क्षमता होनी चाहिए और भाषा पर शानदार पकड़ होनी चाहिए, जिससे वो किसी भी विषय पर धाराप्रवाह बोल सकें, उनका विष्लेषण भी कर सकें। ऐसी क्षमता और ऊर्जावाले रिपोर्ट्स और कॉरेस्पोंडेंट्स की समाचार चैनलों में खासी मांग रहती है क्योंकि वो हमेशा संकटमोचक साबित हो सकते हैं। साथ ही अगर उनके पास तगड़े संपर्क हों और फोन पर बातचीत से ही खबरें निकालने की क्षमता रख सकें, तो सोने में सुगंध। स्टोरी फाइल करते वक्त आम तौर पर रिपोर्टर्स से ये उम्मीद नहीं की जाती कि वो अपने P2C यानी पीस टु कैमरा में अपने विचार रखें, ये आदर्श स्थिति भी नहीं मानी जाती, और माना जाता है कि उन्हें P2C में खबरों की जानकारी को ही wrap up करना चाहिए। लेकिन लाइव चर्चा के दौरान उन्हें अपनी ओऱ से अपने विचार जाहिर करने का मौका मिल जाता है, जो जरूरी नहीं है।
      कुल मिलाकर देखें, तो रिपोर्ट्स और कॉरेस्पोंडेंट्स का काम बड़ा ही चुनौतीपूर्ण है, क्योंकि वही समाचार चैनल के लिए कच्चे माल मुहैया कराने का काम करते हैं। खबरों से जुड़े घटनास्थल पर चैनल की मौजूदगी दर्ज कराना और खबरें निकालने के लिए हर वक्त तैयार रहना उनकी जिम्मेदारी है, लिहाजा उनके काम के घंटे तय नहीं होते और अक्सर विषम परिस्थितियों में- तेज धूप, बरसात , कड़ाके की सर्दी में भी और दंगे-प्रदर्शनों के बीच भी सैनिक की तरह खबरों के मोर्चे पर लगातार तैनात रहना पड़ता है और भागदौड़ करनी पड़ती है, जबकि समाचार चैनल के उनके दूसरे सहयोगी एयरकंडीशंड हॉल में बैठकर मजे में नौकरी करते रहते हैं। हालांकि जैसा काम वैसा नतीजा, रिपोर्ट्स और कॉरेस्पोंडेंट्स को उनके अच्छे काम का इनाम भी बेहतरीन मिलता है, साथ ही फील्ड में काम करते हुए वो जो संपर्क बनाते हैं, उनका भी दूरगामी फायदा उन्हें हासिल होता है, इसके तमाम उदाहरण पत्रकारिता के क्षेत्र में देखे जा सकते हैं। ऐसे में काम करने का माहौल उन्हें भले ही आदर्श न मिले, लेकिन क़ॉमेडियन राजू श्रीवास्तव के शब्दों का इस्तेमाल करूं तो जिसने रिपोर्टिंग के पेशे को अपना लिया, उसके लिए शादी एक सज़ा है और शोषण का अपना ही मज़ा है। ये कथन मुद्दे पर कितना फिट बैठता है, या नहीं ये बहस का विषय हो सकता है, लेकिन जो लोग रिपोर्टिंग से जुड़े हैं, वो बखूबी समझते हैं कि उनका पारिवारिक और सामाजिक जीवन पेशे की जिम्मेदारी में जरूर चौपट हो जाता है। खैर, ये एक अगल पहलू है, जिसे नौकरी और उससे जुड़े फायदों के साथ तौला नहीं जा सकता। न ही दोनों पक्षों की एक साथ तुलना की जा सकती है, क्योंकि जो लोग इस क्षेत्र को अपनाते हैं, वो बाइ चांसनहीं बाइ च्वाइसही अपनाते हैं और उन्हें अपने काम में दिलचस्पी होती है, मन लगता है, तभी वो उसे कर पाते हैं- ये भी एक सच्चाई है, जो हर पेशे की सच्चाई है।
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      रिपोर्टर्स और कॉरेस्पोंडेंट्स ही असल पत्रकार होते हैं, वही असल पत्रकारिता करते हैं, ये कहना गलत नहीं होगा, क्योंकि खबरों से वास्तव में उन्हीं का सबसे पहले पाला पड़ता है और उन्हें अंजाम तक भी वहीं पहुंचाते हैं, समाचार चैनल से जुड़े दूसरे लोग और विभाग तो सिर्फ माध्यम भर होते हैं। लिहाजा ये भी ध्यान देना होगा कि वो पब्लिक के बीच रहते हुए पब्लिक को पब्लिक की खबर देते हैं। ऐसे में उनका सामना ऐसी खबरों से भी होता है, जो सामाजिक सरोकारों से जुड़े होते हैं- ऐसी स्थिति में अगर रिपोर्ट्स और कॉरेसपोंडेंट पत्रकारीय मूल्यों का ख्याल करें तो वो खबरों से जुड़ी ऐसी शख्सियतों की खबर ले भी सकते हैं, जो समाज का अहित कर रहे हों। अक्सर मीडिया रिपोर्ट्स और कई मुद्दों पर लाइव चर्चा के दौरान देखा भी गया है कि रिपोर्ट्स औऱ कॉरेस्पोंडेट खबरों से जुड़ी हस्तियों  से भिड़ गए हों, और अपने तथ्यों, अपने तर्कों से उनकी बोलती बंद कर दी हो। ये एक महत्वपूर्ण पक्ष है, जो पत्रकार की जिम्मेदारी का एहसास दिलाता है।
 टेलीविजन के संवाददाताओं के पास कम से कम समय और शब्दों में ज्यादा से ज्यादा बड़ी खबरें मुहैया कराने की चुनौती होती है। इसके लिए उनकी तैयारी और ट्रेनिंग भी पुख्ता होनी चाहिए। आजकल आम तौर पर पत्रकारिता के पाठ्यक्रम पूरे कर चुके लोगों को ही इस क्षेत्र में नौकरियां मिलती हैं। साथ ही, अगर किसी और विषय या क्षेत्र की विशेषज्ञता उन्हें हासिल हो, तो ये भी उनके लिए फायदेमंद साबित हो सकती है, हालांकि ऐसा हमेशा जरूरी नहीं। खबरों की समझदारी और उन्हें पकड़ने की क्षमता होना बेहद जरूरी है, साथ ही जरूरी है कि आप मिलनसार हों, तेज़ तर्रार हों, आपका पीआर यानी जनसंपर्क मजबूत हो और घुलने-मिलने औऱ चीजों को मैनेज करने में आप माहिर हों, तभी आप अनजान जगहों औऱ प्रतिकूल परिस्थितियों में भी कामयाब साबित हो सकते हैं। अनुभव और कामकाज की विविध परिस्थितियों के आधार पर इस क्षेत्र में कांम करनेवालों का विकास होता है, हालांकि विशेषज्ञता काफी जरूरी मानी जाती है, लेकिन हरफनमौला यानी हर क्षेत्र पर पकड़ रखनेवालों की भी काफी पूछ इस क्षेत्र में होती है क्योंकि पत्रकारिता का क्षेत्र अब काफी विस्तृत हो चला है और ऐसे लोगों की काफी जरूरत है, जो एक साथ कई काम कर सकते हों। टेक्नॉलॉजी औऱ संचार सुविधाओं के विकास ने रिपोर्टर्स और कॉरेस्पोंडेंट्स को और भी आसान और मजबूत तरीके से काम करने का अवसर दिया है। इस सिलसिले में आजकल स्मार्टफोन और माइक्रोफोन समेत वीडियो कैमरे और TVU और MTU जैसे मोबाइल ब्रॉडकास्ट यूनिट उनके मूल हथियार हैं। साथ ही सोशल नेटवर्किंग साइट्स खबर से जुड़ी जानकारियां जुटाने का बड़ा स्रोत हैं। जरूरत है, तो सिर्फ चौकस रहते हुए तेजी से काम करने की। रिपोर्टर्स और कॉरेस्पोंडेंट्स अगर एक साथ कई भाषाओं पर पकड़ रखते हैं, तो उनके लिए ऐसे समाचार संगठनों में काम करना आसान रहता है, जहां कई भाषाओं के चैनल चल रहे हों। जहां भी जरूरत हो, उन्हें इस्तेमाल कर लिया जाता है। विषेशज्ञता बढ़ने पर उनके लिए समाचार चैनल से निकलकर विभिन्न संगठनों के लिए पब्लिक रिलेशन से जुड़ी नौकरियों के भी ऑफर रहते हैं यानी अच्छे अवसरों की कमी नहीं क्योंकि पत्रकार के रूप में वो अपना पहचान पहले ही बना चुके होते हैं। तो जरूरत है अपनी क्षमताओं का सही इस्तेमाल करने की ताकि उनके जरिए समाज  का भी हित हो और अपना भी।
-          कुमार कौस्तुभ
26.04.2013, 9.20 PM


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