बाइस्कोप यानी चलता
फिरता सिनेमाघर- ये उस जमाने की परिकल्पना है, जब मनोरंजन के लिए सिनेमाघर काफी सीमित
थे और इंसान पारंपरिक साधनों से हटकर मनबहलाव का कोई और जरिया तलाश रहा था। घूमती तस्वीरों की बानगी पेश करनेवाला
बाइस्कोप गली-मुहल्लों-गांवों और हाट-बाजारों में महिलाओं और बच्चों के मनबहलाव का
अच्छा साधन था। जमाना बदला है और बाइस्कोप की संस्कृति खत्म हो गई है। लेकिन ऐसा
माना जा रहा है कि भारत में बाइस्कोप अब नए रूप में सामने आया है – वो है यहां के
टेलीविजन के समाचार चैनल। समाचार चैनलों की बाइस्कोप से तुलना की खास वजह है इन पर
परोसा जानेवाला एंटरटेनमेंट का कंटेंट। आमतौर पर हर समाचार चैनल पर रोजाना डेढ़ से
2 घंटे ऐसी फिक्स प्रोग्रामिंग होती है, जिसमें बॉलीवुड की फिल्मों और टेलीविजन के
सीरियल्स का योगदान रहता है। ये 2 घंटे की प्रोग्रामिंग अगर 24 घंटे में 3 बार
दोहराई जाए, तो कुल 6 घंटे यानी रोजाना समाचार चैनलों का लगभग एक चौथाई वक्त
इन्हीं मनोरंजन संबंधी कार्यक्रमों पर केंद्रित रहता है। हमेशा ये सवाल ये उठता है
कि समाचार चैनलों पर समाचार दिखाए जाने चाहिए, यहां उस मनोरंजन के लिए जगह क्यों
है, जो एंटरटेनमेंट चैनलों पर और सिनेमाघर में उपलब्ध है? इसका एक तर्क
तो ये है कि समाचार चैनल एंटरटेनमेंट से जुड़ी खबरें कवर करते हैं- मसलन फिल्में
रिलीज़ होने से जुड़ी खबरें, आनेवाली फिल्मों से जुड़ी खबरें, सितारों से जुड़ी
खबरें, गॉशिप्स, टीवी सीरियल्स से जुड़ी खबरें इत्य़ादि। ये तर्क जमता है कि
बॉलीवुड या मनोरंजन जगत में कुछ नया हो रहा है तो वो समाचार चैनलों पर खबरों के
दायरे में आता है। लेकिन मामला सिर्फ खबर दिखाने तक सीमित नहीं है। सवाल तब खड़े
होते हैं, जब फिल्मी या इनसे जुड़े मनोरंजन के विश्लेषण से लेकर इनसे जुड़ी
सामग्री बेहद चटपटे अंदाज में मसाला लगाकर पेश करने की कोशिश होती है। यही नहीं,
अक्सर फिल्मों के हिस्से, गाने, सीरियल्स के हिस्से भी एंटरटेनमेंट शो में शामिल
होते हैं। ऐसे में दर्शकों की ओर से सीधा सवाल ये उठता है कि क्या हम समाचार चैनल
देख रहे हैं या फिर एंटरटेनमेंट चैनल – अगर एंटरटेनमेंट की सामग्री जिस तरह समाचार
चैनलों पर दिखाई जा रही है, वही देखना हो, तो GEC क्यों न देखें? यानी सीधा
आरोप ये है कि समाचार चैनल किसी न किसी तरीके से अपनी हदें लांघते दिखते हैं, जिस
पर सवाल खड़े होते हैं और बहस के मुद्दे निकलते हैं।
दरअसल टेलीविजन
समाचार चैनलों पर एंटरटेनमेंट से जुड़ी चीजें दिखाने की सोच अखबारों से आई है।
आप-हम- सभी जानते और देखते आ रहे हैं कि अखबारों में मनोरंजन के पूरे पृष्ठ होते
हैं जिनमें सिनेमाई और छोटे पर्दे के एंटरटेनमेंट की खबरों के अलावा उनसे जुड़े
विश्लेषण और गॉशिप्स की बहुतायत होती है। समाचार चैनलों पर एंटरटेनमेंट बुलेटिन दिखाने
की सोच यहीं से उपजी, लेकिन बात सिर्फ खबर तक नहीं रही समाचार चैनलों ने सिनेमा और
GEC कंटेंट के अपने तरीके से
इस्तेमाल की छूट खुद ले ली। अखबारों में फिल्मी गानों के हिस्से नहीं दिखाए जा
सकते या सीरियल्स के सीन की भी महज तस्वीरों का इस्तेमाल हो सकता है। लेकिन टीवी
समाचार चैनलों पर चुंकि वीडियो दिखाने की सुविधा है, तो एंटरटेनमेंट शोज़ में इस
सुविधा का न सिर्फ भरपूर बल्कि जरुरत से ज्यादा इस्तेमाल किया गया। समाचार चैनलों
पर सिनेमा से जुड़ी इस तरह की प्रोग्रामिंग से सिनेमा का प्रचार ही होता है,
लिहाजा बॉलीवुड को इस पर आम तौर पर आपत्ति नहीं रही। प्रसारण नियमों के तहत
फिल्मों के गानों या दूसरे हिस्सों के 28 सेकेंड ‘अनकट’
इस्तेमाल की छूट पहले से है, लेकिन ज्यादा इस्तेमाल पर भी कोई घोषित-अघोषित रोक
कभी नहीं दिखी। हां, यशराज फिल्म्स जैसे कुछ संगठनों ने अपनी फिल्मों की क्लिप्स
के इस्तेमाल पर कॉपीराइट कानून के तहत पाबंदी जरूर लगा दी। उनके कंटेंट का
इस्तेमाल करने के लिए पहले से परमीशन लेने और जरूरी शुल्क अदा करने के पचड़े हैं।
लेकिन उनके अलावा हजारों लाखों सिनेमाई क्लिप्स के इस्तेमाल पर कोई पूछताछ नहीं
होती जिसका समाचार चैनल पूरा फायदा उठाते रहे हैं।
दूसरा मुद्दा
फिल्मों के उन हिस्सों के इस्तेमाल का था, जिन्हें सेंसर बोर्ड के नियमों के तहत
सिर्फ सिनेमाघरों में ही दिखाया जा सकता था, क्योंकि उनके टेलीविजन पर सार्वजनिक
प्रसारण की बंदिश है। यानी जिन फिल्मों को सेंटर बोर्ड ने A यानी एडल्ट
श्रेणी में रखा हो, उनकी फुटेज के टेलीविजन पर इस्तेमाल पर रोक है। विद्या बालन की
मशहूर फिल्म डर्टी पिक्चर को तो एंटरटेनमेंट चैनल पर काफी काट-छांट के बाद दिखाने
की मंजूरी मिली। ऐसे में समाचार चैनलों पर वैसे कंटेंट, वैसी तस्वीरों को नहीं
दिखाया जा सकता, जिन्हें A सर्टिफिकेट मिला हो। गुजरे दिनों में
टेलीविजन के समाचार चैनलों पर दिखाए जानेवाले फिल्म आधारित एंटरटेनमेंट शोज़ में
बोल्ड तस्वीरों का तड़का लगा दिखा, जिस पर काफी कड़ी प्रतिक्रिया हुई। सूचना और
प्रसारण मंत्रालय की ओर से भी इस पर चेतावनी दी गई और समाचार चैनलों के NBA
यानी न्यूज़ ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन की ओर से भी नियंत्रण के लिए गाइडलाइंस जारी
की गईं। ये साफ कर दिया गया कि समाचार चैनलों पर न तो किसी A सर्टिफिकेट
वाली फिल्म की फुटेज दिखाई जाएंगी, ना ही ऐसी तस्वीरों का इस्तेमाल होगा जिनमें
अश्लीलता की बू आती हो। TRP की होड़ में दर्शकों को अपनी ओर खींचने के
लिए हर हथकंडा अपनाने की जुगत में जुटे समाचार चैनलों के लिए ये झटका जरूर था,
लेकिन इससे स्थिति काफी हद तक बदली। हालांकि कई बड़े समाचार चैनल अब भी NBA
की
गाइडलाइंस को ताक पर रख देते हैं, लेकिन छोटे और मार्केट में अपनी पकड़ बना रहे चैनलों
को जरूर अपने ऊपर काबू करना पड़ता है और नियंत्रित दायरे में ही वो चीजें दिखानी
होती हैं, जो दर्शकों को प्रभावित कर सकती हैं। आखिर समाचार चैनलों को दर्शक पूरे
परिवार के साथ बैठकर देखते हैं, लिहाजा ऐसा कुछ भी दिखाने पर सवाल खड़े हो सकते
हैं, जो नैतिक और कानूनी नियम कायदों के हिसाब से ठीक नहीं हो।
भारत ही नहीं,
दुनिया के और देशों में भी टेलीविजन पर दिखाए जानेवाले एंटरटेनमेंट से पैदा होने
वाले उस खतरे पर चिंता जताई जा चुकी है, जो भारत में समाचार चैनलों के जरिए दिखा
है। दक्षिण अफ्रीका के एक पूर्व पोस्ट एंड टेलीग्राफ मंत्री Dr. Albert
Hertzog तो टेलीविजन के धुर विरोधी थे और उन्होंने इसे miniature
bioscope करार दे डाला था, जिस पर अभिभावकों का नियंत्रण नहीं रहता।[1] जाहिर है, बात टेलीविजन पर
एडल्ट कंटेट की ही है, जो एंटरटेनमेंट के जरिए समाचार चैनलों पर भी घुसपैठ कर चुका
है। समाचार और एंटरटेनमेंट शो न सही, कई विज्ञापनों में तो वो सब कुछ दिखता है,
जिसका वैधानिक तौर पर समाचारों के दायरे में दिखाया जाना निषिद्ध है।
तमाम बंदिशों और
नियंत्रण के बावजूद समाचार चैनलों पर बॉलीवुड के कंटेंट का इस्तेमाल घटा हो, ऐसा
नहीं दिखता। बल्कि दिलचस्प प्रोग्रामिंग के लिए और भी रास्ते तलाश लिए गए हैं। अब
समाचार चैनलों पर सितारों के जन्मदिन , पुण्यतिथि , सिनेमाई ट्रेंड्स, बड़ी
फिल्मों से जुड़े बड़े मुद्दों और तमाम ऐसे मामलों पर कार्यक्रम पेश किए जा रहे
हैं, जो मूल रूप से खबर पर आधारित होते हैं, लेकिन उनमें न सिर्फ तड़का और चासनी बल्कि
रेसिपी का हर ingredient फिल्मी फुटेज ही होता है। इस मामले में
अंग्रेजी के समाचार चैनल भी पीछे नहीं हैं। मसलन, हिंदी और अंग्रेजी समाचार चैनलों
फिल्मों और फिल्मी सितारों पर आधारित शो टोटल रिकॉल (टाइम्स नाऊ), 50 अनसुनी
कहानियां ( न्यूज़ 24), तलाश
( इंडिया टीवी), स्कैंडल
(आजतक), जानेभी दो (एबीपी),बॉलीवुड@100 (आईबीएन7), सितारों
की कहानी (तेज़), सुपरस्टार (तेज़) – जैसे कई आधे घंटे से लेकर 1 घंटे तक के
कार्यक्रम काफी दिलचस्प हैं और दर्शकों के बीच अपनी पहचान बना चुके हैं। बॉलीवुड
से जुड़े मुद्दों पर खड़ा किए गए ऐसे कार्यक्रमों का निर्माण समाचार चैनलों के बजट
के हिसाब से भी काफी मुफीद बैठता है क्योंकि इनमें न फुटेज के लिए खास खर्च करना
पड़ता और न ही शूटिंग जैसी कोई बात होती है। स्क्रिप्ट, एडिटिंग. ग्राफिक्स,
प्रोमो का इनहाउस उत्पादन यानी बिना कुछ खर्च किए शानदार कमाई। बड़े सितारों के
जन्म दिन या पुण्य तिथि को भुनाने का मौका समाचार चैनल नहीं छोड़ते। इसी तरह,
सितारों से जुड़े विवादों की कहानियां भी नए कलेवर में पेश की जाती हैं। ‘तलाश’
जैसे
कार्यक्रम जरूर अलग हटकर हैं, जिनमें भूले-बिसरे और पर्दे से गायब कलाकारों की
खोजबीन की जाती है। बॉलीवुड आधारित इन कार्यक्रमों में खबर तो सिर्फ 1 लाइन की
होती है, लेकिन बैकग्राउंडर के रूप में दिखाने को इतना कुछ होता है, जिसे दर्शक
बार-बार देखना चाहते हैं। मसलन खबर यदि फिल्म शोले के सिक्वल बनाने की हो, तो उस
पर आधे घंटे का शो बनाने के लिए इस्तेमाल तो शोले के वहीं हिस्से होंगे, जो
दर्शकों की आंखों में बरसों से बसे हुए हैं। वही डॉयल़ॉग इस्तेमाल होंगे जो लोगों
की जुबान पर चढ़े हुए हैं। ऐसे तमाम
मुद्दे रोज न सही हफ्ते और महीने में मिल ही जाते हैं, जिन पर थोड़ी रिसर्च और कुछ
कल्पनाशीलता के साथ अपने पास मौजूद संसाधनों के जरिए बेहतरीन कार्यक्रम तैय़ार किए
जा सकते हैं। ये वाकई समाचार चैनलों के एंटरटेनमेंट डेस्क पर काम करनेवालों के लिए
बड़ी चुनौती है कि वो ऐसे मुद्दे तलाशें जिनका खबर से भी रिश्ता हो, और मनोरंजन से
भी। साथ ही ये टेलीविजन पर उनकी रचनात्मक क्षमता को जाहिर करने का भी अच्छा मौका
होता है। जिन लोगों की फिल्मों और एंटरटेनमेंट में दिलचस्पी हो और जो खबरों के
मुताबिक उनका इस्तेमाल करना जानते हों, उनके लिए संतुष्टि दिलानेवाला काम करने का
ये बेहतरीन फलक है।
मनोरंजन के कंटेंट
का समाचार चैनलों पर इस्तेमाल को लेकर बड़ा विवाद तब खड़ा हुआ जब जनरल एंटरटेनमेंट
चैनलों के लोकप्रिय सीरियल्स की फुटेज समाचार चैनलों पर धड़ल्ले से इस्तेमाल होने
लगी। खासकर तब जब किसी शो का अगला एपिसोड आनेवाला हो, तो उससे पहले समाचार चैनलों
पर कर्टेन रेज़र के रूप में आधे-आधे घंटे के शो उन्हीं की फुटेज पर आधारित दिखाए
जाने लगे। ऐसे कार्यक्रमों में पेग जरूर खबर का दिखता रहा, लेकिन सीरियल्स के
फुटेज के इस्तेमाल के चलते, खबर पीछे छूटती नज़र आई। हालात हद से बाहर जाने लगे और
बिना काट-छांट के ही रियलिटी शोज़ के भी हिस्से समाचार चैनलों पर दिखाए जाने लगे।
उनमें ऐसा कंटेंट भी होता था, जिसका समाचार से कोई लेना-देना नहीं, ना ही उनमें
किसी खबरिया नजरिए को पेश करने की कोशिश होती थी। लिहाजा बहुत से दर्शक आधे या 1
घंटे के सीरियल या रियलिटी शो के चंद दिलचस्प हिस्से समाचार चैनलों पर ही देख लेते
थे और एंटरटेनमेंट चैनल पर वो कार्यक्रम देखने की जरूरत नहीं समझते थे। समाचार
चैनलों पर ऐसे शो के स्लॉट भी एंटरटेनमेंट चैनलों से अलग रहे हैं, जाहिर है, जो
सामग्री एंटरटेनमेंट चैनल पर दिखाई गई हो, उसका कुछ दिलचस्प और संपादित हिस्सा
समाचार चैनलों पर दिखाया जा रहा हो, तो दर्शक भला एंटरटेनमेंट चैनल पर वक्त खराब
करना क्यों चाहेगा। दर्शक वर्ग की इस मानसिकता को समाचार चैनलों ने खूब भुनाया और ऐसे
मनोरंजन आधारित कार्यक्रमों से समाचार चैनलों को बेशुमार फायदा भी हुआ और एंटरटेनमेंट
चैनलों को समाचार चैनलों की ओर से उनके दायरे में दखल देने का एहसास भी। दो-तीन
साल में यानी 2007 के बाद से समाचार चैनलों की इस स्वच्छंदता पर लगाम लगाने की
कोशिशें शुरु हो गईं। सोनी टीवी जैसे एंटरटेनमेंट चैनलों ने मुफ्त में भरपूर
इस्तेमाल हो रहे अपने कार्यक्रमों की फुटेज का मामला कोर्ट तक ले जाने की धमकी दी ,
कई समाचार चैनलों को मॉनीटर करके उन्हें नोटिस भी जारी किए और समाचार चैनलों को
अपने कार्यक्रमों में उनके एंटरटेनमेंट कंटेट दिखाने पर कई तरह की बंदिशें लगा
दीं। एंटरटेनमेंट चैनलों की ओर से समाचार चैनलों के लिए सीरियल्स और रियलिटी शोज़
के EPK यानी इलेक्ट्रॉनिक प्रॉडक्शन किट मुहैया कराए जाने लगे, जिनका
इस्तेमाल वो अपने कार्यक्रमों में कर सकते थे। साथ ही NBA यानी न्यूज़ ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन की ओर से भी
समाचार चैनलों के आत्मनियंत्रण के लिए कई गाइडलाइंस जारी की गईं, जिनके तहत
एंटरटेनमेंट चैनलों की परमीशन के बिना उनके कार्यक्रमों की फुटेज के सीमित
इस्तेमाल, खबर आधारित स्टोरी में सीरियल्स की फुटेज के इस्तेमाल और रियलिटी शोज़
की फुटेज के इस्तेमाल से जुड़े कई निर्देश दिए गए। तमाम समाचार चैनल अब इनका पालन
करते हैं और एंटरटेनमेंट कार्यक्रमों के कलेवर में इस तरह काफी बदलाव किए गए हैं। ऐसे
में अब इडियट बॉक्स का बाइस्कोप वाला मुखड़ा कुछ हद तक बदला जरूर है, लेकिन अब भी
कई चैनलों पर एंटरटेनमेंट चैनलों के कॉमेडी शोज़ के हिस्से जिस तरह दिखाए जाते
हैं, वो एंटरटेनमेंट चैनलों पर समाचार चैनलों की निर्भरता को ही जाहिर करते हैं।
समाचार चैनलों पर
एंटरटेनमेंट के मामले में एक बड़ा मुद्दा इनसे जुड़ी खबरों और कार्यक्रमों की
स्क्रिप्टिंग का भी है। एंटरटेनमेंट कार्यक्रम की स्क्रिप्टिंग खबरिय़ा नहीं हो
सकती, उसमें कल्पना के स्तर पर ट्विस्ट होंगे, भाषा के स्तर पर चटपटा और मसालेदार
बनाना होगा। साथ ही, एंटरटेनमेंट की लय बरकरार रखने के लिए स्क्रिप्ट लिखनेवाले को
अपने ज्ञान या विश्लेषण का ओवरडोज़ देने से भी परहेज करना चाहिए। एंटरटेनमेंट शो
की स्क्रिप्ट बेहतरीन हो, इसके लिए जरूरी है कि स्क्रिप्ट लिखनेवाले को मुद्दे से
जुड़ी हर जानकारी हो, और उसे ये पता हो, कि किस जगह किस जानकारी का सही इस्तेमाल
हो सकता है। इसके लिए स्क्रिप्टिंग से पहले रिसर्च जरूरी है। साथ ही ये भी ध्यान
रखना जरूरी है कि फिल्मी गानों और डायलॉग्स का स्क्रिप्ट में कहां-कहां और किस तरह
से इस्तेमाल हो सकता है। अगर गानों और डायलॉग्स को घटनाक्रम से जोड़कर सही तरीके
से इस्तेमाल किया गया और स्क्रिप्ट के साथ उसकी लय बरकरार रही तो अंत में
कार्यक्रम शानदर बनकर उभरेगा और आपका एंटरटेनमेंट शो डॉक्यूमेंटरी को भी टक्कर दे देगा।
टीवी पत्रकारिता से
जुड़े तमाम ऐसे लोग हैं जो एंटरटेनमेंट चैनलों में फिक्शन के क्षेत्र में नहीं गए,
लेकिन, वो अपनी क्षमता का बेहतरीन इस्तेमाल एंटरटेनमेंट शो बनाने में कर रहे हैं।
जो लोग इस क्षेत्र में करियर बनाना चाहते है, उनमें एंटरटेनमेंट के पहलुओं,
फिल्मों और सीरियल्स को देखने , उनके बारे में पढ़ने की स्वाभाविक दिलचस्पी होनी
चाहिए। जैसे पत्रकारों में खबर सूंघने और खबर निकालने की क्षमता होती है, वैसे ही
फिल्मों औऱ सीरियल्स या रियलिटी शोज़ से नए-नए कार्यक्रमों के आइडियाज़ निकालने की
भी क्षमता होनी चाहिए। भाषा पर अच्छी पकड़ होनी चाहिए और रचनात्मक कल्पनाशीलता उनमें
कूट-कूट कर भरी होनी चाहिए। ये सब एक या दो दिन की ट्रेनिंग से नहीं आता, मसला
मौके मिलने और अभ्यास का है, जिससे पैदा अनुभव आपको एंटरटेनमेंट पत्रकारिता का
महारथी न सही, एक बढ़िया एंटरटेनमेंट प्रोड्यूसर तो बना ही सकता है। इसके लिए
जरूरी ये है कि जिस तरह आप टीवी पत्रकार के रूप में खबर को पकड़ते हैं, वैसे ही
अपनी दिलचस्पी को मूर्त रूप देने के लिए मौकों की तलाश करें और कोई ऐसा मौका हाथ
से न जाने दें, जहां आपकी प्रतिभा झलक उठे।
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कुमार कौस्तुभ
15.04.2013,
5.52 AM
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