लीप ईयर दिवस
लीप ईयर वह होता है जब साल में 365 दिनों की जगह 366 दिन होते हैं। हर चार सालों में कैलेंडर में एक दिन अतिरिक्त जुड़ जाता है, जिसे हम 29 फरवरी कहते हैं।हमारी पृथ्वी को सूरज का एक चक्कर पूरा करने में 365 दिनों से थोड़ा ज्यादा समय लगता है। इसी वजह से हम हर चार साल में एक एक्स्ट्रा दिन अपने कैलेंडर में शामिल कर लेते हैं, जिसे 'लीप डे' (Leap Day) कहा जाता है, ताकि बदलते मौसम से हमारा कैलेंडर मेल खा सके।जब भी फरवरी का महीना 29 दिन का होता है, उस साल को Leap Year कहा जाता है। सामान्य तौर पर एक साल में 365 दिन होते हैं। लेकिन लीप ईयर में साल में 366 दिन होते हैं। क्योंकि 29 फरवरी की दिन एक्स्ट्रा होता है।अपनी धुरी पर घूमते घूमते पृथ्वी सूर्य का एक चक्कर पूरा करती है। धरती को सूर्य का एक चक्कर पूरा करने में 365.25 दिन का समय लगता है। इस तरह से हर साल 0.25 जुड़ते जुड़ते चार साल में एक पूरा दिन बन जाता है। इसी एक्स्ट्रा दिन को 29 फरवरी के रूप में कैलेंडर में जोड़ा गया है। लीप वर्ष में अतिरिक्त दिन जोड़ने के लिए सबसे छोटे महीने फरवरी को चुना गया। प्राचीन रोमन कैलेंडर में फरवरी ही वर्ष का अंतिम महीना था, इसलिए यह अतिरिक्त दिन जोड़ने के लिए सबसे उपयुक्त विकल्प था। सोलर सिस्टम में सिर्फ पृथ्वी ही ऐसा ग्रह नहीं है जहां लीप ईयर आता है। उदाहरण के लिए मंगल ग्रह को ही लें, यहां नियमित सालों की तुलना में लीप साल ज्यादा होते हैं। मंगल ग्रह पर एक साल में 668 सोल्स होते हैं, यानी मंगल को सूरज का एक चक्कर पूरा करने में 668.6 दिन लगते हैं।समय के साथ 29 फरवरी सिर्फ गणित का जोड़-तोड़ नहीं रह गया है. दुनियाभर में इस दिन को लेकर कई रीति-रिवाज भी बने.बताया जाता है कि आयरलैंड में 5वीं सदी में सेंट ब्रिजेट ने सेंट पैट्रिक से कहा था कि महिलाओं को पुरुषों के सामने शादी का प्रस्ताव रखने की अनुमति नहीं है. तब सेंट पैट्रिक ने 29 फरवरी को एक ऐसे दिन के रूप में नामित किया, जिस दिन महिलाओं को पुरुषों को प्रपोज करने की अनुमति होगी. कुछ जगह लीप डे को बैचलर डे के रूप में जाना जाता है. स्कॉटलैंड की रानी ने इस रिवाज में महिलाओं के फायदे के लिए एक नया ट्विस्ट जोड़ा. इसमें कहा गया था कि महिलाएं हर 29 फरवरी को प्रपोज कर सकती हैं. और अगर कोई पुरुष इनकार करता है, तो उसे महिला को जुर्माने के रूप में नया गाउन, दस्ताने या चुंबन देना होगा.लीप ईयर जोड़ने की शुरूआत हजारों सालों पहले रोमन जनरल जुलियस सीज़र ने की थी. तब रोमन कैलेंडर 355 दिनों का ही हुआ करता था. उस समय दिसंबर की जगह फरवरी साल का आखिरी महीना था. 45 BC में सीज़र ने आदेश दिया कि हर चार साल बाद साल के आखिरी दिन में 24 घंटे जोड़े जाएं. 16वीं शताब्दी में कैथोलिक चर्च ने कैलेंडर में आखिरी बड़ा बदलाव किया. चर्च ने यह जिम्मा इसलिए भी उठाया क्योंकि कैलेंडर की त्रुटि की वजह से ईस्टर (ईसाईयों का महत्वपूर्ण वार्षिक धार्मिक पर्व) की तारीख अपने पारंपरिक स्थान से लगभग दस दिन दूर हो गई थी.
पोप ग्रेगरी XIII ने एक संशोधित कैलेंडर शुरू किया, जिसे हम आज इस्तेमाल करते हैं. इसमें 400 से विभाजन होने वाले सालों को लीप ईयर माना जाता है. इस वजह से सन् 1800, 1900 लीप ईयर नहीं थे. लेकिन सन् 2000 लीप ईयर था. (विविध स्रोत)
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