27 फरवरी
विश्व एनजीओ दिवस
विश्व एनजीओ दिवस एक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त दिवस है, जिसे यूरोपीय संघ द्वारा भी मान्यता प्राप्त है , जो दुनिया भर में 10 मिलियन से अधिक एनजीओ और गैर-लाभकारी संगठनों के अविश्वसनीय काम का जश्न मनाता है और उन्हें सम्मानित करता है।आधिकारिक तौर पर 2010 में प्रस्तावित और मान्यता प्राप्त , विश्व एनजीओ दिवस 2012 में घोषित किया गया था और पहली बार 2014 में संयुक्त राष्ट्र, यूरोपीय संघ, नॉर्डिक परिषद के नेताओं और अंतरराष्ट्रीय संगठनों द्वारा मनाया गया था। इसे यूरोपीय संघ द्वारा एक अंतरराष्ट्रीय दिवस के रूप में स्वीकार किया जाता है । विश्व एनजीओ दिवस, यूरोपीय संघ में स्थापित किया गया था और इसकी परिकल्पना लातविया में जन्मे ब्रिटिश सामाजिक उद्यमी और वकील मार्सिस स्काडमानिस (उस समय 23 वर्ष के थे) द्वारा की गई थी । विश्व एनजीओ दिवस को आधिकारिक तौर पर सिविक एलायंस लातविया (बाल्टिक सागर एनजीओ फोरम के सदस्य) के समर्थन से मार्सिस स्काडमैनिस द्वारा प्रस्तावित किया गया था और 17 अप्रैल, 2010 को लिथुआनिया के विलनियस में बाल्टिक सागर एनजीओ फोरम के 12 देशों द्वारा मान्यता दी गई थी। बाल्टिक सागर एनजीओ फोरम के सदस्य देश बेलारूस, डेनमार्क, एस्टोनिया, फिनलैंड, जर्मनी, आइसलैंड, लातविया, लिथुआनिया, पोलैंड, रूस, नॉर्वे और स्वीडन थे।
अंतर्राष्ट्रीय ध्रुवीय भालू दिवस
हर साल पोलर बियर इंटरनेशनल राष्ट्रीय ध्रुवीय भालू दिवस को प्रायोजित करता है। वे 2011 से इस दिन को मना रहे हैं। अंतर्राष्ट्रीय ध्रुवीय भालू दिवस का उद्देश्य ध्रुवीय भालुओं के सामने आने वाली समस्याओं के बारे में जागरूकता बढ़ाना है। यह वैश्विक जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने के लिए हमारे कार्बन पदचिह्न को कम करने के तरीके खोजने का भी दिन है। प्रकृति के संरक्षण के लिए अंतर्राष्ट्रीय संघ (IUCN) ने ध्रुवीय भालू को एक संवेदनशील प्रजाति माना है। जलवायु परिवर्तन के कारण समुद्री बर्फ का नुकसान इस जानवर के अस्तित्व के लिए सबसे बड़ा खतरा है। वर्तमान में, दुनिया में अनुमानित 26,000 ध्रुवीय भालू हैं। वे आर्कटिक में 19 अलग-अलग आबादियों में रहते हैं। इनमें से लगभग 60 प्रतिशत आबादी कनाडा के भीतर या उसके द्वारा साझा की जाती है। ध्रुवीय भालू अलास्का, नॉर्वे, ग्रीनलैंड और रूस में भी पाए जाते हैं। पीबीआई ने 2011 में अंतर्राष्ट्रीय ध्रुवीय भालू दिवस की शुरुआत की। उनके लक्ष्य का एक हिस्सा आर्कटिक में मांद में रहने वाले ध्रुवीय भालू परिवारों की रक्षा करना था। इस कारण से, पीबीआई ने 27 फरवरी को चुना क्योंकि यह उस समय अवधि से मेल खाता है जब ध्रुवीय भालू की माँ और शावक अपनी मांद में आराम से रहते हैं। पीबीआई एक गैर-लाभकारी ध्रुवीय भालू संरक्षण संगठन है। उनका मुख्यालय बोज़मैन, मोंटाना और चर्चिल, मैनिटोबा में है।
मराठी भाषा गौरव दिवस
हर साल 27 फरवरी को मराठी भाषा दिवस मनाया जाता है, इस दिन मराठी भाषा और साहित्य को बढ़ावा दिया जाता है। अपनी साहित्यिक समृद्धि के लिए जानी जाने वाली मराठी ने कई प्रसिद्ध कवियों, लेखकों और विद्वानों को जन्म दिया है, जिनकी रचनाओं ने साहित्य और कला पर अमिट छाप छोड़ी है। यह भारत की सबसे पुरानी भाषाओं में से एक है, जिसका इतिहास सदियों पुराना है और इसने इस क्षेत्र के सांस्कृतिक परिदृश्य को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित प्रसिद्ध मराठी कवि विष्णू वामन शिरवाडकर (Vishnu Vaman Shirwadkar) (कुसुमाग्रज) (Kusumagraj) के जन्मदिन को 'मराठी भाषा गौरव दिवस' के तौर पर मनाया जाता है. आमतौर पर महाराष्ट्र (Maharashtra) में बोली जाने वाली इस भाषा की बोली ही इसकी सबसे बड़ी विशेषता है. 2011 में हुए एक सर्वे के अनुसार, भारत में हिंदी भाषा सबसे ज्यादा बोली जाती है, इसलिए यह पहले पायदान पर आती है. देश में लगभग 45 फीसदी लोग हिंदी भाषा का इस्तेमाल करते हैं. हिंदी के बाद बंगाली भाषा दूसरे स्थान पर आती है. आंकड़ों के मुताबिक, देश में 8.3 फीसदी लोग बंगाली भाषा का इस्तेमाल करते हैं और मराठी भाषा तीसरे स्थान पर आती है.आम धारणाओं और मान्यताओं के अनुसार, मराठी भाषा मुख्य रूप से आर्यों की भाषा है और इस भाषा का इतिहास लगभग 1500 साल पुराना है. गौरतलब है कि हर राज्य की अपनी एक अलग भाषा होती है, इसलिए महाराष्ट्र में रहने वाले अधिकांश लोग आम बोलचाल के लिए मराठी भाषा का ही इस्तेमाल करते हैं. मराठी भाषा का ज्यादा से ज्यादा विस्तार हो और इसके गौरव व सम्मान सदियों तक बरकरार रखने के लिए ही महाराष्ट्र में हर साल 27 फरवरी को मराठी भाषा दिन मनाया जाता है.
चंद्रशेखर आजाद बलिदान दिवस
चंद्रशेखर आजाद स्वतंत्रता संग्राम के महानायक थे। उनका बलिदान दिवस 27 फरवरी को मनाया जाता है। उनकी गिनती आजादी के लोकप्रिय वीर सेनानियों में की जाती हैं। चंद्रशेखर आजाद ने छोटी सी उम्र में सबकुछ त्याग कर गांधी जी के असहयोग आंदोलन में भाग लिया था। अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद ने प्रयागराज के अल्फ्रेड पार्क जिसको अब अमर शहीद चंद्रशेखर पार्क के नाम से जाना जाता है, में अंग्रेजी हुकूमत से मुकाबला करते हुए 27 फरवरी 1933 को अंतिम सांस ली थी।27 फरवरी 1933 को जब चंद्रशेखर आजाद अल्फ्रेड पार्क में अपने एक साथी सुखदेव राज के साथ बैठे थे। मुखबिरों की सूचना पर सीआईडी का सुपरिटेंडेंट ऑफ पुलिस नॉट बाबर सिपाहियों के साथ वहां पहुंचता है। उसके पीछे-पीछे भारी संख्या में पुलिस भी आ गयी। नॉट बाबर ने चंद्रशेखर आजाद को चारों तरफ से घेर लिया। चंद्रशेखर आजाद पर गोलीबारी शुरू हो गई।आजाद ने पेड़ की ओट लेकर अपनी पिस्टल से फायर कर जबाब दिया। आजाद के अचूक निशाने ने तीन पुलिसकर्मियों को मौत के घाट उतार दिया। कई अंग्रेज सैनिक घायल हो गए। लेकिन अंत में उनके पास गोलियां बहुत कम थी। ऐसे में एक समय आया जब उनके पास सिर्फ एक ही गोली शेष बची। तब आजाद ने अपने वचन के मुताबिक खुद को आजाद साबित करते हुए खुद को गोली मार ली और वीरगति को प्राप्त हो गए।चंद्रशेखर आजाद का जन्म 23 जुलाई, 1906 को मध्य प्रदेश के अलीराजपुर जिले के भावरा गांव में हुआ था। इनके पिता का नाम सीताराम तिवारी और माता का जगरानी देवी था। चंद्रशेखर आजाद किशोरावस्था में छात्र जीवन से ही स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हो गये थे। जब दिसंबर 1921 में महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन शुरू किया। तब चंद्रशेखर आजाद ने भी आंदोलन में हिस्सा लिया और उन्हें अंग्रेजों ने गिरफ्तार कर लिया था। (विविध स्रोत)
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