Wednesday, December 18, 2024

19 दिसंबर

19 दिसंबर 
गोवा मुक्ति दिवस 
Goa Liberation Day 
19 दिसंबर 1961 को भारतीय सेना ने गोवा को 450 साल के पुर्तगाली शासन से आजाद कराया था। ‘ऑपरेशन विजय’ के तहत भारतीय सैनिकों ने इस ऑपरेशन की शुरूआत 18 दिसंबर, 1961 को कीथी और 19 दिसंबर को पुर्तगाली सेना ने आत्मसमर्पण किया था। इस दिन भारतीय सेना ने गोवा, दमन और दीव में प्रवेश करके इन इलाकों को साढ़े चार सौ साल के पुर्तगाली राज से आजाद कराया था। दरअसल, ब्रिटिश और फ्रांस के सभी औपनिवेशिक अधिकार खत्म होने के बाद भी भारतीय उपमहाद्वीप गोवा, दमन और दीव में पुर्तगालियों का शासन था। भारत सरकार की बार-बार बातचीत की मांग को पुर्तगाली ठुकरा रहे थे। इसके कारण भारत सरकार ने ऑपरेशन विजय के तहत सेना की छोटी टुकड़ी भेजी। गोवा, दमन और दीव में 36 घंटे से भी ज्यादा वक्त तक जमीनी, समुद्री और हवाई हमले किए गए। इसके बाद पुर्तगाली सेना ने बिना किसी शर्त के भारतीय सेना के समक्ष 19 दिसंबर को आत्मसमर्पण किया। बताया जाता है कि उस समय पुर्तगाल के पास केवल 3,300 सैनिक थे, वहीं भारत की सैन्य टुकड़ी 30,000 जवानों की थी। 30 मई, 1987 को गोवा को राज्य का दर्जा दे दिया गया। दमन और दीव केंद्रशासित प्रदेश बने रहे। 

शहादत दिवस 
Martyrdom Day 
19 दिसंबर के ही दिन स्वतंत्रता सेनानी राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खान और ठाकुर रोशन सिंह को 1927 में फांसी दी गई थी। यही वजह है कि आज का दिन शहादत दिवस के रूप में मनाया जाता है। इन क्रांतिकारियों को काकोरी कांड को अंजाम देने के लिए फांसी दी गई थी। इसी मामले में क्रांतिकारी राजेंद्र लाहिड़ी को भी 19 दिसंबर को ही फांसी दी जानी थी, लेकिन जनता के विद्रोह को देखते हुए राजेंद्र लाहिड़ी को गोंडा जेल में दो दिन पहले यानी 17 दिसंबर को फांसी पर चढ़ा दिया गया था। बाकी क्रांतिकारियों को तीन अलग-अलग जेलों में फांसी दी गई। अशफाक उल्ला खां को 19 दिसंबर 1927 को गोरखपुर जेल में फांसी की सजा दी गई। पंडित राम प्रसाद बिस्मिल को फैजाबाद जेल में फांसी की सजा दी गई थी। ठाकुर रोशन सिंह को इलाहाबाद जेल में फांसी दी गई थी। 9 अगस्त 1925 की रात को चंद्रशेखर आजाद, राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खां, राजेंद्र लाहिड़ी और रोशन सिंह समेत तमाम क्रांतिकारियों ने लखनऊ से कुछ दूरी पर काकोरी और आलमनगर के बीच ट्रेन में ले जाए जा रहे सरकारी खजाने को लूट लिया था। इतिहास में काकोरी कांड के नाम से दर्ज इस घटना ने गोरी सरकार को हिला कर रख दिया था। खजाना लूटे जाने के बाद चंद्रशेखर आजाद पुलिस के हाथ नहीं लगे थे लेकिन राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खान, राजेंद्र लाहिड़ी और रोशन सिंह पुलिस के चंगुल में फंस गए। बाद में अंग्रेजी सरकार ने मुकदमा चलाकर देश के इन महान क्रांतिकारियों को सूली पर चढ़ा दिया था।

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