Thursday, October 3, 2024

कुछ सोचते, कुछ लिखते...



1
खुदा खैर करे
जो उनसे बैर करे
सफर में निकला है
मन तो जरूर सैर करे
2
चार दिन की जिंदगानी है
फिर क्यों उलटी बानी है
3
बुलंदियों पर तुम पहुंच तो गए
क्या कभी गहराइयों को देखा है
4
वो तो शै थी बड़े कमाल की
न मिला शैदाई..न बदला हवाल
5
होता जो जमाल का जलाल
रिंद यूं ही ख्वाबे-ग़म नहीं होता
6
उड़ गई नींद भला ये बला क्या है
ख्वाहिशे-उम्र में किसी ने छला क्या है
© कुमार कौस्तुभ 

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