मसला पूर्वी लद्दाख का है। गलवान कांड सहित कई बार तनावपूर्ण स्थिति और फिर भारतीय और चीनी सेना के नुमाइंदों के बीच कई दौर की वार्ता के बाद आखिरकार वह मौका आया जब यह खबर सुनने को मिली कि भारत और चीन कुछ हद तक सीमा विवाद सुलझाने में कामयाब हुए हैं। हालांकि यह भारतीय पक्ष का बयान है। रूस के कजान में १६वें ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के लिए प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा से पहले विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने यह 'खुशखबरी' देते हुए कहा - ''पिछले कई हफ़्तों से भारत और चीन के बीच राजनयिक स्तर के साथ सैन्य स्तर पर भी बातचीत हो रही थी. इसी का नतीजा है कि दोनों देश एलएसी पर सैनिकों की गश्त को लेकर एक समझौते पर पहुँचे हैं.''(बीबीसी हिंदी) हालांकि भारतीय सेनाध्यक्ष जनरल उपेंद्र द्विवेदी ने साफ साफ कहा कि 'हम दोबारा भरोसा हासिल करने की प्रोसेस में हैं। इसमें वक्त लगेगा।'(दैनिक भास्कर)
भारत और चीन के बीच इस कथित समझौते की टाइमिंग दिलचस्प है। वहीं गौरतलब यह भी है कि जहां एक ओर भारतीय विदेश सचिव इसका एलान करते हैं, विदेश मंत्री जयशंकर एक कार्यक्रम में इशारों में इसकी पुष्टि करते हैं और भारतीय सेनाध्यक्ष इस पर टिप्पणी करते हैं, वहीं चीन की ओर से घंटों बाद, तकरीबन २४ घंटे बाद इस मामले पर प्रतिक्रिया आती है और वह भी केवल चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता की ओर से बेहद नपे-तुले और सधे शब्दों में। न तो चीन के विदेश मंत्री, या ना ही कोई बड़ा नेता इस सिलसिले में बयान देता है। यहां तक कि भारत पर टिप्पणियां करने में आगे रहने वाले चीनी अखबार भी कम से कम भारत के सरकारी पक्ष के बयान पर तब तक चुप्पी साधे रहते हैं जब तक कि उनके विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता जुबान नहीं खोलते।
आखिर इस चुप्पी का क्या अर्थ है? क्या चीन इस मामले को बिल्कुल तवज्जो नहीं देना चाहता? कहीं ऐसा तो नहीं कि रूस के कहने पर चीन भारत के साथ सीमा विवाद के संदर्भ में फिलहाल (ब्रिक्स बैठक तक) अपने रुख में बदलाव के लिए राजी हुआ है? क्या इसके पीछे चीन की कहीं और कोई चाल तो नहीं? सवाल ये भी है चीन विवाद को सुलझाने में किस हद तक रुचि रखता है, यह भी स्पष्ट नहीं है क्योंकि बार-बार तनातनी और भारत की ओर से जवाब मिलने के बावजूद अब तक पूर्वी लद्दाख में चीनी गतिविधियों में खास बदलाव नहीं देखा गया, बल्कि चीन चुपचाप अपने पांव फैलाने के लिए उपाय करता है, इसके कितने ही सबूत समय समय पर मिल चुके हैं। लिहाजा , इस दफा भी चीन का राजीनामा संदिग्ध ही माना जाना चाहिए क्योंकि दोस्ती की आड़ में भारत की पीठ में छुरा भोंकने की चीन की पुरानी आदत रही है। निस्संदेह भारत भी यह बात समझता है और इसीलिए पूर्वी लद्दाख सहित हर सीमा पर सतर्कता और तैयारी बढ़ी है। परन्तु इस बार भी भारत सरकार को चीन से डील करते हुए विशेष सावधानी बरतनी होगी ताकि चीन का हर दांव उलटा पड़ जाए। © कुमार कौस्तुभ
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