एशिया और यूरोप के बीच पुल कहलाने वाले देश तुर्किए में एक बार फिर हुआ आतंकवादी हमला अप्रत्याशित नहीं है। दरअसल एर्दोआन सरकार में तुर्किए जिस तरह से पाकिस्तान की राह पर चल रहा है, उसको देखते हुए ऐसे आतंकी हमले अवश्यंभावी माने जा सकते हैं। कुर्द संगठन पीकेके की तुर्किए सरकार से अदावत पुरानी है जिसकी अपनी वजहें हैं और इसी के चलते खूबसूरत देश तुर्किए १९८७ से ही आतंकी हमलों का शिकार हो रहा है। लेकिन उसके लिए जिम्मेदार वहां की सरकार, खासतौर से अब एर्दोआन सरकार की इस्लामपरस्त नीतियां भी मानी जा सकती हैं।
आतंकवाद को शह देने वाले देश पाकिस्तान से तुर्किश की दोस्ती जगजाहिर है। इसके कारण तुर्किए अक्सर कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान का समर्थन करता रहा है। २०१४ में सत्ता में आने वाले एर्दोआन ने इस्तांबुल में स्थित विश्व धरोहर हागिया सोफिया को २०२० में म्यूजियम से मस्जिद बनाने का फैसला किया जो उनकी कट्टर इस्लामपरस्ती को जाहिर करता है।
लेकिन, एर्दोआन इस्लाम धर्म को मानने वाले कुर्दों को उनका हक देना नहीं चाहते। एक तरफ एर्दोआन भारत के अभिन्न अंग कश्मीर में आतंकवाद फैलाने वाले पाकिस्तान को शह और समर्थन देते हैं लेकिन अपने देश में आजादी मांग रहे कुर्दों का दमन करते आ रहे हैं। तो खामियाजा भला कौन भुगतेगा? एर्दोआन हिन्दुस्तान में आतंक की आग लगाने वालों के चीयरलीडर बने घूमते हैं तो उन्हें यह भी समझना होगा कि वो खुद इससे बचे नहीं रह सकते जैसा कि पाकिस्तान के साथ भी हो रहा है। आतंक की आग उन्हें भी जला सकती है! © कुमार कौस्तुभ
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