Thursday, October 10, 2024

ज़िन्दगी को टाटा बोल गए रतन

(चित्र साभार गूगल)
रतन टाटा - न केवल टाटा समूह के मुखिया बल्कि एक सहृदय व्यक्तित्व के रूप में देश में चर्चित रहे हैं। उद्योगपति कारोबारियों में उनकी सबसे जुदा शख्सियत रही और ऐसा केवल इसलिए नहीं कि वे देश की प्रमुख इस्पात कंपनी टिस्को, ऑटो मोबाइल कंपनी टेल्को और उस भरोसेमंद टाटा ब्रांड के मालिक थे जिसके तले खान-पान से लेकर हर तरह के सामान बनते और बिकते हैं बल्कि इसलिए भी कि वे सीएसआर यानी कारपोरेट सोशल रेस्पांसिबिलिटी के अग्रदूत रहे। टाटा का कैंसर इंस्टीट्यूट हो या टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च या टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज या इन जैसी अनेकों संस्थाएं, इनका नाम ही काफी है क्योंकि इनके साथ टाटा का नाम जो जुड़ा है। कार से लेकर हवाई जहाज तक के कारोबार में टाटा समूह की पैठ को बुलंदियों तक ले जाने वाले रतन टाटा ही रहे जिन्होंने अपने जीवन काल में एयर इंडिया को पुनः अपनी मिल्कियत बनाने में कामयाबी हासिल की। देश में उद्योगपति और व्यवसायी तो बहुत हैं, सामान बनाकर और बेचकर मुनाफा तो सब कमाते हैं लेकिन टाटा जैसे शायद ही चुनिंदा हों जिनका जीवन और कामकाज इस कदर बेदाग रहा कि देश का बच्चा-बच्चा बड़ी इज्जत के साथ उनका नाम लेता रहा है और लेगा क्योंकि टाटा समाज का दोहन करने के बजाय समाज को देने में विश्वास रखते थे। इसीलिए जो इज्जत रतन टाटा ने अपनी जिंदगी में कमाई वह शायद ही कोई हासिल कर सकें। और अंत में बड़ी शान से बिना कोई खास दुःख झेले वे एक दिन रूटीन चेकअप के नाम पर अस्पताल में भर्ती हुए, लेकिन कौन जानता था कि वे वहीं से जिंदगी को टाटा बाय बाय कर देंगे। इससे पहले ८६ साल की उम्र तक आते-आते शायद ही कभी सुना गया हो कि रतन टाटा बीमार हुए हों या अस्पताल में भर्ती हुए हों। शायद इस बार अस्पताल जाना तो एक बहाना था, उन्हें तो दूसरी दुनिया में जाना था। विनम्र श्रद्धांजलि। © कुमार कौस्तुभ 

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