Sunday, April 21, 2013

न्यूज़ डेस्क- न्यूज़ चैनल की धुरी




डिक्शनरी या थिसॉरस में झांकें तो न्यूज़ डेस्क का मतलब अखबार, टेलीविजन या रेडियो समाचार चैनल के उस हिस्से से है, जहां न्यूज़ रिपोर्ट्स तैयार होती हैं। लेकिन मौजूदा दौर में किसी भी टेलीविजन समाचार चैनल में न्यूज़ डेस्क की भूमिक सिर्फ न्यूज़ रिपोर्ट्स तैयार करने तक नहीं है, वरन इससे काफी बढ़ चुकी है। व्यावहारिक तौर पर देखें तो आज के दौर के समाचार चैनलों में न्यूज़ डेस्क उस धुरी के समान है, जहां से पूरे चैनल का 24 घंटे संचालन होता है। निश्चित रूप से न्यूज़ डेस्क समाचार चैनलों के उस प्रबंधन का ही भाग है जिसकी अगुवाई मैनेजिंग एडिटर, चैनल हेड, एग्जेक्यूटिव एडिटर या एग्जेक्यूटिव प्रोड्यूसर करते हैं, लेकिन चैनल की वास्तविक गतिविधियों का संचालन असल में न्यूज़ डेस्क के जरिए ही होता है। न्यूज़ रिपोर्ट्स तैयार करना तो न्यूज़ डेस्क के कामकाज का एक छोटा सा हिस्सा है। लेकिन चैनल की 24 घंटे की FPC  यानी फिक्स्ड प्वाइंट चार्ट को अमली जामा पहनाने और चैनल की पैकेजिंग की महती जिम्मेदारी न्यूज़ डेस्क के ही ऊपर होती है। ये भारतीय समाचार चैनलों की व्यवस्था है। विदेशों के चैनलों में व्यवस्था कुछ अलग हो सकती है। लेकिन समाचार चैनलों का जो मुख्य काम समाचार प्रसारण का है, उसमें कहीं भी न्य़ूज़ डेस्क की भूमिका कम नहीं आंकी जा सकती है।
       अखबारों में न्यूज़ डेस्क का काम न्य़ूज़ रिपोर्ट्स तैयार करने तक सीमित हो सकता है। आमतौर पर अखबारों में इसे जनरल डेस्क के नाम से जाना जाता है, जहां हार्ड न्यूज़ पर काम होता है। राजनीति, अपराध, खेल, मनोरंजन, अंतरराष्ट्रीय और अन्य मामलों से जुड़ी खबरों के लिए अलग डेस्क बंटे होते हैं और अखबार क अलग-अलग पन्नों के प्रकाशन के प्रबंधन की जिम्मेदारी अलग-अलग प्रभारियों पर होती है और इनके बीच तालमेल संपादक, समन्वय संपादक और दूसरे जिम्मेदार संपादकीय अधिकारियों के जरिए होती है। रेडियो समाचार में भी न्यूज़ डेस्क को जनरल डेस्क के रूप में जाना जाता है, जहां तमाम आनेवाली खबरों की रिपोर्ट्स तैयार की जाती हैं और अलग-अलग बुलेटिन्स और स्लॉट्स के संपादक अपनी जरूरत के मुताबिक उनका इस्तेमाल करते हैं। टेलीविजन समाचार में न्यूज़ डेस्क की भूमिका विस्तृत है।
       यूं तो टेलीविजन समाचार में भी राजनीति, अपराध, खेल, मनोरंजन, अंतरराष्ट्रीय और अन्य मामलों से जुड़ी खबरों के लिए अलग-अलग डेस्क होते हैं, लेकिन उनका इस्तेमाल किस तरह होगा और कहां-कहां होगा, ये आमतौर पर न्यूज़ डेस्क के जरिए ही तय होता है। खेल और मनोरंजन के विशेष बुलेटिन और खास स्लॉट्स के कार्यक्रमों की तैयारी उनसे जुड़े डेस्क कर सकते हैं, लेकिन इनका लगातार तालमेल न्यूज़ डेस्क के साथ बेहद जरूरी होता है। न्यूज़ डेस्क की सबसे बड़ी जिम्मेदारी उन तमाम समाचार बुलेटिन्स की तैयारी और उनका प्रसारण है, जिन पर समाचार चैनल की बुनियाद होती है। इसके लिए न्यूज़ डेस्क से जुड़े कई और विभाग होते हैं, जो खबरों को रिपोर्ट्स की शक्ल देने और उन्हें ऑन एयर करने का काम करते हैं। आम तौर पर न्यूज़ चैनलों में न्यूज़ डेस्क से जुड़ा कॉपी डेस्क होता है, जहां तैनात लोगों की जिम्मेदारी खबरों की स्क्रिप्टिंग या उनकी प्रसारण के लायक कॉपी तैयार करना है। दूसरा अहम हिस्सा पैकेजिंग से जुड़ा है, जहां काम करनेवाले लोग खबरों की कॉपी की ऑडियो-विजुअल एडिटिंग की जिम्मेदारी निभाते हैं। इसके अतिरिक्त उन पर हर खबर से जुड़े वीडियो, ऑडियो और तस्वीरों के भी संपादित अंश तैयार करने की जिम्मेदारी होती है, जिन्हें समाचार बुलेटिन्स में जरूरत के मुताबिक इस्तेमाल किया जाता है। भारत के कुछ समाचार चैनलों में कॉपी और पैकेजिंग डेस्क अलग-अलग हैं, तो कुछ चैनलों में इन्हें एक ही साथ न्यूज़ डेस्क के तहत रखा गया है। ऐसे में कॉपी लिखने वाले व्यक्ति ही आम तौर पर स्टोरी रिपोर्ट्स के ऑडियो वीडियो संपादन का भी काम पूरा करते हैं – यानी वो दोनों तरह के काम करने में सिद्धहस्त होते हैं। जिन चैनलों में कॉपी और पैकेजिंग डेस्क अलग-अलग हैं, वहां ये दिक्कत अक्सर नज़र आती है कि कॉपी लिखनेवालों का हाथ पैकेजिंग से जुड़े काम में तंग होता है, तो पैकेजिंग वाले पत्रकार कई साल एक तरह का काम करते हुए स्टोरी लिखना भूल चुके होते हैं। ऐसा नहीं कि खबरों की स्क्रिप्ट से उनका मतलब नहीं होता, लेकिन खुद लिखने की आदत नहीं होने से जब कभी जरुरत पड़े तो की-बोर्ड पर सोच के साथ-साथ उंगुलियों का तालमेल नहीं बैठता और उंगुलियां कांपने लगती हैं। ये पेशे की निहायत खराब स्थिति है, जब एक ही जैसी योग्यता वाले लोग अलग-अलग ड्यूटी निभाते हुए खुद को ऑलराउंडर नहीं बना पाते। इसके बाद जो स्थिति पैदा होती है, वो ऐसी ही होती है, जैसे आपको याद होगा- क्रिकेट के क्षेत्र में पूर्व कप्तान कपिल देव गेंदबाजों और बल्लेबाजों की स्थिति के बारे में कहा करते हैं कि बल्लेबाज अगर मालिक तो गेंदबाज मजदूर की भूमिका में होते हैं। पैकेजिंग के साथियों को अक्सर कॉपी लिखनेवालों की ओर से एटिड कराने के लिए कॉपी दी जाती है, तो जरूरी वीडियो, ऑडियो और दूसरे मामलों से जुड़ी तमाम किस्म की परेशानियों का सामना करना पड़ता है, जिसमें कोई और उनकी मदद नहीं कर सकता। डेडलाइन में स्टोरी पैकेज तैयार करने की जो जिम्मेदारी होती है, सो अलग। लेखन कला में माहिर कॉपी लेखक तो स्क्रिप्ट का ताना-बाना बुन जाते हैं, लेकिन खबरों से जुड़े विजुअल के संपादन के जाल में पैकेजिंग के मास्टर फंस जाते हैं। अक्सर पैकेजिंग के साथियों की स्थिति दोयम दर्जे की बन जाती है, जिसके कारण अपनी गलतियां न होने पर भी खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ जाता है, क्योंकि उनकी जिम्मेदारी बढ़ जाती है। स्क्रीन पर जो तस्वीरें, जो ग्राफिक, जो ऑडियो और जो पैकेज के बैंड-सुपर्स में लगा जो टेक्स्ट दिखता है, वो पैकेजिंग के हाथों से ही फाइनल होकर गुजरता है, लिहाजा उसमें अगर कहीं कोई गलती हुई तो जिम्मेदारी पैकेजिंग वाले की बनती है और उसी के मुताबिक उसे सज़ा भी मिलती है। न्यूज़ डेस्क पर स्टोरी तैयार करने की प्रक्रिया की ये आदर्श स्थिति नहीं है, लेकिन इस दुनिया में दबंगों की जो भीड़ है, उनमें चंद कमजोर लोग पिस जाते हैं, लिहाजा जिन चैनलों में कॉपी औऱ पैकेजिंग अलग-अलग डेस्क नहीं हैं, वहां भी अघोषित तौर पर कुछ लोग सिर्फ और सिर्फ कॉपी के काम में जुटे रहते हैं, तो कई लड़के पैकेजिंग की ही जिम्मेदारी निभाते आते हैं। पैकेजिंग का काम बेहद डायनेमिक है, यहां काम करनेवालों को विजुअल, ग्राफिक्स, वॉइस ओवर वगैरह तमाम चीजों का इंतजाम करने के लिए लगातार भागदौड़ करते या चलते फिरते देखा जा सकता है, जिसके उलट कॉपी लिखनेवाले शांति से कुर्सी तोड़ते हुए गप्पों-बहस-चर्चाओं में लीन दिखते हैं ताकि स्क्रिप्ट लिखने के लिए अपनी सोच को धार दे सकें और उनकी सोच को साकार करने में पसीना पैकेजिंग करानेवाले साथी का बहता है। बात क्रेडिट की आती है, तो उसमें भी कॉपी ही अक्सर बाजी मार ले जाती है। आदर्श स्थिति यही है कि जिस व्यक्ति ने कॉपी लिखी हो, वही स्टोरी के मुताबिक अच्छे से अच्छे विजुअल, दमदार वॉइस ओवर और शानदार ग्राफिक्स जुटाने के साथ-सथ वीडियो एडिटर्स से तालमेल बिठाकर स्टोरी की अपने मन-मुताबिक और बेहतरीन एडिटिंग करवाकर उसके साथ न्याय कर सकता है। लेकिन कॉपी के लोग अक्सर स्टोरी एडिट होने के बाद उनमें खामियां बताते नज़र आते हैं और ये नहीं सोचते कि क्या किसी लापरवाही की वजह से खामियां रह गई हैं या फिर वाकई कोई दिक्कत थी। ये क़ॉपी और पैकेजिंग के बीच का रोजाना का मसला है, जिसे हर करना तब तक मुश्किल है, जब तक एक आदमी के हाथ में दोनों की जिम्मेदारी न हो।
       न्यूज़ डेस्क का दूसरा सबसे अहम हिस्सा है रनडाउन यानी बुलेटिन्स और कार्यक्रमों के प्रसारण क्रम और उनके ढांचे तैयार करना । आजकल चुंकि तमाम समाचार चैनलों में कंप्यूटरीकृत इलेक्ट्रॉनिक न्यूज़रूम ऑटोमेशन और प्रोडक्शन सिस्टम पर काम होता है, जिनमें हर घंटे य़ा आधे घंटे के हिसाब से प्रसारण की व्हील तैयार होती है। रऩडाउन का काम इन व्हील्स में FPC के मुताबिक बुटेलिन और कार्यक्रमों के जरूरी हिस्से फिट करना औऱ पैनल कंट्रोल रूम और मास्टर कंट्रोल रूम के साथ तालमेल बिठाकर उनके ड्यूरेशन का ख्य़ाल रखना। रनडाउन की जिम्मेदारी रनडाउन प्रोड्यूसर देखते हैं। हरेक चैनल में कुछ लोग इसी काम के लिए रखे जाते हैं और अपने काम में सिद्धहस्त होते हैं। प्रसारण के लिए अगर हर आधे घंटे का व्हील बनाया गया है, तो रनडाउन प्रोड्यूसर को जिन चीजों का प्रमुखता से ख्याल रखना होगा, वो हैं- चैनल मोंटाज या स्टिंग, हेडलाइंस, स्पांसर टैग्स, कमर्शियल ब्रेक्स, एंड टॉस, एंड स्टिंग या चैनल बंपर – इनमें से कोई भी एलिमेंट छूटना नहीं चाहिए। इन एलिमेंट्स के बीचो बीच ही बुलेटिन के पैकेज और दूसरे आइटम्स रखे जाते हैं। इनके अलावा बुलेटिन और अलग अलग कार्यक्रमों के प्रोमोशनल पैकेज, न्यूज़ अपडेट पैकेज, और मेन्यू प्लेट्स भी व्हील में सजाए जाते हैं। हालांकि चैनलों की अलग-अलग व्यवस्था के तहत स्पांसर टैग्स , प्रोमोशनल पैकेज , न्यूज़ अपडेट और मेन्यू प्लेट्स की जिम्मेदारी रनडाउन से अलग शेड्यूलिंग डिपार्टमेंट के पास भी हो सकती है, ये हर चैनल की अपनी व्यवस्था पर निर्भर करता है। इसके साथ ही बात बुलेटिन या शो के ढांचे के अंदर रखे जाने वाले मुख्य आइटम्स की होती है, तो रनडाउन को चैनल के सिस्टम के मुताबिक, इस बात का ख्याल रखना होता है, कि तकनीकी तौर पर कोई स्टोरी पैकेज या एंकर लीड, या रिकार्डेड आइटम प्रसारण के लिए तैयार है या नहीं। आजकल ऑटोमेशन सिस्टम के तहत पूरा का पूरा चैनल कंप्यूटर सर्वरों से जुड़ी प्रणाली के जरिए संचालित होता है जिसमें प्रसारित होनेवाला हर आइटम एक क्लिप के रूप में होता है जिसकी अपनी ID होती है यानी पहचान नंबर जो साल-महीने-तारीख और सीरीज सीरियल नंबर का मिला-जुला रूप होती है। ये IDs  सिस्टम में हर आइटम के लिए जनरेट की जाती हैं और प्रसारण के लिए तैयार स्थिति में होने पर उन्हें पहले से बनाए गए आइटम के Slugs में Commit करना होता है। इसके बाद ही उन्हें प्रसारित किया जा सकता है। जिन्हें प्रसारित नहीं करना है उन्हें छोड़ने और हटाने य़ा हटाकर अलग रखने की व्यवस्था भी होती है और इन सबका ध्यान रन डाउन के जिम्मेदार व्यक्ति पर होता है। हालांकि आजकल तमाम न्यूज़ ऑटोमेशन सिस्टन चलन में हैं, जैसे ENPS, Octopus, Dayang, I-News  वगैरह जिनमें काम के लिहाज से थोड़ा-बहुत फर्क होता है, लेकिन सैद्धांतिक तौर पर काम इनका एक ही जैसा है- स्टोरी Slug क्रिएट करना, रनडाउन क्रिएट करना, सर्वर के साथ जुड़े होने पर ID क्रिएट करना और ग्राफिक्स और पैनल कंट्रोल रूम में प्रसारण के सिस्टम के साथ तालमेल। सिस्टम के जरिए रनडाउन मैनेज की प्रक्रिया को पूरा करने का रनडाउन प्रोड्यूसर की होती है।
       न्यूज़ डेस्क का एक और अहम हिस्सा है न्यूज़ टिकर। हालांकि कुछ समाचार चैनलों में न्यूज़ टिकर के लिए भी अलग डेस्क होते हैं और अलग टीमें होती हैं, लेकिन चुंकि तमाम खबरें न्यूज़ डेस्क से गुजरती हैं, इसलिए आमतौर पर इन्हें न्य़ूज़ डेस्क से ही जोड़कर रखा जाता है। न्य़ूज़ टिकर का मतलब उस व्यवस्था से है, जिसके जरिए पट्टियों पर लगातार टेक्स्ट के रूप में खबरें स्क्रीन पर आती रहती हैं। टिकर से जुड़े व्यक्ति की प्रमुख जिम्मेदारी खबरों को खबर की भाषा में पट्टियों पर लिखना, उन्हें अपडेट करना है। ये प्रक्रिया कई तरह की होती है- एक तो लगातार रनिंग स्क्रॉल, जिनमें एक-के बाद एक खबरें एक ही लाइन में आती जाती रहती हैं, दूसरी व्यवस्था है खबरों को अलग-अलग कैटेगरीज़ में बांटकर अपर या लोअर स्क्रॉल पर चलाना। तीसरी व्यवस्था टॉप और ब्रेकिंग न्यूज़ की है, जिसके लिए अधिक सजगता और सतर्कता की जरूरत होती है। टॉप न्यूज़ के बैंड में चुनिंदा बड़ी खबरें रखी जाती हैं और उनमें समय-समय पर बदलाव किए जाते रहते हैं। इसके अलावा ब्रेकिंग न्यूज़ के बैंड तब चलाए जाते हैं, जब कोई बड़ी खबर न्यूज़ डेस्क को प्रसारित करने के लिए दी जाती है। ध्यान देने की बात ये है कि ब्रेकिंग न्यूज़ और टॉप न्यूज की भाषा सरल हो और हर पट्टी में खबर पूर्ण और सार्थक तरीके से पेश की जाए। ब्रेकिंग न्यूज़ की पट्टियां कुछ देर तक लगातार चलाई जा सकती हैं, जब तक कि खबर ताजा रहे। इसके बाद उसे टॉप न्यूज़ में तब्दील किया जा सकता है। टिकर से जुड़े व्यक्ति की कुछ और अहम जिम्मेदारियां भी होती हैं- जैसे बुलेटिन की आनेवाली खबरों और कार्यक्रमों के Coming up बैंड और टेक्स्ट पट्टियां ऑन एयर करना, कार्यक्रमों से जुड़े Now  showing  और Coming up  ‘Bug’  ऑन एयर करना, क्रिकेट अपडेट, एक्सक्लूसिव और रिकॉर्डेड प्रोग्राम वगैरह इंगित करनेवाले ‘Bug’  ऑन एयर करना। इस तरीके से देखा जाए, तो टिकर पर काम करना मशीनी ज्यादा लगता है। लेकिन, खबर की दुनिया में टिकर भी प्रसारण का एक हिस्सा है, लिहाजा उसे खबरिया नज़रिए से ही देखे जाने की जरूरत है। एक मान्यता ये भी है कि जो कम महत्व की खबर हो, उसे टिकर पर इस्तेमाल कर लेना चाहिए। मेरा मानना है कि ये सोच
ठीक नहीं। टिकर अपने आप में एक बड़े दर्शक वर्ग को चैनल की ओर आकर्षित करने और उससे उन्हें जोड़ने का जरूरी माध्यम बन चुका है। ऐसा इसलिए क्य़ोंकि बड़े कमर्शियल ब्रेक, छोटे बुलेटिनों और समाचार आधारित कार्यक्रमों की बहुतायत होने के चलते खबरों को ज्यादा से ज्यादा दिखाने की परिपाटी चैनलों से मिटती जा रही है। चुंकि चैनलों पर जब जी चाहे तब एक बार में तमाम बड़ी खबरें जल्दी-जल्दी देख पाना संभव नहीं होता है, ऐसे में तेज गति से खबर के बारे में जानकारी चाहनेवाले ज्यादातर दर्शकों की नजरें सीधे सबसे नीचे चल रहे टिकर पर जाता है और खबरों की उनकी भूख वहीं से पूरी होती है। ऐसे में टिकर के महत्व को कम करके नहीं देखा जा सकता। इसीलिए कोशिश ये होनी चाहिए कि टिकर में खबरें बासी न हों, ज्यादा से ज्यादा अपडेट रहें और वर्तनी से जुड़ी गलतियां न हों। टिकर के सिस्टम पर लिखी गई चीजें सीधी प्रसारित होती हैं, लिहाजा उनके इस्तेमाल में काफी सावधानी बरतने की जरूरत इस ख्याल में है कि कुछ भी गलत वक्त पर ऑन एयर न हो, और लिखने के तौर-तरीके में गलतियां न हों,
Spelling  की गलतियां न हों। जो भी लाइन लिखी जाए वो छोटी हो ताकि टेक्स्ट को पढ़ने में दिक्कत न हो और खबर को खबर के तरीके से सार्थक रूप में लिखा गया हो। अक्सर बुलेटिन की जगह कार्यक्म प्रसारण के दौरान बड़ी से बड़ी खबरें टिकर के माध्यम से पर्दे पर ऑन एयर होती हैं, ऐसे में समझा जा सकता है कि खबर देने के मामले में टिकर की कितनी बड़ी भूमिका है। टिकर पर दर्शकों की निगाह को देखते हुए अब इन्हें विज्ञापन का भी जरिया बना लिया गया है और अक्सर स्क्रॉल के बीच-बीच में विज्ञापनों के बैंड भी चलते नज़र आते हैं, जो खबरों का तारतम्य बनाए रखने के लिए घातक हैं। चैनल से जुड़ी जरूरी जानकारियां भी टिकर पर पेश की जाती हैं।
       अब सवाल ये है कि न्यूज़ डेस्क से इतने सारे काम संचालित होते कैसे हैं, कौन होता है न्यूज़ डेस्क के कारिंदों का रिंग मास्टर। न्यूज़ डेस्क पर शिफ्टों में काम होता है और कामकाज देखने की जिम्मेदारी शिफ्ट इंचार्ज की होती है जो एसोसिएट एग्जेक्यूटिव प्रोड्यूसर और सीनियर प्रोड्यूसर स्तर के लोग होते हैं। इनका काम दूसरे कनिष्ठ सहयोगियों को काम का बंटवारा करने के साथ-साथ बुलेटिन्स और आगे के कार्यक्रमों की योजना और रूपरेखा तैयार करना भी होता है। शिफ्ट इंचार्ज वरिष्ठ और अनुभवी लोग होते हैं लिहाजा वो चैनल के अन्य वरिष्ठ संपादकीय जनों से विचार विमर्श के जरिए खबरों के प्रसारण की लाइन तय करते हैं और उसी के मुताबिक किस खबर को कितनी अहमियत देनी है, ये तय किया जाता है। ब्रेकिंग न्यूज़ से लेकर खबर आधारित बड़े इवेंट्स तक के प्रसारण में शिफ्ट इंचार्ज की भूमिका पर सबकी नज़र रहती है और उन्हें ही ये देखना होता है कि प्रसारण में कोई संकट न हो। शिफ्ट इंचार्ज आमतौर पर हर खबर से वाकिफ होते हैं और उनके दिमाग में उसकी रूपरेखा स्पष्ट होती है, लिहाजा वो उनसे जुड़े कार्यक्रमों का खाका भी तय करते हैं और कॉपी डेस्क की कॉपीज़ चेक करना भी उनकी जिम्मेदारियों में शामिल होता है। प्रभारी का काम न्यूज़ डेस्क की हर गतिविधि पर नज़र रखना है, ताकि समाचार और कार्यक्रमों का प्रसारण सुचारू रूप से हो। इसके लिए वो समाचार चैनलों के दूसरे विभागों से भी तालमेल बनाए रखते हैं और जरूरत के मुताबिक उनकी मदद लेते हैं, अपनी जरूरतें उन्हें बताते हैं, समस्याओं का समाधान करते हैं और फॉरवर्ड प्लानिंग की दिशा तय करते हैं। ऐसे में समझा सकता है कि न्यूज़ डेस्क समाचार चैनल का केंद्र बिंदु है, जिससे होकर समाचारों से जुड़ा हर प्रसारण अंजाम तक पहुंचता है। समाचार चैनल का ये सबसे जिम्मेदार हिस्सा है, और सबसे गतिमान भी। इसकी गतिमयता बरकरार रहे, इसके लिए जरूरी है, यहां के स्टाफ भी खबरों में दिलचस्पी रखनेवाले और मेहनती हों। न्यूज़ डेस्क चाहे किसी भी चैनल का हो, यहां खबरों को ही सबसे ज्यादा अहमियत दी जाती है, लिहाजा यहां काम करनेवालों में खबरों के प्रति पैशन होना चाहिए और उन्हें पेश करने के नए-नए तरीके इजाद करने की दिलचस्पी होनी चाहिए, तभी वो अपने कार्यक्षेत्र को मजबूत बना सकते हैं। हालांकि न्यूज़ डेस्क पर काम ज्यादा होने और स्टाफ पर काम का बोझ होने के आरोप लगते रहते हैं, लेकिन ये भी एक सच्चाई है कि वही लोग न्यूज़ डेस्क पर सहूलियत से काम कर सकते हैं, जिनमें वाकई खबर के प्रति अनुराग हो, पेशेवर मानसिकता हो। आलस्य और लापरवाह मानसिकता वाले लोगों के लिए समाचार चैनलों के और भी कोने हैं, लेकिन न्यूज़ डेस्क ऐसे ही लोगों की जगह है, जो कर्मठ और कुशल हों। काम ज्यादा भले ही हो, लेकिन अभ्यास से निखार आता है और समझदारी भी बढ़ती है। न्यूज़ डेस्क पर काम करने का मंत्र है खबरों में दिलचस्पी जिसे बरकरार रखना और बढ़ाना हर आदमी पर खुद पर ही निर्भर करता है।
-कुमार कौस्तुभ
21.04.2013, 4.24 PM

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