Sunday, May 19, 2013

टीवी के हिंदी समाचार चैनलों की विकास यात्रा




            भारत में टेलीविजन पर हिंदी समाचार की शुरुआत और इसका विकास पत्रकारिता के स्वरूप में बदलाव का गवाह रहे हैं। देश में टेलीविजन की शुरुआत सूचना और शिक्षा के माध्यम के तौर पर शुरु हुई थी और 50 साल से ऊपर बीत जाने पर न सिर्फ अब ये मनोरंजन का बड़ा माध्यम बन चुका है, बल्कि बड़ा कारोबार भी बन चुका है। खासकर समाचार चैनलों के विस्तार और इसमें निजी क्षेत्र के आने के बाद प्रतियोगिता और प्रतिद्वंद्विता बढ़ी है जिसकी वजह से समाचार प्रसारण के तौर-तरीके काफी बदले हैं जिसके अच्छे और बुरे दोनों ही पहलू हैं। लोकतंत्र के चौथे खंबे के रूप में मीडिया को स्थापित करने में टीवी के समाचार चैनलों की अहम भूमिका साबित हुई है क्योंकि खबरें दिखाते हुए ये जनता की आवाज भी बन चुके हैं। कुछ चैनलों पर निहित स्वार्थ के लिए कवरेज या पक्षपातपूर्ण कवरेज के भी आरोप लगते हैं, लेकिन अब चैनलों की इतनी बाढ़ आ चुकी है कि दर्शकों के सामने खबरें देखने और खबरों का हर पक्ष जानने के लिए चैनल बदलकर देखने का विकल्प भी मौजूद है।
      बहरहाल, बात समाचार चैनलों की विकास यात्रा पर शुरु हुई थी, तो ये देखना होगा कि भारत में किस तरह टेलीविजन पर समाचार प्रसारण की शुरुआत हुई। देश में टेलीविजन की शुरुआत सरकारी हाथों से दूरदर्शन के जरिए हुई और 1965 में 15 अगस्त को पहले बुलेटिन का प्रसारण हुआ, ये बात तमाम रिकॉर्ड्स में दर्ज है। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के अध्येता डॉ. देवव्रत सिंह इसे भारतीय पत्रकारिता का प्रयोगवादी दौर[1] मानते हैं क्योंकि उस दौर में संसाधन बेहद सीमित थे या यूं कहें कि नहीं के बराबर थे, क्योंकि दूरदर्शन को खबरों के लिए आकाशवाणी के संसाधनों पर निर्भर रहना पड़ता था। लेकिन प्रयोग के इस दौर से समाचार प्रसारण के फलक का विस्तार हुआ और करीब 33 साल बाद यानी 1998 तक भारत में टीवी पत्रकारिता के एक नए युग की शुरुआत हुई, जब प्राइवेट चैनलों के खिलाड़ी इस क्षेत्र में पूरी तरह से उतरे। हालांकि ज़ीटीवी पर समाचारों की शुरुआत पहले हो चुकी थी, लेकिन पूरी तरह 24 घंटे के समाचार चैनल लेकर पहले स्टार ग्रुप और फिर ज़ीटीवी ने 1998 में अपनी पारियां शुरु कीं। स्टार ग्रुप के चैनल ने भारत के मशहूर टीवी प्रस्तोता डॉ. प्रणय रॉय से हाथ मिलाया और उनकी कंपनी एनडीटीवी स्टार के न्यूज़ चैनल के लिए कंटेंट मुहैया कराने लगी। फरवरी 1998 से शुरु हुआ स्टार-एनडीटीवी का सिलसिला 2003 तक चला जब स्टार अपने बलबूते भारत में समाचार चैनल लेकर आया और एनडीटीवी ने भी हिंदी और अंग्रेजी में 2 समाचार चैनल उतार दिए। इससे पहले ये बता देना जरूरी होगा कि एनडीटीवी के कंटेंट पर आधारित स्टार का न्यूज़ चैनल और ज़ीटीवी के समाचार चैनल के कंटेंट भले ही देश में तैयार होते थे, लेकिन इनका प्रसारण विदेशों से यानी हांगकांग और सिंगापुर से होता था क्योंकि भारत से अपलिंकिंग की अनुमति इन्हें नहीं थी। स्टार ग्रुप को विदेशी समूह होने के चलते अपलिंकिंग की अनुमति मिलने में और देर लगी, जबकि ज़ीटीवी में समूची पूंजी भारतीय होने की वजह से उसे पहले देसी धरती से अपलिंकिंग की अनुमति मिल गई थी। हालांकि स्टार और ज़ी दोनों ही के न्यूज़ चैनलों पर शुरुआती दौर में अंग्रेजी का प्रभुत्व था और अंग्रेजी के ज्यादा बुलेटिन प्रसारित होते थे। लेकिन बाद में हिंदी के बुलेटिनों की संख्या बढ़ी और तकरीबन आधे घंटे अंग्रेजी और आधे घंटे हिंदी के बुलेटिन्स का फ़ॉर्मेट दोनों चैनलों में चलने लगा। ज़ी के हिंदी बुलेटिन में अंग्रेजी-मिश्रित हिंदी यानी हिंग्लिशका ज्यादा इस्तेमाल था, तो स्टार-एनडीटीवी के बुलेटिन की उर्दू-मिश्रित भाषा उसकी खासियत थी।
भारत में समाचार के कारोबार में तेजी 2001 में आई, जब इंडिया टुडे ग्रुप के टीवी सेक्शन टीवी टुडे का चैनल आजतक दिल्ली से लांच किया गया। इससे पहले दूरदर्शन के मेट्रो चैनल पर प्रसारित होनेवाला टीवी टुडे का आजतक कार्यक्रम दर्शकों में अपनी खास पहचान बना चुका था, जिसका चैनल को जबर्दस्त फायदा मिला और 24 घंटे के समाचार के बाजार में आजतक को अपना पांव जमाते देर नहीं लगी। टीवी कार्यक्रम के रूप में आजतक का प्रसारण DD मेट्रो पर 1995 में शुरु हुआ था। समाचार चैनल के रूप में ये 31 दिसंबर 2000 को वजूद में आया और हिंदी में चौबीस घण्टे प्रसारित होने वाला देश का पहला समाचार चैनल बन गया।
शुरुआत में चैनल के रूप में लांच होने पर आजतकका संपादकीय नेतृत्व उदय शंकर के हाथों में था, लेकिन आजतक की खास पहचान बनानेवालों में पत्रकार कमर वहीद नकवी प्रमुख थे, जिन्होंने हमेशा पर्दे के पीछे रहते हुए शो को बखूबी अंजाम तक पहुंचाया। हालांकि वो शुरुआत में चैनल का हिस्सा नहीं रहे, लेकिन उदय शंकर 2003 में स्टार न्यूज़ की टीम में शामिल हो गए तो आजतकको चलाने के लिए फिर कमर वहीद नकवी को बुलाया गया। कमर वहीद नकवी ने आजतक में लंबी पारी खेली और 2012 में उन्होंने अवकाश ले लिया। यहां बता दें कि आजतक जब डीडी मेट्रो चैनल का कार्यक्रम था, तो दिल्ली के कनॉट प्लेस में उसका दफ्तर हुआ करता था। चैनल की लांचिंग दिल्ली के झंडेवालान एक्सटेंशन में स्थिति वीडियोकॉन टॉवर से हुई और 2012 के सितंबर में ये चैनल नोएडा की फिल्म सिटी में अपने नए दफ्तर इंडिया टुडे मीडियाप्लेक्स में आ गया। चैनल के नोएडा आने से पहले कमर वहीद नकवी इससे विदा हो चुके थे और कमान सुप्रिय प्रसाद ने संभाली जो टीवी टुडे ग्रुप के सबसे अनुभवी लोगों में से हैं।
आजतक के 12 साल के सफर के दौरान टीवी टुडे ने 3 और समाचार चैनल लांच किए।  एक चैनल अंग्रेजी समाचारों का है- हेडलाइंस टुडे । हिंदी में एक और चैनल 2005 में लांच किया गया-तेज़ जिसका मकसद था फटाफट अंदाज में खबरों को पेश करना। इसके अलावा 2008 में दिल्ली-एनसीआर की खबरों के लिए दिल्ली आजतक को लांच किया गया। इस तरह अब टीवी टुडे के 4 चैनल एक साथ चल रहे हैं। चैनल के रूप में लांच होने के बाद आजतकने सबसे पहले 2001 के गुजरात भूकंप की जबर्दस्त कवरेज की। इसके बाद तो एक से बढ़कर एक मामलों की कवरेज और प्रसारण इसके नाम हो गए।
आजतक के आने से साल-दो साल के अंदर सबसे बड़ा झटका ज़ीटीवी के न्यूज़ चैनल ज़ी न्यूज़ और स्टार-एनडीटीवी के चैनल को लगा और इसी के साथ नए-नए प्राइवेट समाचार चैनलों की शुरुआत का रास्ता भी प्रशस्त हो गया। 2003 में एनडीटीवी से अलग होकर स्टार ग्रुप ने अपना अलग से समाचार चैनल लांच किया, जिसकी सीईओ थीं रवीना राज कोहली और संपादक थे संजय पुगलिया जो पहले आजतक के भी जाने-माने एंकर रह चुके थे और इसके बाद ज़ी न्यूज़ को भी आजतक के लांच होने के बाद झटकों से उबारने में काफी कामयाब रहे थे।
स्टार ग्रुप ने एनडीटीवी से अलग होकर अपना चैनल लांच करने की तैयारियां 2002 में ही शुरु कर दी थीं। 2003 में मुंबई से बेहद तड़क भड़क के साथ आपको रखे आगेकी टैगलाइन के साथ लांच हुए पूरी तरह विदेशी पूंजी वाले स्टार न्यूज़ ने टीवी समाचार के कारोबार को नया कलेवर देने की कोशिश शुरु की, लेकिन उसकी कोशिशों को तब ग्रहण लगने लगा, जब देश में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में शत-प्रतिशत विदेशी पूंजी का कड़ा विरोध शुरु हो गया। चुंकि प्रिंट मीडिया में सिर्फ 26 फीसदी विदेशी पूंजी लगाने की ही अनुमति थी, लिहाजा केंद्र सरकार ने इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर भी यही पाबंदी लगानी पड़ी। इसके बाद सितंबर 2003 में स्टार न्यूज़ को चालू रखने के लिए नए सिरे से MCCS नाम की कंपनी बनाई गई और 74 फीसदी हिस्सेदारी के लिए कोलकाता के आनंद बाजार पत्रिका समूह को कंपनी से जोड़ा गया। मार्च 2004 से स्टार न्यूज़ स्टार ग्रुप और ABP ग्रुप की हिस्सेदारी में आधिकारिक रूप से शुरु हुआ। स्टार और आनंद बाजार पत्रिका समूह यानी ABP का साथ करीब 8 साल चला और 2012 के अप्रैल महीने में स्टार ने ABP से अपना ब्रांड वापस लेने का फैसला कर दिया। इसके बाद 1 जून 2012 से ये चैनल ABP न्यूज़ के रूप में काम करने लगा। MCCS के तहत बांग्ला और मराठी के भी दो चैनल और एक बांग्ला एंटरटेनमेंट चैनल लांच किये गए, जो अब स्टार की जगह ABP की ब्रांडिंग से जाने जाते हैं।
आजतक से स्टार न्यूज़ ( अब ABP न्यूज़) में शुरुआती समानता ये थी कि तमाम ऐसे कर्मचारी उसमें काम कर रहे थे, जो आजतक में भी काम कर चुके थे। साथ ही ज़ी न्यूज़ के भी चुने हुए धुरंधर संजय पुगलिया की टीम में शामिल होकर स्टार न्यूज़ के सदस्य बने। चुंकि स्टार की प्रतिद्वंद्विता मुख्य रूप से आजतक से थी, लिहाजा चैनल के लिए कर्मचारियों की टीम बनाते हुए इस बात का खास ख्याल रखा गया कि जो लोग आजतक की खबरिया मानसिकता से वाकिफ हों, वही उसकी काट हो सकते हैं। स्टार न्यूज़ को चलाने के लिए MCCS नाम की कंपनी बनने के बाद संपादकीय परिवर्तन भी हुए और संजय पुगलिया की जगह उदय शंकर ने ले ली, जो तब तक आजतक के न्यूज़ डायरेक्टर हुआ करते थे। स्टार न्यूज़ में आने के बाद उदय शंकर ने भी नई ऊंचाइयां छुईं। मर्डोक परिवार ने उनकी प्रतिभा को पहचाना और शायद पहली बार एक भारतीय पत्रकार को विदेशी मीडिय़ा समूह के टॉप मैनेजमेंट में शामिल होने का गौरव हासिल हुआ, 2007 में उदय शंकर स्टार इंडिया के हेड बना दिए गए। उदय शंकर के बाद से शाजी ज़मां ने स्टार न्यूज़ ( अब ABP न्यूज़) की कमान संभाली। स्टार न्यूज़ ने लांचिंग के बाद मुंबई में हुई भीषण बारिश के दौरान जोरदार कवरेज की और आजतकसमेत तमाम चैनलों को पीछे छोड़ दिया।
1998-99 में सबसे पहले भारतीय निजी समाचार चैनल के रूप में अपनी खास पहचान बनानेवाले ज़ी न्यूज़ को 2001 के बाद के झटकों से उबरने पर दिल्ली, उत्तर-पश्चिम भारत और गुजरात में अपने बड़े दर्शक वर्ग का हमेशा फायदा मिलता रहा। इस चैनल में काफी संपादकीय बदलाव हुए। चैनल को स्थापित करनेवाले शैलेष, आलोक वर्मा, उमेश उपाध्याय, रजत शर्मा के बाद शाजी ज़मां, संजय पुगलिया, फिर विनोद कापड़ी, विष्णु शंकर, सतीश के. सिंह, अलका सक्सेना से लेकर सुधीर चौधरी तक जैसे तमाम जाने-माने टीवी पत्रकार ज़ी न्यूज़ के संपादक बने और चैनल को बड़े मुकाम तक पहुंचाने की कोशिश करते रहे। लेकिन तमाम कोशिशों के बावजूद ये चैनल टीआरपी की होड़ में चौथे नंबर से ऊपर नहीं चढ़ सका, एक-दो मौके अपवाद हो सकते हैं।
इधर, स्टार ग्रुप का साथ छूटने के बाद एनडीटीवी ने भी अपने चैनल लाने की तैयारी शुरु की और 2003 में सफलतापूर्वक 2 चैनल लांच कर दिए। हिंदी चैनल के लांच के लिए आजतक के ही मशहूर चेहरे दिबांग को अपने साथ जोड़ा। खबर वही सो सच दिखाएकी टैगलाइन के साथ शुरु हुए हिंदी चैनल एनडीटीवी इंडिया ने खबरों के प्रसारण के मामले में तो अलग संपादकीय लाइन की वजह से अपनी खास पहचान बनाए रखी, लेकिन टीआरपी की होड़ में ये चैनल पीछे ही रहा। दिबांग के आक्रामक तेवर पर कई बार डॉ. प्रणय रॉय की संपादकीय नीतियां भारी पड़ती दिखीं जिसकी वजह से खबर देखने वालों के लिए तो एनडीटीवी इंडियापसंदीदा चैनल बना रहा, लेकिन मिक्स-मसाला के तौर पर खबरे परोसे जाने में फिसड्डी ही साबित हुआ। वैसे एक तरह से देखा जाए तो NDTV देश का सबसे पुराना मीडिया हाउस है। 2012-13 में इसके 25 साल पूरे हो चुके हैं। दूरदर्शन के लिए नवंबर 1988 से 'The World This Week' न्यूज़ मैगजीन की प्रस्तुति और कंटेंट तैयार करने के बाद इस मीडिया हाउस ने स्टार ग्रुप के साथ हाथ मिलाया और करीब 9-10 साल उन्हें 24 घंटे के चैनल के लिए कंटेंट उपलब्ध कराते रहे। आजकल (2013) अनिंद्यो चक्रवर्ती इसके हिंदी चैनल एनडीटीवी इंडिया के प्रमुख हैं, जबकि सुनील सैनी, मनोरंजन भारती, रवीश कुमार, मनीष कुमार, अभिषेक शर्मा, निधि कुलपति इसके जानेमाने संपादकीय चेहरे और प्रस्तोता हैं। मशहूर टीवी प्रस्तोता विनोद दुआ भी एनडीटीवी इंडिया पर खास करंट अफेयर्स कार्यक्रम पेश करते हैं।
ज़ीटीवी से अलग होने के बाद अपना मीडिया प्रोडक्शन हाउस इंडिपेंडेंट न्यूज़ सर्विसेज़ प्राइवेट लिमिटेड चलानेवाले और आपकी अदालत जैसे कार्यक्रम से मशहूर हुए पत्रकार रजत शर्मा भी अपना समाचार चैनल लेकर आए जिसका नाम उन्होंने रखा- इंडिया टीवी। 20 मई 2004 को आपकी आवाजकी टैगलाइन के साथ लांच इस चैनल ने शुरुआत में तो बॉलीवुड के कास्टिंग काउच और नेताओं के सेक्स स्कैंडल दिखाकर लोकप्रियता बटोरने की कोशिश की, लेकिन लंबे समय तक खबरिया हथकंडों में कामयाबी नहीं मिली, और ना ही रजत शर्मा को अपने चेहरे की ब्रांडिंग का कोई फायदा मिला तो उन्होंने आखिरकार खांटी खबरिया संपादक औऱ ज़ी न्यूज़ में अपने सहयोगी रहे विनोद कापड़ी को अपने साथ जोड़ा। विनोद कापड़ी की अगुवाई में इंडिया टीवी ने कम वक्त में ही बुलंदियां हासिल कर ली और लगातार वो टीआरपी के चार्ट में पहले से तीसरे नंबर तक अपनी जगह बनाने में कामयाब दिख रहा है। रजत शर्मा 1992 से ही ज़ीटीवी से अपने खास टॉक शो आपकी अदालत के साथ जुड़े हुए थे। वो ज़ी के डायरेक्टर भी रहे। ज़ी से अलग होने के बाद एनडीटीवी के साथ चल रहे स्टार न्यूज़ में वो जनता की अदालतलेकर आए, जो आज भी उनके अपने चैनल पर चल रहा है।
      देश में समाचार चैनलों की दुनिया का विस्तार 2002 के बाद से बड़ी तेज़ी से हुआ। दूरदर्शन के मेट्रो चैनल से आजतककार्यक्रम की विदाई के बाद दूरदर्शन को भी एक 24 घंटे के समाचार चैनल की जरूरत महसूस हुई। 3 नंवबर 2003 को मेट्रो चैनल के प्लेटफॉर्म पर ही 24 घंटे के समाचार चैनल डीडी न्‍यूज की शुरूआत की गई, जिसकी कमान सरकारी लोगों के हाथ में होने के अलावा आजतकसे अपनी पहचान बनानेवाले प्रमुख टीवी पत्रकार दीपक चौरसिया को भी सौंपी गई थी। हालांकि बाद में वो इस चैनल से अलग हो गए, लेकिन DD न्यूज़ अपनी खास पहचान बनाने में जरूर कामयाब हुआ है। 2013 में इसे नई ब्रैंडिंग और लोगो के साथ पेश किया गया है और BBC के पूर्व भारत संपादक संजीव श्रीवास्तव की अगुवाई में चलनेवाले इसके प्राइम टाइम शो न्यूज़ नाइट ने तो टीआरपी की होड़ में भी अहम उपलब्धि हासिल करके चैनल को टीआरपी चार्ट में ऐतिहासिक स्तर तक पहुंचा दिया।
      निजी समाचार चैनलों की देश में शुरुआत हुई, तो अखबार निकालनेवाले समूहों ने भी इसमें हाथ आजमाना शुरु किया। टाइम्स ग्रुप ने तो अंग्रेजी में समाचार चैनल लांच किया, लेकिन दैनिक जागरण के प्रकाशन समूह ने हिंदी चैनल लाने की योजना बनाई और अप्रैल 2005 में चैनल 7 के नाम से चैनल लांच भी कर दिया। लेकिन जागरण ग्रुप इस चैनल को लंबे समय तक चलाने में नाकाम रहा और आखिरकार 2006 में इस चैनल की बड़ी हिस्सेदारी नेटवर्क 18 और राजदीप सरदेसाई के नेतृत्व वाले Global Broadcast News Ltd. (GBN) ग्रुप ने खरीद ली। इसके बाद चैनल का नाम IBN7 हो गया और अब इस चैनल की टैगलाइन है- खबर हर कीमत पर। इस तरह ये चैनल बिजनेस चैनल और अंग्रेजी समाचार चैनल चलानेवाले TV 18-नेटवर्क 18 ग्रुप में हिंदी समाचार चैनल के रूप में शामिल हो गया। शुरुआत में इस चैनल की कमान जानेमाने एंकर अरूप घोष के हाथों में थी, इसके बाद अजीत साही और फिर आजतकसे आए आशुतोष ने मैनेजिंग एडिटर के रूप में इसका संचालन संभाला। संजीव पालीवाल इसके प्रमुख कार्यकारी संपादक हैं। हार्डकोर खबरों और उनके विश्लेषण पर केंद्रित रहना इस चैनल की खासियत है। चर्चित पत्रकारों राजदीप सरदेसाई, आशुतोष, संदीप चौधरी की अगुवाई में ये चैनल सार्थक खबरिया पत्रकारिता के झंडे गाड़ रहा है।
वित्तीय और कई और क्षेत्रों में हाथ आजमाने वाली कंपनी सहारा इंडिया ने भी सन 2000 में इलाक्ट्रानिक मीडिया में कदम रखा और सन 2000 में सहारा टीवी लेकर आए, जिस पर शुरुआत में समाचार भी चलते थे और एंटरटेनमेंट प्रोग्राम भी। मशहूर पत्रकार विनोद दुआ इस चैनल पर रोजाना अपना समाचार आधारित कार्यक्रम प्रतिदिन और शनिवार को अपना साप्ताहिक समाचार आधारित कार्यक्रम परख लेकर आते थे। सहारा ग्रुप ने 2002 -2003 में समाचार के लिए सहारा समय नाम से अलग से चैनल लांच कर दिया और मनोरंजन चैनल को भी अलग कर दिय़ा गया। 2004 में मनोरंजन चैनल को सहारा वन नाम दे दिया गया और फिल्मों के लिए भी 2 और चैनल लांच कर दिए गए। सहारा इंडिय़ा के समाचार चैनल सहारा समय के साथ-साथ कई और क्षेत्रीय चैनल भी लांच किए गए, जो मध्य प्रदेश-छत्तीसगढ़, यूपी-उत्तराखंड, बिहार-झारखंड, राजस्थान, दिल्ली-एनसीआर, मुंबई वगैरह की खबरें दिखाते हैं। सहारा के समाचार चैनलों की कमान बदलती रही है। शुरुआती दौर में राष्ट्रीय सहारा अखबार से जुड़े विभांशु दिव्याल और फिर प्रभात डबराल ने काफी समय तक इसका संचालन किय़ा। इसके बाद अरुप घोष-शीरीन की जोड़ी इसे चलाती रही। आजतकके जानेमाने चेहरे पुण्य प्रसून वाजपेयी को भी इसकी कमान दी गई जिन्होंने इसका नाम सिर्फ समय कर दिया। इसके बाद स्टार न्यूज़ से जुड़े रहे उपेंद्र राय को भी इसकी जिम्मेदारी सौंपी गई। संपादक आते-जाते रहे लेकिन ये चैनल चलता जा रहा है।

      मशहूर पत्रकार अनुराधा प्रसाद और पत्रकार से राजनेता बने राजीव शुक्ल की ओर से 1993 से चलाए जा रहे प्रॉडक्शन हाउस BAG फिल्म्स भी समाचार चैनल लेकर खबरों के बाजार में उतरा। 2007 में लांच हुए इस चैनल की टैगलइन है- हर खबर पर नज़र। अपनी प्रस्तुति की वजह से लांच होने के चार साल के अंदर ये चैनल टीआरपी की होड़ में कई चैनलों को पीछे छोड़ चुका है। इसका संपादकीय नेतृत्व अजीत अंजुम के हाथों में है।
      समाचार चैनलों में एक नया नाम P7 न्यूज़ का भी जुड़ा। सच जरूरी हैकी टैगलाइन से 24 घंटे के इस चैनल को Pearls Broadcasting Corporation Limited की ओर से नवंबर 2008 में नोएडा से लांच किया गया। टीआरपी चार्ट में तो ये चैनल कहीं खास नहीं है, लेकिन इसका कामकाज चार साल से अच्छी तरह चलता जा रहा है और 2013 में तो इस ग्रुप की ओर से 2 और चैनल – एक दिल्ली-एनसीआर के लिए और एक मध्य प्रदेश-छत्तीसगढ़ के लिए – लांच कर दिए गए हैं। इस चैनल से जाने-माने नाम तो नहीं जुड़े हैं, लेकिन इसकी प्रस्तुति जरूर कसी हुई और बेहतरीन लगती है।
      समाचार चैनलों में सियासी हस्तियों की दिलचस्पी जगजाहिर है। 11 फरवरी 2008 को दिल्ली के ITV मीडिय़ा ग्रुप ने देश की धड़कनकी टैग लाइन से इंडिया न्यूज़ लांच किया जिसके कर्ता धर्ता कार्तिकेय शर्मा हरियाणा के कांग्रेस नेता विनोद शर्मा के बेटे हैं। विनोद शर्मा के दूसरे बेटे मनु शर्मा दिल्ली के जेसिका लाल हत्याकांड में सज़ायाफ्ता हैं। इस चैनल से 2013 में मशहूर पत्रकार दीपक चौरसिया भी जुड़ चुके हैं और चैनल को नई पहचान देने में जुटे हैं। इस चैनल से जुड़े कई क्षेत्रीय चैनल भी हैं- इंडिया न्यूज़ हरियाणा, इंडिया न्यूज़ मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़, इंडिया न्यूज़ बिहार। साथ ही इस चैनल ने अंग्रेजी चैनल न्य़ूज़ एक्स को भी खरीद लिया है। इस तरह ये एक बड़े मीडिया ग्रुप के रूप में उभर रहा है।
      एक और समाचार चैनल जो टीआरपी चार्ट में अपनी जगह के उतार-चढ़ाव को लेकर चर्चा में रहा- वो है – लाइव इंडिया। पहले पहल श्रीअधिकारी ब्रदर्स ने 2005 के आसपास जनमतनाम से इस चैनल को लांच किया था। इसके बाद इसकी हिस्सेदारी बिल्डर कंपनी HDIL को बिक गई और तब इसका नामकरण लाइव इंडिया हुआ। एक स्टिंग ऑपरेशन को लेकर हुए विवाद को लेकर 2007 में इस पर पाबंदी भी लगी। इसके बाद इस चैनल ने नए सिरे से अपनी पहचान बनानी शुरु की, लेकिन अंदरूनी खस्ताहाली ने इसे एक बार फिर बिकने को मजबूर कर दिया। अब इसके मालिकान पुणे के कारोबारी हैं। शुरुआत में इस चैनल के साथ हरीश गुप्ता, उमेश उपाध्याय जैसे पत्रकार जुड़े थे, बाद में सुधीर चौधरी इसके संपादक बने और फिर सतीश के सिंह को इसकी कमान मिली।
      राष्ट्रीय समाचार चैनलों में नवीनतम नाम न्यूज़ नेशन का है, जिसे 2013 में ही लांच किया गया है। चैनल की अगुवाई वरिष्ठ पत्रकार शैलेष कर रहे हैं, जो ज़ी न्यूज़, आजतक जैसे चैनलों में लंबी पारी खेल चुके हैं। साथ ही आजतक और स्टार न्यूज़ के नामी एंकर अजय कुमार भी इससे जुड़े हुए हैं। इसके संपादकीय विभाग में वरिष्ठ पत्रकार सर्वेश तिवारी भी हैं। रोजगार पर खतरे के संकट से गुजर रहे टीवी में काम करनेवाले तमाम युवाओं के लिए य़े चैनल आशा की किरण बन कर लांच हुआ। चैनल से काफी उम्मीदें हैं बशर्ते ये सुचारू रूप से चलता रहे।
समाचारों का प्रसारण राज्यसभा टीवी पर भी होता है, जिसे 2011 में लांच किया गया, हालांकि इसकी कोई कारोबारी मानसिकता नहीं है और खबरों के चयन का तरीका आम चैनलों से अलग है। लेकिन कम वक्त में ही ये चैनल करंट अफेयर्स चैनलों में अपनी खास पहचान बनाने में सफल हुआ है। चैनल की कमान गुरदीप सिंह सप्पल और राजेश बादल के हाथों में है।
देश में समाचार चैनलों की होड़ में क्षेत्रीय चैनल भी काफी तेजी से शामिल हुए। इसकी शुरुआत तो सबसे पहले हैदराबाद के इनाडु ग्रुप ने ही कर दी थी, जिसके नेटवर्क में पहले दक्षिण भारतीय भाषाओं के और फिर ओडिशा, महाराष्ट्र, गुजरात, उत्तर प्रदेश/उत्तराखंड, बिहार/झारखंड, मध्य प्रदेश/ छत्तीसगढ़ और राजस्थान के लिए भी अलग-अलग चैनल आ गए जिन पर समाचारों के अलावा मनोरंजन और करंट अफेयर्स के कार्यक्रम भी प्रसारित होते हैं। इनाडु ग्रुप के मालिक रामोजी राव की अगुवाई में शुरु ये नेटवर्क अब टीवी 18 ग्रुप का हिस्सा बन चुका है।
दिल्ली-एनसीआर की खबरों पर केंद्रित चैनलों में टोटल टीवी का भी नाम आता है, जो 2005 में लांच हुआ। टोटल टीवी यूं तो पहला ऐसा सैटेलाइट चैनल है जो किसी शहर पर केंद्रित हो, हालांकि अभी तक ये अपनी बड़ी पहचान बनाने में विफल रहा है।
क्षेत्रीय समाचार चैनलों में साधना न्यूज़ भी है जिसका मध्य प्रदेश-छत्तीसगढ़ चैनल सबसे ज्यादा चर्चा में है। पहले एनके सिंह, फिर एसएन विनोद और अब अंशुमान त्रिपाठी इसकी कमान संभाल रहे हैं।
देश में समाचार प्रसारण  को कारोबार बनाने के लालच ने कुछ ऐसे संगठनों और लोगों को भी समाचार चैनल लांच करने का मौका दे दिया, जिन्होंने बड़ी संख्या में लोगों के रोजगार के साथ खिलवाड़ किया। ऐसा ही एक चैनल था वॉयस ऑफ इंडियाजो ब़ड़े ताम-झाम से 2007-2008 के दौरान लांच हुआ था, लेकिन चल नहीं सका और इसमें काम शुरु करनेवाले काफी लोग महीनों बेकार रहने को मजबूर हो गए। इसी तरह एस-1 टेलीविजन के नाम से Senior Media Limited नाम के संगठन ने अगस्त 2005 में नोएडा से चैनल लांच किया था और विस्तार के बड़े-बड़े दावे किए गए थे, जो टांय-टांय फिस्स साबित हुए और कर्मचारियों को दिक्कतें झेलनी पड़ी। ये ऐसे संगठन थे, जिनका समाचार से या मीडिया से कोई खास लेना-देना नहीं था और किराने के कारोबार की तरह जल्दी-जल्दी मुनाफा हासिल करना चाहते थे।
ऐसा ही हाल फिल्मों की दुनिया से जुड़े एक बड़े ग्रुप का भी हुआ। ग्रुप ने भोजपुरी दर्शकों पर केंद्रित चैनल शुरु किए जिनमें एंटरटेनमेंट आधारित महुआ टीवी तो बखूबी चल रहा है, लेकिन इसका समाचार चैनल- महुआ न्यूज़ चाहे जिस वजह से हो, नहीं चल सका। ऐसे कई चैनलों के आगाज और अंत ने समाचार के कारोबार में कूदनेवालों को बड़ा सबक दिया है, साथ ही टीवी समाचार चैनलों की तड़क-भड़क के वशीभूत होकर उनमें काम करने की इच्छा रखनेवालों को भी पेशे को अपनाने के बारे में सोचने का मौका दिया है।  
-          कुमार कौस्तुभ
19.05.2013, 06.00 PM


[1] डॉ. देवव्रत सिंह, भारतीय इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, पेज नंबर 223, प्रभात प्रकाशन, दिल्ली

‘लाइव’ के लफड़े




      ब्रेक करो..ब्रेक करो..काट लो, काट लो..तोड़ दो.तोड़ दो..सोर्स क्या है..कितनी देर इस पर रहना है..ग्राफिक्स नहीं मिला..ऑडियो खराब है”- अफरातफरी में इस तरह की आवाजें टेलीविजन चैनल के न्यूज़रूम में अक्सर उस वक्त गूंजती सुनाई देती हैं, जब भी कोई बड़ी खबर प्रसारण के लिए हासिल होती है, वो भी लाइव वीडियो या ऑडियो इनपुट के साथ। ये लाइवसमाचार प्रसारण का जमाना है। आमतौर पर आम दर्शक लाइव का मतलब इस स्थिति को समझता है कि घटना जिस वक्त जिस तरह घट रही हो, उसे तत्क्षण प्रसारित किया जा रहा हो। ऐसा अक्सर होता भी है, खासकर 15 अगस्त और 26 जनवरी के स्वतंत्रता और गणतंत्र दिवस के कार्यक्रमों, राजनीतिक रैलियों, नेताओं के भाषणों या किसी बड़े कार्यक्रम की कवरेज टेलीविजन के समाचार चैनलों पर लाइव ही करने का चलन बढ़ गया है। आउटडोर ब्रॉडकास्टिंग वैन यानी OB वैन के बढ़ते इस्तेमाल से ये काम आसान हो गया है। लेकिन कई बार जब किसी घटना विशेष का वीडियो सबसे पहले किसी चैनल को उपलब्ध होता है, तो वो उसे इस अंदाज में प्रसारित करते देखे जा सकते हैं, जैसे घटना अभी-अभी घट ही रही हो, जो कि वास्तविकता से परे है। आम तौर पर हादसों या आगजनी की घटनाओं के वक्त कैमरा मौके पर नहीं होता और घटना की जानकारी मिलने पर टीवी रिपोर्टर और यूनिट को पहुंचने में देर लगती ही है..ऐसे में तस्वीरें तो हादसे के बाद की ही मिलेंगी..आग लगने के मामलों में आमतौर पर ऐसा होता है कि आग बुझाने में देर लग जाती है और टीवी रिपोर्टर्स को इतना मौका मिल जाता है कि वो लपटों का वीडियो बना सकें जिसे कुछ समय बाद भी प्रसारित किया जाए तो सबसे पहले देखनेवाले दर्शक इस गफलत में पड़ सकते हैं कि घटना अभी ही घट रही है। हालांकि राजनीतिक प्रदर्शनों और रैलियों के दौरान पुलिस-पब्लिक की झड़प की घटनाओं की लाइव कवरेज आम हो चुकी है, क्योंकि ऐसी घटनाओं के लिए पहले से टीवी कैमरे मौके पर मौजूद होते हैं और किसी को पहले से पता नहीं होता कि भीड़ का रेला कब किस तरफ, किस करवट जाएगा या क्या प्रतिक्रिया होगी, जैसा कि दिल्ली में 16 दिसंबर के गैंग रेप की प्रतिक्रिया में विजय चौक और राष्ट्रपति भवन पर हुए प्रदर्शनों के दौरान हुआ। ऐसी घटनाओं की कवरेज वाकई लाइव ही होती है..यानी पूरी तरह जीवंत और दर्शकों को पल-पल घटित हो रहे घटनाक्रम से रू-ब-रू होने का मौका मिला। राजनीतिक प्रदर्शनों  या पब्लिक रैलियों के दौरान ऐसी कवरेज आम हो चुकी है, जब टेलीविजन पर समाचार सही मायने में लाइव प्रसारित होते देखा जा सकता है। वैसे लाइव प्रसारण के कई और पहलू हैं और कई लफड़े भी हैं, जिनसे टेलीविजन समाचारों में काम करनेवाले लोग अक्सर दो चार होते हैं।
       सबसे पहले ये समझना जरूरी है कि लाइवसमाचार प्रसारण यानी सीधा प्रसारण है क्या चीज? जैसा पहले कहा- आम दर्शक तो टीवी स्क्रीन पर दाएं या बाएं कोने पर LIVE लिखा देख यही समझता है कि जो भी प्रसारण हो रहा है, वो सीधे हो रहा है, जीवंत है यानी रिकॉर्डेड कुछ भी नहीं है..ये आम दर्शकों के लिए बड़ी हैरानी वाली बात है कि आखिर सबकुछ सीधे कैसे प्रसारित हो रहा है...टीवी वाले तो कमाल का काम करते हैं ..आखिर कैसे इतना सीधा प्रसारण ? लेकिन वास्तविकता अलग है। आमतौर पर लाइवप्रसारण का मतलब दो तरह का है- एक तो टेलीविजन के समाचार चैनलों पर हो रहा प्रसारण और टेलीविजन चैनलों का प्रसारण । चैनलों पर हो रहे प्रसारण का मतलब ये कि जो कुछ प्रसारित हो रहा है वो किस तरीके से हो रहा है और चैनलों का प्रसारण अपने आप में किस तरह हो रहा है। निजी समाचार चैनलों को स्वदेश से सैटेलाइट अपलिंकिंग सुविधा मिलने के बाद आमतौर पर तमाम चैनलों का प्रसारण इस मायने में लाइव होता है कि उन्हें अपलिंकिंग के लिए प्रसारण सामग्री किसी और देश पहले से भेजने की जरूरत नहीं होती। 90 के दशक में कई समाचार चैनलों का प्रसारण हांगकांग या सिंगापुर से अपलिंकिंग के जरिए हुआ करता था, लिहाजा चैनल के स्टूडियो से रिकॉर्डिंग और फिर वास्तविक प्रसारण में चंद सेकेंड का फर्क हुआ करता था। लेकिन अब चुंकि ज्यादातर चैनलों को स्वदेश से ही सैटेलाइट अपलिंकिंग की अनुमति है, लिहाजा चैनल या उसके स्टूडियो से सैटेलाइट संपर्क के जरिए आमतौर पर सीधा प्रसारण ही होता है और तमाम चैनल हमेशा लाइवकी स्थिति में रहते हैं, इस मायने में कि वो जब भी जो चाहें तत्क्षण प्रसारित कर सकते हैं और उसमें कोई देर नहीं हो सकती। ये तो  चैनलों के प्रसारण की बात हुई। अब बात पर चैनलों पर हो रहे प्रसारण की – तो इस मायने में कोई भी चैनल चौबीसों घंटे सिर्फ इस मायने में लाइवप्रसारण की स्थिति में होता है कि उनके एंकर लाइवहोते हैं- वो जिस वक्त समाचार पढ़ते हैं, वो उसी वक्त प्रसारित होता है और अगले मिनट या चंद सेकेंड बाद ही उसी स्टोरी में उनके लिए बदलाव की गुंजाइश रहती है, लेकिन एंकर लीड के बाद जो भी आइटम हो, अगर कोई स्टोरी पैकेज हो, तो वो पहले से तैयार हो सकता है, एक तरह से रिकॉर्डेड हो सकता है वो खुद लाइव नहीं होगा, उसमें बदलाव प्रसारण के दौरान तत्काल नहीं हो सकता, उसमें वक्त लग सकता है। और अगर कोई गलती हुई तो उसे सुधारकर पेश करने में देर भी हो सकती है, जैसा आमतौर पर चैनलों पर देखने को मिलता है कि अगर कोई गलती नहीं पकड़ी जा सकी, तो बार-बार तब तक ऑन एयर होती रहती है, जब तक कि कोई उस पर ध्य़ान देकर उसे ठीक न करा दे। लेकिन जिन आइटम का  लाइव प्रसारण हो, उनमें तो भूल-सुधार की गुंजाइश बराबर रहती है, चाहे वो एंकर का पढ़ा जाने वाला पीस हो, या फिर कोई ग्राफिक्स की पट्टी। इस तरह चैनलों का प्रसारण लाइव भी हो, तो  चैनलों पर होनेवाला प्रसारण हमेशा लाइव नहीं भी हो सकता है। यही वजह है कि आप खास मौकों पर टीवी स्क्रीन पर किसी कोने में LIVE लिखा हुआ पाएंगे।
       लाइवप्रसारण का मतलब आमतौर पर यही होता है कि किसी भी माध्यम के जरिए घटना के वीडियो और ऑडियो कंटेंट को दर्शकों या श्रोताओं तक सीधे पहुंचाया जा रहा हो। पुराने जमाने में ये संभव नहीं था, लेकिन सूचना प्रौद्योगिकी के विस्तार औऱ आधुनिक प्रसारण प्रौद्योगिकी में आउटडोर ब्रॉडकास्टिंग वैन्स और सैटेलाइट्स के जरिए ब्रॉडकास्टिंग की नई-नई तकनीकें आने से ये काम आसान हो गया। वीकिपीडिया और अन्य स्रोतों के मुताबिक, माना जाता है कि पहले पहल बीबीसी ने ही 30 सितंबर 1929 को लाइव प्रसारण शुरु किया था। इसके बाद अमेरिका और ब्रिटेन में तो कई ऐसे बड़े मौके सामने आए, जब लाइव टेलीविजन प्रसारण ने अपनी सार्थकता साबित की। 90 के दशक में खासकर खाड़ी युद्ध के दौरान और फिर 2001 में 9/11 के हमले के दौरान घटनाओं के लाइव प्रसारण ने टेलीविजन समाचार को नया आयाम दिया। ये वो दौर था, जब भारत में टेलीविजन समाचार चैनल पंख पसार रहे थे। भारत में टेलीविजन के लाइव प्रसारण की शुरुआत यूं तो दूरदर्शन के जरिए 26 जनवरी और 15 अगस्त के कार्यक्रमों के अलावा ओलंपिक और एशियाई खेलों के प्रसारण से मानी जा सकती है। लेकिन खबरिया नजरिए से बजट के सीधे प्रसारण के अलावा 1999 में चुनाव नतीजों के मैराथन प्रसारण को लाइवदिखाने की पूरी कोशिश हुई। हालांकि इस दौरान भी ज्यादातर स्टूडिय़ो की चर्चाएं ही लाइव रहीं, और बाकी आइटम्स पहले से तैयार यानी टेप पर रिकॉर्डेड ही इस्तेमाल किए गए। 2001 में संसद पर आतंकवादी हमले की घटना तक भारत के निजी समाचार चैनल काफी हद तक लाइवप्रसारण की स्थिति में आ चुके थे। लिहाजा इस घटना के बाद से अब तक लाइवप्रसारण के फलक का न सिर्फ विस्तार हुआ है, बल्कि अब लाइवप्रसारण टेलीविजन के समाचार चैनलों की अहम जरूरत बन चुके हैं। इसका सबसे बड़ा प्रमाण मुंबई में 26/11 के हमलों के दौरान दिखा जब करीबन 3 दिन तक देश के तमाम समाचार चैनल खबर पर लगातार लाइवबने रहे। हालांकि ऐसी घटनाओं की कमी नहीं, जब घटनाएं पहले हुईं और उनके घटित होने के बाद घंटों टेलीविजन चैनलों पर उनसे जुड़ी खबरों का लाइवप्रसारण होता रहा- मसलन फरवरी 2013 में हैदराबाद में हुए जानलेवा धमाके, या इससे पहले 2008 में दिल्ली में हुए सीरियल ब्लास्ट- इन घटनाओं के घटित हो जाने के बाद उनके लाइवप्रसारण को लेकर न सिर्फ दर्शकों में गफलत पैदा हुई, बल्कि लाइवका महत्व भी घटता नज़र आया। ऐसा न हो, इसके लिए लाइवप्रसारण के पहलुओं को समझना जरूरी है।
       ये तो स्पष्ट है कि हर खबर को सही मायने में लाइवप्रसारित करना संभव नहीं, क्योंकि घटना की जानकारी और उसका वीडियो-ऑडियो सोर्स हासिल होने में समय लगता है और प्रसारण की स्थिति तक आते-आते देर हो जाती है। ऐसे में किसी भी खबर को लाइवकैसे ट्रीट करें, ये सवाल समाचार चैनल में काम करनेवालों के लिए रोजमर्रा का मामला है। आमतौर पर देखें तो खबरों की लाइवट्रीटमेंट खबरों के प्रसारण से जुड़ा हुआ ही मामला है। किसी बड़ी खबर के मामले में या फिर किसी खबर पर जोर देने के लिए  उसके साथ कुछ ऐसे प्रसारण की योजना बनाई जाती है, जिससे उसके बारे में अपडेट मिल सके, उसका विश्लेषण हो सके, उसकी चौहद्दी बांधी जा सके- इसके लिए घटनास्थल से संवाददाताओं से सीधे बातचीत, विशेषज्ञों या खबर से जुड़े लोगों से फोन पर या वीडियो सोर्स पर सीधे स्टूडियो से बातचीत के विकल्प चैनलों के पास होते हैं, जिन्हें लाइवप्रसारण के लिए इस्तेमाल किया जाता है। दिल्ली या हैदराबाद के सीरियल ब्लास्ट के मामलों को देखें, तो खबर ब्रेक होने के बाद उससे जुड़े तमाम अपडेट अगले दिन शाम तक और उसके बाद भी यानी 24 से 36 घंटे बाद तक आते रहे। वैसे तो कुछ वक्त घटना घटित होने के बाद समाचार चैनलों तक पहुंचने में ही लग जाता है, लेकिन, ऐसा आम तौर पर होता है कि खबर आने के बाद घटनाक्रम की जानकारी जुटाने में लगी संवाददाताओं की फौज लगातार कुछ न कुछ जानकारी भेजती रहती है और घटनास्थल के माहौल से अपडेट देती रहती है जिससे खबर में जिज्ञासा बनी रहती है और उसे जिंदा रखा जा सकता है- ऐसा ही इन खबरों के मामलों में भी हुआ...तकरीबन 2 दिन तक लगातार नई-नई जानकारियां और नए-नए इनपुट हासिल होते रहे, जिनकी बिना पर बुलेटिन-दर-बुलेटिन लाइवके तौर पर प्रसारित करना लाजिमी हो गया। ये बात 26/11 के मुंबई हमलों में भी थी और उस दौरान सबसे बड़ी बात ये थी कि समाचार चैनलों के लिए लाइव दिखाने को काफी कुछ था- मुंबई के ताज होटल में लगी आग से लेकर चाबाद हाउस में कमांडो ऑपरेशन तक तमाम ऐसी घटनाएं हुईं, जिनके प्रसारण के लिए अलग-अलग जगहों पर लगे कैमरे पल-पल हो रही गतिविधियों को सीधे समाचार चैनलों तक पहुंचाते रहे और समाचार चैनलों ने कुछ भी आगे-पीछे सोचे बगैर उन्हें सीधा प्रसारित किया, जो आज भी समाचार चैनलों के रिकॉर्ड में दर्ज है। हालांकि इस प्रसारण के क्या अच्छे-बुरे पहलू हैं, इस पर भी बहस छिड़ गई और एक बार फिर से समाचार चैनलों के प्रसारण के नियमन का मुद्दा उठ खड़ा हुआ, लेकिन एक आम टेलीविजन कर्मी या दर्शक के नजरिए से देखें, तो टेलीविजन के समाचार चैनलों ने बखूबी अपना काम किय़ा और ये खबर का एक ऐसा मोर्चा था, जहां तमाम पत्रकार जमकर डटे रहे। टीवी के आलोचक कह सकते हैं कि बड़े टीवी पत्रकारों के लिए ये अपनी मौजूदगी दर्ज कराने और अपना ज्ञान बघारते हुए टीवी की फुटेज खाने का मौका रहा, लेकिन इसको क्यों भूलते हैं कि टीवी समाचारों की पहचान भी तो आखिर उन्हीं चेहरों से बनी है?
            बहरहाल, 26/11 के हमलों के लाइवप्रसारण ने क्या दिखाएं और क्या न दिखाएं इस पर एक नई बहस जरूर छेड़ दी, लेकिन सीधा सवाल ये है कि जब मौके पर ख़ड़ा कैमरा स्टूडियो और प्रसारण केंद्र से सीधा जुड़ा हो, तो आखिर कैमरा पर्सन क्या-क्या दिखाने से बच सकता है या परहेज कर सकता है? जिन टीवी चैनलों के कैमरों ने अमेरिका में 9/11 के आतंकी हमलों के दौरान WTC से विमानों के टकराने की तस्वीरें कैद कीं, क्या उन्होंने पहले सोचा होगा कि वो कितनी भयानक घटना दिखाने जा रहे हैं? आज भी WTC से विमानों के टकराने की तस्वीरों का जोर-शोर से प्रसारण होता है, ये याद दिलाने के लिए कि ये दुनिया का सबसे बड़ा आतंकी हमला था, उसे बिल्कुल BLURR  यानी धुंधला नहीं किया जाता। लेकिन हमले के बाद मैनहटन के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर के मलबे में पड़ी लाशों और वहां पड़े खून के छींटों को किसी अमेरिकी या ब्रिटिश चैनल ने नहीं दिखाया। खून नहीं दिखाने के अपने नैतिक तर्क है। हमारे यहां तो खून दिखाया जाता है BLURR यानी धुंधला करके, लाशें भी दिखाई जाती हैं, पट्टी लगाकर, ताकी मानवीय भावनाएं आहत न हों, भड़कें नहीं। खैर नैतिकता के इन नियम-कायदों का मामला अलग बहस का मुद्दा है। हाल ही में रशिया टुडे समेत कई विदेशी चैनलों ने अफगानिस्तान में नाटो के एक मालवाहक विमान के हादसे की भी भयानक तस्वीरें प्रसारित कीं, एक और विमान हादसे की ऐसी तस्वीरें प्रसारित हुईं, जिनमें विमान आग के गोले में बदलता दिखता है- ये तस्वीरें लोगों को हैरान भी कर सकती है और उनमें खौफ भी पैदा कर सकती हैं। बहस संवेदना से जुड़ी है। एक तरह से देखें तो विमान हादसे की उन तस्वीरों और ज्वालामुखी विस्फोट की तस्वीरों में ज्यादा फर्क नहीं दिखता। लेकिन, अगर मानवीय संवेदना के नजरिए से देखें, तो सवाल है कि क्या ऐसे हादसे की तत्वीरें दिखाना जायज है, जिसमें कई लोग जिंदा जलकर मर गए? भारत के कई समाचार चैनलों ने उन तस्वीरों को अजूबा मानते हुए जमकर दिखाया, लेकिन फिर वही मुद्दा है कि मौत की विभीषिका को आप खेल-तमाशे की तरह कैसे दिखा सकते हैं?
सवाल तो फिर भी वही है कि लाइवप्रसारण के लिए अगर कहीं कैमरा लगा है, तो वो क्या दिखाए और क्या न दिखाए? और कुछ भी ऐसा दिखाने से कैसे बचे जो दिखाने योग्य नहीं है और कैसे वो सब कुछ दिखा सके, जो जमकर दिखाना चाहिए?/यहां जिम्मेदारी संवाददाताओं और कैमरापर्सन्स पर आ जाती है कि वो घटनाओं की लाइव कवरेज के दौरान बेहद सावधानी बरतें और इस बात का ध्यान रखें कि जो कुछ उनके कैमरे में आ रहा है, वो दिखाने योग्य है या नहीं? साथ ही, तस्वीरें साफ-सुथरी औऱ सही फ्रेम में हों, इसके लिए भी कैमरापर्सन को अतिरिक्त मेहनत करनी पड़ सकती है। विपरित परिस्थितियों में हो रही लाइव कवरेज के प्रसारण पर नियंत्रण रखने के लिए समाचार चैनल को प्रोडक्शन कंट्रोल रूम के कर्मियों यानी पैनल प्रोड्यूसर और टेक्निकल डायरेक्टर को भी चौकन्ना और सतर्क रहना चाहिए और जैसे ही किसी तस्वीर में कुछ अदर्शनीय दिखे, तो वो किसी दूसरे वीडियो स्रोत या एंकर सोर्स पर जाने के लिए आजाद रहते हैं। साथ ही, पैनल प्रोड्यूसर और टेक्निकल डायरेक्टर को उन तमाम वीडियो सोर्स का ज्ञान होना चाहिए और उन पर नजर रखनी चाहिए, जिन पर खबर से जुड़ा वीडियो मिल रहा हो, ताकि वो सबसे अच्छे विजुअल का प्रसारण आवश्यकतानुसार कर सकें।
समाचार चैनलों पर लाइवकवरेज या लाइव प्रसारण कई मायनों में अच्छे माने जाते हैं, तो इससे जुड़ी कई बुनियादी दिक्कतें भी हैं, जिनको लेकर न्यूज़ डेस्क और PCR के स्टाफ को काफी सजग और सतर्क रहना पड़ता है। लाइवकवरेज या लाइव प्रसारण अच्छे इस मायने में हैं, कि इस दौरान बुलेटिन का समय बड़ी आसानी से कट जाता है और ये तय करने की जरूरत नहीं पड़ती कि रनडाउन में कब क्या और कैसे चलेगा? लेकिन जो खतरनाक पहलू है, वो ये कि अगर कमर्शियल ब्रेक्स हैं, तो उनका क्या इंतजाम होगा क्योंकि कमर्शियल्स का प्रसारण चैनल के कारोबारी पहलू से जुड़ा होता है और खबरों को पकड़ने के चक्कर में आम तौर पर चैनल कारोबारी हितों से समझौते करने में बचते हैं। ऐसे में ये ध्यान रखना होता है कि लाइव के दौरान कमर्शियल्स का क्या होगा? दूसरा एक और महत्वपूर्ण मुद्दा लाइवकवरेज के दौरान विजुअल के साथ प्रसारित किए जानेवाले ग्राफिक्स के टेक्स्ट्स का है जो खबरों के बारे में जानकारी देते हैं। आम तौर पर ग्राफिक्स विंडो और टेंपलेट के जरिए प्रसारित किए जाते हैं, जिन पर खबरों से जुड़ी जानकारी देने की सुविधा होती है। लाइवकवरेज के दौरान जितनी तेजी से जानकारियां हासिल होती हैं, उतनी ही तेजी से ग्राफिक्स भी अपडेट करने की अपेक्षा होती है और अपडेट न होने की स्थिति में एक ही जानकारी बार-बार दोहराई जाती है, जो प्रसारण को बोझिल बना देती है। ऐसे में अगर खास जानकारियां न मिल रही हों, तो घटना या खबर के बैकग्राउंडर के तथ्यों को भी ग्राफिक्स में शामिल करना बेहतर स्थिति हो सकती है। यही बात टिकर की पट्टियों और ब्रेकिंग न्यूज़ की पट्टियों के साथ भी लागू होती है, जिन्हें लाइवकवरेज के दौरान लगातार अपडेट किया जाना जरूरी है। ये बातें तो उन खबरों के लिए हैं, जिनका वीडियो  प्रसारण के लिए लाइवहासिल हो रहा हो। अगर किसी खबर का लाइव ट्रीटमेंट किया जा रहा हो यानी उस पर संवाददाता या किसी अन्य व्यक्ति यानी गेस्ट से बातचीत हो रही हो, तो सतर्कता और भी जरूरी है। ऐसी स्थिति में सबसे पहले तो ये ध्यान रखना पड़ता है संवाददाता या गेस्ट के वीडियो और ऑडियो सोर्स समय से PCR और स्टूडियो को मिलें। चुंकि वीडियो सोर्स अलग होता है और ऑडियो टेलीफोन लाइन और मोबाइल फोन के जरिए कनेक्ट किया जाता है, तो दोनों में से किसी भी एक से संपर्क में देर हुई, तो खबर के प्रसारण पर असर पड़ सकता है। इसके लिए न्यूज़ डेस्क, एसाइनमेंट डेस्क और PCR में तालमेल बेहद जरूरी है। जब संवाददाता या गेस्ट PCR और स्टूडियो से कनेक्ट हो जाएं तो एंकर पर अहम जिम्मेदारी ये होती है कि वो संवाददाता या गेस्ट से खबरों से जुड़े सार्थक सवाल पूछें और जितनी जरूरत हो, उतना ही पूछें। साथ ही, खासकर ये संवाददाताओं की भी जिम्मेदारी है कि वो सवालों पर किस तरह सही तरीके से प्रतिक्रिया दें, किसी मुद्दे पर कितना समय खर्च करें। आम तौर पर एंकर्स खबरों और मुद्दों से गहराई से वाकिफ नहीं होते, ऐसे में न्यूज़ डेस्क और पैनल प्रोड्यूसर से ये भी अपेक्षा की जाती है कि एंकर्स को पहले से सवाल सुझा दें ताकि वो ऑन एयर कोई ऐसी बात न कह जाएं, जो हास्यास्पद हो या फिर शर्मनाक साबित हो जाए। संवाददाता या गेस्ट से बातचीत के दौरान किस तरह किन ग्राफिक्स का इस्तेमाल करना है, और किन पट्टियों का कब-कहां इस्तेमाल करना है, ये पैनल प्रोड्यूसर को ध्यान रखना पड़ता है। आमतौर पर कई बार उन्हीं पर पट्टियों को अपडेट करने की भी जिम्मेदारी आ जाती है। साथ ही ये भी ख्याल रखना पड़ता है कि कब कहां कौन सा विजुअल भी इस्तेमाल करना मुफीद रहेगा?
तो कुल मिलाकर लाइव प्रसारण के अच्छे और बुरे दोनों पहलू हैं, जिनसे टीवी के समाचार कर्मियों को रोजाना गुजरना पड़ता है और ये प्रसारण ये सीख भी देता है कि किन खबरों को किस तरह  प्रसारित करना चाहिए। अभ्यास और अनुभव से प्रसारण कर्मी फायदा उठाते हैं और इसका असर चैनलों के प्रसारण पर झलकता है। समाचार चैनलों की जिम्मेदारी चुंकि खबरें दिखाना ही है, लिहाजा, जब भी किसी खबर पर लाइववीडियो की सुविधा हो, तो उसे दिखाने से परहेज नहीं करना चाहिए, लेकिन सीमाओं का ध्यान रखते हुए कि क्या दिखाना है और क्या नहीं? प्रसारण के 30 सेकेंड से 1 मिनट तक की अवधि में आप ये फैसला कर सकते हैं कि क्या अमुक खबर के लाइववीडियो का प्रसारण जारी रखा जा सकता है? अगर दिक्कत है, तो आपको दूसरी खबर पर जाने की आजादी है और आप इसके लिए भी स्वतंत्र होते हैं कि अगर विजुअल अच्छे हों तो आप फिर से किसी खबर पर लौट सकते हैं। ऐसे में जल्दी-जल्दी फैसले लेने की क्षमता भी लाइव प्रसारण के लिए बेहद जरूरी है – फैसला सही है या गलत ये तो आपका अनुभव भी बता सकता है और अगर आप काम में नए हैं, तो आपके लिए अपने फैसले को परखने का सबसे अच्छा मौका लाइवप्रसारण में मिल सकता है क्योंकि इस दौरान चीजें तेजी से बदलती हैं और एक साथ कई मोर्चों पर काम करना पड़ सकता है, जिसका अनुभव और मज़ा व्यावहारिक तौर पर ही किया सकता है- कल्पना करके नहीं। क्योंकि आपने अगर चैनल देखते हुए लाइवकी कल्पना की तो उससे डर लगेगा, लेकिन जब आप उन हालात में काम करेंगे, तो  लाइव से डरेंगे नहीं, उससे लवकरेंगे!
-कुमार कौस्तुभ
19.05.2013, 10.10 AM