Sunday, April 14, 2013

बुद्धू बक्सा या झरोखा दुनिया का!




समाचार जानने के लिए टेलीविजन का स्विच ऑन किया और पलक झपकते ही देश ही नहीं दुनिया का भी हाल स्क्रीन पर हाजिर। एक आम भारतीय के लिए दुनिया की जरूरी और रोचक खबरों और उनके वीडियो और तस्वीरों से वाकिफ होने का प्रमुख जरिया आज टेलीविजन के समाचार चैनल ही हैं। यहां ये साफ कर देना होगा कि दुनिया का हाल जानने के लिए इंटरनेट जरूर एक बड़ा, आसान और सशक्त माध्यम है, लेकिन भारत की बड़ी आबादी अब भी इसकी पहुंच से बाहर है। ऐसे में टेलीविजन ही एक ऐसा माध्यम है, जो आम दर्शकों के आगे दुनिया भर की खबरें परोस देता है और ये उन्हें तय करना होता है कि वो उन्हें देखें या रिमोट कंट्रोल के जरिए चैनल बदलकर कुछ और देखें। चाहे वो नॉर्थ कोरिया के बारे में अमेरिका और चीन के सलाह मशविरे की खबर हो, या फिर पेरू के सुदूर इलाके में हुआ दर्दनाक बस हादसा हो, या जर्मनी के फ्रैंकफर्ट में रोबोट कलाकारों के हेवी मेटल बैंड कंप्रेसरहेड की परफॉरमेंस हो या अरब मुल्क में फॉर्मूला वन रेस की तैयारी– तमाम किस्म की अंतरराष्ट्रीय खबरें हमारे देश के राष्ट्रीय न्यूज़ चैनलों पर रोजाना देखने को मिल सकती हैं- लेकिन ये दर्शक तय नहीं कर सकते कि वो किस वक्त क्या देखना चाहते हैं और दुनिया के किस हिस्से का हाल जानना चाहते हैं। टेलीविजन के उलट इंटरनेट पर ये स्वतंत्रता जरूर है कि आम जब भी जो चाहें वो देखना खुद तय कर सकते हैं, लेकिन टेलीविजन ऐसी कोई आजादी आपको नहीं देता, लेकिन जो कुछ आपके लिए, दर्शक वर्ग के लिए उचित और जरूरी समझता है, आपके आगे ला देता है। आधुनिक दौर में संचार सुविधाओं का जाल इतना फैल चुका है कि दुनिया के किसी कोने की खबर से टेलीविजन नावाकिफ रहे, ऐसा हो नहीं सकता और जब भारतीय टेलीविजन के समाचार चैनलों के पास खबरिया नजरिए कोई बेहद जरूरी या अत्यंत रोचक सामग्री आती है, तो वो उसे पर्दे पर पेश करने में बिल्कुल देर नहीं लगाते, भले ही वो 30 सेकेंड के लिए भी क्यों न हो। आम दर्शक ऐसी खबरें देखकर रोमांचित होते हैं, जिन्होंने न तो कल्पना की होती है और न सोचा होता है कि वो सात समुंदर पार की किसी घटना के बारे में जानना चाहते हैं। अमेरिका में 9/11 के हमले या जापान में सूनामी की तबाही या न्यूयॉर्क में कार मेले के हैरतअंगेज वीडियो देखकर लोग हैरान भी होते हैं। कुछ लोग इस बात पर गर्व भी करते हैं कि हमारे देश के टीवी चैनल कहां-कहां की खबर खबर ले आते हैं। लेकिन ये पर्दे के पीछे की बात है कि खबरें कैसे और कहां से आती हैं। 

खबरनवीशों की ओर से शुक्रिया उन ब्रिटेन और अमेरिका की दो अंतरराष्ट्रीय समाचार एजेंसियों का, जो दुनियाभर की खबरें और उनकी तस्वीरें, उनके वीडियो भारतीय चैनलों को मुहैया कराती हैं। रॉयटर्स और एसोसिएटेड प्रेस नाम की उन एजेंसियों का ये काम किसी अंतरराष्ट्रीय समझौते का हिस्सा नहीं है। ये उनका बिज़नेस है और अपने कारोबार को वो बखूबी अंजाम दे रही हैं।

ऐसा नहीं है कि दुनिया में सिर्फ दो ही अंतरराष्ट्रीय समाचार एजेंसियां है, लेकिन इन दो एजेंसियों का कारोबारी कौशल इस मामले में है कि न सिर्फ इनके अपने संवाददाता दुनिया के हर कोने में हैं, बल्कि ये दुनियाभर की अन्य समाचार एजेंसियों की ओर से भी पेश की गई खबरों और उनसे जुड़ी सामग्रियों को भारत और बाकी देशों में पहुंचाती हैं। इसके लिए इन एजेंसियों ने हर देश में अपने दफ्तर खोल रखे हैं, उनकी समाचार एजेंसियों से समझौता कर रखा है या कोई ऐसा इंतजाम कर रखा है, जिससे कहीं की कोई भी खबर उनसे छूट न सके। घटना-दुर्घटना, राजनीति, खेल, सिनेमा, मनोरंजन, ज्ञान-विज्ञान, इतिहास-भूगोल और Bizarre  गतिविधियों से जुड़ी हर किस्म की खबर इनकी झोली में होती है और ये हमारे टेलीविजन चैनलों को तय करना होता है कि वो क्या इस्तेमाल करना चाहते हैं। जैसा कि कहा जा चुका है, खबरें बेचना रॉयटर्स और एसोसिएटेड प्रेस का कारोबार है, लिहाजा चैनलों को इनका सब्सक्रिप्शन लेना पड़ता है, लगभग वैसे ही जैसे हम अपने देश की समाचार एजेंसियों PTI- प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया और UNI- यूनाइटेड न्यूज़ ऑफ इंडिया से समाचार लेते हैं। समाचार चैनलों को उनके सैटेलाइट लिंक मुहैया कराए जाते हैं, जिनके सिग्नल्स के जरिए वो जरूरी खबरों की ऑडियो-वीडियो फीड हासिल करते हैं और आजकल इंटरनेट के जरिए हर खबर की स्क्रिप्ट भी समयानुसार भेज दी जाती है, जिनका इस्तेमाल हम अपनी भाषा में करते हैं।
विकिपीडिया के मुताबिक, अंतरराष्ट्रीय समाचार एजेंसी रॉयटर्स एक सौ साठ साल से ज्यादा पुरानी है। 100 से ज्यादा देशों में इसके 60 हजार से अधिक कर्मचारी खबरे बटोरने औऱ बांटने से जुड़े काम में लगे हुए हैं। तकरीबन 20 भाषाओं में इसकी ओर से खबरें समेटने का काम होता है। 1851 में जर्मन आप्रवासी पॉल जूलियर रॉयटर ने इस संस्था की शुरुआत की थी। इस कंपनी में रायटर के परिवार की आखिरी सदस्य मर्गरीटे, बैरोनेस डि ऱॉयटर थीं, जो 2009 में 96 साल की उम्र में चल बसीं। 2008 तक ये समाचार एजेंसी रॉयटर ग्रुप के स्वामित्व में थी, लेकिन 2008 में थॉमसन कारपोरेशन नाम की संस्था ने इसका अधिग्रहण कर लिया और इसके बाद से इसे थॉमसन रॉयटर्स के नाम से जाना जाने लगा है। लेकिन कंपनी की रॉयटर्स ब्रैंडिंग अब तक बरकरार है, दुनियाभर में लोग इसे इसी नाम से जानते हैं और याद रखेंगे। समाचार एजेंसी का शुरुआती काम शेयर बाजार और आर्थिक मसलों से जुड़ी खबरें देना था, जो आज भी काफी बड़े स्तर पर इसमें समाहित है, लेकिन समय के साथ इसके फलक में और विस्तार हुआ और प्रिंट से लेकर टेलीविजन तक हर समाचार माध्यम को हर तरह के समाचार मुहैया कराने में ये एजेंसी सफल साबित हुई है।  
अमेरिका की समाचार एजेंसी एसोसिएडेट प्रेस की शुरुआत रॉयटर्स से करीब 5 साल पहले 1846 में न्यूयॉर्क में हुई थी। 5 अखबारों को समाचार मुहैया कराने से शुरु हुआ इसका कारोबार अब दुनिया के कोने-कोने में फैल चुका है। ये समाचार एजेंसी एक नॉन प्रोफिट सहकारी समिति के जरिए चलाई जाती है, जिसमें अमेरिका के अखबार, रेडियो और टेलीविजन से जुड़े लोग शामिल हैं। दुनिया भर के 120 देशों में एसोसिएटेड प्रेस के करीब ढाई सौ ब्यूरो दफ्तर हैं। इसकी ओर से दिए गए समाचार, तस्वीरें और वीडियो दुनिया हजारों अखबारों में और टेलीविजन और रेडियो चैनलों पर इस्तेमाल किए जाते हैं। अमेरिका में तो एसोसिएटेड प्रेस के समानांतर यूनाइडेट प्रेस इंटरनेशल नाम की एक और एजेंसी 1993 में खड़ी की गई, लेकिन अमेरिका से बाहर इसका मुकाबला सिर्फ रॉयटर्स और AFP  यानी एजेंसी फ्रांस प्रेसे जैसी चुनिंदा एजेंसियों से ही है। एसोसिएटेड प्रेस ने प्रसारण क्षेत्र में कदम 1941 में रखा, पहले रेडियो से शुरुआत हुई और तकरीबन 54 साल बाद  APTV के नाम से इसकी global video newsgathering agency वजूद में आ गई।
इंटरनेट की सुविधा शुरु होने के बाद एसोसिएडेट प्रेस और रॉयटर्स दोनों ही एजेंसियों से खबरों का वितरण काफी हद तक ऑनलाइन हो गया है जिससे काफी तेज़ गति से और बड़ी आसानी से खबरें कहीं से कहीं पहुंचाई जा सकती है। दोनों ही एजेंसियों का कारोबार और मिशन खबरें देना है, लिहाजा इनकी सामग्रियों में कभी किसी तरह का पूर्वाग्रह आमतौर पर नहीं देखा जा सकता। इनकी स्क्रिप्ट विचारों के बजाए समाचार से जुड़ी जानकारियों से भरी होती है और इस्तेमाल करनेवालों को उनके संपादन की पूरी छूट रहती है। दोनों ही एजेंसियां अपने ग्राहकों आगे की घटनाओं और कवरेज के बारे में भी समय-समय पर सूचित करती रहती हैं, कि कब कौन सी रिकॉर्डेड फीड आनेवाली है या क्या लाइव फीड दी जानेवाली है, जिससे उन्हें ये तय करने में आसानी होती है कि वो अपने चैनल पर उनका इस्तेमाल किस तरह करें। मसलन, अगर किसी चैनल ने अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव की डिबेट का सीधा प्रसारण दिखाने का फैसला किया हो, तो उसे पहले से ये जानकारी रहती है अमुक जगह पर अमुक समय से होनेवाले कार्यक्रम की लाइव फीड दी जाएगी। या फिर सुनीता विलियम्स के अंतरिक्ष से वापस लौटने की घटना को भी कई लोगों ने भारतीय़ समाचार चैनलों पर लाइव देखा होगा। ये इन समाचार एजेंसियों के जरिए ही संभव हो सका। हां, खेल प्रतियोगिताओं का सीधा प्रसारण आम तौर पर इन समाचार एजेंसियों पर नहीं मिलता। वजह ये है कि चाहे अमेरिका-ब्रिटेन में टेनिस, सॉकर या बास्केटबॉल हो या भारत में क्रिकेट के मुकाबले- इनके प्रसारण अधिकार खास प्रसारकों को पहले ही बेचे जा चुके होते हैं, लिहाजा इन एजेंसियों को भी उनकी फीड प्रसारक चैनलों से ही खरीदनी पड़ती है। सवाल है कि जब ये एजेंसियां खेल मुकाबले लाइव नहीं दिखा सकतीं तो  हम भला विम्बल्डन या यूएस ओपन टेनिस के मैचों में हार-जीत के मौकों का सीधा प्रसारण कैसे दिखा सकते हैं। हमारे चैनलों को भी इसके लिए उन्हीं प्रसारक चैनलों के पास जाना पड़ता है और चंद मिनटों की निर्धारित समय सीमा तक प्रसारण दिखाने की छूट मिलती है।
दुनिया के किसी भी हिस्से की खबर हम अपनी धरती पर सैटेलाइट टीवी के जरिए देख सकते हैं। जाहिर है, ऐसे में कहीं भी यदि कोई बड़ी घटना हो, तो हमारे समाचार चैनल भी उन इलाकों के टीवी स्टेशन पर प्रसारित हो रहे वीडियो और तस्वीरों को बखूबी दिखा सकते हैं और दिखाते भी हैं। इसमें कोई रोक-टोक नहीं होती। सवाल खबर का है औऱ बड़ी खबर अफ्रीका के सुदूर इलाके से आ रही हो और वहां के किसी टीवी चैनल की जानकारी हो, तो कुछ न कुछ जानकारी और वीडियो तो दिखाने में किसी किस्म की देर नहीं हो सकती। टेलीविजन विजुअल माध्यम है। बोलती हुई तस्वीरें खुद खबर की स्टोरी बयां कर देती हैं। पड़ोसी देशों पाकिस्तान, नेपाल और बांग्लादेश में होनेवाले इवेंट्स की उन देशों के निजी और सरकारी चैनलों पर प्रसारित हो रही तस्वीरों को हम अक्सर दिखाते हैं। वजह ये कि पड़ोसी देशों की खबरों में हमारी ज्यादा दिलचस्पी होती है। लेकिन, जापान में सूनामी की तबाही हो तो NHK का वीडियो और कांगो में ज्वालामुखी विस्फोट की खबर अगर किसी अफ्रीकी टीवी चैनल पर प्रसारित हो, तो उसकी तस्वीरें चुराने में भी कोई हिचक होने का कोई कारण नहीं है। खबर मुहैया कराने में उनके सहयोग के लिए सौजन्य लिखकर शुक्रिया अदा करना हमारा फर्ज बनता है।
सवाल ये भी है कि आज के दौर में जब दुनिया में कहीं भी आना-जाना बड़ी बात नहीं रही, भारत में समाचार चैनलों का इतना विस्तार हो चुका है, साथ ही सैटेलाइट लिंक के जरिए दुनिया के किसी भी हिस्से से खबरों की फीड भेजने या लाइव प्रसारण की सुविधा उपलब्ध होना मुश्किल नहीं है, तो भला हमारे अपने चेहरे वैसे ही विदेशों से समाचार पेश करते क्यों नहीं दिखते, जैसे देश में किसी भी हिस्से से हमारे चैनलों के संवाददाता देते हैं। गाहे-बगाहे, कभी कभार, अमेरिका या लंदन या चुने हुए यूरोपीय देशों में कोई बड़ी घटना हो, या फिर हमारे राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री का विदेश दौरा हो, तभी हमारे संवाददाता विदेशी धरती से बोलते हुए दिखते हैं। आखिर इसकी वजह क्या है- इसका एक सीधा सा जवाब यही है कि जब रॉयटर्स और एसोसिएटेड प्रेस जैसी एजेंसियां हमारे सामने दुनिया का झरोखा बनकर खड़ी हों, तो भला हमें खुद मशक्कत करने की क्या जरुरत। दूसरी बात बजट और संवाददाताओं को विदेशों में ऱखने के खर्च से जुड़ी है। रॉयटर्स और एसोसिएटेड प्रेस जैसी एजेंसियां अपने अकूत संसाधनों के जरिए हमारे लिए अपना कारोबार कर रही हैं, तो अपने संवाददाता तैनात करने के महंगे खर्च के बजाय उनकी अपेक्षाकृत सस्ती सेवा लेने में हर्ज ही क्या है।
जब अंतरराष्ट्रीय एजेंसियां इतनी सक्रिय हैं, तो जाहिर है अंतरराष्ट्रीय खबरें भी हमें बहुतायत में मिलेंगी और मिलती भी हैं। लेकिन भारतीय हिंदी समाचार चैनलों पर उनका काफी हिस्सा इस्तेमाल नहीं होता। बरसों पहले तक कुछ टीवी चैनलों पर कम से कम आधे घंटे का बुलेटिन रोजाना अंतरराष्ट्रीय खबरों का ही होता था। अब बुलेटिनों में अंतरराष्ट्रीय खबरों का हिस्सा 30 सेकेंड से 2-3 मिनट तक सिमट गया है। NDTV इंडिय़ा जैसे चैनल अपवाद हैं, जिन पर अभी भी अंतरराष्ट्रीय खबरों का एक बुलेटिन प्रसारित होता है। तो क्या दूसरे तमाम हिंदी समाचार चैनलों की प्राथमिकता से अंतरराष्ट्रीय खबरें हट चुकी हैं? हमारे चैनलों की कार्यक्रम सूची TRP के आधार पर बनती है। तो क्या दर्शकों की दिलचस्पी अंतरराष्ट्रीय खबरों में नहीं रही? अगर ऐसा है, तो रॉयटर्स और एपी की सेवा लेने का ही क्या अर्थ है? ऐसा बिल्कुल नहीं कहा जा सकता कि दर्शकों की अंतरराष्ट्रीय खबरों में नहीं होती या समाचार चैनलों की प्राथमिकता में अंतरराष्ट्रीय खबरें हैं हीं नहीं।
दरअसल जितनी तेज रफ्तार खबरों की दुनिया की है, उसी के मुताबिक रोजाना समाचार चैनलों की प्राथमिकता में भी बदलाव होते हैं। अगर अमेरिका-ब्रिटेन में खराब मौसम और हिमपात या तूफान की तबाही से जुड़ी खबरें आ रही हों, तो आधे घंटे का बुलेटिन भी उन पर आधारित हो सकता है। अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के दिन अंग्रेजी तो छोड़िए, हरेक हिंदी समाचार चैनल पर भी ओबामा की जीत का जश्न मनाया जा रहा था। अमेरिका से भारत के हित जुड़े हैं, बड़ा भारतीय समुदाय अमेरिका में बसा है, लिहाजा वहां की खबरों पर भी निगाहें रहती ही हैं। पाकिस्तान में आतंकवाद और राजनीतिक घटनाक्रम से जुड़ी खबरें तो अक्सर हेडलाइन में रहती हैं। इराक और अफगानिस्तान में जंग और आतंकवाद से जुड़ी खबरें हों, या मिस्र और सीरिया में बगावत और अरब स्प्रिंग से जुड़ी खबरें, किसी न किसी तरीके से भारतीय चैनलों पर जरूर दिखाई जाती हैं। चीन से भारत की तनातनी चलती है, लेकिन हमारे चैनलों पर चीन में हिमपात, हादसों, रेस्क्यू ऑपरेशन यानी मानवीय मुद्दों से जुड़ी ज्यादा खबरें देखी जाती हैं। हमारे राष्ट्रीय समाचार चैनलों की प्राथमिकता में देश की राजनीति और देश में होनेवाली घटनाओं की खबरें तो रहती हैं, क्योंकि उनमें दर्शकों की सहज दिलचस्पी होती है और उन्हें हासिल करने के लिए संसाधन भी आसानी से सुलभ रहते हैं। पड़ोसी देशों की खबरों में भी दिलचस्पी सहज है। लेकिन चिली या पेरु में ज्वालामुखी या कुदरती आफत की दहलानेवाली तस्वीरें मिल रही हों, तो हमारे चैनल आधे घंटे का कार्यक्रम उन पर दिखाने का लालच नहीं छोड़ते क्योंकि जो तस्वीरें दर्शकों के दिलो-दिमाग पर छा जाएं, उन्हें नहीं दिखाना तो अपराध होगा ना। हार्ड न्यूज़ को छोड़ दें, तो अंतरराष्ट्रीय खबरों का बड़ा हिस्सा रोचक खबरों का भी होता है। दुनिया के तमाम रंग हमें इन खबरों में देखने को मिलते हैं, कहीं पिलो फाइट दिखती है, तो कहीं वाइफ कैरीइंग कॉम्पीटिशन या फिर कहीं तरह-तरह की चॉकलेट या 100 किस्म के केक की नुमाइश और कहीं टमाटरों की होली का टोमैटिनो फेस्टिवल– दुनिया के ये अजब-गजब रंग हमें रॉयटर्स और APTV  से मिलने वाली समाचार फीड्स में मिलते हैं, जिन पर आधे-आधे घंटे के कार्यक्रम पेश किए जा चुके हैं। जाहिर है, समाचार चैनलों की प्राथमिकता समय और परिस्थितियों के हिसाब से मिलनेवाली खबरों से तय होती है। ऐसे में ये जरूर तय करना पड़ता है कि कौन सी अंतरराष्ट्रीय खबर कब औऱ किस रूप में दिखाई जाए। यह संपादकीय नीति पर निर्भर करता है और इसी के आधार पर अंतरराष्ट्रीय स्रोतों से मिलनेवाली खबर जनित सामग्रियों का इस्तेमाल भी समाचार चैनलों में किया जाता है। टीवी के खबरनवीशों में खबर को सूंघने, उन्हें पकड़ने औऱ पेश करने की जो क्षमता होती है, उन्हें उसका इस्तेमाल अंतरराष्ट्रीय खबरों के मामले में जरूर करना चाहिए, ताकि उनका दर्शक वर्ग दुनिया के किसी अनोखे रंग और किसी बड़ी खास खबर से महरूम न रह जाए। इसी में आपकी पेशेवर क्षमता के इस्तेमाल की सार्थकता है।
-          कुमार कौस्तुभ
14.04.2013, 1.41 PM


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