Thursday, April 18, 2013

हेडलाइन की डेडलाइन




हेडलाइन का मतलब है प्रमुख समाचार। टेलीविजन में ये जुमला अखबार से ही आया है। लेकिन माध्यम अलग होने की वजह से इसका स्वरूप अलग है और पेश करने के तरीके भी। आम तौर पर सभी समाचार चैनलों में प्रमुख समाचार बुलेटिन्स या कार्यक्रमों की शुरुआत में दिखाए जाते हैं और कोशिश ये होती है कि घड़ी की सुई के साथ ही हेडलाइन भी समय पर टीवी स्क्रीन पर हिट हों। लिहाजा हेडलाइन की डेडलाइन हर आधे घंटे की शुरुआत में तय रहती है और इसी के हिसाब से बुलेटिन प्रोड्यूसर्स को अपनी तैयारी करनी होती है। ऐसे में बड़ी सावधानी और सजगता के साथ साथ तेजी से दिमाग के इस्तेमाल की क्षमता भी जरूरी है।
टेलीविजन समाचार के रोज बदलते दौर में हेडलाइन की परंपरा ही शायद सबसे पुरानी है, जो अब तक चली आ रही है। हेडलाइन्स के प्रसारण का ढर्रा बंधा-बंधाया है और इसके ढांचे में बदलाव की गुंजाइश आमतौर पर नहीं दिखती। लेकिन हरेक समाचार चैनल पर इसे अलग तरीके से पेश करने की कोशिश होती है। ये बदलाव ग्राफिक्स और म्यूजिक के स्तर पर सबसे ज्यादा दृष्टिगोचर होते हैं। कहीं स्क्रीन पर फुल फ्रेम तस्वीरों और इंट्रो पट्टी के साथ हेडलाइन खबरें दिखाई जाती हैं तो किसी चैनल पर आकर्षक बॉक्स में। हेडलाइंस के जरिए जैसे समय विशेष की सबसे बड़ी और प्रमुख खबरों का गुलदस्ता पेश किया जाता है। कुछ इसी मानसिकता के तहत हेडलाइंस के ग्राफिक्स भी बड़े आकर्षक बनाए जाते हैं और इनमें आमतौर पर वही म्यूजिक़ भी इस्तेमाल किया जाता है, जो चैनल का सिग्नेचर ट्यून हो। हालांकि कुछ टीवी चैनलों पर हेडलाइन्स के साथ धमाकेदार और तेज़ म्यूजिक पेश करने की भी परंपरा है, जिसका मकसद दर्शकों को इसकी धमक से रू-ब-रू करवाना होता है।
हेडलाइंस सिर्फ प्रमुख खबरों का गुलदस्ता भर ही नहीं होते, ये आनेवाले बुलेटिन की झलक भी पेश करते हैं। आमतौर पर ऐसा माना जाता है कि जिन खबरों को हेडलाइन में शामिल किया गया है, उन्हें बुलेटिन में जरूर विस्तार से दिखाया जाएगा। ऐसे में हेडलाइन के जरिए भी दर्शकों को बांधने की कोशिश होती है। हालांकि टेलीविजन समाचार के कुछ दिग्गजों का ये भी मानना है कि हेडलाइन के जरिए भी खबर ही पेश की जाती है, तो जिन खबरों को हेडलाइन में लिया गया है, उनको फिर से बुलेटिन में दोहराने का कोई औचित्य नहीं। लेकिन ये तर्क आमतौर पर चुनिंदा एक-दो खबरों पर लागू हो सकता है, जब बुलेटिन में खबरों को विस्तार से दिखाने के लिए समय की कमी हो। ऐसे में ये मान लिया जाता है कि जो खबर हेडलाइन में ले ली गई, वो बुलेटिन प्रोड्यूसर से अछूती नहीं रही यानी उसे चैनल पर रजिस्टर कर लिया गया है। आजकल 10 बड़ी खबरों के ढांचे में भी हेडलाइन दिखाने का रिवाज शुरु हो चला है, ऐसे में हेडलाइंस खुद भी संक्षिप्त बुलेटिन का स्वरूप अख्तियार करने लगी हैं जिससे खबरों को आगे फिर से उसी रूप में बगैर किसी अतिरिक्त जानकारी या वैल्यू एडिशन के ही दिखाना, उन्हें चंद मिनटों के अंदर दोहराने जैसा ही लगता है, जिससे बचने की जरूरत महसूस की जाती है।  
हेडलाइंस में चुनिंदा सबसे बड़ी खबरें ही शामिल करने की परंपरा रही है, ऐसे में अमूमन 3 से लेकर 5 या 6 प्रमुख खबरों को प्राथमिकता के क्रम में चुन लिया जाता है। लेकिन किस खबर को प्राथमिकता क्रम में सबसे ऊपर रखा जाए और किसे नीचे- ये तय करना भी आसान नहीं है। चलन के मुताबिक, ऐसा माना जाता है कि हार्ड खबरें हेडलाइन में ऊपर हों और सॉफ्ट किस्म की खबरें नीचे। लेकिन हार्ड खबरों में किसी बड़े हादसे या हंगामा की खबर पहले रहेगी या फिर राजनीतिक घटनाक्रम या कारोबार से जुड़ी- ये तो खबर की सामयिकता से ही तय होगी। किसी घंटे अगर राजधानी में या मुंबई में किसी हादसे में 9 लोगों के मरने की ताजा खबर आए तो उसे हेडलाइन में सबसे पहले रखा जा सकता है और राजनीतिक दांव-पेंच से जुड़ी खबर नीचे जा सकती है। वहीं, अगर किसी बड़े ऐसे क्रिकेट मैच का नतीजा अभी अभी आया हो, जिसमें दर्शकों की दिलचस्पी ज्यादा हो, तो उसे पहली खबर बनाया जा सकता है, भले ही अगले घंटे वो पांचवीं खबर हो जाए। ऐसे में हेडलाइन के लिए खबरों का चयन काफी सूझ-बूझ और सोच-विचार से होना चाहिए, लेकिन इस प्रक्रिया में हेडलाइन की डेडलाइन नहीं भूलनी चाहिए, क्योंकि देर हुई, तो हेडलाइन ड्रॉप होने का खतरा रहता है। कई समाचार चैनलों पर हेडलाइन प्रायोजित होती हैं, लिहाजा उन्हें ड्रॉप करना चैनल के कारोबारी हित को प्रभावित कर सकता है, इसका ध्यान जरूर रखा जाना चाबिए।
हेडलाइन में खबरों की भाषा ऐसी रखी जाती है ताकि एंकर आसानी से, पूरी लय में और तेज गति में पढ़ सके। सामान्यतः हेडलाइन की पंक्ति सीधी-सपाट नहीं होती, उन्हें दो लाइनों में तोड़ा जाता है और भाषा में ऐसा मोड़ दिया जाता है, जिसमें तुकबंदी भी हो, और जो सुनने में अच्छी लगे और पूरी खबर भी जाहिर कर दे। पूरी खबर को 2 लाइन में समेटना भी बड़ी चुनौती है। हालांकि सही तौर पर देखें तो खबर सिर्फ एक ही लाइन की मानी जाती है, बाकी सब उससे जुड़ी जानकारियां होती हैं। लेकिन बड़ी जानकारी को भी हेडलाइन में खबर के तौर पर समाहित करने का लोभ अक्सर हेडलाइन लिखनेवाले नहीं छोड़ पाते, जिससे लाइन बड़ी होने का खतरा रहता है। वैसे एबीपी न्यूज़ और ज़ी न्यूज़ जैसे चुनिंदा चैनलों पर इन दिनों हेडलाइन को सीधी-सपाट भाषा में और तीन-चार लाइनों की स्क्रिप्ट में पेश करने का चलन दिख रहा है। इन हेडलाइन्स में खबरों से जुड़ी पट्टियां भी एक के बजाय दो-दो दिखती हैं। मकसद वही है, कि खबरों को पूर्ण रूप में पेश किया जाए। लेकिन ये चलन हेडलाइंस को सबसे अलग दिखाने के अलावा और किसी हद तक सफल नहीं दिखता क्योंकि अगर हेडलाइन के बाद बुलेटिन आनेवाला हो, या फिर खबरों पर आधारित ही कोई और कार्यक्रम , तो हेडलाइन की लाइन रिपीट होना लाजिमी है।  भारतीय समाचार टेलीविजन संक्रमण के दौर से गुजर रहा है, ऐसे में प्रयोगों का सिलसिला जारी है। हेडलाइंस के निर्माण में भी एकाधिक प्रयोग बराबर दिखते हैं। इन प्रयोगों के तहत हेडलाइंस को हेडलाइंस कहने की परंपरा बदलने की भी होड़ दिख रही है। कुछ चैनल अभी भी हेडलाइन को हेडलाइन का ही शीर्षक देते हैं, तो कुछ चैनल इस वक्त की बड़ी खबरें’, ‘बड़ी खबरें’, ‘प्रमुख खबरें’, प्रमुख समाचार’, ‘बड़ी खबर’, ‘8 बजे की बड़ी खबरेंजैसे अलग-अलग जुमलों से इसे परिभाषित करते दिखते हैं। मूल भावना एक ही है, लेकिन कलेवर बदले दिखते हैं।
हेडलाइंस में प्रमुख खबरें दिखाने के लिए छोटी पंक्तियों, सरल भाषा का इस्तेमाल होता है, और ग्राफिक्स में इस्तेमाल होनेवाले टेक्स्ट का आकार आम पट्टियों के टेक्स्ट के आकार से काफी बड़ा होता है। बड़े आकार वाले टेक्स्ट का चलन भी अखबार से उधार लिया गया है। जैसे अखबारों में पहले पन्ने पर सबसे ऊपर एक या दो हेडलाइंस के टाइटिल टेक्स्ट या हेडर बड़े फांट में लिखे जाते हैं, वैसे ही टीवी की हेडलाइंस को और खबरों से अलग करने के लिए बड़े फांट का इस्तेमाल होता है। लेकिन अखबारों में जहां रोज ये तय करने की छूट होती है कि आप हेडलाइन के रूप में एक ही खबर लें, या दो या तीन, वहीं, टेलीविजन समाचार में 3, 5 या 6 या 8 या 10 हेडलाइंस लेने का चलन है। सवाल है कि ऐसे में अगर कोई एक ही खबर घंटे की सबसे बड़ी खबर हो, तो दूसरी कम महत्व वाली खबरों को भला उसके साथ कैसे तोलेंगे और कैसे साथ बिठाएंगे या फिर क्या खबरिया नजरिए से हल्की खबरों को भी नंबर पूरे करने के लिए हेडलाइन में शामिल करने की मजबूरी बरकरार रहेगी? ऐसी समस्या अक्सर पेश आती है। ऐसे में दो स्थितियां पैदा होती हैं, एक तो ये जिसकी बात अभी हमने की यानी एक बड़ी खबर के साथ 4 और साइड की खबरें भी हेडलाइन में शामिल हों। वहीं दूसरी स्थिति ये भी है कि एक जो सबसे बड़ी खबर है, उसके महत्वपूर्ण हिस्सों को 2 या 3 या 5 बड़ी खबरों में बांटकर पांच हेडलाइंस का गुलदस्ता सिर्फ एक ही अहम खबर पर केंद्रित कर लें। विजुअल मिलते-जुलते होने और पट्टियों में खबर का सारांश होने से बड़ी खबर की बड़ी अहमियत भी बरकरार रहेगी और संतुलन बनाए रखने में भी कामयाबी मिलेगी। दोनों ही स्थितियों का प्रयोग अक्सर चैनलों पर दिखता है। लेकिन हेडलाइंस संतुलित हों, ऐसा हमेशा देखने को नहीं मिलता। ऐसा भी माना जाता है कि हेडलाइंस बुलेटिन का सार-संक्षेप होते हैं, उनकी झलक पेश करते हैं। लिहाजा बुलेटिन में शामिल किए जानेवाली हर प्रमुख खबर हेडलाइन में भी हो, इसके पक्ष में तर्क दिए जाते हैं, लेकिन खबरों की प्रासंगिकता औऱ ताजगी के लिहाज से ये तर्क फिट नहीं बैठता। किसी खबर से जुड़ा दिलचस्प आइटम बुलेटिन में चार चांद लगा सकता है, लेकिन हेडलाइन के लिहाज से वो बासी हो सकता है, इसका ध्यान रखा जाना बेहद जरूरी है। हेडलाइंस संतुलित रहें, इसके लिए ये जरूरी माना जाता है कि उनमें घंटे की सबसे बड़ी खबरों के साथ, राजनीति, मेट्रो, कारोबार, अंतरराष्ट्रीय, खेल और मनोरंजन से जुड़ी बड़ी खबरें भी शामिल हों। सुबह या रात के बुलेटिन्स की हेडलाइंस में इस तरह का संतुलन रखना जरूरी माना जाता है क्योंकि दर्शकों की जिज्ञासा हर क्षेत्र की खबर जानने में होती है। लेकिन हमेशा ऐसा करना संभव नहीं होता और समय और परिस्थितियों के मुताबिक खबर की प्रासंगिकता तय होती है जिससे हेडलाइंस भी निर्धारित होती हैं।
खबरों को तेजी से दिखाने की होड़ के इस दौर में हेडलाइंस भी समाचार पेश करने का एक अहम जरिया बन चुकी हैं। इनका मकसद सिर्फ प्रमुख खबरों को दिखाने तक ही नहीं सीमित है, वरन घंटे की सबसे ताजातरीन खबर को भी पेश करने का उद्देश्य इसके जरिए अक्सर पूरा किया जाता है, जबकि खबर का विंडो यानी बुलेटिन प्रसारित करने का स्लॉट नहीं होता या फिर बुलेटिन में जगह नहीं होती। जैसा कि हेडलाइन के शाब्दिक अर्थ से ही जाहिर है, इस ढांचे में किसी खबर को शामिल किए जाने का ही मतलब है कि उसकी अहमियत बढ़ जाती है। खबरिया नजरिए ये या किसी और वजह से किसी जानकारी को खबर बनाने के लिए भी कई बार उसे हेडलाइन में शामिल किया जाता है ताकि वो जानकारी खबरों से जुड़े लोग और आम दर्शकों की नजर पर चढ़े। ये बात कई बार प्लांटेड खबरों या सियासी बयानबाजी के मामले में किसी व्यक्ति विशेष को अहमियत देने के मामलों में भी देखी जाती है ऐसे में हेडलाइंस में दिखाई गई कोई खबर खबर के पैमाने पर कितनी खरी उतरती है, इसका अंदाजा दर्शक और मीडिया से जुड़े लोग खुद लगा सकते हैं।
समाचार चैनलों में हेडलाइंस लिखने का काम आमतौर पर न्यूज़ डेस्क के प्रभारी या वरिष्ठ जनों या फिर ऐसे लोगों पर होता है, जिनकी भाषा अच्छी और घुमावदार हो, और खबर पर बेहतरीन पकड़ हो। हेडलाइंस लिखने में भाषा के खेल का खास ख्याल रखना होता है, ताकि खबरें तेज़ तर्रार और धारदार तरीके से लय में पेश की जा सकें। यही बात हेडलाइंस की पट्टियों पर भी लागू होती है। चुंकि पट्टियों में शब्दों की सीमा होती है, लिहाजा दो से तीन शब्दों में पूरी खबर बयान करनी पड़ती है। यानी पूरे वाक्य की जगह चंद सार्थक जुमले इस्तेमाल करके खबर बताने की समझ हेडलाइन लिखनेवाले में होनी चाहिए। अभ्यास और दिमागी सजगता के जरिए ही हेडलाइंस लेखन पर पकड़ बनाई जा सकती है।  
टेलीविजन समाचार प्रसारण में समय की अहमियत सबसे ज्यादा है। यहां सब कुछ घड़ी के मुताबिक चलता है और किसी भी स्तर पर देर और लेटलतीफी बर्दाश्त नहीं की जाती। जैसा कि सभी जानते हैं, समाचार बुलेटिन्स और कार्यक्रमों के समय पहले से तय होते हैं और 24 घंटे की व्हील में एक के बाद एक तमाम बुलेटिन और कार्यक्रमों के प्रसारण की तैयारी होती है। आज के दौर में चुंकि ज्यादातर समाचार चैनलों पर सीधा प्रसारण यानी लाइव प्रसारण होता है, लिहाजा हरेक स्लॉट में समय का प्रबंधन काफी बड़ी चुनौती है। ऐसे में हेडलाइन समय पर पेश करना न्यूज़ डेस्क के सबसे अहम कामों में से एक है। टेलीविजन समाचार में हेडलाइंस तैयार करने का मतलब सिर्फ खबरों का टेक्सट लिखने और ग्राफिक्स की पट्टियां तैयार करने से ही नहीं है। हर खबर के साथ और हेडलाइन की भावना, उसके हर शब्द के हिसाब से उचित विजुअल भी दिखे इसका खास ख्याल रखना पड़ता है। यहां जिम्मेदारी पैनल कंट्रोल रूम की बढ़ जाती है, कि वो लाइन के मुताबिक विजुअल इस्तेमाल करें और न होने पर उसकी मांग करें। हालांकि समाचारों की भागमभाग में इसका ध्यान रख पाना अक्सर संभव नहीं होता, लिहाजा न्यूज़ डेस्क से ऐसी उम्मीद की जाती है कि वो हेडलाइंस के हिसाब से विजुअल मुहैया कराएं। आजकल हेडलाइंस में कई प्रयोग हो रहे हैं। मसलन बयान पर आधारित खबर को सपोर्ट करने के लिए बयान के हिस्से चंद सेकेंड अपसाउंड करके सुनाना या फिर हंगामे या सॉफ्ट खबर में दिलचस्पी बढ़ाने वाले नेचुरल एंबिएंस को अपसाउंड करके इस्तेमाल करना। ये सारी प्रक्रिया पैनल कंट्रोल रूम की सक्रियता से साकार हो सकती है, बशर्ते उन्हें पहले से इसके लिए जरूरी निर्देश हों, या फिर वो अपने विवेक का उचित इस्तेमाल करें। हेडलाइंस में प्रयोगों का मकसद दर्शकों को खबरों से रू-ब-रू कराना और खबरों को प्रमोट करना भी है ताकि दर्शक हेडलाइन की खबर देखकर आगे उसे विस्तार से देखने के लिए रुक सके। ऐसे में हेडलाइंस में खबरों को चतुराई और इनोवेटिव तरीके से पेश करने की कोशिश होनी चाहिए। हेडलाइंस सिर्फ बुलेटिन का मुखड़ा भर नहीं होते, कई समाचार चैनलों में इन्हें खबरों के wrap up के लिए सार-संक्षेप के रूप में भी पेश किया जाता है मसलन –चलते-चलते अभी तब की बड़ी खबरें एक बार फिर देख लें’ – ऐसे में हेडलाइंस को समय-समय पर अपडेट किए जाने की जरूरत बढ़ जाती है। इसके लिए जरूरी है खबरों पर नजर बनी रहे, ताकि कोई भी अपडेट आए तो सबसे पहले उसे आनेवाली हेडलाइन में शामिल किया जा सके या कोई और बड़ी खबर आए तो उसे भी हेडलाइन में लिया जा सके। बुलेटिन का हिस्सा होते हुए भी हेडलाइन का अलग स्वरूप है, उससे जुड़ी दर्शकों की संवेदना भी है। हेडलाइंस में मामूली गलती या उसके बासी महसूस होने से दर्शकों पर उसका विपरीत असर पड़ सकता है और इसकी सीधी प्रतिक्रिया चैनल की छवि बना या बिगाड़ सकती है। ऐसे में हेडलाइंस के मामले में समझौतों से बचने की जरूरत है और खास सतर्कता होनी चाहिए।
-कुमार कौस्तुभ
18.04.2013, 5.00 PM

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