अल कायदा का सरगना ओसामा बिन लादेन मारा गया।
आइसिस के सरगना बग़दादी के भी मारे जाने की खबर आई।
हमास का सरगना इस्माइल हानिया भी मारा गया।
और अब लेबनान के आतंकी संगठन हिज्बुल्लाह के सरगना हसन नसरल्लाह को भी मार गिराने का दावा इज़रायल की सेना ने किया है।
पिछले एक साल से इज़रायल हमास का सफाया करने में जुटा है। इस लड़ाई में हिज्बुल्लाह कूदा तो उसका भी समूल खात्मा करना इज़रायल की सेना की प्राथमिकता बन गया। उधर यमन के हूती आतंकी भी इज़रायल को लगातार चुनौती दे रहे हैं।
लेकिन सवाल यह है कि हमास के खिलाफ एक साल से चल रही जंग का क्या नतीजा निकला? कुछ कमांडर भले ही मारे गए लेकिन हमास की कमर नहीं टूटी, उसका नेटवर्क अभी भी जिंदा है। अब हिज्बुल्लाह का क्या होगा कहना मुश्किल है और हूती भी दूर हैं।
इनसे पहले न तो ओसामा के मारे जाने से अल कायदा का नामोनिशान मिटा और ना ही बग़दादी के मारे जाने से आइसिस का। पाकिस्तान के भी हज़ारों आतंकी मार गिराए गए अब तक लेकिन वहां पनप कर फैल चुके आतंकवाद को भी मिटा पाना मुमकिन नहीं लगता।
तो सवाल यह है कि क्या ऐसे तत्वों के खिलाफ कार्रवाई नहीं होनी चाहिए ताकि दूसरे पीड़ित पक्ष पर कथित मानवता के हक में खून-खराबे का आरोप न लगे? या फिर ग़ाज़ा में इज़रायल या कश्मीर में भारत की आतंकियों के विरुद्ध कार्रवाई को जायज माना जाए? मानना ही होगा क्योंकि आत्मरक्षा के लिए इन देशों ने हथियार उठाए या सर्जिकल स्ट्राइक की तो इसमें कुछ भी ग़लत नहीं है।
लेकिन सवाल यही है कि आतंकवाद कैसे मिटेगा? तो इसका उत्तर यही हो सकता है कि जो देश आतंकियों को शह, समर्थन और पनाह देते हैं, सबसे पहले एक्शन तो उन्हीं पर होना चाहिए। भारत की ओर से संयुक्त राष्ट्र और वैश्विक मंचों पर यह बात खुल कर कहीं जा चुकी है लेकिन अपने अपने स्वार्थ के वशीभूत तमाम देशों में इस बात को मानने और इस दिशा में कदम उठाने की इच्छा शक्ति ही नहीं है। यही कारण है कि आतंकवाद रक्तबीज के समान बार-बार जन्म लेकर फन फैलाता जाता है और दुनिया की बेकसूर जनता उसके दंश का शिकार होती जाती है। यह सिलसिला यूं ही चलता रहेगा और शांति की बातें होती रहेंगी।© कुमार कौस्तुभ
No comments:
Post a Comment