अपनी अमेरिका यात्रा के दूसरे दिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी न्यूयॉर्क के नसाउ कोलोसियम में प्रवासी भारतीयों, भारतीय मूल के लोगों और भारतवंशियों को संबोधित करने वाले हैं। इस बार मोदी की अमेरिका यात्रा में यह उनका मेगा शो होगा जिसमें 15 हजार से अधिक लोगों के भाग लेने की संभावना है। पीएम मोदी के इस कार्यक्रम की तैयारी लंबे समय से चल रही थी और इसको लेकर वहां के लोगों में उत्साह की सीमा नहीं है। और हो भी क्यों नहीं, आखिर प्रवासी भारतीयों को अपने मूल देश के प्रधानमंत्री से मिलने, बात करने और उनसे रूबरू होने का मौका जो मिलने वाला है।
दरअसल यह पहला मौका नहीं है जब प्रधानमंत्री अमेरिका में प्रवासी भारतीयों से मुखातिब होने जा रहे हैं। 2014 में जब मोदी प्रधानमंत्री बने तब से अब तक न केवल अमेरिका बल्कि जितने देशों की यात्रा पर वो जाते रहे हैं तो भारतवंशी लोगों से जरूर मिलते रहे हैं, चाहे एयरपोर्ट पर, होटल में या फिर विशेष रूप से आयोजित स्वागत समारोहों में वे भारतीय मूल के लोगों को संबोधित करते रहे हैं। और लोगों में भी उनसे मुलाकात को लेकर असीम उत्साह दिखता रहा है। हालांकि आलोचक मोदी के इस तरह के मेल-जोल और संबोधनों को उनके शो ऑफ के रूप में देखते रहे हैं। लेकिन सवाल है कि इसमें बुरा क्या है?
इससे इन्कार नहीं किया जा सकता है कि मोदी से पहले भी अन्य प्रधानमंत्री भारतवंशियों से जरूर मिलते रहे होंगे, ये बात और है कि पुराने जमाने में मीडिया का इतना जोर नहीं था जिसके कारण इस तरह के कार्यक्रमों का प्रचार प्रसार संभव नहीं था। अब समय बदल चुका है तो मोदी जहां भी जाते हैं वहां प्रवासी भारतीयों से उनके मेल-जोल की हर तस्वीर तुरंत सामने आ जाती है। कहीं मोदी ऑटोग्राफ़ देते नजर आते हैं तो कहीं बच्चों को दुलारते और कहीं लोगों के बीच ढोल भी बजा लेते हैं। इसके पीछे मोदी की लोगों से घुलने-मिलने की भावना और लोगों से मिलने में उनकी हद से ज्यादा दिलचस्पी ही कहीं जाएगी, जो शायद पिछले प्रधानमंत्रियों में नहीं रही होगी या रही भी होगी तो उसका वैसा मुजाहिरा नहीं हो पाता था।
सवाल ये भी है कि आखिर अपना वतन छोड़कर दूर देश में नौकरी चाकरी करने प्रवासी भारतीयों में मोदी से मिलने की दिलचस्पी क्यों रहती है? आखिर पीएम मोदी उन्हें क्या देते हैं या दे सकते हैं जिसके कारण वे मोदी के स्वागत, उनसे मिलने के लिए पलक पांवड़े बिछाए रहते हैं? यह भी अंततः भावनात्मक मुद्दा ही है जिसकी वजह से मॉरिशस, फ़िजी और ट्रिनिडाड टोबैगो जैसे देशों से आज भी लोग अपनी जड़ें तलाशने भारत आते रहते हैं। वहीं पीएम मोदी जब किसी देश की यात्रा पर जाते हैं तो वहां रहने वाले भारतवंशियों को न केवल स्वदेश के गौरवशाली अतीत की याद दिलाते हैं बल्कि देश में आधुनिक युग में आ रहे बदलावों से भी अवगत कराते हैं। कुछ लोग इसे विश्व में अपनी इमेज बिल्डिंग की मोदी की कोशिश भी मानते हैं, लेकिन सवाल यह है कि आखिर इससे मोदी को क्या फायदा होता है या होने वाला है? क्या इससे मोदी के वोट बैंक में बढ़ोतरी होती है? अगर ऐसा होता तो दूसरे नेता भी इसकी कोशिश कर सकते थे, लेकिन वे ऐसा नहीं कर पाते क्योंकि पीपल कनेक्ट यानी लोगों से जुड़ने की जो कला मोदी जानते हैं, वो शायद किसी और के बस की बात नहीं! मोदी का यह प्रवासी प्रेम अनूठा है, लेकिन यह भी गौर करना चाहिए कि आम लोगों से कनेक्ट करने में माहिर मोदी केवल विदेश में ही लोगों से इस तरह खुलकर नहीं मिलते, बल्कि देश में भी उनकी यही प्रकृति दिखती है। स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस समारोहों से लेकर तमाम सार्वजनिक कार्यक्रमों में मोदी की बार प्रोटोकॉल तोड़कर आम लोगों से मिलते दिखते हैं क्योंकि यह उनका स्वभाव है, इसमें कुछ भी बनावटी नहीं है, सब कुछ नेचुरल है!© कुमार कौस्तुभ
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