अमेरिका यात्रा पर जा रहे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के एजेंडे में सबसे ऊपर डेलवेयर में होने वाली क्वाड की बैठक है। २१ सितंबर को क्वाड की बैठक की मेजबानी अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन करने वाले हैं। भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री इसमें भाग लेंगे। क्वाड की इस तरह की यह चौथी बैठक होगी जिसमें चारों देशों के शीर्ष नेता शामिल होने जा रहे हैं।
क्वाड का अर्थ है क्वाड्रिलैटरल सिक्योरिटी डायलॉग यानी चार देशों के बीच सुरक्षा संबंधी मामलों पर संवाद। इसका उद्देश्य हिन्द-प्रशान्त क्षेत्र में सुरक्षा और स्थिरता से जुड़े मुद्दों पर विचार-विमर्श करना है ताकि इस क्षेत्र में चीन के दबदबे को बढ़ने से रोका जा सके और समुद्री मार्ग से व्यापार सुचारू रूप से चल सके। इस मायने में अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया की जापान और भारत के साथ चौकड़ी बेहद जरूरी और महत्वपूर्ण है जबकि जापान और भारत की अपनी सुरक्षा संबंधी चिन्ताएं भी इससे जुड़ी हैं क्योंकि ये दोनों न केवल एशिया के दिग्गज देश हैं बल्कि चीन के निकट पड़ोसी भी हैं। तो समुद्री क्षेत्र में चीन की गतिविधियों के लिहाज से यह स्थिति भू-राजनीतिक दृष्टि से बहुत अहम है, क्योंकि जब अमेरिका-ऑस्ट्रेलिया-जापान और भारत यानी क्वाड के चार यार एक साथ बैठकर चर्चा करते हैं तो चीन की भौंहें तन जाती हैं और उसे लगता है कि उसके खिलाफ कोई नई रणनीति बनाई जा रही है, जो स्वाभाविक भी है क्योंकि आखिरकार चीन इन चारों देशों का मुख्य दुश्मन तो है ही। यही वजह है कि बीते वक्त में क्वाड देशों के समुद्री सैन्य अभ्यासों पर चीन ऐतराज भी जताता रहा है।
हालांकि गौरतलब यह भी है कि तमाम तरह की तनातनी और आपसी हितों के टकराव के बावजूद पिछले दिनों चीन-अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया-चीन के बीच द्विपक्षीय रिश्तों को सुधारने के प्रयास हुए हैं ताकि व्यापारिक हितों को नुक़सान न हो। वहीं, पिछले दिनों आपसी सहयोग के रास्ते खोलने के लिए जापान-चीन-कोरिया की त्रिपक्षीय वार्ता भी हुई। जबकि भारत के साथ चीन के संबंधों का स्तर मिला-जुला है। कई सामग्रियों के आयात में चीन पर भारत की निर्भरता कम करने के प्रयास हुए हैं तो साथ ही साथ सीमा पर चीन की चालों को नाकाम करने की भी कोशिश जारी है।
भले ही अमेरिका में इस बार क्वाड की बैठक हो रही है और अगले साल भारत इस बैठक की मेजबानी करने वाला है, लेकिन एक बात समझनी होगी कि इस संगठन के सभी देश अपना हित प्रथम की ही नीति पर चलेंगे। चारों देशों के नेताओं के एक साथ बैठ कर चीन पर मानसिक दबाव बढ़ाना इनकी सफलता मानी जा सकती है। वहीं यह भी ध्यान में रखना होगा कि क्वाड से भारत को क्या हासिल होता है। यह संगठन बेमानी इस मायने में नहीं कहा जा सकता है कि इसके जरिए इसके चारों सदस्य देशों के बीच बेहतर तालमेल बना है जिसके कारण रक्षा और व्यापारिक रिश्तों में बढ़ोतरी जरूर हुई है। परन्तु, यह भी देखना होगा कि क्वाड अभी चीन के लिए चुनौती भले ही पेश करता दिखे, पर इसकी सफलता तभी साबित होगी जब इसकी ताकत और रणनीति के समक्ष चीन घुटने टेक दे। इसके लिए भारत को हर हाल में महाशक्ति बनना होगा।© कुमार कौस्तु
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