Sunday, September 29, 2024

"मन की बात" के १० साल और रेडियो

(चित्र साभार गूगल)

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के रेडियो कार्यक्रम "मन की बात" के प्रसारण के दस साल पूरे हो गए हैं। यह कार्यक्रम ३ अक्टूबर २०१४ से हर महीने के अंतिम रविवार को सुबह 11 बजे हिंदी समेत विभिन्न भाषाओं में मूल रूप से आकाशवाणी-दूरदर्शन के नेटवर्क पर निरंतर (आम चुनाव की अवधि को छोड़कर) प्रसारित हो रहा है। इस तरह यह आकाशवाणी तक सबसे अधिक समय तक प्रसारित होने वाले चुनिंदा कार्यक्रमों में शुमार हो सकता है।
परन्तु, सवाल यह है कि इस कार्यक्रम की प्रासंगिकता क्या है? क्या यह रेडियो को आम लोगों से जोड़ने और उसकी पुरानी लोकप्रियता बहाल करने में मददगार साबित हुआ है? क्या इसके प्रसारण से आकाशवाणी को लाभ है या बस केवल प्रधानमंत्री का कार्यक्रम होने के कारण इसका प्रसारण जारी है? या फिर क्या यह कार्यक्रम जनता के जरूरी मुद्दों को सामने लाने में सक्षम रहा है? कार्यक्रम के नाम का उल्लेख करके विपक्ष के नेता अक्सर प्रधानमंत्री की आलोचना भी करते हैं। तो क्या उनकी आलोचना में दम है?
अप्रैल २०२३ में आई आई एम रोहतक की एक सर्वे रिपोर्ट के हवाले से भारत सरकार के पत्र सूचना कार्यालय ने जानकारी दी थी कि इस कार्यक्रम के श्रोताओं की संख्या १०० करोड़ पहुंच चुकी है जबकि इसके २३ करोड़ नियमित श्रोता हैं। 
यह भी जानकारी है कि शुरुआत में इस कार्यक्रम से आकाशवाणी को अच्छी कमाई हुई। हालांकि राज्यसभा से मिले आंकड़ों के आधार पर द प्रिंट की रिपोर्ट के अनुसार, इस कार्यक्रम के लिए विज्ञापनों से राजस्व 2017-18 में 10.64 करोड़ रुपये था, लेकिन 2020-21 में यह घटकर 1.02 करोड़ रुपये रह गया। 2018-19 और 2019-20 में, राजस्व 7.47 करोड़ रुपये और 2.56 करोड़ रुपये था। वहीं एक आरटीआई आवेदन के जवाब में जानकारी मिली कि आकाशवाणी को २०१४ से २०२२ तक कार्यक्रम के निर्माण पर कुल ८.३ करोड़ रुपए खर्च करने पड़े जबकि इस अवधि में इससे ३५.२८ करोड़ रुपए की शानदार कमाई भी हुई यानी २७ करोड़ का फायदा! तो ऐसा नहीं कहा जा सकता कि सरकार जनता के पैसे का दुरुपयोग कर रही है!
कार्यक्रम के नाम और प्रधानमंत्री की प्रस्तुति से भले ही ऐसा लगता हो कि इसमें पीएम का मोनोलॉग होगा, लेकिन हकीकत में यह कार्यक्रम लोकोन्मुखी तो है ही। इसके निर्माण के लिए आम लोगों से सुझाव मांगे जाते हैं। 
इस वर्ष के ११४वें एपिसोड में तो प्रधानमंत्री ने कहा कि "श्रोता ही इस कार्यक्रम के असली सूत्रधार हैं...जब मैं मन की बात के लिए आई चिट्ठियों को पढ़ता हूं तो पता चलता है कि हमारे देश में कितने प्रतिभावान लोग हैं , उनमें देश और समाज की सेवा करने का कितना जज्बा है."
कार्यक्रम में समय-समय पर प्रधानमंत्री के साथ विभिन्न विषयों पर आम लोगों की बातचीत को भी शामिल किया जाता है जिससे यह पता चलता है कि इसमें केवल पीएम ही नहीं बल्कि आम जन के मन की बात भी प्रस्तुत होती है। 
हालांकि कहीं न कहीं यह कार्यक्रम देश के विकास पर केंद्रित है तो इसमें इससे जुड़ी सकारात्मक कहानियां ही ज्यादा मिलती हैं। लिहाजा नकारात्मक रुख रखने वालों की दिलचस्पी का कोई तत्व इसमें नहीं होता। लेकिन यदि लोग समाज और देश में बदलाव की दिलचस्प कहानियां सुनना चाहते हैं, तो उनके लिए यह एक अच्छा स्रोत है जो देश के कोने कोने में चल रही प्रेरणादायक गतिविधियों के बारे में जानकारी देता है। भले ही इसे सरकार या प्रधानमंत्री का प्रचार माना जाए, परन्तु यह कार्यक्रम रोचक है जिसकी बहुत जरूरत भी है।
प्रारंभिक दौर में प्रसार भारती के अलावा निजी टीवी चैनल भी इस कार्यक्रम का लाइव प्रसारण किया करते थे।  इससे पहले भी जनता से संवाद के लिए रेडियो का इस्तेमाल न केवल भारत बल्कि अमेरिका और दूसरे देशों में भी किया जाता रहा है। फर्क यह है कि "मन की बात" एकतरफा संबोधन नहीं है बल्कि ऐसा संवाद है जिसमें लोकतांत्रिक मूल्यों की झलक भी मिलती है। हां, इसे और लोकप्रिय और रोचक बनाने के लिए इसमें बदलाव होते रहने चाहिए ताकि लोगों की दिलचस्पी बरकरार रहे। 
© कुमार कौस्तुभ 

 






  

 

Saturday, September 28, 2024

आतंकवाद के रक्तबीज


अल कायदा का सरगना ओसामा बिन लादेन मारा गया। 
आइसिस के सरगना बग़दादी के भी मारे जाने की खबर आई।
हमास का सरगना इस्माइल हानिया भी मारा गया।
और अब लेबनान के आतंकी संगठन हिज्बुल्लाह के सरगना हसन नसरल्लाह को भी मार गिराने का दावा इज़रायल की सेना ने किया है।
पिछले एक साल से इज़रायल हमास का सफाया करने में जुटा है। इस लड़ाई में हिज्बुल्लाह कूदा तो उसका भी समूल खात्मा करना इज़रायल की सेना की प्राथमिकता बन गया। उधर यमन के हूती आतंकी भी इज़रायल को लगातार चुनौती दे रहे हैं। 
लेकिन सवाल यह है कि हमास के खिलाफ एक साल से चल रही जंग का क्या नतीजा निकला? कुछ कमांडर भले ही मारे गए लेकिन हमास की कमर नहीं टूटी, उसका नेटवर्क अभी भी जिंदा है। अब हिज्बुल्लाह का क्या होगा कहना मुश्किल है और हूती भी दूर हैं। 
इनसे पहले न तो ओसामा के मारे जाने से अल कायदा का नामोनिशान मिटा और ना ही बग़दादी के मारे जाने से आइसिस का। पाकिस्तान के भी हज़ारों आतंकी मार गिराए गए अब तक लेकिन वहां पनप कर फैल चुके आतंकवाद को भी मिटा पाना मुमकिन नहीं लगता।
तो सवाल यह है कि क्या ऐसे तत्वों के खिलाफ कार्रवाई नहीं होनी चाहिए ताकि दूसरे पीड़ित पक्ष पर कथित मानवता के हक में खून-खराबे का आरोप न लगे? या फिर ग़ाज़ा में इज़रायल या कश्मीर में भारत की आतंकियों के विरुद्ध कार्रवाई को जायज माना जाए? मानना ही होगा क्योंकि आत्मरक्षा के लिए इन देशों ने हथियार उठाए या सर्जिकल स्ट्राइक की तो इसमें कुछ भी ग़लत नहीं है। 
लेकिन सवाल यही है कि आतंकवाद कैसे मिटेगा? तो इसका उत्तर यही हो सकता है कि जो देश आतंकियों को शह, समर्थन और पनाह देते हैं, सबसे पहले एक्शन तो उन्हीं पर होना चाहिए। भारत की ओर से संयुक्त राष्ट्र और वैश्विक मंचों पर यह बात खुल कर कहीं जा चुकी है लेकिन अपने अपने स्वार्थ के वशीभूत तमाम देशों में इस बात को मानने और इस दिशा में कदम उठाने की इच्छा शक्ति ही नहीं है। यही कारण है कि आतंकवाद रक्तबीज के समान बार-बार जन्म लेकर फन फैलाता जाता है और दुनिया की बेकसूर जनता उसके दंश का शिकार होती जाती है। यह सिलसिला यूं ही चलता रहेगा और शांति की बातें होती रहेंगी।© कुमार कौस्तुभ 

Friday, September 27, 2024

लेबनान को बचाए भगवान!


इज़राइल और हिज्बुल्लाह के बीच अदावत अब ऐसी जंग का रूप लेती जा रही है जिसकी चपेट में पूरा लेबनान आ सकता है। यही वजह है कि एक एक करके तमाम देश अपने नागरिकों को लेबनान छोड़ने या वहां की यात्रा से परहेज़ करने का परामर्श दे रहे हैं। अमेरिका के बाद जापान ने भी अपने नागरिकों के लिए ऐसी एडवाइजरी जारी कर दी क्योंकि लेबनान की खूबसूरत राजधानी बेरूत अब इज़रायल के हमलों से धुआं धुआं हो रही है।
बीते १७ सितंबर से इज़रायल पर हिज्बुल्लाह के हमलों के बाद दोनों तरफ से हथियारों की आतिशबाजी का जो दौर चल रहा है वह थमता नहीं नज़र आ रहा है। इज़रायल ने युद्ध विराम के लिए अमेरिका और फ्रांस सहित तमाम देशों के प्रस्ताव ठुकरा दिए हैं जबकि लेबनान सरकार को इस जंग में देश का वजूद ही मिट जाने का खतरा नजर आ रहा है। लेबनान के विदेश मंत्री संयुक्त राष्ट्र में यह बात कबूल भी कर चुके हैं।
लेकिन, इज़रायल के हाथों पिटकर भी हिज्बुल्लाह के नेता झुकने को तैयार नहीं हैं। ऐसे हालात में लेबनान को तो अब भगवान ही बचाए! हमास के समर्थन में इज़रायल के साथ अपने देश को जंग में झोंक कर वे न जाने कौन सा किला फतह करना चाहते हैं। उधर, यमन के हूतियों का भी यही हाल है। इज़रायल को हर तरफ से घेरने की कोशिश में अशांति पसंद ये आतंकी गुट ने केवल अपने क्षेत्र बल्कि पूरे विश्व के लिए ऐसे नासूर बन चुके हैं जिनका जड़ मूल से नाश जरूरी है। © कुमार कौस्तुभ 

Thursday, September 26, 2024

महाशक्ति बनने की ओर भारत ?



- २०२७ से २०३० तक विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाने की उम्मीद 
- 2030 तक विश्व की तीसरी सबसे बड़ी सैन्यशक्ति बन जाने के आसार 
- २०४७ तक विकसित भारत बनाने का विजन
ये वो मुकाम हैं जिन्हें हासिल करने के लिए भारत लगातार प्रयत्न कर रहा है। इसी कड़ी में भारत की एक और सफलता एशियन पॉवर रैंकिंग में उसकी ताजातरीन स्थिति को लेकर सामने आई है।  ऑस्ट्रेलिया के थिंक टैंक लोवी इंस्टीट्यूट के एशिया पावर इंडेक्स २०२४ में भारत अब रूस और जापान को पीछे छोड़ते हुए एशिया में तीसरा सबसे शक्तिशाली देश बन गया है। केवल अमेरिका और चीन का स्थान इस रैंकिंग में भारत से ऊपर है। पिछले साल इस रैंकिंग में भारत को चौथे नंबर पर रखा गया था। इसका मतलब यह है कि भारत ने उन सभी क्षेत्रों में उल्लेखनीय प्रगति की है जिनके आधार पर सबसे ताकतवर देशों की रैंकिंग निर्धारित की जाती है। इस इंडेक्स में भारत ने पहली बार तीसरा स्थान हासिल किया है। यह इंडेक्स इस बात के आकलन पर आधारित है कि कोई देश किसी तरह के खतरे से निपटने में कितना सक्षम है। इसमें किसी भी देश की शक्ति को आंकने का पैमाना उसकी आर्थिक क्षमता, सैन्य क्षमता, भविष्य के संसाधन, आर्थिक साझेदारी, रक्षा नेटवर्क, कूटनीतिक और सांस्कृतिक प्रभाव पर आधारित है।  इन बिन्दुओं पर विचार के बाद ३९.१ अंक पाकर मामूली बढ़त के साथ भारत, जापान से आगे निकल गया।
लेकिन, इस इंडेक्स के आधार पर गौर करें तो भारत अभी महाशक्ति का तमगा हासिल करने से काफी दूर है क्योंकि भारत से ऊपर दूसरे नंबर पर चीन की रैंकिंग है जिसे ७२.७ अंक मिले और पहले नंबर पर अमेरिका है जिसे ८१.१ अंक मिले। वहीं भारत और जापान के बीच भी केवल ०.२ अंकों का फासला है। 
तो स्पष्ट है कि भारत हर क्षेत्र में प्रगति करके अपनी ताकत बढ़ाने का निरंतर प्रयास तो कर रहा है, परन्तु विश्व गुरु से विश्व महाशक्ति बनने के लिए अभी काफी कुछ करना होगा! © कुमार कौस्तुभ 

Tuesday, September 24, 2024

अमन का पैगाम और 'पुष्प' की अभिलाषा!


--(चित्र साभार गूगल)
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की तीन दिवसीय अमेरिका यात्रा संपन्न हो गयी है। उनकी इस यात्रा से क्या नतीजा निकला इसका विश्लेषण अभी चलता रहेगा। परन्तु, इस यात्रा में जिन तीन बड़े कार्यक्रमों में पीएम मोदी शरीक हुए उनमें उनके वक्तव्यों से मोटे तौर पर यही निकल कर सामने आता है कि मोदी ने दुनिया को एक बार पुनः शांति का संदेश दिया, समृद्ध और खुशहाल विश्व की कामना की तो साथ ही साथ विकसित भारत का वह रोड मैप भी पेश किया जिसके तहत २०४७ तक देश को अपेक्षित मुकाम पर वे पहुंचाना चाहते हैं।
२३ सितंबर को संयुक्त राष्ट्र के समिट ऑफ द फ्यूचर में मोदी के संबोधन की बात करें तो वहां उन्होंने साफ साफ कहा कि "मानवता की सफलता सामूहिक शक्ति में निहित है, युद्ध के मैदान में नहीं। ..वैश्विक शांति और सुरक्षा के लिए एक तरफ आतंकवाद जैसा खतरा है तो दूसरी तरफ साइबर, मेरीटाइम, स्पेस जैसे अनेक मैदान बन रहे हैं. इस सभी विषय़ों पर मैं जोर देकर कहूंगा, वैश्विक एक्शन और वैश्विक एंबिशन एक होना चाहिए. टेक्नोलोजी के इस्तेमाल के लिए बैलेंस रेगुलेशन की आवश्यकता है."
इससे पहले २१ सितंबर को क्वाड की बैठक में भी वे शांतिपूर्ण विश्व के निर्माण पर जोर देते दिखे और यही संदेश दिया कि "जब दुनिया तनाव और संघर्षों से जूझ रही है. इस स्थिति में, साझा लोकतांत्रिक मूल्यों के आधार पर क्वाड का एकजुट होना मानवता के लिए महत्वपूर्ण है. " 
वहीं २२ सितंबर को न्यूयॉर्क के नसाऊ कोलोसियम में प्रवासी भारतीयों को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने विकसित भारत के लिए अपनी नई संकल्पना प्रस्तुत की। यह संकल्पना PUSHP यानी "पुष्प" की है। इसे परिभाषित करते हुए पीएम मोदी ने कहा, 'आपको एक शब्द याद रहेगा 'पुष्प' (PUSHP)... कमल ही मान लीजिए. PUSHP को मैं परिभाषित करता हूं. P फॉर प्रोग्रेसिव भारत, U फॉर अनस्टॉपेबल भारत, S फॉर स्पिरिचुअल भारत, H फॉर ह्यूमैनिटी फर्स्ट को समर्पित भारत, P फॉर प्रॉस्परस भारत यानी PUSHP. पुष्प की पांच पंखुड़ियां मिलकर ही विकसित भारत बनाएंगी.'

पीएम मोदी ने यह भी स्पष्ट किया कि पहले भारत सबसे समान दूरी की नीति पर चला था जबकि अब भारत सबसे समान नजदीकी की नीति पर चल रहा है. यह गुटनिरपेक्षता का नया स्वरूप है जो अब भारत की विदेश नीति में झलक रहा है । 

कुल मिलाकर मोदी नीति का उद्देश्य न केवल भारत बल्कि पूरे विश्व में सबका साथ सबका विकास और सबका विश्वास है। यह दीगर बात है कि इसमें कहां तक कामयाबी मिलती है! © कुमार कौस्तुभ 

Monday, September 23, 2024

अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव - ट्रंप के पैंतरे


(चित्र साभार गूगल)
अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव के लिए मतदान में बमुश्किल ४० दिन बचे हैं। पूर्व राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप और वर्तमान उप राष्ट्रपति कमला हैरिस - दोनों ही नेता जोरशोर से चुनाव प्रचार अभियान में जुटे हुए हैं। खासतौर से ट्रंप इस बार के चुनाव में किसी भी तरह से जीत हासिल करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते। लेकिन चुनाव के नतीजों की भविष्यवाणी तो नहीं की जा सकती। तो कहीं न कहीं ट्रंप को यह डर भी सता रहा है कि उनको हार का सामना करना पड़ सकता है, क्योंकि हाल के दिनों में कमला हैरिस के प्रति समर्थन के रुझानों में इजाफा दिख रहा है। हालांकि शुरुआत में बेहद आक्रामक तेवर दिखाते हुए ट्रंप ने कमला हैरिस को कमजोर और खराब उम्मीदवार करार दिया था। लेकिन कौन उम्मीदवार मजबूत है और बेहतर है यह निर्णय तो अमेरिका के मतदाताओं को करना है। यही वजह है कि अब शायद ट्रंप को अपना दांव उलटा पड़ता दिख रहा है तो उन्होंने समर्थकों और मतदाताओं को संदेश दिया है कि वे यदि इस बार हार जाते हैं तो २०२८ का अगला चुनाव नहीं लड़ेंगे। संभव है इसके जरिए ट्रंप समर्थकों और मतदाताओं को इमोशनल ब्लैकमेल करना चाहते हों! 
राष्ट्रपति चुनाव में विजय के लिए ट्रंप अपने बयानों से लगातार पैंतरेबाजी करते आ रहे हैं। छात्रों को लुभाने के लिए वे उन्हें स्वतः ग्रीन कार्ड की व्यवस्था देने का वादा कर चुके हैं, तो गर्भपात कानून पर भी उनकी राय महिलाओं को रिझाने वाली रही है। भारतवंशियों का समर्थन हासिल करने के लिए वे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को विलक्षण व्यक्ति बता कर उनकी तारीफ कर चुके हैं तो यह जाहिर करने के लिए कि अमेरिका फर्स्ट की नीति पर बने रहेंगे, व्यापारिक मामलों में भारत पर नियमों के दुरुपयोग का भी आरोप लगा चुके हैं। ट्रंप ने मिशिगन में मुस्लिम समुदाय का समर्थन हासिल करने के लिए वहां के मेयर से एंडोर्समेंट लिया तो दूसरी तरफ यह भी एलान कर चुके हैं कि अगर वे हारे तो इसके लिए यहूदी जिम्मेदार होंगे और इज़राइल का नामोनिशान मिट जाएगा और वे जीते तो इज़राइल सुरक्षित रहेगा। बाकी टैक्स व्यवस्था, प्रवासी मामलों और जलवायु परिवर्तन जैसे मुद्दों पर तो ट्रंप का रुख जगजाहिर है ही!
कुल मिलाकर अब समय कम बचा है तो ट्रंप येन केन प्रकारेण अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए हर हथकंडा अपना रहे हैं। इतना ही नहीं अमेरिका के अरबपति कारोबारी रहे ट्रंप ने चुनावी माहौल में १०० डॉलर कीमत का अपना सिक्का भी जारी कर दिया ताकि मतदाताओं पर उनका सिक्का चले न चले, इस बहाने कुछ कमाई तो हो ही जाए!© कुमार कौस्तुभ 

Sunday, September 22, 2024

मोदी की अमेरिका यात्रा: क्या दिया, क्या हासिल किया ?

(चित्र साभार गूगल)
दिल्ली से डेलावेयर की प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अमेरिका यात्रा का पहला चरण सफलतापूर्वक संपन्न हो गया। सफलतापूर्वक कहने का अर्थ यह है कि यात्रा के पहले चरण में पीएम मोदी का जो एजेंडा था, उसमें उन्होंने कामयाबी हासिल की, ऐसा माना जा सकता है। शनिवार को दिल्ली से डेलावेयर पहुंचने पर पीएम मोदी का भव्य स्वागत हुआ। होना भी था क्योंकि वहां के जिस ड्यूपोंट होटल में वे ठहरे वहां उनके पहुंचने के वक्त भारतीय समुदाय के लोग पहले से पलक-पांवड़े बिछाए मौजूद थे। कहने वाले कह सकते हैं कि यह प्रायोजित रहा होगा, लेकिन कहने वालों का क्या? पीएम के स्वागत के लिए जो उत्साह लोगों के चेहरों पर नज़र आया उसे कतई बनावटी नहीं कहा जा सकता। 
डेलावेयर में प्रधानमंत्री मोदी की पहली बैठक अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन के साथ थी। जल्द ही राष्ट्रपति पद से सेवानिवृत्त होने जा रहे बाइडेन जितनी गर्मजोशी से मोदी से मिले वह भी उल्लेखनीय है। मोदी और बाइडेन की शानदार केमिस्ट्री पहले भी अंतरराष्ट्रीय मंचों पर दिखी है और दोनों नेता अक्सर बेहतर बेतकल्लुफी से और दोस्ताना अंदाज में मिलते रहे हैं। बहरहाल रिपोर्ट्स की मानें तो डेलावेयर की मुलाकात और वार्ता में खास यह हुआ कि भारत और अमेरिका के बीच व्यापक रक्षा सहयोग पर बात हुई। इसमें खास किस्म के ड्रोन का सौदा भी शामिल है। इतना ही नहीं बाइडेन ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार और भारत की स्थायी सदस्यता की दावेदारी का समर्थन भी किया। बाइडेन भले ही अब जाने वाले हैं, लेकिन इसे अमेरिका का रुख तो कहा ही जाएगा जो भारत के पक्ष में है। हालांकि अमेरिका में नवंबर में राष्ट्रपति चुनाव के बाद यदि सत्ता में बदलाव होता है तो अमेरिका का इस दिशा में क्या रुख होगा, यह देखना दिलचस्प होगा। वैसे गौरतलब यह भी है कि अगले साल भारत में होने वाले क्वाड शिखर सम्मेलन में अमेरिका के नये राष्ट्रपति भाग लेंगे चाहे ट्रंप हों या कमला हैरिस। 
बाइडेन के साथ बैठक के बाद क्वाड शिखर सम्मेलन में भी संयुक्त राष्ट्र में सुधारों पर सहमति जताई गई जिसका निहितार्थ यही है कि भारत की बड़ी भूमिका यानी सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता के मुद्दे पर क्वाड के बाकी तीनों सदस्य देश सहमत हैं। 
क्वाड के मंच से पीएम मोदी ने नाम लिए बगैर चीन को संदेश दिया कि यह संगठन किसी के खिलाफ नहीं है और शांतिपूर्ण-समावेशी हिन्द-प्रशान्त क्षेत्र बनाने के लिए प्रतिबद्ध है।
क्वाड की ओर से इस बार हिन्द-प्रशान्त क्षेत्र में कैंसर की रोकथाम के लिए कैंसर मूनशॉट इनिशिएटिव शुरू किया गया है। पीएम मोदी ने भारत के वन अर्थ-वन हेल्थ विजन का उल्लेख करते हुए भारत की ओर से इस पहल के लिए ७५ लाख डॉलर का पैकेज और ४ करोड़ वैक्सीन डोज देने की बड़ी घोषणा की। इससे हज़ारों जानें बचाई जा सकेंगी। © कुमार कौस्तुभ 

Saturday, September 21, 2024

पीएम मोदी का प्रवासी प्रेम

चित्र साभार गूगल 
अपनी अमेरिका यात्रा के दूसरे दिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी न्यूयॉर्क के नसाउ कोलोसियम में प्रवासी भारतीयों, भारतीय मूल के लोगों और भारतवंशियों को संबोधित करने वाले हैं। इस बार मोदी की अमेरिका यात्रा में यह उनका मेगा शो होगा जिसमें 15 हजार से अधिक लोगों के भाग लेने की संभावना है। पीएम मोदी के इस कार्यक्रम की तैयारी लंबे समय से चल रही थी और इसको लेकर वहां के लोगों में उत्साह की सीमा नहीं है। और हो भी क्यों नहीं, आखिर प्रवासी भारतीयों को अपने मूल देश के प्रधानमंत्री से मिलने, बात करने और उनसे रूबरू होने का मौका जो मिलने वाला है। 
दरअसल यह पहला मौका नहीं है जब प्रधानमंत्री अमेरिका में प्रवासी भारतीयों से मुखातिब होने जा रहे हैं। 2014 में जब मोदी प्रधानमंत्री बने तब से अब तक न केवल अमेरिका बल्कि जितने देशों की यात्रा पर वो जाते रहे हैं तो भारतवंशी लोगों से जरूर मिलते रहे हैं, चाहे एयरपोर्ट पर, होटल में या फिर विशेष रूप से आयोजित स्वागत समारोहों में वे भारतीय मूल के लोगों को संबोधित करते रहे हैं। और लोगों में भी उनसे मुलाकात को लेकर असीम उत्साह दिखता रहा है। हालांकि आलोचक मोदी के इस तरह के मेल-जोल और संबोधनों को उनके शो ऑफ के रूप में देखते रहे हैं। लेकिन सवाल है कि इसमें बुरा क्या है? 
इससे इन्कार नहीं किया जा सकता है कि मोदी से पहले भी अन्य प्रधानमंत्री भारतवंशियों से जरूर मिलते रहे होंगे, ये बात और है कि पुराने जमाने में मीडिया का इतना जोर नहीं था जिसके कारण इस तरह के कार्यक्रमों का प्रचार प्रसार संभव नहीं था। अब समय बदल चुका है तो मोदी जहां भी जाते हैं वहां प्रवासी भारतीयों से उनके मेल-जोल की हर तस्वीर तुरंत सामने आ जाती है। कहीं मोदी ऑटोग्राफ़ देते नजर आते हैं तो कहीं बच्चों को दुलारते और कहीं लोगों के बीच ढोल भी बजा लेते हैं। इसके पीछे मोदी की लोगों से घुलने-मिलने की भावना और लोगों से मिलने में उनकी हद से ज्यादा दिलचस्पी ही कहीं जाएगी, जो शायद पिछले प्रधानमंत्रियों में नहीं रही होगी या रही भी होगी तो उसका वैसा मुजाहिरा नहीं हो पाता था। 
सवाल ये भी है कि आखिर अपना वतन छोड़कर दूर देश में नौकरी चाकरी करने प्रवासी भारतीयों में मोदी से मिलने की दिलचस्पी क्यों रहती है? आखिर पीएम मोदी उन्हें क्या देते हैं या दे सकते हैं जिसके कारण वे मोदी के स्वागत, उनसे मिलने के लिए पलक पांवड़े बिछाए रहते हैं? यह भी अंततः भावनात्मक मुद्दा ही है जिसकी वजह से मॉरिशस, फ़िजी और ट्रिनिडाड टोबैगो जैसे देशों से आज भी लोग अपनी जड़ें तलाशने भारत आते रहते हैं। वहीं पीएम मोदी जब किसी देश की यात्रा पर जाते हैं तो वहां रहने वाले भारतवंशियों को न केवल स्वदेश के गौरवशाली अतीत की याद दिलाते हैं बल्कि देश में आधुनिक युग में आ रहे बदलावों से भी अवगत कराते हैं।  कुछ लोग इसे विश्व में अपनी इमेज बिल्डिंग की मोदी की कोशिश भी मानते हैं, लेकिन सवाल यह है कि आखिर इससे मोदी को क्या फायदा होता है या होने वाला है? क्या इससे मोदी के वोट बैंक में बढ़ोतरी होती है? अगर ऐसा होता तो दूसरे नेता भी इसकी कोशिश कर सकते थे, लेकिन वे ऐसा नहीं कर पाते क्योंकि पीपल कनेक्ट यानी लोगों से जुड़ने की जो कला मोदी जानते हैं, वो शायद किसी और के बस की बात नहीं! मोदी का यह प्रवासी प्रेम अनूठा है, लेकिन यह भी गौर करना चाहिए कि आम लोगों से कनेक्ट करने में माहिर मोदी केवल विदेश में ही लोगों से इस तरह खुलकर नहीं मिलते, बल्कि देश में भी उनकी यही प्रकृति दिखती है। स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस समारोहों से लेकर तमाम सार्वजनिक कार्यक्रमों में मोदी की बार प्रोटोकॉल तोड़कर आम लोगों से मिलते दिखते हैं क्योंकि यह उनका स्वभाव है, इसमें कुछ भी बनावटी नहीं है, सब कुछ नेचुरल है!© कुमार कौस्तुभ 

Friday, September 20, 2024

UN में इस बार क्या बोलेंगे मोदी?


संयुक्त राष्ट्र महासभा के ७९वें सत्र के लिए पीएम मोदी का एजेंडा 
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संयुक्त राष्ट्र महासभा के 79वें सत्र की शुरुआत १० सितंबर से हो चुकी है। इसमें २२ और २३ सितंबर को समिट ऑफ फ्यूचर यानी भविष्य से जुड़े वैश्विक मुद्दों पर चर्चा होगी और समस्याओं के बहुपक्षीय समाधान तलाशने पर चर्चा हो सकती है। इस शिखर सम्मेलन में तमाम राष्ट्राध्यक्ष भाग लेंगे। इसके बाद २४ से २८ सितंबर तक जनरल डिबेट का कार्यक्रम निर्धारित है। २१ सितंबर को अमेरिका यात्रा पर जा रहे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी २३ सितंबर को यूएन के समिट ऑफ फ्यूचर को संबोधित करने वाले हैं तो देश ही नहीं पूरी दुनिया की निगाहें उनके भाषण पर होंगी और सभी यह जानना चाहते होंगे कि आखिर इस बार मोदी संयुक्त राष्ट्र महासभा के मंच से विश्व को क्या संदेश देते हैं?
खास मुद्दों पर केंद्रित कतिपय बैठकों को छोड़ दें तो यह छठा मौका होगा जब मोदी संयुक्त राष्ट्र महासभा को संबोधित करने जा रहे हैं। इस दरम्यान भारत की सत्ता में अपने दस वर्षों के कार्यकाल के दौरान पीएम मोदी ने वैश्विक मंचों पर अपनी अलग पहचान बनाई है। तो इस बार मोदी यूएन में क्या बोलेंगे और यूएन के लिए उनका क्या संदेश होगा इस पर चर्चा से पहले यह भी जान लेना चाहिए कि विगत दस वर्षों में मोदी ने इस मंच पर क्या-क्या कहा है।
2014 में भारत के प्रधानमंत्री के रूप में मोदी ने पहली बार यूएन महासभा को संबोधित किया था तो उन्होंने में आतंकवाद से निपटने के लिए व्यापक समझौते की बात की थी। उन्होंने तब संयुक्त राष्ट्र में सुधार का भी मुद्दा उठाया था। वैश्विक खुशहाली के लिए उन्होंने दुनिया के देशों से योग को अपनी जीवन शैली में शामिल करने की अपील की जिसके फलस्वरूप २०१५ से  अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाने की परंपरा शुरू हुई।
को अपनाने की दिशा में काम करें।

2015 में 25 सितम्बर को पीएम मोदी ने संयुक्त राष्ट्र सतत विकास शिखर सम्मेलन में भाग लिया और यह संदेश दिया कि हम एक ऐसे विश्व का निर्माण करें जहां प्रत्येक जीव मात्र सुरक्षित महसूस करे, उसे अवसर उपलब्ध हों और सम्मान मिले। संयुक्त राष्ट्र में अपने दूसरे संबोधन में भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र की विश्वसनीयता बरकरार रखने के लिए इसमें सुधार अनिवार्य है. 
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2015 के बाद 2019 के संयुक्त राष्ट्र महासभा में हिस्सा लिया। 2019 में पीएम मोदी ने संयुक्त राष्ट्र के मंच से संदेश दिया कि दुनिया को युद्ध नहीं, बुद्ध चाहिए। आतंकवाद के मुद्दे पर हमारे बीच सर्वसम्मति का अभाव, उन सिद्धांतों को नुकसान पहुंचाता है, जो संयुक्त राष्ट्र के निर्माण का आधार हैं। और इसीलिए, मानवता के लिए, यह अत्यंत आवश्यक है कि विश्व आतंकवाद के विरुद्ध एकजुट हो। 
2020 में सुरक्षा परिषद का अस्थायी सदस्य बनने के बाद भारत की ओर से पहले संबोधन में पीएम मोदी ने फिर से संयुक्त राष्ट्र में सुधार का मुद्दा उठाया और कहा कि संयुक्त राष्ट्र में सुधार “समय की मांग” है। 
२०२० में अपने संबोधन में पीएम मोदी ने कोविड से जूझ रहे विश्व में संयुक्त राष्ट्र संघ की प्रासंगिकता का मुद्दा उठाया और सुरक्षा परिषद में भारत की स्थाई सदस्यता पर जोर दिया 
2021 में पीएम मोदी ने सुरक्षा परिषद में समुद्री सुरक्षा बढ़ाने पर अंतरराष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता के मुद्दे पर व्यापक संदर्भ में साझा समुद्री विरासत के संरक्षण और उपयोग के लिए आपसी समझ और सहयोग की रूपरेखा बनाने की अपील की। इस संबंध में पीएम मोदी ने पांच सिद्धांतों का उल्लेख किया जिनके अनुसार, वैध समुद्री व्यापार से बाधाओं को हटाना, SAGAR – (Security and Growth for All in the Region) के विजन,   समुद्री विवादों का निपटारा शांतिपूर्ण और अंतरराष्ट्रीय कानून के आधार पर किए जाने, मिलकर प्राकृतिक आपदाओं और नॉन-स्टेट एक्टर्स द्वारा उत्पन्न समुद्री खतरों का सामना करने,समुद्री पर्यावरण और समुद्री संसाधनों को संरक्षित करने पर ध्यान देना चाहिए।

2021 में संयुक्त राष्ट्र महासभा को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने संदेश दिया कि विकास, सम्पूर्ण समावेशी, व्यापक दायरे वाला, सार्वभौमिक और ऐसा होना चाहिये जिससे सभी का भला हो. उन्होंने कहा कि भारत एकीकृत व समान विकास के रास्ते पर आगे बढ़ रहा है. आतंकवाद का मुद्दा उठाते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि ये सुनिश्चित किया जाना बहुत ज़रूरी है कि अफ़ग़ानिस्तान की ज़मीन का इस्तेमाल, आतंकवाद फैलाने या आतंकी हमले करने के लिये ना हो. उन्होंने आगाह किया कि जो देश आतंकवाद को एक राजनैतिक औज़ार के रूप में इस्तेमाल करते हैं, उन्हें यह समझना होगा कि आतंकवाद, ख़ुद उनके लिये भी उतना ही गम्भीर ख़तरा है. अपने संबोधन में पीएम मोदी ने एक बार फिर से संयुक्त राष्ट्र की प्रासंगिकता और प्रभावशीलता का मुद्दा उठाया।
2022 और 2023 में संयुक्त राष्ट्र महासभा में भारत का प्रतिनिधित्व विदेश मंत्री डॉ एस जयशंकर ने किया। 
अब 2024 में पीएम मोदी एक बार फिर से संयुक्त राष्ट्र महासभा को संबोधित करने जा रहे हैं तो उनके एजेंडे में विश्व शांति का मुद्दा तो अहम रहेगा ही, इसमें कोई संदेह नहीं होना चाहिए क्योंकि पिछले दिनों मोदी रूस और यूक्रेन की यात्रा से लौटे हैं तो साथ ही साथ इज़राइल और फिलिस्तीन के हमास, यमन के हूती और लेबनान के हिज्बुल्लाह गुट के आतंकियों के बीच संघर्ष भी बढ़ा है। भारत हमेशा शांति का पक्षधर रहा है। इसलिए जाहिर है पीएम मोदी संयुक्त राष्ट्र के वैश्विक मंच से शांति का संदेश जरूर देंगे। वे जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण संरक्षण से जुड़े मुद्दों पर भी चर्चा कर सकते हैं और इन क्षेत्रों में भारत की ओर से उठाए गए कदमों से दुनिया को अवगत करा सकते हैं। साथ ही साथ पीएम मोदी अल्प विकसित, पिछड़े और विकासशील देशों यानी ग्लोबल साउथ से जुड़े मुद्दों पर भी चर्चा कर सकते हैं। भारत में हुए जी 20 सम्मेलन में पीएम ने इससे जुड़ी चर्चा की थी और उसके बाद वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ सम्मेलन में भी इन देशों को विकास का समान लाभ मिले, इसकी पैरोकारी की थी। वहीं, संयुक्त राष्ट्र में सुधार का मुद्दा भी पीएम मोदी के एजेंडे में प्राथमिकता में रहेगा क्योंकि मोदी हमेशा इस मंच पर भारत की महत्वपूर्ण और बड़ी भूमिका पर जोर देते रहे हैं। बीते वर्षों में मोदी के नेतृत्व में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता की मुहिम को भरपूर समर्थन भी मिला है तो वे पुनः इस विषय पर बात करने से नहीं हिचकेंगे ताकि दुनिया के बड़े देश इसकी अहमियत को समझें और भारत को वह सम्मान प्रदान करें जिसका वह हकदार है। © कुमार कौस्तुभ 

Thursday, September 19, 2024

क्वाड से क्या मिलेगा?

 


अमेरिका यात्रा पर जा रहे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के एजेंडे में सबसे ऊपर डेलवेयर में होने वाली क्वाड की बैठक है। २१ सितंबर को क्वाड की बैठक की मेजबानी अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन करने वाले हैं। भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री इसमें भाग लेंगे। क्वाड की इस तरह की यह चौथी बैठक होगी जिसमें चारों देशों के शीर्ष नेता शामिल होने जा रहे हैं। 

क्वाड का अर्थ है क्वाड्रिलैटरल सिक्योरिटी डायलॉग यानी चार देशों के बीच सुरक्षा संबंधी मामलों पर संवाद। इसका उद्देश्य हिन्द-प्रशान्त क्षेत्र में सुरक्षा और स्थिरता से जुड़े मुद्दों पर विचार-विमर्श करना है ताकि इस क्षेत्र में चीन के दबदबे को बढ़ने से रोका जा सके और समुद्री मार्ग से व्यापार सुचारू रूप से चल सके। इस मायने में अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया की जापान और भारत के साथ चौकड़ी बेहद जरूरी और महत्वपूर्ण है जबकि जापान और भारत की अपनी सुरक्षा संबंधी चिन्ताएं भी इससे जुड़ी हैं क्योंकि ये दोनों न केवल एशिया के दिग्गज देश हैं बल्कि चीन के निकट पड़ोसी भी हैं। तो समुद्री क्षेत्र में चीन की गतिविधियों के लिहाज से यह स्थिति भू-राजनीतिक दृष्टि से बहुत अहम है, क्योंकि जब अमेरिका-ऑस्ट्रेलिया-जापान और भारत यानी क्वाड के चार यार एक साथ बैठकर चर्चा करते हैं तो चीन की भौंहें तन जाती हैं और उसे लगता है कि उसके खिलाफ कोई नई रणनीति बनाई जा रही है, जो स्वाभाविक भी है क्योंकि आखिरकार चीन इन चारों देशों का मुख्य दुश्मन तो है ही। यही वजह है कि बीते वक्त में क्वाड देशों के समुद्री सैन्य अभ्यासों पर चीन ऐतराज भी जताता रहा है।

हालांकि गौरतलब यह भी है कि तमाम तरह की तनातनी और आपसी हितों के टकराव के बावजूद पिछले दिनों चीन-अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया-चीन के बीच द्विपक्षीय रिश्तों को सुधारने के प्रयास हुए हैं ताकि व्यापारिक हितों को नुक़सान न हो। वहीं, पिछले दिनों आपसी सहयोग के रास्ते खोलने के लिए जापान-चीन-कोरिया की त्रिपक्षीय वार्ता भी हुई। जबकि भारत के साथ चीन के संबंधों का स्तर मिला-जुला है। कई सामग्रियों के आयात में चीन पर भारत की निर्भरता कम करने के प्रयास हुए हैं तो साथ ही साथ सीमा पर चीन की चालों को नाकाम करने की भी कोशिश जारी है।

भले ही अमेरिका में इस बार क्वाड की बैठक हो रही है और अगले साल भारत इस बैठक की मेजबानी करने वाला है, लेकिन एक बात समझनी होगी कि इस संगठन के सभी देश अपना हित प्रथम की ही नीति पर चलेंगे। चारों देशों के नेताओं के एक साथ बैठ कर चीन पर मानसिक दबाव बढ़ाना इनकी सफलता मानी जा सकती है। वहीं यह भी ध्यान में रखना होगा कि क्वाड से भारत को क्या हासिल होता है। यह संगठन बेमानी इस मायने में नहीं कहा जा सकता है कि इसके जरिए इसके चारों सदस्य देशों के बीच बेहतर तालमेल बना है जिसके कारण रक्षा और व्यापारिक रिश्तों में बढ़ोतरी जरूर हुई है। परन्तु, यह भी देखना होगा कि क्वाड अभी चीन के लिए चुनौती भले ही पेश करता दिखे, पर इसकी सफलता तभी साबित होगी जब इसकी ताकत और रणनीति के समक्ष चीन घुटने टेक दे। इसके लिए भारत को हर हाल में महाशक्ति बनना होगा।© कुमार कौस्तु

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Wednesday, September 18, 2024

मोदी की अमेरिका यात्रा - किसका फायदा?

 मोदी की US यात्रा: किसका फायदा?

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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी २१ सितंबर से २३ सितंबर तक अमेरिका यात्रा पर रहेंगे। वैसे तो प्रधानमंत्री की इस अमेरिका यात्रा का कार्यक्रम बड़ा स्पष्ट है - उन्हें डेलवेयर में क्वाड की बैठक में भाग लेना है, जहां राष्ट्रपति जो बाइडेन से उनकी मुलाकात होगी और अगले वर्ष भारत में होने वाले क्वाड शिखर सम्मेलन की रूपरेखा तय हो सकती है जिसमें बाइडेन के उत्तराधिकारी, अमेरिका के अगले राष्ट्रपति भाग ले सकते हैं, चाहे वो कमला हैरिस हों या बाइडेन के धुर विरोधी डॉनल्ड ट्रंप हों। इसके अतिरिक्त प्रधानमंत्री मोदी न्यूयॉर्क में प्रवासी भारतीयों से भी मिलेंगे और उन्हें संबोधित करने वाले हैं। लोकसभा में नेता विपक्ष राहुल गांधी की अमेरिका में भारतीयों से मुलाकात के बाद अब पीएम मोदी वहां भारतीय समुदाय से रूबरू होंगे तो देखना दिलचस्प होगा कि राहुल के मुकाबले उनके तेवर कैसे रहते हैं। हालांकि इससे पूर्व अमेरिका या दूसरे देशों की यात्राओं में जब मोदी भारतवंशियों के समक्ष खड़े होते रहे हैं तो उनका उद्देश्य अधिकतर  भारतीयता की गौरवशाली विरासत और राष्ट्रवाद की बात करते हुए सरकार की उपलब्धियों की चर्चा करना ही रहा। इस दौरान विरोधियों पर निशाना भी वे साधते हैं लेकिन उस तरह के शिकायती लहजे में नहीं जैसे कि राहुल गांधी। बहरहाल, दोनों नेताओं के अपने अपने तरीके हैं, उद्देश्य हैं, परिप्रेक्ष्य हैं जिनके आधार पर वे विदेश में भारतीय समुदाय से मिलते हैं। कहना न होगा कि राहुल गांधी के मेल-जोल का दायरा सीमित रहा है, वे यूनिवर्सिटी और संस्थाओं में बुद्धिजीवी वर्ग तक अपनी बात पहुंचाने में तत्पर दिखे, जबकि मोदी से मिलने वालों में हर आम और खास होते हैं। वे एयरपोर्ट और होटल में आम लोगों से घुलते-मिलते हैं और विशाल हॉल में उन्हें संबोधित करते हैं तो दिग्गज कारोबारियों और सीईओ के साथ भी बैठकें करते हैं। इस बार की यात्रा में भी ऐसी बैठकें तय हैं। साथ ही मोदी संयुक्त राष्ट्र महासभा को भी संबोधित करने वाले हैं जो उनका कूटनीतिक और राजनयिक दायित्व है।

दिलचस्प बात यह है कि मोदी की अमेरिका यात्रा ऐसे समय में हो रही है जब अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव की सरगर्मी जोर पकड़ चुकी है। राष्ट्रपति चुनाव में एक तरफ भारतवंशी उपराष्ट्रपति कमला हैरिस हैं तो दूसरी तरफ हैं डॉनल्ड ट्रंप जो २०१७ से २०२१ तक अमेरिका के राष्ट्रपति रहे हैं। अपनी तीखी जुबान और विवादित जीवन और बयानों के लिए चर्चित ट्रंप की पीएम मोदी के साथ शानदार केमिस्ट्री रही। दोबारा राष्ट्रपति चुनाव लड़ने से पहले २०१९ में ट्रंप ने टेक्सास में हाउडी मोदी कार्यक्रम करवाया था जिसका मकसद कहीं न कहीं मोदी के सहारे भारतवंशी मतदाताओं को रिझाना ही था। अगले ही वर्ष २०२० में अहमदाबाद के मोदी स्टेडियम में शानदार नमस्ते ट्रंप कार्यक्रम करवा कर पीएम मोदी ने ट्रंप के सम्मान का प्रत्युत्तर दे दिया। हालांकि , अमेरिका में २०२० के राष्ट्रपति चुनाव में ट्रंप को मोदी से दोस्ती का कोई खास फायदा मिला हो, यह कहना मुमकिन नहीं। लेकिन इस बार जबकि ट्रंप एक बार फिर अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव में हाथ आजमा रहे हैं तो उससे पहले होने जा रही अमेरिका यात्रा के दौरान उन्होंने मोदी से मिलने का एलान कर दिया है। ट्रंप ने मोदी को विलक्षण व्यक्ति करार देते हुए उनकी शान में कसीदे पढ़े तो साथ ही साथ नोट करने वाली बात यह भी है कि उन्होंने भारत पर सीधे निशाना भी साधा और भारत को नीतियों का दुरुपयोग करने वाला देश कह डाला। संभव है इस तरह की बयानबाजी से ट्रंप एक साथ दो निशाने साधने की कोशिश कर रहे हों - मोदी की तारीफ करके मोदी के मुरीदों का दिल जीतना और भारत पर आक्रामक तेवरों से अपनी अमेरिका फर्स्ट नीति पर डटे रहने की नुमाइश।

अब यह तो पीएम मोदी के ऊपर है कि वे ट्रंप के बयान को किस तरह लेते हैं। देखना होगा कि वे ट्रंप के साथ दोस्ती को सम्मान देते हुए देश के हितों को भी तरजीह देते हैं या भारतवंशी बेटी कमला हैरिस के समर्थन के प्रति रुझान दिखाते हैं ? कमला हैरिस से मोदी की मुलाकात होगी या नहीं यह अभी नहीं कहा जा सकता। हालांकि बाइडेन प्रशासन से भी भारत के रिश्ते मधुर ही रहे और ट्रंप से पहले राष्ट्रपति रहे ओबामा के साथ भी मोदी का बढ़िया संबंध रहा। तो कुल मिलाकर राष्ट्रपति कोई भी रहे,  इसमें कोई दो राय नहीं है कि पीएम मोदी अमेरिका के हर नेतृत्व को साधने में सफल रहे। वैसे यह भी स्पष्ट है कि नेतृत्व बदलने से विदेश नीति नहीं बदला करती और दो देशों के रिश्ते नहीं बदल जाते। तो यह भी तय है कि मोदी भारत का हित देखेंगे और ट्रंप या हैरिस में से जो भी जीते वह अमेरिका के हितों में ही काम करेंगे। ऐसा नहीं है कि इस यात्रा में मोदी ट्रंप या हैरिस के चुनाव प्रचार का हिस्सा बन सकते हैं , हां दोनों नेताओं को उनकी शुभकामनाएं जरूर मिलेंगी ताकि भारत और अमेरिका के रिश्ते आगे भी मजबूत रहें क्योंकि वैश्विक परिदृश्य में दोनों शक्तियों का साथ एक-दूसरे के लिए बेहद जरूरी है, यह सभी जानते हैं, तभी तो रूस से नजदीकी के बावजूद भारत के साथ अमेरिका नरमी से ही पेश आता है।

प्रधानमंत्री मोदी की अमेरिका यात्रा एक बार पुनः क्वाड और संयुक्त राष्ट्र के वैश्विक मंचों पर भारत की धमक दिखाने का मौका है, जिसका वे बखूबी सार्थक उपयोग करेंगे, यह तय मानिए! © कुमार कौस्तुभ