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अमेरिका में ट्रंप राज आने के बाद भारत को कितना फायदा होगा और कितना नुक़सान इसका हिसाब-किताब होने लगा है। ट्रंप की नीतियों की वजह से यह विचार करना फिलवक्त लाजिमी ही है कि आने वाले समय में अमेरिका के साथ भारत के संबंध कितने सहज रहेंगे। लेकिन गहराई से गौर करें तो ऐसा लगता है कि भारत के साथ रिश्तों को लेकर ट्रंप प्रशासन को बहुत टेढ़ा रुख अपनाने के बजाय संजीदगी से चलना होगा। ऐसा इसलिए क्योंकि ट्रंप अपने राष्ट्रीय हितों के मामले में पीछे हटने वाले नहीं हैं तो भारत के पीएम मोदी भी कम नकाहीं हैं। मोदी का लोहा तो ट्रंप अपने पिछले कार्यकाल में ही मान चुके थे और उन्हें "Very though negotiator" करार दे चुके थे क्योंकि ट्रंप के लिए अमेरिका फर्स्ट की सोच अहम है तो मोदी भी राष्ट्र प्रथम की नीति को सबसे ज्यादा अहमियत देते हैं। राजनीति में आने से पहले ट्रंप मंजे हुए कारोबारी रहे हैं तो मोदी की रगों में भी गुजराती रक्त बहता है जिसके कतरे-कतरे में कारोबार है। लिहाजा इसमें कोई शक नहीं कि ट्रंप को साधने में मोदी को कोई दिक्कत नहीं होगी। और ट्रंप मोदी से दोस्ती का भी दम भरते हैं तो देखना ये भी होगा कि अपने दूसरे कार्यकाल में ट्रंप को भारत के प्रति कितने उदार रह पाते हैं।
हालांकि, गौर करने वाली बात यह भी है कि पीएम मोदी के दस वर्षों के कार्यकाल में भारत के विदेश संबंध हर तरह से मजबूत हुए हैं और हकीकत यह है कि भारत अब किसी भी मामले में केवल अमेरिका या चीन पर निर्भर नहीं रहा बल्कि अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए दूसरे विकल्प भी तलाश लिये हैं। रक्षा और ऊर्जा के क्षेत्र में रूस का सहयोग भारत को मिल ही रहा है, जो अमेरिका को अब तक फूटी आंखों नहीं सुहाता रहा है। फ्रांस और स्पेन के साथ भी भारत का रक्षा सहयोग बढ़ा है। वहीं, भारतीय मैनपावर को रोजगार और शिक्षा के मामले में अगर कनाडा के बाद अमेरिका से भी रेड सिग्नल मिलता है तो जर्मनी और यूरोप के दूसरे देश भारतीयों के लिए पलक-पांवड़े बिछाए हुए हैं। जर्मनी पिछले दिनों हर साल ९० हजार भारतीयों के लिए वर्क वीज़ा देने का एलान कर ही चुका है। तो कई मामलों में ऑस्ट्रेलिया और जापान भी भारत के अच्छे मददगार हैं।
ऐसे में भारत को विदेशी सहयोग का दायरा बढ़ा ही है जबकि एशिया में चीन से लोहा लेने के लिए भारत को साथ लेकर चलना अमेरिका की मजबूरी रहेगी।
तो अमेरिका फर्स्ट का राग अलापने वाले ट्रंप को भारत के साथ रिश्तों के मामले में लचीलापन अपनाना ही होगा , इसके अलावा उनके समक्ष कोई और चारा भी नहीं है। तो ट्रंप के आने से भारत को फायदा ही होगा, बल्ले-बल्ले ही रहेगी।
© कुमार कौस्तुभ
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