Friday, May 10, 2013

प्रसारण के पहलू- 3- न्यूज़रूम से पैनल तक




     टेलीविजन पर समाचार प्रसारण एक टीम वर्क है और इसके तमाम हिस्से होते हैं, जो मिल-जुलकर काम को अंजाम देते हैं, ये तो मूलत: हम सभी जानते हैं। परंतु, प्रसारण का एक अहम पहलू ये है कि आजकल ये पूरी तरह कंप्यूटर आधारित प्रक्रिया है, जो आधुनिकतम प्रौद्योगिकी के सहारे चल रही है। प्रसारण के संपादकीय पक्ष के सैद्धांतिक और काफी हद तक व्यावहारिक पहलुओं पर काफी बातचीत होती रही है। पर, इसके तकनीकी पक्ष को जाने समझे बिना, इसकी जानकारी अधूरी ही मानी जाएगी। हालांकि ये संभव नहीं कि संपादकीय कामकाज से जुड़े लोगों को तकनीकी पक्ष की संपूर्ण जानकारी हो, वो पूरा ऑपरेशन जानें, लेकिन उनके लिए ये तो समझना बेहद जरूरी है कि आज के दौर में टीवी समाचार चैनल असल में चलते किस तरह हैं?

            देश-विदेश में समाचार चैनलों के प्रसारण की जो प्रक्रिया आजकल सर्वमान्य तरीके से चल रही है, उसके तहत समाचार चैनल के संपादकीय और प्रसारण के विभाग कंप्यूटरों के नेटवर्क के जरिए एक न्यूज़रूम कंप्यूटर सिस्टम यानी NCRS से संचालित होते हैं। ये NCRS दरअसल कई अलग-अलग विभागों का संयोजन करता है, जिसे समाचार चैनलों की तकनीकी भाषा में Integration कहते हैं। इस NCRS को चलाने के लिए दुनिया में प्रसारण तकनीक की बड़ी झंडाबरदार कंपनियों AP यानी Associated Press, AVID, AVECO , Dalet, Octopus और Autocue समेत तमाम संस्थाओं ने ऐसी प्रणालियां विकसित की हैं, जिनके तहत चैनल में खबरों के आगमन से लेकर प्रसारण यानी उनके On air होने तक की प्रक्रिया पूरी की जाती है। AP का ENPS ( Electronic News Production System), AVID का iNEWS newsroom management system, Dayang, AVECO के ASTRA CMS, ASTRA STUDIO-2 वगैरह ऐसी प्रणालियां हैं, जो खबरों की स्क्रिप्टिंग से लेकर उनको On air करने तक की कई प्रणालियों से तालमेल बिठाकर मकसद को अंजाम तक पहुंचाती हैं। इसके लिए बाकायदा एक workflow यानी काम करने का तरीका विकसित किया जाता है, जिसके तहत अलग- अलग चरणों से गुजरते हुए खबर टीवी स्क्रीन पर प्रसारण के स्तर तक पहुंचती है।

            अब सवाल ये है कि ये workflow किस तरह चलता है? तो इसके लिए समाचार चैनलों में खबरों के प्रसारण की प्रक्रिया के चरणों के बारे में जानना होगा। आम तौर पर टेलीविजन के समाचार चैनलों में काम करनेवालों को ऐसे सिस्टम में काम करना पड़ता है जिसके तहत वो समाचारों की जानकारी हासिल कर सकें, उन्हें हासिल करने के लिए योजना बना सकें, आपस में संवाद स्थापित कर सकें, शोध और अनुसंधान कर सकें, स्क्रिप्टें लिख सकें, वीडियो फीड्स का प्रबंधन कर सकें, उनका संपादन कर सकें, उन्हें वीडियो सर्वर से जोड़ सकें, रन-ऑर्डर तैयार कर सकें, ग्राफिक्स तैयार कर सकें, स्क्रिप्ट्स को एंकर्स के पढ़ने के लिए टेलीप्रॉम्पटर से जोड़ सकें, तैयार स्टोरीज़ के ऑन एयर प्लेआउट का इंतजाम कर सकें, और उन्हें भविष्य में इस्तेमाल के लिए आर्काइव कर सकें । ये सारा काम एक ही कंप्यूटर टर्मिनल यानी डेस्कटॉप से निर्धारित हो सकता है जो दूसरे तमाम विभागों से नेटवर्क के जरिए जुड़े हों और ऐसी ही जरूरत भी महसूस की जाती है कि सब कुछ एक ही जगह से संचालित हो सके। यही “newsroom system” का मतलब है। हालांकि थोड़े विस्तार में कई काम अलग-अलग भी होते हैं, लेकिन एक स्तर पर जाकर उन्हें एक साथ लाना पड़ता है यानी integrate करना होता है, जो प्रसारण का आखिरी स्तर और सबसे अहम पहलू है। प्रसारण का काम तो 15-20 साल पहले भी एक हद तक कंप्यूटरों के जरिए होता था , लेकिन तब प्रणाली उतनी आपस में जुड़ी नहीं होती थी और एक आदमी जितने काम अभी एक साथ करने में सक्षम होता है, उतने काम के लिए तब उतनी संख्या में लोगों की जरूरत होती थी। लिहाजा प्रौद्योगिकी के विकास ने मैनपॉवर की जरूरत भी घटाई है और काम की प्रक्रिया को आसान और तेज़ भी कर दिया है, जो कंप्यूटर की व्यावहारिक और सैद्धांतिक सुविधा से जुड़ा हुआ पक्ष तो है ही, इसके साथ ही प्रसारण माध्यम भी पहले के मुकाबले ताकतवर हुआ है और उसके कर्मचारी भी ज्यादा समर्थ और सक्षम हुए हैं, क्योंकि वो उनके काम का दायरा बढ़ गया है और उन्हें अपनी पारिश्रमिक और रचनात्मक क्षमता जाहिर करने के ज्यादा मौके मिलने लगे हैं। ये सब किस तरह संभव होता है, ये अलग मुद्दा है, लेकिन इससे इतना जरूर समझ सकते हैं कि अब प्रसारण का हर पहलू एक ही कड़ी में सीधे आपस में जुड़ा हुआ है और ये कड़ी प्रसारण यानी खबर के टीवी स्क्रीन पर ऑन एयर होने तक जाकर खत्म होती है। समाचार प्रसारण के मेयार वक्त के मुताबिक बदले हैं औऱ अब 24 घंटों के प्रसारण की वजह से ज्यादा असरदार और ताकतवर प्रसारण प्रणालियों की जरूरत महसूस की जाने लगी है। इसी लिहाज से प्रसारण तकनीक और प्रणालियों में भी काफी बदलाव आ गए हैं और वक्त और जरूरतों के मुताबिक और बदलाव की जरूरत भी महसूस की जा रही है। इसकी चर्चा करते हुए प्रसारण विशेषज्ञ एड्रियन स्कॉट लिखते हैं-

Moreover, journalism itself is changing. The events of 9-11 and Hurricane Katrina are examples of how TV news organizations do not just report to their audiences on significant events, but also they are increasingly allowing TV viewers to become witnesses of those events. Live links and sat-phones hugely increase speed-to-air, and that places a big responsibility on journalists to do background research and fact-checking on breaking stories rapidly, and turn them round for air in minutes and sometimes seconds, rather than in half a day's time. In the case of the London bombings, the participants in and witnesses of the atrocities became reporters themselves as the news organizations broadcast stills and video from mobile phones, with sometimes misleading consequences.”[1]
स्कॉट का मानना है कि मौजूदा news management systems में और ज्यादा अंदरूनी तालमेल की जरूरत है ताकि टीवी पत्रकारों की क्षमता का विकास हो सके। इस प्रक्रिया में एक अच्छी बात ये है कि तमाम समाचार चैनलों में न्य़ूज़रूम मैनेजमेंट और ऑटोमेशन सिस्टम के तहत ही, उनके औजारों का इस्तेमाल करते हुए ही तमाम स्टाफ की ओर से अपने लिए सुविधाजनक व्यवस्था का रास्ता खोज लिया जाता है, जिसे जुगाड़.या शॉर्टकट कहते हैं औऱ इसके जरिए काम और आसान होने लगते हैं। ऐसे में सिस्टम का ज्यादा से ज्यादा दोहन और इस्तेमाल होने लगता है औऱ उससे ज्यादा से ज्यादा आउटपुट लेने की कोशिश होती है। प्रणाली के तहत अपनी काम करने की प्रक्रिया evolve करने की कोशिश प्रसारण संस्थाओं को उन तमाम दिक्कतों से निपटने में भी मदद करती है, जिसके लिए उन्हें बार-बार न्यूज़रूम मैनेजमेंट सिस्टम प्रोवाइडर कंपनियों की मदद लेनी होती है और उसके लिए पैसे भी खर्च करने होते हैं।
बात न्यूज़रूम सिस्टम्स से शुरु होती है और on air प्रसारण तक जाती है। इसकी कड़ियां न्यूज़ डेस्क से वीडियो एडिटिंग, फिर वीडियो सर्वर्स, प्रसारण पैनल और लायब्रेरी आर्काइविंग सिस्टम तक जुड़ी होती हैं। न्यूज़ डेस्क ऐसे कंटेंट मैनेजमेंट सिस्टम के तहत काम करते हैं, जिनमें स्क्रिप्ट से लेकर ऑडियो-वीडिय़ो फीड्स और स्टोरीज़ को स्टोर करने के लिए डेटाबेस और उन्हें इस्तेमाल के लिए मैनेज करने की क्षमता होती है। उन्हीं के जरिए तैयार स्क्रिप्ट्स और स्टोरीज़ को सर्वर्स से जोड़ा जाता है, ताकि आवश्यकतानुसार उन्हें प्रसारण के लिए काम में लाया जा सके। आसानी से समझने के लिए कंटेंट मैनेजमेंट सिस्टम सारे डेटा को फाइल्स या ID के रूप में देखा जा सकता है।
 कंटेंट मैनेजमेंट सिस्टम, वीडियो सर्वर और प्रसारण की कमान यूं तो न्यूज़ डेस्क के पास ही होती है, लेकिन इसे संचालित करनेवाला आखिरी चरण आम तौर पर Production Control Room होता है, जिसका संबंध न्यूज़ डेस्क के साथ-साथ स्टूडियो से भी होता है, जहां से एंकर्स खबर पेश करते हैं। Production Control Room में न्यूज़ डेस्क की ओर से पैनल प्रोड्यूसर और स्टूडियो डायरेक्टर होते हैं, जो असल में प्रसारण के असली कर्णधार होते हैं और उन्हीं पर ये आखिरी जिम्मेदारी होती है कि जो भी पर्दे पर प्रसारित हो, वो ठीक हो, उसमें कोई गड़बड़ी न हो, बेशक, इसके और तमाम ऐसे पहलू हैं, जिनके लिए न्यूज़ डेस्क के दूसरे स्टाफ भी जिम्मेदार होते हैं, लेकिन अंतिम तौर पर यही माना जाता है कि जो कुछ स्क्रीन पर जा रहा है, वो पैनल की नजर से गुजरकर ही जा रहा है, वहां फिल्टर होकर या छनकर ही आगे प्रसारित होने जा रहा है। ऐसे में पैनल प्रोड्यूसर और स्टूडियो डायरेक्टर की जिम्मेदारी अनंतिम है और उन्हें काफी सतर्कतापूर्वक और सजगता से काम करने की जरूरत होती है। इस लिहाज से, उन्हें खबरों की समझ, उनकी जानकारी और प्रसारण के तकनीकी पहलुओं के साथ-साथ उनके पास नेतृत्व क्षमता होने की भी जरूरत महसूस की जाती है, क्योंकि वही एंकर्स औऱ PCR के अन्य स्टाफ को कमांड देते हैं। उन्हें ये पता होता है कि प्रसारण किस तरीके से होना चाहिए तो उस लिहाज से वो काम को अंजाम देने के लिए स्वतंत्र और प्रभावशाली भी माने जाते हैं। 24 X 7 के प्रसारण माहौल में काम करना पैनस प्रोड्यूसर्स के लिए तनावपूर्ण भी होता है, लेकिन जो लोग इस काम में माहिर होते हैं, उनकी क्षमता और काबिलियत सीधे पर्दे पर झलकती है। पैनल प्रोड्यूसर्स को आम तौर पर न्यूज़ डेस्क की ओर से निर्धारित रन-डाउन के मुताबिक प्रसारण की तैयारी को अंजाम देना होता है, लेकिन कई अलग-अलग परिस्थितियों में ये उनके विवेक पर भी निर्भर करता है औऱ छोड़ दिया जाता है कि वो बुलेटिन के ड्यूरेशन को खुद मैनेज करें। इसके लिए न्यूज़ डेस्क के लोग उनके संपर्क में रहते हैं, लेकिन आखिरी फैसला उन्हीं को करना होता है, क्योंकि बुलेटिन के हर पल का हिसाब उन्हीं को तय करना होता है कि अगर उनके पास 30 सेकेंड या 60 सेकेंड बचे हैं प्रसारण के, तो वो किस तरह उसे इस्तेमाल करना चाहेंगे। आमतौर पर पैनल प्रोड्यूसर्स पर ही एंकर्स के लिए लिखी गई स्क्रिप्ट लीड को प्रॉप्म्प्ट करने और उन्हें प्रसारण के कमांड देने की जिम्मेदारी होती है। साथ ही अक्सर उन्हें ऑनलाइन ग्राफिक्स भी प्रसारण के लिए त्वरित गति से पेश करने होते हैं यानी एक साथ कई जिम्मेदारियों का निर्वाह पैनल प्रोड्यूसर्स को करना पड़ता है। Live खबर की स्थितियों में तो पैनल प्रोड्यूसर्स से ही ये भी उम्मीद की जाती है कि वो ब्रेकिंग न्यूज़ की पट्टियां और बाइट के सुपर या बैंड खुद ही बनाएं और चलाएं। ऐसे में उनके पास हिंदी और अंग्रेजी टाइपिंग की अच्छी स्पीड होना भी जरूरी होता है। यानी पैनल प्रोड्यूसर भले ही तकनीकी तौर पर अधिक सक्षम शख्सियत हों, लेकिन न्यूज़ डेस्क की ठेठ पत्रकारीय कार्यशैली का भी ज्ञान और उसमें निपुणता उनके लिए बेहद जरूरी मानी जाती है। हालांकि कई चैनलों में टेली प्रॉम्पटर चलाने और ग्राफिक्स फायर करने के लिए अलग से स्टाफ रखने की परंपरा भी है, लेकिन पैनल प्रोड्यूसर खुद जितने ज्यादा सक्षम हों, उतना बेहतर।
Production Control Room का दूसरा अहम पक्ष है इसका तकनीकी पहलू, जिसकी जिम्मेदारी Technical Director या Online Editors पर होती है। इनका प्रमुख काम CCU (Camera Control Unit) का ऑपरेशन है यानी स्टूडियो के Television camera को नियंत्रित करना। आमतौर पर आजकल ये काम रिमोट कंट्रोल से संचालित होता है और स्टूडियो कैमरापर्सन्स भी मौजूद होते हैं, लेकिन टीवी स्क्रीन पर प्रसारण के लिए कब किस कैमरे का किस तरीके से इस्तेमाल करना है, ये Technical Director को देखना पड़ता है। यहां एक बात जो समझने की है, वो ये कि स्टूडियो कैमरापर्सन्स का काम कैमरे से फ्रेम सही करना, फोकस जैसी चीजों का ध्यान रखना है, जबकि CCU के जरिए कैमरे की अन्य प्रक्रिया मसलन कलर बैलेंस का ध्यान रखा जाता है औऱ ये काम PCR से होता है। जब एक साथ कई कैमरों से शूटिंग चल रही हो, तो TD का काम और बढ़ जाता है, क्योंकि उन्हें एक साथ कई CCU को संचालित करना पड़ता है। वास्तव में Technical Director की जिम्मेदारी स्क्रीन पर प्रसारित होनेवाले वीडियो के तकनीकी पैरामीटर्स का ख्याल रखना भी है, लिहाजा उन्हें कैमरे से आ रहे LIVE आउटपुट की तकनीकी गुणवत्ता पर ध्यान देना होता है। इसके अलावा, जिन अन्य स्रोतों से वीडियो प्रसारण के लिए लिया जा रहा हो, उनका भी ध्यान Technical Director ही रखते हैं, मसलन वीडियो सर्वर से ली जा रही stories, या टेप से प्रसारण के लिए लिए जा रहे आइटम्स भी तकनीकी गुणवत्ता के लिहाज से ठीक हैं, या नहीं औऱ उनका किस तरह प्रसारण हो, ये सब Technical Director का सिरदर्द है। इस काम में आम तौर पर वही लोग लगाए जाते हैं, जिन्हें वीडियो और टेलीविजन प्रोडक्शन का बेहतरीन ज्ञान हो, अभ्यास हो और अनुभव हो। Technical Director का काम आजकल रनडाउन के मुताबिक, वीडियो सर्वर या कंटेंट मैनेजमेंट सिस्टम से वीडियो स्टोरीज़, बाइट्स या फीड्स या विजुअल्स लेकर उन्हें प्रसारित करने के लिए पेश करना है। पुराने मैनुअल सिस्टम में जब टेप से प्रसारण होता था, तो स्टोरीज़ के टेप चलाने के लिए टेप रोलर नियुक्त किए जाते थे, लेकिन जब से न्यूज़ ऑटोमेशन और वीडियो सर्वर्स का इस्तेमाल होने लगा है, तब से टेप रोलर की जगह स्टोरीज़ और रन डाउन के ऑडियो-वीडियो आइटम की प्रसारण के लिए तैयारी Technical Director के ही जिम्मे आ गई है।
आजकल Technical Director की एक और जिम्मेदारी चैनलों में देखी जाती है, वो है vision mixer या  video switcher या production switcher मशीनों के जरिए कईएक वीडियो सोर्स से आ रहे वीडियो को एक साथ मिश्रित करके प्रसारित करना। लाइव प्रसारण की स्थिति में ये जिम्मेदारी और अहम हो जाती है। इसके लिए पैनल प्रोड्यूसर के निर्देश के मुताबिक उन पर,  जिन कैमरों या जिन अन्य स्रोतों से जरूरी हो, उन स्रोतों से आ रहे वीडियो, ऑडियो और ग्राफिक्स इनपुट को संयोजित करने और प्रसारण के लिए तय सोर्स पर पेश करने का जिम्मा होता है। आजकल तमाम ऐसी आधुनिक मशीनें आ गई हैं, जिनके इस्तेमाल से मनचाहा प्रसारण हो सकता है, बशर्ते Technical Director उनके इस्तेमाल में माहिर हों। Production Control Room में चैनल की आवश्यकता के मुताबिक बड़ी संख्या में Monitors लगे होते हैं, जिन पर तमाम स्रोतों से आ रहे वीडियो, ऑडियो और ग्राफिक्स को देखा जा सकता है। इसके अलावा vision mixer या  video switcher भी होते हैं, जिनके जरिए तमाम स्रोतों से मिलनेवाले वीडियो, ऑडियो और ग्राफिक्स को मिश्रित करने की प्रक्रिया होती है। मिलती जुलती प्रक्रिया मल्टीकैम आउटडोर ब्रॉडकास्ट वैन से प्रसारण में भी होती है, जिसके लिए Technical Director का और अनुभवी होना जरूरी है, क्योंकि आउटडोर ब्रॉडकास्ट में  Production Control Room जैसी कई सुविधाएं मौजूद नहीं भी हो सकती हैं औऱ जुगाड़ से काम चलाना पड़ सकता है। ऐसी परिस्थितियों में Technical Director की जगह अक्सर OB Director होते हैं, जिन्हें OB के ऑपरेशन के तकनीकी पहलुओं की भी जानकारी होती है और वो एक साथ कई पक्षों से तालमेल बिठाने औऱ जरूरत के मुताबिक फैसले लेने में सक्षम होते हैं।
Production Control Room का एक और पहलू है ऑडियो या साउंड का- यानी जो कुछ प्रसारित हो रहा है, उसकी ध्वनि निर्धारित मानकों के मुताबिक है या नहीं, इसका ध्यान रखने, जहां जरुरत हो वहां ऑडियो लेवल बढ़ाने और घटाने का काम साउंड इंजीनियर्स और साउंड रिकॉर्डिस्ट्स के जिम्मे होता है, जो Production Control Room का अहम हिस्सा होते हैं। खासकर Live प्रसारण के दौरान इनकी अहमियत और बढ़ जाती है। वैसे Technical Director भी आमतौर पर इनके काम के जानकार होते हैं, लिहाजा, कई बार Technical Director ही साउंड Console पर भी नजर रखते देखे जा सकते हैं।
न्यूज़ डेस्क से पैनल और OB तक प्रसारण के इन तमाम पहलुओं में जो एक क़ॉमन बात उभरकर सामने आती है, वो है Communication की – यानी तमाम विभागों और तमाम स्टाफ के बीच संवाद कायम रहना और स्पष्ट संवाद होना बेहद जरूरी है। किसी एक बिंदु पर भी अगर तालमेल गड़बड़ हुआ तो प्रसारण का कचरा हो सकता है। एक बात समझनी बेहज जरूरी है कि टीवी प्रसारण से जुड़े तमाम लोगों का मकसद आखिर Communication ही तो है, आप जनता के लिए, दर्शकों के लिए Communication करते हैं, तो आपका आपसी Communication भी अगर सही और बेहतर रहे, तो फिर कहीं कोई दिक्कत नहीं आएगी और आप दर्शकों तक अपनी बात,. अपनी खबर पहुंचाने में सफल साबित होंगे।

-          कुमार कौस्तुभ

10.05.2013, 9.40 PM

No comments: