Thursday, May 9, 2013

प्रसारण के पहलू-2- वीडियो एडिटिंग




      टेलीविजन समाचार प्रसारण के क्षेत्र में संपादनतो जाना पहचाना शब्द है, लेकिन संपादकका पदनाम असल में कम ही ऐसे लोग धारण करते हैं, जो समाचारों के प्रबंधन से जुड़े हैं। लेकिन न्यूज़ चैनल्स में एक कर्मचारियों की एक बिरादरी ऐसी भी है, जिनके पदनाम में संपादक यानी अंग्रेजी का एडिटरशब्द पैदाइशी तौर पर जुड़ा होता है, भले ही स्वभावत: उनका समाचार संपादन से कोई लेना देना न हो, परंतु शाब्दिक अर्थ के तौर पर तो वही खबरों के संपादकहोते हैं। बात वीडियो एडिटर्स की हो रही है, जो खबरों को प्रस्तुत करनेवाली तस्वीरों, विजुअल्स और साउंड को संपादित करते हैं, उनमें जरूरत के मुताबिक काट-छांट करते हैं, उन्हें स्पेशल ट्रीटमेंट प्रदान करते हैं, और प्रसारण के लायक बनाते हैं। विजुअल माध्यम होने की वजह से टेलीविजन प्रसारण का ये सबसे अहम पहलू है, जिसे विडियो एडिटिंग कहा जाता है।
खबरों का प्रबंधन और उन्हें शब्द देने का काम भले ही डेस्क और रिपोर्टिंग के लोग करते हैं, लेकिन खबरों की ऑडियो-विजुअल प्रस्तुति का दारोमदार तो वीडियो एडिटिंग करनेवालों पर ही होता है, लिहाजा किसी भी संपादक से हटकर वो स्वयंभू संपादक होते हैं, जिनकी कतर-ब्योंत या दिलचस्पी लेना, न लेता खबरों का कायाकल्प कर सकती है या फिर उनकी प्रस्तुति में अड़ंगे लगा सकती है। दरअसल जैसे खबर लिखने, स्क्रिप्टिंग के कुछ बने-बनाए नियम कायदे होते हैं, वैसे ही वीडियो एडिटिंग का भी अपना पक्ष होता है, अपने तरीके होते हैं, अपने तर्क होते हैं, जिनके आधार पर तस्वीरों और ध्वनि का संपादन और सामंजस्य होता है। ये बड़ी तकनीकी प्रक्रिया है जो आधुनिक कंप्यूटरों और सॉफ्टवेयर्स के जरिए पूरी की जाती है, लिहाजा, ऐसे लोगों के लिए इसमें हाथ डालना मुश्किल होता है, जो इससे किसी हद तक वाकिफ न हों। वीडियो एडिटिंग वस्तुत: सिनेमा संपादन के ही समान प्रक्रिया है और इसमें माहिर होने से पहले इसकी अच्छी-खासी पढ़ाई की अपेक्षा की जाती है, लेकिन समाचार चैनलों में स्थिति अलग है, यहां अभ्यास और अनुभव के बल-बूते काम करनेवाले ऐसे तमाम वीडियो संपादक मिल जाएंगे, जो FTII जैसे संस्थानों से पढ़े-लिखे लोगों के कान काटते हों।
वीडियो एडिटिंग का मसला समझदारी का है, अभ्यास और अनुभव का है, जो काम करते-करते हासिल होते हैं, ऐसे में पढ़ाई-लिखाई और सैद्धांतिक पक्ष को अलग करते इसके व्यावहारिक पक्ष को देखना जरूरी हो जाता है। हालांकि समाचार प्रसारण के लिहाज से देखें तो इसके भी अलग-अलग पक्ष हैं, जिसको लेकर अक्सर डेस्क के धुरंधरों और वीडियो संपादकों में तकरार होती रहती है।
न्यूज़ डेस्क पर खबर लानेवालों और उनकी स्क्रिप्टिंग करनेवालों के लिए सबसे अहम बात ये होती है कि खबर किसी तरीके से पर्दे पर आ जाए, प्रसारित हो जाए। लेकिन वीडियो एडिटिंग से जुड़े लोग उसके कच्चे माल यानी विजुअल और ऑडियो की गुणवत्ता पर सवाल उठाते हैं, जिनके आधार पर प्रसारण की गुणवत्ता प्रभावित होने का डर रहता है। आज के दौर में, कई बार गैर-प्रशिक्षित और नए-नवेले कैमरापर्सन्स या स्ट्रिंगर्स की ओऱ से शूट करके भेजे गए विजुअल्स में तमाम ऐसी दिक्कतें होती हैं, जिनकी वजह से उनका प्रसारण कायदे से नहीं किया जा सकता। कई बार ओबी वैन के जरिए या इंटरनेट के जरिए भेजे गए वीडिय़ो और ऑडियो में भी काफी खराबी महसूस होती है।  ऐसे में कई जरूरी खबरों के प्रसारण  पर भी संकट खड़ा हो जाता है। ऐसी परिस्थितियों में वीडियो एडिटर कई बार अपने वीटोपॉवर के जरिए खबरों के प्रसारण में बाधक बनते हैं, तो कई बार संकट मोचक भी साबित होते हैं। अगर विजुअल और ऑडियो की क्वालिटी खराब मिले तो बीच का रास्ता उनके स्पेशल ट्रीटमेंट के जरिए निकाला जाता है, जिसमें वीडियो एडिटर्स को अपना कौशल दिखाने का मौका मिलता है। कुछ इफेक्ट्स, कुछ कलर कंबिनेशन, कलर करेक्शन, कुछ विजुअल प्रॉपर्टीज़ में बदलाव- वीडियो एडिटिंग के सॉफ्टवेयर्स के इस्तेमाल से जहां एक ओर स्टोरी में जान डाली जा सकती है, वहीं अगर सख्ती से parameters का पालन किया जाए, तो कई अहम खबरों का प्रसारण खटाई में पड़ सकता है। ऐसे में समाचार प्रसारण से जुड़े लोगों के लिए वीडियो एडिटिंग का भी ज्ञान होना परमावश्यक है।
सबसे पहले ये बात समझनी चाहिए कि जिस तरीके से आप खबरों की स्क्रिप्टिंग करते हुए घटनाक्रम को व्यवस्थित करके पेश करते हैं, वैसे ही वीडियो एडिटिंग के जरिए खबर से जुड़े विजुअल्स को एक ऐसे क्रम में सजाया जाता है, जिसका कुछ मतलब निकले। कहा जाता है कि टेलीविजन तो विजुअल माध्यम है, लिहाजा तस्वीरें खुद खबर की कहानी कह दें, ऐसा होना चाहिए। ये काम वीडियो एडिटिंग के जरिए संभव हो सकता है, बशर्ते तस्वीरें खुद बोलनेवाली हों और बगैर कुछ अलग से कहे, खुद ही खबर बयां कर दें। लेकिन हमेशा ऐसा नहीं होता और आमतौर पर खबरों से जुड़े वीडियो और ऑडियो को पहले से लिखी गई स्क्रिप्ट के आधार पर एक क्रम में सजाया जाता है। और ये वो स्थिति है, जहां लेखन के व्याकरण और वीडियो के व्याकरण का टकराव होता है। यही वो बिंदु है, जहां न्यूज़ डेस्क के कारिंदों और वीडियो एडिटर्स में टकराव होता है, जब लिखनेवाले अपनी रौ में बहकर खबर की जबर्दस्त कहानी लिख जाते हैं, जबकि वीडियो एडिटर्स के पास लिखित स्क्रिप्ट से सामंजस्य बिठाने के लिए जरूरी विजुअल्स नहीं होते, ऑडिय़ो नहीं होता। ऐसी स्थिति न पैदा हो, इसके लिए जरूरी ये है कि जो लोग टीवी पत्रकारिता में काम करते हैं, उन्हें विजुअल्स के हिसाब से खबर लिखने की अच्छी समझ हो। ऐसा अक्सर होता भी है, और नहीं भी होता है, जिसकी कई वजहें हैं और उनकी चर्चा कई आलेखों में हो चुकी है। संक्षेप में बता दूं, कभी लिखने वालों के पास विजुअल्स की जानकारी नहीं होती, तो कभी वो इससे बेपरवाह होकर खबर लिख डालते हैं। कई बार स्थिति विपरीत भी होती है, जब नासमझ और अज्ञानी वीडियो एडिटर्स उपलब्ध सामग्री का सही इस्तेमाल करना ही नहीं जानते हैं। यानी गड़बड़ियां दोनों तरफ हो सकती हैं। इसकी काट निकालने के लिए समाचार चैनल्स में कुछ ऐसी व्यवस्था की गई है जिससे टकराव की नौबत न आए और आए भी तो काम आसानी से निकल जाए। इसके लिए डेस्क के ही कुछ स्टाफ वीडियो एडिटर्स की सहायता के लिए या यूं कहें कि उनसे काम करवाने के लिए तैनात किए जाते हैं, जिनकी जिम्मेदारी स्टोरी की एडिटिंग से जुड़ा रफ वर्ककरना होता है और वीडियो एडिटर्स उन्हें फ़ाइनल टच देते हैं यानी इस तरह स्टोरी के लिए जरूरी विजुअल तलाशने और जहां कमी है, वहां रास्ता निकालने के लिए दिमाग खर्च करने की जरूरत ही नहीं, क्य़ोंकि वो सारा सिरदर्द तो डेस्क के उस स्टाफ के जिम्मे रहता है, जिसे स्टोरी पैकेजिंग की जिम्मेदारी सौंपी जाती है। हालांकि, अपवाज हर स्थिति में दिखते हैं, ऐसे वीडिय़ो एडिटर्स भी कम नहीं, तो खुद पहल करके स्टोरी को जानदार बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ते और इसके लिए स्क्रिप्ट लिखनेवालों से बाकायदा बातचीत भी करते हैं, सलाह-मशविरा करते हैं। स्क्रिप्ट लिखनेवालों की ओऱ से भी इस तरह की पहल की जाती है और वीडियो एडिटर्स को ये बताया जाता है कि वो स्टोरी में विजुअल्स और ऑडियो का कैसा ट्रीटमेंट चाहते हैं। ये आदर्श स्थिति है और ऐसी स्थिति रहे, तभी खबरों की तैयारी अच्छी तरह से हो सकती है। लेकिन जैसा पहले कहा, इसके लिए डेस्क के स्टाफ को भी वीडियो एडिटिंग की कुछ हद तक जानकारी होना बेहद जरूरी है।
वीडियो एडिटिंग को प्रसारण की तकनीकी भाषा में समझें, तो सिर्फ विजुअल्स और Shots के संपादन की ही प्रक्रिया नहीं, इसे post production process का भी हिस्सा माना जाता है। इससे पहले ये जान लें कि production क्या है- उसके तहत कैमरा वर्क और शूटिंग का काम आता है, जिससे खबर या प्रोग्राम के लिए कच्ची तैयारी होती है। हालांकि लाइव टेलीविजन समाचार प्रसारण में production का मतलब उस समग्र आउटपुट से है, जो स्क्रीन पर दिखता है, और इस प्रक्रिया में वीडियो एडिटिंग स्टोरी की शूटिंग के बाद का चरण है, जब स्टोरी को प्रसारण के लायक बनाया जाता है। वीडियो एडिटिंग का मकसद यूं तो यही है कि जैसा आप चाहते हों, उस तरह स्टोरी तैयार होकर दिखे। इसके लिए आपको पहले से शूट किए गए विजुअल्स यानी फुटेज से फालतू हिस्से निकालने होते हैं, और जरूरी हिस्सों के क्रम का चयन करना पड़ता है। स्टोरी की स्क्रिप्ट के मुताबिक, चुने गए विजुअल्स को उस क्रम में सजाया जाता है, ताकि वो प्रवाहमय तरीके से कहानी बयां कर सकें। इसके साथ ही, उनमें आवश्यकतानुसार विजुअल्स के साथ ग्राफिक्स, एनिमेशन और म्यूजिक जैसे तत्वों का भी समावेश करते हैं, ताकि स्टोरी और असरदार होकर उभरे। विजुअल्स का ट्रीटमेंट वीडियो एडिटिंग का हिस्सा है, जिसके जरिए वीडियो को असरदार बनाने, उसके किसी पक्ष को उभारने या उस पर प्रकाश डालने का काम किया जाता है। कोई खास संदेश देने के लिए या कोई खास नजरिया पेश करने के लिहाज भी विजुअल के ट्रीटमेंट और उनमें स्पेशल इफेक्ट्स का इस्तेमाल होता है।
टेलीविजन के समाचार चैनलों में आजकल कंप्यूटर आधारित digital non-linear editing का चलन है। भारत में ये चलन सन 2000 के बाद से लगभग पूरे प्रसारण जगत में छा गया है। इसके पहले Linear editing का चलन था, जिसे आसान भाषा में इस तरह समझा जा सकता है कि एक रिकॉर्डेड टेप से सामग्री लेकर दूसरी टेप में कॉपी करना। इसके लिए एक बार में एक सोर्स वीडियो प्लेयर और एक वीडियो रिक़ॉर्डर का इस्तेमाल किया जाता था। इस तरीके से एक बार में एक टेप से ही दूसरे टेप में विजुअल्स, या ऑडियो या दूसरे तत्वों का ट्रांसफर मुमकिन था, यानी ये प्रक्रिया एक ही सीधी रेखा के समान पूरी होती थी, इस तरह अलग-अलग टेप से एक स्टोरी के लिए विजुअल का इस्तेमाल आसान नहीं था और ये प्रक्रिया काफी जटिल और समय लेने वाली थी। साथ ही इसमें गलतियों की भी संभावना काफी होती थी। वैसे ये अभ्यास और अनुभव का ही मामला है, कई लोग अब भी Linear editing को ही आसान और सरल मानते है। Non-linear editing में इससे अलग कई स्रोतों से एक साथ इनपुट लेने और एक समग्र आउटपुट हासिल करने की सुविधा होती है, इसीलिए इसे non-linear कहा जाता है यानी कई माध्यम स्रोतों से एक साथ एक आउटपुट हासिल करना । इसके मुख्यतः तीन पहलू हैं- Capture, Edit और Output यानी फुटेज जमा करना, उन्हें एडिट करना और एडिटेड स्टोरी हासिल करना। इस प्रक्रिया के लिए सबसे पहले तमाम वीडियो फुटेज को पहले कंप्यूटर की हार्ड डिस्क में स्टोर करना या रिकॉर्ड करना पड़ता है जिसके लिए ‘capturing’ शब्द का इस्तेमाल होता है। और फिर अलग-अलग स़ॉफ्टवेयर्स के जरिए उन्हें एडिट करने की व्यवस्था होती है। आसान सा सवाल ये उठता है कि वीडियो फुटेज को पहले कंप्यूटर की हार्ड डिस्क में डालने में भी वक्त खराब हो सकता है, तो फिर सीधे टेप से linear editing क्यों न करें? इस संकट से उबरने के लिए तो आजकल तमाम चैनलों में स्टोरी फीड सीधे कंप्यूटर के सर्वर में रिकॉर्ड करने का इंतजाम है, जिससे स्टोरी एडिट करने के लिए अलग से फुटेज डलवाने की जरूरत नहीं पड़ी। बहरहाल कुछ चीजें, जो टेप में होती हैं, उन्हें तो कंप्यूटर सर्वर में डालने में वक्त लगता ही है, उसका कोई उपाय नहीं। इसके बाद वीडियो एडिटिंग की प्रक्रिया में आएं तो Velocity, Adobe Premiere, FCP, Dayang, Incite जैसे तमाम स़ॉफ्टवेयर्स हैं, जिनमें एडिटिंग की प्रक्रिया सैद्धांतिक तौर पर समान ही है, फर्क सिर्फ इफेक्ट्स और इस्तेमाल किए जानेवाले खास प्लग-इन्स का होता है, जिसकी वजह से सबकी अलग-अलग खासियत और सुविधाएं-असुविधाएं होती हैं। सैद्धांतिक तौर पर देखें तो हरेक वीडियो एडिटिंग सॉफ्टवेयर में स्टोरी या विजुअल एडिट करने के लिए सबसे पहले एक Project बनाना पड़ता है, जिसका कुछ नाम देना पड़ता है। ये Project वैसी ही चीज है, जैसे MS-Word की कोई फाइल, जिसमें आप कुछ भी लिख सकते हैं। Projects में आप जितनी चाहें उतनी timelines बना सकते हैं और हर timeline पर विजुअल, ऑडियो, और ग्राफिक्स का संयोजन हो सकता है। Timeline को हिंदी में समझें, तो समय रेखा- यानी मिनटों और घंटों की सामग्री आसानी कंप्यूटर के पर्दे पर देखने और उसमें मनचाहे बदलाव करने की सुविधा। हालांकि इसके लिए सॉफ्टवेयर के कुछ और जरूरी पहलू हैं- मसलन-
क्लिप्स- स्टोरी से जुड़े छोटी-छोटी समयावधि के विजुअल्स का संयोजन
फुटेज बिन- जहां स्टोरी से जुड़ी तमाम फुटेज की क्लिप्स आप लाकर रख सकते हैं और इस्तेमाल कर सकते हैं
सोर्स विंडो- स्टोरी से जुड़ी तमाम फुटेज की क्लिप्स देखने के लिए बनी विंडो
प्रीव्यू विंडो- एडिट किए गए क्लिप्स देखने के लिए विंडो
इफेक्ट्स स्टोर– स्टोरी में इस्तेमाल करने के लिए तमाम किस्म के इफेक्ट्स यहां पहले से रखे होते हैं, मसलन wipe, fade in, fade out, dissolve , picture in picture वगैरह, जिन्हें आप मनचाहे तरीके से इस्तेमाल कर सकते हैं
ट्रांजिशन स्टोर- स्टोरी में इस्तेमाल करने के लिए तमाम किस्म के ट्रांजिशन इफेक्ट्स यहां पहले से पड़े होते हैं, जिन्हें आप एक Shot से दूसरे shot के बीच तालमेल बिठाने के लिए मनचाहे तरीके से इस्तेमाल कर सकते हैं
ऑडियो विंडो- यहां ऑडियो लेवल देखे जा सकते हैं और जरूरत के मुताबिक एडिटिंग के दौरान क्लिप्स में व्यवस्थित किए जा सकते हैं
जिन टाइमलाइंस पर स्टोरी एडिट होती हैं, वो कई लेयर्स में बंटे होते हैं- ऑडियो लेयर्स , वीडियो लेयर्स
आमतौर पर दो ऑडियो और दो वीडियो लेयर्स टाइमलाइन पर देखे जाते हैं, जिनकी संख्या बढ़ाने की सुविधा भी होती है
एक वीडियो लेयर फुटेज के लिए और दूसरा ग्राफिक्स के लिए इस्तेमाल हो सकता है
वहीं ऑडियो के लेयर्स में से एक नैचुरल एंबिएंस और दूसरा मेन ऑडिय़ो का लेयर हो सकता है, क्योंकि आमतौर पर शूट किए गए विजुअल्स में दोनों किस्म के ऑडियो होते हैं, जो टाइमलाइन पर अलग-अलग लेयर्स में देखे और संपादित किए जा सकते हैं जरूरत के मुताबिक।
एडिटिंग सॉफ्टवेयर्स के इन उपरोक्त मूल पहलुओं को समझने के बाद आप वीडियो एडिटिंग के टूल्स का इस्तेमाल करने की तैयारी कर सकते हैं, जिनके बारे में विशेष जानकारी और उनके शॉर्टकट सॉफ्टवेयर्स के मैनुअल या हेल्पविंडो से मिल सकती है। सबसे आसान तरीका drag and drop का होता है, यानी फुटेज बिन से विजुअल खींचकर कर्सर के जरिए टाइमलाइन पर लाना । फिर उनमें जरूरत के मुताबिक काट-छांट करना। आम तौर पर इस प्रक्रिया में सुविधा ये है कि Windows या Mac आधारित तमाम कंप्यूटरों के आम तौर पर इस्तेमाल होनेवाले शॉर्टकट keys एडिटिंग में भी इस्तेमाल होते हैं, मसलन Cut  and Paste के लिए Ctl+ C और Ctl+ V. वैसे अगर आप किसी समाचार चैनल में काम कर रहे हों, तो अपने पड़ोस में बैठे सहयोगी से बेहिचक पूछिए। इससे हाथ-के-हाथ आपकी दिक्कतों का निवारण हो सकेगा और कुछ जुगाड़तकनीक के बारे में भी पता चलेगा जो आगे चलकर आपकी राह आसान कर सकती है।  एक बार स्टोरी एडिट हो गई, तो फिर उसे या तो टेप पर रिकॉर्ड करने या फिर न्यूज़रूम ऑटोमेशन सिस्टम्स के जरिए उन्हें Ids बनाकर क्लिप्स के रूप में सुरक्षित करने की प्रक्रिया होती हो, जो हरेक चैनल में अलग-अलग हो सकती है।
Linear editing के उलट non-linear में एक और सुविधा ये है कि इसके सॉफ्टवेयर्स में ही ग्राफिक्स के कुछ सीमित स्तर के काम किए जा सकते हैं, जबकि बड़े स्तर के काम ग्राफिक्स का विभाग ही करता है और वहां से तैयार माल को स्टोरी में इस्तेमाल के लिए अन्य तरीकों से non-linear के सॉफ्टवेयर्स में लाया जाता है, ताकि स्टोरी में उन्हें शामिल किया जा सके।
 Non-linear editing में जो सिस्टम इस्तेमाल होते हैं, उनमें आमतौर पर सर्वर या फुटेज सोर्स के लिए वीडियो टेप प्लेयर या रिकॉर्डर, एक उच्च क्षमता और बड़ी स्टोरेज वाला कंप्यूटर, और स्पीकर्स , हेडफोन्स प्रमुख हैं। कंप्यूटर में वो सॉफ्टवेयर लोड होने चाहिए, जिनके जरिए एडिटिंग की जाती है। स्टोरी एडिट होने के बाद VTR के जरिए उसे टेप पर रिकॉर्ड किया जा सकता है। साथ ही एडिटिंग का प्रिव्यू देखने के लिए बड़ा वीडियो मॉनीटर या टेलीविजन सेट भी रखा जा सकता है।
वीडियो एडिटिंग का एक और पहलू है ‘Live editing’ या ‘Online editing’. ये प्रक्रिया Live television coverage के दौरान या फिर प्रसारण के दौरान Panel Control Room में देखी जा सकती है, जब कई सोर्स से एक साथ आ रहे वीडियो और ऑडियो का संयोजन सीधे प्रसारित होते हुए देखा जा सकता है।
आज के दौर में चल रहे प्रसारण के परिदृश्य में वीडियो एडिटिंग न सिर्फ तकनीक और प्रौद्योगिकी का बेहतरीन नमूना है, बल्कि प्रसारण से जुड़े लोगों के लिए ये उनकी कलात्मक और रचनात्मक क्षमता को पेश करने का शानदार तरीका भी है। ऐसे में इसके पहलुओं को गहराई से जानना उन लोगों के लिए काफी फायदेमंद हो सकता है, जो टेलीविजन से किसी भी तरीके से जुड़े हों, चाहे समाचार प्रसारण से या फिक्शन से ही क्यों न।
-          कुमार कौस्तुभ
-          09.05.2013, 09.17 PM

No comments: