Wednesday, May 8, 2013

प्रसारण के पहलू- 1- कैमरा




क..क..क = कैमरा..कम्प्यूटर..कैमरा
*टेलीविजन समाचार प्रसारण के बारे में लेखन के दौरान कई सुधी मित्रों के सुझाव आए कि प्रसारण के तकनीकी पहलुओं पर भी लिखा जाना चाहिए। तो इस कड़ी में प्रस्तुत है ये आलेख-  
टेलीविजन समाचार प्रसारण और मनोरंजन टेलीविजन या सिनेमा में सबसे पहला फर्क जो समझ में आया है, वो ये कि समाचार प्रसारण के लिए घटना की तस्वीरों के आधार पर स्क्रिप्ट तैयार करनी होती है, जबकि मनोरंजन टेलीविजन और सिनेमा के लिए पहले से तैयार स्क्रिप्ट के आधार पर विजुअल शूट करने पड़ते हैं। यानी सिनेमा और मनोरंजन टेलीविजन में जहां कलम और कैमरे की जोड़ी बनती है, वहीं न्यूज़ टेलीविजन में कैमरे के बाद कलम और फिर कैमरे की संगत बैठती है। मौजूदा दौर में कलम की जगह कंप्यूटर ने ले ली है और चुंकि सारी स्क्रिप्ट कंप्यूटरों के जरिए लिखी जाती है और उसी के जरिए प्रसारित होती है लिहाजा क..क..ककी ये संगति कैमरा..कंप्यूटर और कैमराके तरीके से बैठती है। हालांकि ऐसा भी होता है, जब खबर की स्क्रिप्ट पहले से तैयार हो और उसी के मुताबिक शूटिंग की जाए, लेकिन ऐसी स्थितियां अपवाद ही नहीं, असंगत भी और समाचार प्रसारण की नैतिकता के खिलाफ भी हैं, जिनकी चर्चा सही नहीं होगी। फिलहाल बात समाचार प्रसारण के क्षेत्र में कैमरे, कंप्यूटर और फिर कैमरे के संयोग पर हो रही है, तो आइए, इसी पर विचार करें। 
     सवाल है, टीवी समाचार प्रसारण में सबसे पहले कैमरे की बात क्यों? तो...वो इसलिए कि कैमरा ही वो तस्वीरें उपलब्ध कराता है, जिन पर आधारित होती हैं टेलीविजन पर प्रसारित होनेवाली खबरें। इस लिहाज से टेलीविजन पत्रकार की असल पहचान ही कैमरा है- भले ही वो पत्रकार हों या निरा कैमरामैन, जिन्हें कुछ अहमियत देने के लिए कैमरापर्सन कहा जाने लगा है। मूल काम तो जान पर खेलकर वो खास तस्वीरें (विजुअल्स) और वीडियो शूट करना, वो बाइट्स हासिल करना है, जो जिनपर समाचार की बुनियाद टिकी होती हैं। इस लिहाज से वो टीवी पत्रकार तो अधूरे माने जा सकते हैं, जिन्हें कैमरे का ज्ञान नहीं हो और जो अपनी खबर के लिए किसी कैमरापर्सन की मदद की दरकार रखते हों। विदेशों में तो टीवी पत्रकार का मतलब ही ऐसी शख्सियत से होता है, जिसे न सिर्फ खबर की समझ हो, बल्कि वो खबर शूट करने में भी उतना ही माहिर हो। भारत में सीएनएन की तर्ज पर 10-12 साल पहले प्राइवेट टीवी चैनलों की शुरुआत इसी परिकल्पना के साथ हुई थी कि टीवी पत्रकार खबरें निकालें भी और खुद ही खबरें शूट भी करें। लेकिन ये चलन अब काफी हद तक स्ट्रिंगर्स में ही दिखता है, बाकी टीवी पत्रकार कैमरावर्क से दूर और कैमरे के View-finder के पीछे रहने के बजाय उसके आगे पीस-2-कैमरा करते ही दिखते हैं। एक फ़लसफ़ा और कड़वी सच्चाई तो ये है कि कैमरावर्क न सिर्फ तकनीक, बल्कि कला भी है और दिमागी मेहनत से ज्यादा शारीरिक श्रम का काम है, जिसे करने में पत्रकार कहलानेवाले बंधुओं के पसीने छूट जाते हैं। वैसे तो फील्ड में खबरें निकालने की जोड़-तोड़ और खबरों से जुड़े लोगों को बाइट और चैट के लिए लाइन-अप करने का काम भी कम मशक्कतवाला नहीं, जिसकी वजह से टीवी पत्रकारों को ऐसे सहयोगियों की जरूरत पड़ती है, जो कैमरा लेकर उनके साथ दौड़ सकें और उनकी मदद कर सकें। ऐसे में खबर बनाने का काम टीम वर्क हो जाता है और कैमरे को संचालित करनेवाले कैमरापर्सन्स को भी आजकल खबरों में उतनी ही अहमियत मिलती है और उनका भी नाम उतनी ही मजबूती से रिपोर्ट्स में शामिल होता है, जितनी मजबूती से रिपोर्टर्स का। रिपोर्टर्स भी पीस-2-कैमरा करते हुए कैमरे के पीछे खड़े अपने साथी को तवज्जो देना नहीं भूलते और उनका नाम भी रिपोर्ट में शामिल करते हैं, चुंकि वो ये समझते हैं, कि टीवी रिपोर्टिंग का ये काम अकेले उनके बूते का नहीं। ऐसे में कैमरापर्सन महज कैमरा ऑपरेटर न होकर टीवी पत्रकारों की उस बिरादरी में शामिल हो गया है, जो पहले चुनिंदा ऐसे लोगों का दायरा थी, जो जोड़-तोड़ और समीकरण बनाने में माहिर समझे जाते थे।
      बहरहाल दूसरा सवाल ये है कि आप टीवी पत्रकार हैं, फील्ड के रिपोर्टर हैं या पेशे से समाचार चैनल के कैमरापर्सन हैं, तो आपको क्या-क्या जानना चाहिए, कौन-से कौशल आपके पास होने चाहिए, जिनकी बदौलत आप खबर को पकड़ सकें, कैमरे में कैद कर सकें औऱ प्रसारण के लिए प्रस्तुत कर सकें। सबसे बड़ी बात तो ये है कि आपको वीडियो कैमरे यानी कैमक़ॉर्डर्स को ऑपरेट करने का ज्ञान होना चाहिए और दूसरी बात ये कि आपके पास अच्छे से अच्छे विजुअल शूट करने की कला होनी चाहिए, ये कला तब आ सकती है, जब आप प्रसारण के लिए तैयार टीवी स्क्रीन के लिहाज से सोचते हों, और उसी लिहाज से विजुअल बनाने के लिए फ्रेम तैयार करते हो। इसके लिए आपमें सोचने की क्षमता और काफी धैर्य होना चाहिए, ताकि आप शूट किए जानेवाले ‘object’ या ‘situation’ से बेहतरीन विजुअल्स हासिल कर सकें। आजकल कैमरों की तकनीक काफी समृद्ध हो चुकी है लिहाजा कैमरापर्सन को तस्वीरों की क्वालिटी का ध्यान रखने के लिए ज्यादा मेहनत अपनी ओऱ से नहीं करनी पड़ती क्योंकि समय और परिस्थितियों, लाइटिंग, और मौसम के लिहाज से कैमरे के लेंस और दूसरी सेटिंग्स एडजस्ट करने में दिक्कत नहीं होती । इसके अलावा एक और अहम बात ये है कि आजकल डिजिटल किस्म के कैमरे काफी हल्के और आकार में छोटे आने लगे हैं, उतने वजनी नहीं रहे, जितने कि 10 साल पहले तक मिलते थे, लिहाजा आउटडोर शूटिंग के लिए उन्हें इस्तेमाल करना उतना कठिन और श्रमसाध्य नहीं रहा। चुंकि कैमरों की तकनीक भी काफी समृद्ध हो चुकी है, लिहाजा कैमरापर्सन के लिए उन्हें इस्तेमाल करना भी आसान है। आप भागदौड़ करते हुए भी तस्वीरें उतार सकते हैं, या फिर हल्के tripod के इस्तेमाल से भी मनचाहा फ्रेम बना सकते हैं। जिन चीजों का ध्यान आपको रखना है, उनमें प्रमुख हैं Shots और Sequence. आपको ये जानकारी होनी चाहिए कि कैमरे से शूट किया गया पूरा वीडियो Shots में बंटा होता है, जिनका चयन आपको ही करना होता है और अगर आपने सही क्रम में यानी सही Sequence में Shots शूट किए हों, तो समाचार से जुड़ी स्टोरी की editing भी आसान हो जाती है। आम तौर पर समाचारों के लिए ज्यादा वीडियो शूट करने की जरूरत नहीं होती, उतना ही वीडिय़ो शूट करना जरूरी होता है, जितने में स्टोरी का हर हिस्सा पूरा हो जाए। यानी आम तौर पर डेढ़ मिनट के स्टोरी पैकेज के लिए 5 से 6 मिनट के वीडियो की शूटिंग आदर्श मानी जा सकती है बशर्ते वो सही तरीके से सही Sequence में हो। समय बचाने के लिए आपको ये ध्यान रखना पड़ेगा कि किस Shot का Duration आपने कितना रखा है, कहां आपने recording शुरु की और कहां रोकी। इसके साथ ही सही Shots का चुनाव करते हुए आपको Framing और Composition का भी ख्याल रखना होगा। Framing से मतलब ये है कि आप किसी चीज को कैमरे के viewfinder से किस तरह देख रहे हैं। और Composition का मतलब ये हुआ कि आप उक्त object की तस्वीर लेने के लिए किन बातों का ख्याल रख रहे हैं, मसलन उसकी पृष्ठभूमि में क्या है, उसके आसपास और उस object पर lighting कैसी है, उसका रुख किस ओर है या होना चाहिए, क्या आपका कैमरा जहां स्थित है, वहां की दूरी के हिसाब से आप उस object को और दूर देखना चाहते हैं, या नजदीक यानी zoom in या zoom out की स्थिति। आप अपने कैमरे के फ्रेम में object के साथ-साथ और कितना स्पेस लेना चाहते हैं, ऐसी तमाम बातें  Composition के दायरे में आती हैं जिनके बारे में विस्तृत जानकारी कैमरे और वीडियो फोटोग्राफी से जुड़ी किसी भी किताब या किसी भी वेबसाइट से हासिल की जा सकती है। यहां मेरा मकसद सिर्फ ये चर्चा करना है कि एक टीवी पत्रकार के लिए कैमरे से जुड़ी क्या-क्या मूलभूत जानकारी आवश्यक है। बात Shots की करें, तो यूं तो कैमरों से कई तरह के Shots लिए जा सकते हैं- मसलन –
Close ups- चेहरे या object का सबसे करीब से लिया गया Shot, जिसमें उसका feature जाहिर हो
Medium Close ups
Mid shot- object का मध्यम दूरी से shot, जिसमें उसका तकरीबन आधा हिस्सा दिखे
Long shots- object का दूर से लिया गया shot जिसमें उसका पूरा आकार और परिदृश्य भी शामिल हो
Wide shots- जिसमें object अपने पूरे आकार में दिख सके
Very wide shots- जिसमें object के साथ-साथ पूरा माहौल और परिदृश्य भी दिख सके।
Extreme wide shots
Cutaway- एक ही object के अलग-अलग एक्शन में या अलग-अलग तरीकों से लिए गए Shots
Transition- ऐसे Shots, जो दो अलग-अलग किस्म के shots को जोड़ने और उन्हें एक sequence में लाने में मददगार साबित हों। ऐसे shots की जरूरत इसलिए पड़ती है क्योंकि कोई भी वीडियो स्टोरी आखिरकार Shots का संयोजन ही तो हैं, और सभी shots एक के बाद एक क्रम में व्यवस्थित तरीके से सजे दिखें, इसके लिए कुछ ऐसे Shots की जरूरत होती है, जो उनके बीचोबीच आनेवाले gap को भर सकें, जिससे उनके बीच कोई अवरोध या भटकाव जैसा न लगे। ये Transition आमतौर पर ग्राफिक्स के इफेक्ट्स के रूप में भी इस्तेमाल किए जाते हैं, लेकिन अगर इन्हें शूट करने की गुंजाइश बने, तो इससे बेहतर कुछ और नहीं। मसलन अगर किसी व्यक्ति का वीडियो शूट किया जा रहा हो, तो उसे आपादमस्तक sots के साथ-साथ उसके बदन के दूसरे हिस्सों, हाथों, पांव, कंधे से जुड़े चेहरे , चेहरे के close up जैसे कई ऐसे shots लिए जा सकते हैं, जो उस व्यक्ति का वीडियो तैयार करने के दौरान कई तरह के shots को क्रम में व्यवस्थित करने में काम आएंगे।
इसके अलावा कई तरह के shots तो camera movement के जरिए भी हासिल होते हैं। मसलन-
Pan- यानी एक साइड से दूसरे साइड की ओऱ कैमरे को घुमाकर लिया गया Shot
Tilt up and down- ऊपर से नीचे की ओर और नीचे से ऊपर की ओऱ लिया गया shot
Zoom in and out- Object के करीब और दूर, जिसकी चर्चा ऊपर की जा चुकी है
      कैमरा वर्क से जुड़ा एक और अहम सवाल ये है कि शूट की तैयारी कैसे होनी चाहिए? यहां चुंकि हम समाचार प्रसारण के लिए शूटिंग की चर्चा कर रहे हैं, सीरियल या डॉक्य़ूमेंटरी या सिनेमा के लिए नहीं, लिहाजा हमें काफी योजनाबद्ध तरीके से काम करना चाहिए, ताकि न तो अधिक समय बर्बाद हो, ना ही फिजूलखर्ची हो। लिहाजा अगर पहले से ये तय हो कि कवरेज किस तरह की स्टोरी के लिए है, तो आप ये तय करके चल सकते हैं कि आपको किस तरह के शॉट्स की जरूरत पड़ेगी और आपको उसमे कितना समय देना होगा और कितनी देर कू शूटिंग करनी होगी। अगर location आपकी जानी-पहचानी है, तो आपके लिए ये भी तय करना आसान होगा कि किस जगह कैमरा लगाने से आपको आसानी से बेहतरीन shots मिल सकते हैं। साथ ही आपके लिए ये भी तय करना आसान होगा कि अगर आप OB Van से जुड़े हैं, तो कितनी आसानी से कैमरे के तार और दूसरे उपकरण वहां तक पहुंचाए जा सकते हैं। आपको लाइटिंग का भी ध्यान रखना होगा और ये भी ध्यान देना होगा कि अगर आप फ्लैशलाइट्स इस्तेमाल करना चाहते हैं, तो शूटिंग लोकेशन पर क्या उसके लिए इंतजाम है या फिर आपको बैटरी के सहारे रहना होगा। कैमरे का इस्तेमाल करते हुए भी आपको बैटरी बैक-अप का खास ख्याल रखना चाहिए, अन्यथा बीच में ही लेने के देने पड़ सकते हैं। अगर आपको location के बारे में जानकारी नहीं, तो आपको तय वक्त से कुछ पहले मौके पर पहुंचकर इन चीजों की जानकारी ले लेनी चाहिए और जरूरी इंतजाम कर लेने चाहिए। साथ ही अगर आप किसी दुर्घटना, हादसे, हंगामे या प्रदर्शन जैसे लाइव एक्शन वाली स्टोरीज़ शूट करने जा रहे हों, तो आपके पास पर्याप्त टेप या कैमरे में शूटिंग स्पेस तो होना ही चाहिए, साथ-साथ आपको ये भी याद रखने या नोट करके रखने की सुविधा होनी चाहिए कि कोई खास या स्टोरी के लिहाज से बढ़िया shot या बाइट टेप में कितने घंटे/मिनट/सेकेंड के काउंटर पर उपलब्ध होगी या किस क्रम में मिलेगी। इससे स्टोरी की एडिटिंग में आसानी होती है और shots या bytes तलाशने में वक्त खराब नहीं होता। शूटिंग की योजना बनाते वक्त आपको ये जरूर ध्यान रखना चाहिए कि आप कितनी देर शूट करनेवाले और इसी के हिसाब से आपको या तो अपने कैमरे की डिस्क स्पेस या कार्ड या चिप के स्पेस की जानकारी होनी चाहिए, या फिर अगर आप टेप वाले कैमरे का इस्तेमाल कर रहे हैं, तो जरूरत के हिसाब से आधे घंटे से लेकर 3 घंटे तक अवधि के वीडियो टेप आपके पास जरूर होने चाहिए। आपको  भी ख्याल रखना चाहिए कि आप शूटिग के लिए जा रहे हैं, तो मौके से आपको साउंड बाइट्स भी लेनी पड़ सकती हैं, तो उसके लिए माइक्रोफोन और साउंड से जुड़ उपकरण भी साथ रहने चाहिए। लाइटिंग के जरूरी उपकरण, ट्राइपॉड जैसे कुछ और जरूरी सामान आवश्यकतानुसार आपकी किट में मौजूद होने चाहिए। हालांकि ये चीजें रोजाना काम करते हुए अभ्यास के साथ याद ही रहती हैं, लेकिन अगर आप लंबी दूरी पर स्टोरी शूट करने जा रहे हों, तो आपको एक चेक लिस्ट बनाकर इन चीजों का ख्याल रखना चाहिए, जो शूट के लिए जरूरी होती हैं।
      एक बार आप मौके पर पहुंचकर कैमरे से शूटिंग पूरी कर लेते हैं, तो फिर बात उसकी फीट समाचार चैनल तक पहुंचाने और खबर की स्क्रिप्टिंग तक आती है, जिसके बाद खबर को प्रसारण के लायक बनाने का काम शुरु होता है। ये प्रक्रिया क..क..ककी अगली कड़ी यानी कंप्यूटर के जरिए पूरी की जाती है। आजकल अगर आप समाचार प्रसारक चैनल से काफी दूर हैं, तो OB Van के जरिए या सैटेलाइट या इंटरनेट के जरिए वीडिय़ो फीड भेजने का इंतजाम होता है, जो काम कंप्यूटरों के जरिए होता है। खबरों की कच्ची या rough स्क्रिप्टिंग भी कंप्यूटरों के जरिए होती है, क्योंकि कलम और पेंसिल का इस्तेमाल खत्म होता जा रहा है। कंप्यूटर और इंटरनेट आधारित स्मार्टफोन्स पर तैयार स्क्रिप्ट्स पल भर में न्यूज़ डेस्क तक पहुंचती हैं, जहां मांजकर और संपादित करके उन्हें प्रसारण योग्य बनाया जाता है, साथ ही वीडियो फीड में भेजी गई सामग्री को भी स्टोरी पैकेजिंग की प्रक्रिया के तहत स्टोरी के हिसाब से edit करके स्क्रिप्ट के साथ संयोजित किया जाता है, ये सारा काम कंप्यूटरों के जरिए ही त्वरित गति से संपन्न होता है।
      इसके बाद की कड़ी में तीसरे यानी एक बार फिर कैमरे पर बात आती है, जब समाचार वाचक या एंकर के जरिए खबर को प्रसारित किया जाता है। यानी आउटडोर शूटिंग के बाद फिर खबर कैमरे पर आ जाती है और इनडोर स्टूडियो के कैमरे से एंकर के जरिए खबर को देश-दुनिया में प्रसारित किया जाता है। खबर से जुड़े हिस्सों यानी पैकेज, विजुअल, बाइट्स वगैरह का भी प्रसारण कंप्यूटर आधारित प्रसारण प्रणालियों के जरिए होता है...और इस तरह प्रसारण की प्रक्रिया में कड़ियों का चक्र पूरा होता है। एंकरिंग तो स्टूडियो के बाहर आउटडोर लोकेशन से भी हो सकती है, लेकिन उसमें कैमरे की जो भूमिका होती है, उसकी जगह कोई और नहीं ले सकता और यहां एक बार फिर से कैमरापर्सन की उपस्थिति अनिवार्य हो जाती है, जिन्हें कैमरे के ऑपरेशन से लेकर उसमें कैद तस्वीरों के प्रसारण के तमाम पहलुओं का ध्यान रखना होता है। मसलन, White balance- यानी कैमरे में आनेवाली तस्वीर के रंगों की adjustment कैसे हो, ताकि वो natural दिखें और उनमें बार-बार बदलाव न आए। इसके लिए आमतौर पर सफेद कागज को लेंस के सामने रखकर adjustment की जाती है और कैमरे के viewfinder का इंडिकेटर इसकी ओर इंगित करता है कि White balance पूरा हुआ या नहीं। Iris / exposure यानी तस्वीर कितनी कम या चमकदार दिखनी चाहिए। Sound- यानी तस्वीर के साथ प्रसारित होनेवाले ऑडियो का स्तर संतुलित है या नहीं। इसके अलावा आजकल कैमकॉर्डर्स में तमाम ऐसे इफेक्ट्स का भी इंतजाम होता है, जिनके जरिए आप अपनी मनपसंद तस्वीरें उतार सकते हैं। लेकिन, बगैर जानकारी हासिल किए, उन्हें इस्तेमाल करना ठीक नहीं होगा। साथ ही ये भी बात ध्यान रखनी चाहिए कि अभ्यास और मनचाहे विजुअल निकालने के लिहाज से कैमरे के automatic features का इस्तेमाल करने के बजाय, कैमरे को manually इस्तेमाल करना ज्यादा बेहतर होता है, क्योंकि इससे आप सीखते भी हैं, और आपकी कैमरे पर पकड़ भी मजबूत होती है। इस क्रम में फोकस का ख्याल रखना अहम होता है, यानी कैमरे के लेंस से object की दूरी  सही हो। चीजें sharp focus में रहें और साफ-साफ दिखें, इसके साथ ही जरूरी है कि वो background से चिपकी न लगें, यानी उनका depth of field सही हो। चीजें अगर फोकस में न होंगी और धुंधली दिखेंगी, तो उन्हें out of focus कहा जाएगा। ऐसी तमाम शब्दावलियां हैं, जिनका इस्तेमाल आमतौर पर कैमकॉर्डर्स और वीडियो कैमरे के इस्तेमाल के दौरान अक्सर होता है औऱ उन पर पकड़ अभ्यास से ही बनती है, लिहाजा खबरिया पत्रकारिता के साथ कैमरे की तकनीक का सामंजस्य बनाना टीवी पत्रकारों के लिए बड़ी चुनौती है, लेकिन उनकी सार्थकता भी इसी बात मे है कि वो अपनी पेशेवर कुशलता में कितने माहिर हैं – ये बात स्क्रीन पर दिखनेवाली स्टोरीज़ में भले ही न दिखें, लेकिन न्यूज़रूम में रोजाना के कामकाज के दौरान जरूर झलकती है।
-          कुमार कौस्तुभ
08.05.2013, 09.44 PM

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