Thursday, October 29, 2009

कैसे बचेगी 'बेतिया राज' की धरोहर?

बेतिया राज के नाम से यूं तो चंपारण का बच्चा-बच्चा परिचित होगा, लेकिन अब इस खानदान की धरोहर और इसके अवशेष खत्म होने की राह पर हैं। शायद वो दिन दूर नहीं, जब इस राजवंश की गाथा इतिहास के पन्नों में सिमट जाए। सन १२४४ में जैथरिया वंश की शख्सियत गंगेश्वर देव के वंशज अगर सेन ने इस राजवंश की नींव रखी। अगर सेन को मुगल सम्राट शाहजहां ने राजा की पदवी से नवाजा था और १६५९ में इस पदवी को सुशोभित करनेवाले उनके वंशज राजा गज सिंह ने बेतिया में अपना महल बनवाया जिसके साथ ही चलन में आ गया इस परिवार का नाम बेतिया राज। ४०० साल पुराने इस राजवंश की तमाम धरोहरें बेतिया में अंतिम सांसें ले रही हैं। इन्हें देखनेवाला इस परिवार का कोई नहीं बचा और सरकार ने इसकी संपत्ति और अवशेषों की देखरेख के लिए जो रिसीवर नियुक्त कर रखा है, वो भी शायद कागजी जिम्मेदारी ज्यादा निभा रहे हैं। हाल ही में दैनिक जागरण के पटना संस्करण के इंटरनेट एडिशन में छपी खबर ने बेतिया राज की धरोहरों की जो दास्तां बयां की है, उसे पढ़कर हकीकत का पता चलता है। ये रिपोर्ट हम ज्यों की त्यों यहां पेश कर रहे हैं-
" ऐतिहासिक बेतिया राज के मंदिरों एवं उसके अन्य धरोहरों पर चोरों की नजर है। जिससे पौराणिक धरोहरों पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं। धार्मिक, सांस्कृतिक एवं राजनीतिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण इस राज की संपदा को संरक्षित रखने की दिशा में कोई सशक्त सरकारी पहल नहीं दिख रही है। आखिर कैसे हो डंडे वाले चौकीदार से कैसे हो बेतिया राज के अरबों की संपत्तियों की रखवाली। हाल में ऐतिहासिक कालीबाग मंदिर में हुई चोरी की घटना ने फिर एक बार इस कमजोर सुरक्षा तंत्र पर सवाल खड़ा कर दिया है। यह परिपाटी रही है कि चोरी की घटनाओं के बाद विभागीय प्रक्रिया पूरी कर ली जाती रही है और भविष्य में इनकी सुरक्षा भाग्य भरोसे छोड़ दिया जाता रहा है। उत्तराधिकारी एवं सरकार की लड़ाई के बीच इस राज की धरोहरों को कोर्ट आफ वार्डस के नियंत्रण में रखा गया है। जिसकी प्रशासनिक नियंत्रण एवं सुरक्षा की जिम्मेवारी पूरी तरह बिहार सरकार के उपर है। सरकारी नियंत्रण के बावजूद राज की अरबों की संपत्तियों की सुरक्षा एक-दो सिपाहियों की जिम्मे है। चोरी की घटनाओं पर जरा गौर करें तो नब्बे के दशक में बेतिया राज के खाजाना के मजबूत चादर काटकर कीमती आभूषणों, पत्थर आदि की चोरी कर ली गयी थी। इस मामले में बेतिया राज की ओर से दो करोड़ की संपत्ति की चोरी कर लिये जाने का मामला नगर थाने में दर्ज कराया गया था। फिर ऐतिहासिक कालीबाग मंदिर में 1996 में अज्ञात चोरों ने मुख्य मंदिर के समक्ष से बटुक भैरव की मूर्ति चुरा ली थी। इस मामले में बेतिया राज की ओर से नगर थाने में मामला दर्ज कराया गया था। इस क्रम में 2000 के दशक में भी राजा के समय के फोटो और खिलौनों समेत अन्य अंतरराष्ट्रीय कीमत के सामग्री की चोरी भी की गयी। लेकिन सभी चोरी के मामले आज तक पुलिस के अनुसंधान और सीआईडी की जांच में फंसे हुए हैं। कोई नतीजा नहीं निकल सका है। इस संपत्ति पर चोरों की गिद्ध दृष्टि इस माह में पड़ी। पिछले सप्ताह राज के अभिलेखागार में चोरी की घटना हुई। इस बाबत राज प्रबंधक सह अपर समाहर्ता ने नगर थाने में प्राथमिकी दर्ज करायी। इस घटना में दरवाजे की छिटकीनी काट कर खोला गया। लेकिन चोरों ने इस घटना में कौन सी परिसंपत्तियों की चोरी की, इस पर केवल संभावना ही व्यक्त की जा सकती है। बता दें कि इस अभिलेखागार में बेतिया राज के जमीन एवं परिसंपत्तियों से संबंधित दस्तावेज रखा गया है। प्राथमिकी में चोरी गये सामग्री का विवरण अंकित नहीं होने से सब कुछ रहस्यमय बना हुआ है। "
सवाल उठता है कि क्या बेतिया राज की धरोहरों और अवशेषों की सुरक्षा जरूरी नहीं, अगर जरूरी है, तो फिर इसकी दुर्दशा के लिए जिम्मेदार कौन हैं, क्या सरकार और प्रशासन को इनके सदुपयोग की कोई चिंता नहीं हुई, सरकार चाहे तो बेतिया राज से जुड़े स्मारकों और महल के अवशेषों को पर्यटन से जोड़कर इन्हें दुनिया के सामने पेश कर सकती है, लेकिन जरूरत इच्छाशक्ति और स्वार्थरहित मानसिकता की है, जो शायद वर्तमान हालात में सरकार और प्रशासन के पास नहीं है।

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