Sunday, October 18, 2009

"जहां आज भी आदिम युग में जीते हैं लोग"


ये है थरुहट की हकीकत
दीपावली के दिन नेट पर अखबार दैनिक जागरण के पन्ने पलटते हुए इस खबर पर नजर पड़ी- "जहां आज भी आदिम युग में जीते हैं लोग" - जिक्र पश्चिम चंपारण जिले के थारु बहुल इलाके दोन का है। आजादी के बासठ साल बाद इस इलाके की याद सरकार को आई हो, ऐसा नहीं है। ये भी कुछ लोग संयोग ही मान सकते हैं कि बिहार में चुनाव करीब है, इसलिए सरकार ने इस इलाके की सुध ली है और जिले के थारु बहुल इलाके की कई पंचायतों को मॉडल घोषित किया है। कारण चाहे जो भी हो, लेकिन आज फिर ये इलाका चर्चा में हैं। अखबार लिखता है- "आदर्श पंचायत के तौर पर घोषित रामनगर प्रखंड का नौरंगिया व बनकटवा करमहिया पंचायत। यहां के लोग आज भी आदिम युग में जीते हैं। ...आजादी के इतने लंबे अंतराल के बाद भी इस इलाके में लोग बिजली, स्वच्छ पानी, शिक्षा व स्वास्थ्य जैसी मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं।" अखबार ये भी लिखता है कि चुनाव के समय नेताओं को दोन की याद आती है और लंबी-लंबी घोषणाएं होती है, लेकिन चुनाव बाद योजना को देखने कोई नहीं आता। नौरंगिया पंचायत की आबादी 12,000 एवं बनकटवा करमहिया की आबादी 13,500 है। दोनों पंचायतों को आदर्श पंचायत का दर्जा भी मिला है। लेकिन इलाके में सिर्फ चौदह फीसदी लोग हीं शिक्षित हैं और हैरत की बात ये भी है कि पांच सौ घरों की बस्ती शेरवा दोन, दो सौ की परेवा दह, दो सौ की चम्पापुर, 70 घरों की 150 घरों की शीतलबाड़ी गांव के किसी भी व्यक्ति ने सरकारी नौकरी का मुंह नहीं देखा। - जाहिर है, इसका मौका तो आगे मिलेगा भी नहीं क्योंकि नरेगा के तहत 100 दिन रोजगार की गारंटी मिलेगी..सरकारी नौकरी की नहीं..बेचारा गरीब बाल-बच्चों का पेट पालेगा, उन्हें बड़ा करेगा और फिर मजदूर ही बना सकेगा, सरकारी बाबू नहीं..क्योंकि सरकारी दफ्तर की कुंजी तो उन लोगों के हाथ में है जो पटना और दिल्ली में बैठते हैं र पांच साल में एक बार दरस दिखा देते हैं..दे देते हैं वादों के पिटारे, दिखा जाते हैं सपने...गांवों के लोगों के हवाले से अखबार लिखता है कि दोन व थरुहट के लोग इलाके में स्कूल-कॉलेज बनाने के लिए जमीन भी देने को तैयार हैं। लेकिन शिक्षा मिलेगी तो वो सवाल भी उठेंगे जिनके जवाब देना नता-नौकरशाहों के लिए शायद मुमकिन नहीं..ऐसे में बदलाव की झलक दिखलाकर अपना काम निकालना भला कौन नहीं चाहेगा...

2 comments:

writerkumar said...

PROGRESS versus EXPLOITATION & NEGLIGENCE

This important post of Kumar Kaustubhji reminds us again: The subcontinent is on the moon and it ignores thousands & millions of its citizen.

A good journalist must reach to the ignored and underprivileged.

Keep it on and thanx again.

Anant Kumar
Member of German Writer Association

Unknown said...

Kaustubh bhaiya It was an audacious effort in a way when in 2006 we a group of four journos decided to visit DOAN: a forlorn Tharu belt lost into wild north of west champaran. To our consternation none was aware of the way to tread to reach any of the DOAN villages. However traversing through at least a dozen rivers and woods we reached Sherwa on our bikes, not to mention those bumps and plunges on [thank God] the mud way. DOAN is an area dominated by illiterate Tharus spreadover in at least 30 villages. We were literally flabbergasted to acknowkledge when the Gumashta {Pradhan}an octagenarian, lamented,"Bharat ke sautela beta ha Doan." It concludes the socio economic plight of Doan. GOvt. schools sans teachers and education consequently flanked Maoist slogans instead. Conspicuously teachers used to make a face saving and hired proxy teachers from local common fry.