Monday, September 22, 2025

23 सितंबर


23 सितंबर 

आयुर्वेद दिवस 

भारत सरकार ने आधिकारिक तौर पर 23 सितंबर को आयुर्वेद दिवस के रूप में घोषित किया है। आयुष मंत्रालय ने कहा कि राजपत्र अधिसूचना के माध्यम से अधिसूचित यह परिवर्तन धनतेरस पर आयुर्वेद दिवस मनाने की पूर्व प्रथा से एक महत्वपूर्ण बदलाव है। मंत्रालय ने कहा कि आयुर्वेद दिवस प्रतिवर्ष आयुर्वेद को एक वैज्ञानिक, प्रमाण-आधारित और समग्र चिकित्सा पद्धति के रूप में बढ़ावा देने के लिए मनाया जाता है, जो निवारक स्वास्थ्य सेवा और कल्याण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। मंत्रालय ने यह भी कहा कि आने वाले दशक में, धनतेरस की तिथि 15 अक्टूबर से 12 नवंबर के बीच व्यापक रूप से बदलती रहेगी, जिससे राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आयुर्वेद दिवस मनाने के आयोजन में कई चुनौतियाँ आएंगी। पहले यह दिन धन्वंतरि जयंती (धनतेरस) को मनाया जाता था। सरकार का मानना है कि तिथि तय होने से आयुर्वेद दिवस को एक सार्वभौमिक कैलेंडर पर पहचान मिलेगी और दुनिया भर में इसका व्यापक रूप से आयोजन संभव हो सकेगा। 2016 से शुरू हुआ आयुर्वेद दिवस अब एक वैश्विक आंदोलन बन चुका है। आज यह भारत के पारंपरिक ज्ञान का उत्सव ही नहीं, बल्कि दुनिया में तेजी से बढ़ती स्वास्थ्य चिंताओं का समाधान भी बन रहा है। एनएसएसओ के सर्वे के अनुसार, भारत में ग्रामीण और शहरी दोनों ही क्षेत्रों में आयुर्वेद को सबसे ज्यादा अपनाया जा रहा है।

सांकेतिक भाषा दिवस 

हर साल 23 सितंबर को इंटरनेशनल साइन लैंग्वेज डे यानी अंतर्राष्ट्रीय सांकेतिक भाषा दिवस मनाया जाता है. यह दिन पहली बार 2018 में मनाया गया, इसका उद्देश्य सांकेतिक भाषाओं के प्रति जागरूकता बढ़ाना है, इस दिन को सारा राष्ट्र द्वारा मान्यता प्राप्त है, इसे हर साल विश्वभर में मनाया जाता है. 23 सितंबर 2018 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने इस दिवस को मनाने की घोषणा की थी. यह दिन बहरे और हियरिंग इम्पेयरमेंट लोगों की भाषा, सांकेतिक भाषा के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए समर्पित है. इस दिन को मनाने के पीछे एक लंबा इतिहास और गहरा महत्व छिपा हुआ है. इस दिन का मुख्य उद्देश्य आम लोगों में सांकेतिक भाषा के बारे में जागरूकता बढ़ाना है. यह लोगों को यह समझने में मदद करता है कि सांकेतिक भाषा एक भाषा है, एक संचार का माध्यम है, और यह बधिर समुदाय के लोगों के लिए उतनी ही महत्वपूर्ण है जितनी कि किसी भी अन्य समुदाय के लिए उनकी भाषा. यह दिन सांकेतिक भाषा बोलने वाले लोगों के खिलाफ भेदभाव को खत्म करने के लिए भी काम करता है. यह लोगों को यह समझने में मदद करता है कि सांकेतिक भाषा कोई विकृति नहीं है, बल्कि एक प्राकृतिक और सुंदर भाषा है.

हरियाणा वीर और शहीदी दिवस

हरियाणा (Haryana) में आज के दिन (23 सितंबर ) को वीर एवं शहीदी दिवस मनाया जाता है। आज के दिन यहां ज्ञात-अज्ञात शहीदों और स्वतंत्रता सेनानियों को याद करके उन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। हरियाणा में 23 सितम्बर का दिन सन् 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के महानायक अमर शहीद राव तुलाराम (Rao Tularam) की शहादत के लिए मनाया जाता है। स्वतंत्रता संग्राम के अग्रणी क्रांतिकारी राव तुलाराम को हरियाणा में राज नायक की उपाधि दी गई है। हरियाणा सरकार ने 23 सितंबर को हरियाणा वीर और शहीदी दिवस के रूप में मनाने का फैसला किया है। इस दिन राज्य के प्रत्येक जिले में सार्वजनिक बैठकें, समारोह और सेमिनार आयोजित कर शहीदों को श्रद्धांजलि दी जाएगी और शहीदों के परिजनों तथा वीरता पुरस्कार प्राप्तकर्ताओं को भी स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया जाएगा। स्वतंत्रता सेनानियों और कारगिल युद्ध के नायकों को जिला-स्तरीय समारोहों में आमंत्रित किया जाएगा। 

हाइफ़ा विजय दिवस

23 सितंबर है, हाइफ़ा विजय दिवस! आज के दिन को विदेशी धरती पर भारतीयों के पराक्रम की महान गाथाओं में विशेष स्थान प्राप्त है। 1918 में आज के दिन तत्कालीन जोधपुर रियासत के सपूत श्री दलपत सिंह शेखावत और उनकी जांबाज़ टुकड़ी ने इज़रायल के प्रमुख शहर हाइफ़ा को तुर्क आतंकवादियों के अवैध कब्ज़े से आज़ाद करवाया था। हाइफ़ा की यह ऐतिहासिक लड़ाई 23 सितंबर, वर्ष 1918 को लड़ी गई थी। इस लड़ाई में भारतीय सेना का नेतृत्व जोधपुर रियासत के सेनापति मेजर दलपत सिंह ने किया था जिनको अंग्रेज़ों ने हाइफ़ा पर कब्ज़ा करने के लिए भेजा था। इस सेना में जोधपुर रियासत के सैनिकों को आक्रमण का दायित्व सौंपा गया था जबकि मद्रास और मैसूर रियासत के सैनिकों के द्वारा रसद आपूर्ति एवं युद्ध के दौरान आक्रमणकारी जोधपुरी दस्ते को कवर प्रदान करने का कार्य सौंपा गया था। 1 घंटे के भीषण युद्ध के पश्चात भारतीय सैनिकों ने इज़रायल के हाइफ़ा शहर को फ़तह करके 6 शताब्दियों पुरानी दुनिया की सबसे बड़ी इस्लामी सल्तनत का अंत कर दिया। भारत के हिंदू शूरवीरों ने यहूदियों के हाथ से 2,000 वर्ष पहले निकल चुके इज़रायल राष्ट्र के प्रथम नगर हाइफ़ा को इस्लामी आतंकवादियों के चंगुल से छुड़ाकर भविष्य के स्वतंत्र यहूदी इज़रायल राष्ट्र की पुनर्स्थापना की नींव रखी। हाइफ़ा का युद्ध, विश्व का एकमात्र ऐसा युद्ध था जिसमें परंपरागत हथियारों से लड़ने वाले चंद भारतीय सैनिकों ने अपने से बेहतर सामरिक स्थान पर बैठी अपने से 20 गुनी संख्या में एवं आधुनिक हथियारों से लैस दुश्मन की सेना को मात दी थी। शायद यही कारण है कि इज़रायल भारत के इस उपकार को कभी नहीं भूलता है और भारत के कांग्रेसी ग़द्दारों के द्वारा पिछले 70 वर्षों से अधिक समय से फ़िलिस्तीनी आतंकवादियों के साथ खड़े होने के पश्चात भी भारत के प्रति सहृदयता का भाव रखते हुए उसे सदैव निःस्वार्थ सैन्य एवं रणनीतिक मदद प्रदान करता रहता है।

सऊदी अरब राष्ट्रीय दिवस

सऊदी अरब साम्राज्य प्रत्येक वर्ष 23 सितम्बर को अपना राष्ट्रीय दिवस मनाता है तथा यह दिन राज्य के एकीकरण तथा महामहिम राजा अब्दुल अजीज बिन अब्दुल रहमान अल सऊद के हाथों इसकी स्थापना के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। 23 सितंबर 1932 को, तीसरे सऊदी राज्य की आधिकारिक घोषणा की गई। इस राज्य की घोषणा हेजाज़ और नेज्द साम्राज्य के एकीकरण के माध्यम से हुई थी, जो राजा अब्दुलअज़ीज़ के नेतृत्व वाली एक दोहरी राजशाही थी और आज तक अलग-अलग प्रशासित थी। इसी दिन, राष्ट्र का आधिकारिक नाम बदलकर सऊदी अरब कर दिया गया, जिसका प्रतिनिधित्व राजा सऊद परिवार के नाम पर किया गया। आधुनिक सऊदी अरब की कहानी अल सऊद परिवार से शुरू होती है, जिसका सत्ता में उदय धार्मिक सुधारों और क्षेत्रीय विजय से जुड़ा था। 18 वीं शताब्दी में, मुहम्मद इब्न अब्द अल-वहाब नामक एक विद्वान ने इस्लाम के शुद्ध और शुद्ध रूप की ओर लौटने की वकालत की, जिसे वे इस्लाम के शुद्धतम रूप के रूप में देखते थे। उनका आंदोलन, जिसे बाद में वहाबीवाद के रूप में जाना गया, सऊदी अरब के निर्माण में एक केंद्रीय तत्व बन गया। उन्होंने एक स्थानीय आदिवासी नेता, मुहम्मद बिन सऊद अल मुकरिन के साथ साझेदारी की, और साथ मिलकर 1700 के दशक के मध्य में अरब प्रायद्वीप के नज्द क्षेत्र में पहला सऊदी राज्य स्थापित किया। इस राज्य ने अंततः मक्का और मदीना जैसे प्रमुख शहरों पर नियंत्रण करने के लिए विस्तार किया।पहला सऊदी राज्य ओटोमन साम्राज्य के साथ संघर्ष के बाद ध्वस्त हो गया, अल सऊद परिवार इस क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण शक्ति बना रहा। 19 वीं सदी के अंत तक, अब्दुल रहमान बिन सऊद अल सऊद ने ओटोमन समर्थित सेनाओं से पराजित होने के बाद बेडौइन जनजातियों के पास शरण ली थी। उनके बेटे अब्दुलअज़ीज़ अल सऊद ने बाद में 1902 में रियाद पर फिर से कब्ज़ा कर लिया। इस महत्वपूर्ण जीत ने उनके नेतृत्व में अरब प्रायद्वीप के अंतिम एकीकरण की नींव रखी। अब्दुलअज़ीज़ अल सऊद, जिन्हें इब्न सऊद के नाम से भी जाना जाता है, ने अगले कई दशक अरब प्रायद्वीप पर अपना नियंत्रण मज़बूत करने में बिताए। सैन्य अभियानों, राजनीतिक गठबंधनों और रणनीतिक समझौतों के ज़रिए, वह विभिन्न क्षेत्रों को अपने शासन में एकीकृत करने में सफल रहे। 1932 तक, अब्दुलअज़ीज़ ने नज्द, हिजाज़ और पूर्वी प्रांत को एक राज्य में एकीकृत कर दिया था। 23 सितंबर, 1932 को, सऊदी अरब साम्राज्य की आधिकारिक घोषणा की गई और अब्दुलअज़ीज़ अल सऊद इसके पहले राजा बने। अरबी को राष्ट्रीय भाषा घोषित किया गया और कुरान को नए साम्राज्य के संविधान के रूप में स्थापित किया गया।


दिन-रात बराबर 

सूर्य के चारों ओर पृथ्वी के घूमने के कारण 23 सितंबर को सूर्य विषुवत रेखा पर लंबवत रहेगा। इस खगोलीय घटना के कारण 23 सितंबर को दिन और रात की बराबर 12-12 घंटे के रहेंगे। सूर्य के उत्तरी गोलार्ध पर विषवत रेखा पर होने के कारण ही 23 सितंबर को दिन व रात बराबर होते है। खगोलीय घटना के बाद दक्षिण गोलार्ध में सूर्य प्रवेश कर जाएगा और उत्तरी गोलार्ध में धीरे-धीरे रातें बडी़ होने लगेंगी। 23 सितम्बर को होने वाली खगोलीय घटना में सूर्य उत्तर गोलार्ध से दक्षिण गोलार्ध में प्रवेश के साथ उसकी किरणे तिरछी होने के कारण उत्तरी गोलार्ध में मौसम में सर्दभरी रातें महसूस होने लगती है। प्रत्येक वर्ष में दो दिन यानी 21 मार्च और 23 सितंबर को दिन-रात बराबर होते हैं। यह इसलिए ऐसा होता है कि 21 जून को दक्षिणी ध्रुव सूर्य से सर्वाधिक दूर रहता है, इसलिए इस दिन सबसे बड़ा दिन होता है। इसके बाद 22 दिसंबर को सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायन की ओर प्रवेश करता है, इसलिए 24 दिसंबर को सबसे छोटा दिन और सबसे बड़ी रात होती है। तत्पश्चात 25 दिसंबर से दिन की अवधि पुन: बढ़ने लगती है।

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