24 अप्रैल
राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस
पंचायती राज मंत्रालय द्वारा प्रतिवर्ष 24 अप्रैल को मनाए जाने वाले पंचायती राज दिवस, वर्ष 1993 में लागू हुए संविधान के 73वें संशोधन अधिनियम, 1992 की याद में मनाया जाता है। यह दिन राष्ट्रीय स्थानीय स्वशासन और लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण का जश्न मनाता है। पंचायती राज मंत्रालय, नोडल मंत्रालय, सामाजिक न्याय और सेवाओं के कुशल वितरण के साथ समावेशी विकास सुनिश्चित करने के लिए पंचायती राज संस्थाओं के सशक्तिकरण, सक्षमता और जवाबदेही के मिशन पर काम करता है। एक मजबूत स्थानीय स्वशासन ग्रामीण भारत की आत्मनिर्भरता की प्रतिबद्धता को मजबूत करेगा, जिससे सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक बदलाव को बढ़ावा मिलेगा और हमारी ग्रामीण आबादी के जीवन में बदलाव आएगा। संविधान (73वां संशोधन) अधिनियम, 1992 के अधिनियमन 24 अप्रैल, 1993 को लागू हुआ था, इस उपलब्धि को चिह्नित करते हुए पंचायती राज मंत्रालय प्रत्येक वर्ष 24 अप्रैल को राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस (एनपीआरडी) पूरे जोश और उत्साह के साथ मनाता है। इस दिन को राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस के रूप में मनाने की शुरुआत साल 2010 से हुई थी. पूरे देश को चलाने में सिर्फ केंद्र सरकार या सिर्फ राज्य सरकार सक्षम नहीं हो सकती है. ऐसे में स्थानीय स्तर पर भी प्रशासनिक व्यवस्थ जरूरी है. इस काम के लिए बलवंत राय मेहता की अध्यक्षता में 1957 में एक समिति का गठन किया गया था. समिति ने अपनी सिफारिस में जनतांत्रिक विकेंद्रीकरण की सिफारिश की जिसे पंचायती राज कहा गया है.राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस जमीनी स्तर से राजनीतिक शक्ति के विकेंद्रीकरण के इतिहास को बताता है. उनकी आर्थिक विकास और सामाजिक न्याय की शक्ति को दर्शाता है. राजस्थान देश का पहला राज्य बना जहां पंचायती राज व्यवस्था लागू किया गया. इस योजना का शुभारम्भ तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने नागौर जिले में 2 अक्टूबर 1959 को किया था. भारत में पंचायती राज व्यवस्था की देखरेख के लिए 27 मई 2004 को पंचायती राज मंत्रालय को एक अलग मंत्रालय बनाया गया. भारत में हर साल 24 अप्रैल को राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस मनाया जाता है. इस दिवस को मनाने का कारण 73वां संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 है जो 24 अप्रैल 1993 से लागू हुआ था.
ज़ीरो शैडो डे
24 अप्रैल को बेंगलुरु में 'जीरो शैडो डे' मनाया जाता है, जब दोपहर 12:17 पर सूरज ठीक सिर के ऊपर होता है और किसी भी सीधी वस्तु की छाया जमीन पर नहीं दिखती है। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रोफिजिक्स (IIA) के साइंटिस्ट निरुज मोहन रामानुजम के अनुसार, जब सूरज अपनी उच्चतम स्थिति यानी जेनिथ पर पहुंचता है, तब यह घटना होती है. उस समय किसी भी सीधी खड़ी वस्तु की छाया ठीक नीचे गिरती है और दिखाई नहीं देती. भारत में वे सभी स्थान जो कर्क रेखा (Tropic of Cancer) के दक्षिण में आते हैं, जैसे बेंगलुरु, चेन्नई और मैंगलुरु में वर्ष में दो बार जीरो शैडो डे नजर आता है. बेंगलुरु में यह घटना आमतौर पर 24–25 अप्रैल और फिर 18 अगस्त के आसपास होती है. जीरो शैडो डे सिर्फ कुछ पल के लिए होता है. लेकिन साल में दो बार इसे देखा जा सकता है. सबसे लंबा समय किसी एक स्थान पर नहीं बल्कि भूमध्य रेखा (Equator) के आसपास के क्षेत्रों में होता है, क्योंकि वहां सूरज एकदम सिर के ऊपर ज्यादा देर तक रहता है. चेन्नई और त्रिवेंद्रम जैसे शहरों में सूरज की ऊंचाई ज्यादा होने के कारण जीरो शैडो का प्रभाव थोड़ा अधिक देर तक देखा जा सकता है. हालांकि वह भी केवल कुछ मिनटों की बात होती है.
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