Tuesday, December 31, 2024

1 जनवरी

1 जनवरी 
नववर्षारंभ दिवस 
1 जनवरी ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार वर्ष का पहला दिन है। लगभग पूरी दुनिया 1 जनवरी को नए साल का दिन मनाती है। यह साल की सबसे ज़्यादा मनाई जाने वाली छुट्टियों में से एक है। नया साल हज़ारों सालों से मनाया जाता रहा है। आठवीं शताब्दी ईसा पूर्व में इस्तेमाल किए जाने वाले रोमन कैलेंडर में जनवरी का महीना नहीं था। लगभग 700 ईसा पूर्व, नूमा पोम्पिलियस ने कैलेंडर की शुरुआत में जनवरी और कैलेंडर के अंत में फरवरी जोड़कर 12 महीने का कैलेंडर बनाया। नए साल के जश्न का सबसे पहला रिकॉर्ड बेबीलोन के समय में दर्ज किया गया था। हालाँकि, 1 जनवरी हमेशा से ही तय दिन नहीं था। उदाहरण के लिए, एक समय में वसंत विषुव के बाद पहला नया चाँद नए साल की शुरुआत करता था। ये उत्सव मार्टियस (मार्च) में होते थे, जो शुरुआती रोमन कैलेंडर का पहला महीना था, जिसमें केवल दस महीने थे।बाद में राजा पोम्पिलियस ने जनवरी (जिसका नाम द्वार, दरवाज़े और शुरुआत के बुतपरस्त देवता जेनस के नाम पर रखा गया) और फरवरी महीने जोड़े जिससे कैलेंडर 12 महीने का हो गया। जूलियस सीज़र ने जूलियन कैलेंडर बनाया था, जो आज दुनिया के ज़्यादातर हिस्सों में प्रचलित ग्रेगोरियन कैलेंडर से काफ़ी मिलता-जुलता है।जनवरी के महीने में वर्ष के पहले दिन का जश्न मनाते हुए, रोमन लोग जेनस को बलिदान चढ़ाते थे, उपहार देते थे और आम मौज-मस्ती करते थे। अपने दो चेहरों की मदद से, देवता जेनस अतीत की ओर और भविष्य की ओर देखने में सक्षम थे।

विश्व परिवार दिवस 
Global Family Day 
1 जनवरी को नववर्ष के पहले खास दिन के साथ हर साल विश्व परिवार दिवस भी मनाया जाता है। इसे विश्व शांति दिवस के नाम से भी जाता है। 1997 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 1 जनवरी को वैश्विक परिवार दिवस मनाने की घोषणा की थी। इस दिन को मनाने का विचार बच्चों की एक पुस्तक वन डे इन पीस – 1 जनवरी 2000 से आया था। इसके बाद दुनिया भर में इस दिन को बढ़ावा देने के लिए लिंडा ग्रोवर जो कि एक शांति कार्यकर्ता है, ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसके बाद 2001 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने इस दिवस को एक वार्षिक कार्यक्रम के रूप में स्थापित कर दिया और तब से हर साल 1 जनवरी को वैश्विक परिवार दिवस मनाया जाता है। इस दिवस को मनाने का उद्देश्य है लोगों में वैश्विक एकता और सद्भाव के विचारों को बढ़ावा देना। जैसा कि हम जानते हैं कि विश्व में शांति की स्थापना करने के लिए एक सुखी परिवार का निर्माण करना सबसे महत्वपूर्ण है। इसके माध्यम से विश्व में बढ़ती हिंसा को भी कम किया जा सकता है। दुनिया भर में संस्कृतियाँ और धर्म अलग-अलग हो सकते हैं।
लेकिन सच्चाई तो यह है कि पूरी तरह से मानव जाति एक बड़ा परिवार है जो एकजुट होकर ही जीवित रह सकता है और सफल हो सकता है।

भीमा कोरेगांव शौर्य दिवस 
1 जनवरी 1818 को, महाराष्ट्र के पुणे के पास स्थित भीमा नदी के किनारे हुए संघर्ष में अछूत माने जाने वाली महार जाति के लगभग 500 सैनिकों ने अंग्रेजों के साथ मिलकर पेशवा की 20,000 सैनिकों की सेना को शिकस्त दी थी। इस ऐतिहासिक युद्ध में जीत ने दलित समुदाय की आत्म-गरिमा को नई दिशा दी और पेशवा शासन के जातिवाद के खिलाफ महत्वपूर्ण संदेश दिया। यह दलित समुदाय की संघर्ष की पहचान को याद करने का दिन है।
इस युद्ध का महत्व तब समझ में आता है, जब हम पेशवा शासन में महार समुदाय की दयनीय स्थिति को देखते हैं। पेशवा सरकार में महारों को सार्वजनिक स्थलों पर घड़ा और झाड़ू बांधकर चलने की मजबूरी थी, ताकि उनकी थूक और पैरों के निशान सार्वजनिक स्थानों को अपवित्र न कर सकें। इस अत्याचार के खिलाफ महार समुदाय ने बगावत की और पेशवा की विशाल सेना को हराया। यह विजय दलितों के आत्म-सम्मान की लड़ाई की एक मील का पत्थर बन गई। भीमा कोरेगांव शौर्य दिवस ने भारतीय संविधान निर्माता, भारत रत्न डॉ. भीमराव अंबेडकर को प्रेरित किया, जिन्होंने इस युद्ध से मिली प्रेरणा से समता सैनिक दल की स्थापना की और 1 जनवरी 1927 को महार सैनिकों को श्रद्धांजलि अर्पित की। बाबासाहेब ने इस दिन संकल्प लिया था कि वे भारत में ब्राह्मणवाद का अंत करेंगे और समता पर आधारित समाज की स्थापना करेंगे।आज भी इस दिन को याद करते हुए लाखों लोग भीमा कोरेगांव पहुंचते हैं और अपने गौरवमयी इतिहास को याद करते हैं। हर साल इस दिन विभिन्न दलित आंदोलन, समानता के पक्षधर और जातिवाद के खिलाफ लड़ने वाले लोग यहां एकत्र होते हैं। 

डीआरडीओ दिवस 
1 जनवरी को डी.आर.डी.ओ. यानी रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन का स्थापना दिवस मनाया जाता है। रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) की स्थापना वर्ष 1958 में हुई थी। यह देश का सबसे प्रमुख रक्षा संगठन है। डीआरडीओ का काम सुरक्षा बलों के लिए अत्याधुनिक हथियार, सेंसर, और उपकरणों का डिज़ाइन, विकास, और उत्पादन करना है। डी.आर.डी.ओ. ने अपना पहला बड़ा प्रोजेक्ट 1960 के दशक में प्रोजेक्ट इंडिगो के नाम से शुरू किया था। प्रोजेक्ट इंडिगो का संबंध सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल से था। डी.आर.डी.ओ. का मुख्यालय नई दिल्ली में स्थित है।(विविध स्रोत)
 

Monday, December 30, 2024

31 दिसंबर

31 दिसंबर 
साल का अंतिम दिन 
31 दिसंबर को साल के आखिरी दिन और नए साल की खुशी के रूप में मनाया जाता है। इसे नए साल की पूर्व संध्या भी कहा जाता है जहाँ लोग एक साथ इकट्ठा होकर जश्न मनाते हैं और नए साल का स्वागत करते हैं। यह एक महत्वपूर्ण दिन है जो लोगों को एक नई शुरुआत करने का अवसर प्रदान करता है।

भारत की गुलामी का दिवस

भारत के इतिहास में 31 दिसंबर का दिन बहुत महत्वपूर्ण है। इसी दिन भारत को लेकर अंग्रेजों की गुलामी की बुनियाद पड़ी थी। साल 1600 में इंग्लैंड की महारानी एलिजाबेथ प्रथम ने ईस्ट इंडिया कंपनी के पंजीकरण का शाही फरमान जारी किया था। आज ही तय हो गया था कि यह कंपनी पूर्वी एशिया, दक्षिण पूर्वी एशिया और भारत के साथ व्यापार करेगी। तब ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना मुख्य रूप से मसालों के व्यापार के लिए की गई थी, लेकिन समय के साथ कंपनी ने अपने व्यापार का दायरा इतना बढ़ा लिया कि देश को ही गुलाम बना लिया।

विश्व आध्यात्मिकता दिवस
World Spirituality Day 
विश्व आध्यात्मिकता दिवस उन सभी के लिए एक मौका है जो अपने जीवन में आध्यात्मिकता को महत्व देते हैं और आध्यात्मिक जीवन जीना चाहते हैं। जैसे साल के अन्य दिन किसी ना किसी त्योहार या जयंती को समर्पित होते हैं वैसे ही 31 दिसंबर अध्यात्म को समर्पित दिन है।आध्यात्मिक होने का अर्थ है कि आप अपने अनुभव के धरातल पर जानते हैं कि मैं स्वयं ही अपने आनंद का स्रोत हूं। आध्यात्मिकता मंदिर, मस्जिद या चर्च में नहीं, बल्कि आपके अंदर ही घटित हो सकती है। यह अपने अंदर तलाशने के बारे में है। यह तो खुद के रूपांतरण के लिए है। यह उनके लिए है, जो जीवन के हर आयाम को पूरी जीवंतता के साथ जीना चाहते हैं। अस्तित्व में एकात्मकता व एकरूपता है और हर इंसान अपने आप में अनूठा है। इसे पहचानना और इसका आनंद लेना आध्यात्मिकता का सार है।आध्यात्मिकता का किसी धर्म, संप्रदाय या मत से कोई संबंध नहीं है। आप अपने अंदर से कैसे हैं, आध्यात्मिकता इसके बारे में है। आध्यात्मिक होने का मतलब है, भौतिकता से परे जीवन का अनुभव कर पाना। अगर आप सृष्टि के सभी प्राणियों में भी उसी परम-सत्ता के अंश को देखते हैं, जो आपमें है, तो आप आध्यात्मिक हैं। अगर आपको बोध है कि आपके दुख, आपके क्रोध, आपके क्लेश के लिए कोई और जिम्मेदार नहीं है, बल्कि आप खुद इनके निर्माता हैं, तो आप आध्यात्मिक मार्ग पर हैं। आप जो भी कार्य करते हैं, अगर उसमें सभी की भलाई निहित है, तो आप आध्यात्मिक हैं। अगर आप अपने अहंकार, क्रोध, नाराजगी, लालच, ईष्र्या और पूर्वाग्रहों को गला चुके हैं, तो आप आध्यात्मिक हैं। बाहरी परिस्थितियां चाहे जैसी हों, उनके बावजूद भी अगर आप अपने अंदर से हमेशा प्रसन्न और आनंद में रहते हैं, तो आप आध्यात्मिक हैं। अगर आपको इस सृष्टि की विशालता के सामने खुद की स्थिति का एहसास बना रहता है तो आप आध्यात्मिक हैं। आपके अंदर अगर सृष्टि के सभी प्राणियों के लिए करुणा फूट रही है, तो आप आध्यात्मिक हैं।

विश्व शांति ध्यान दिवस 
World Peace Meditation Day 
हर साल, विश्व शांति ध्यान दिवस 31 दिसंबर को मनाया जाता है, क्योंकि पूरी दुनिया एक नए साल की शुरुआत पर विचार करती है। यह लोगों को आत्म-नियंत्रण और व्यक्तिगत विकास जैसी अवधारणाओं के प्रति अधिक जागरूक बनाकर दुनिया में शांतिपूर्ण संबंधों के एक नए युग की शुरुआत करने का वादा करता है। यह आम तौर पर जाना जाता है कि जब लोग खुद के साथ शांति में होते हैं, तो वे अपने समुदाय और देश में शांतिपूर्ण संबंधों की तलाश करने और उन्हें बनाने की अधिक संभावना रखते हैं। यहां तक कि दुनिया के उन हिस्सों में भी जो युद्ध से प्रभावित हैं, ध्यान हिंसा से प्रभावित लोगों को उनके नुकसान से उबरने और उनके आसपास होने वाली घटनाओं से नकारात्मक रूप से प्रभावित होने से बचने में मदद कर सकता है।विश्व शांति ध्यान दिवस का उद्देश्य विभिन्न जातियों और पृष्ठभूमियों के लोगों को एक वैश्विक मंच पर एकजुट करना है। विश्व शांति ध्यान दिवस ध्यान और विभिन्न धर्मों के लोगों के साथ सहयोग के माध्यम से विविधता और शांति को भी बढ़ावा देता है। यह अंततः विश्व शांति स्थापित करने और युद्ध और हिंसा को रोकने में मदद करता है।1980 के दशक में, यरूशलेम में एक सामाजिक प्रयोग किया गया था ताकि यह पता लगाया जा सके कि क्या ध्यान का अभ्यास शांति को बढ़ावा दे सकता है। इस प्रयोग में एक हज़ार से ज़्यादा लोगों ने हिस्सा लिया और प्रतिभागियों को समूहों में ध्यान का अभ्यास करने के लिए कहा गया। यह प्रयोग सफल रहा।शोधकर्ताओं ने देखा कि ध्यान का अभ्यास करने वाले लोगों के समूह शांत और तनावमुक्त रहे। देश में युद्ध के प्रतिकूल प्रभावों से प्रभावित होने की संभावना कम थी। विश्व शांति ध्यान दिवस विभिन्न देशों द्वारा अलग-अलग नामों से मनाया जाता है। कुछ लोग इसे विश्व उपचार दिवस कहते हैं जबकि कुछ इसे शांति के सार्वभौमिक घंटे के रूप में मनाते हैं। लोगों में शांति और सद्भाव की भावना जगाने के लिए विभिन्न प्रकार के ध्यान अभ्यास किए जाते हैं।(विविध स्रोत)

30 दिसंबर

30 दिसंबर 
राष्ट्रीय संकल्प योजना दिवस 
हर साल 30 दिसंबर को दुनिया भर में राष्ट्रीय संकल्प योजना दिवस मनाया जाता है। यह संकल्प लेने का दिन है जिसमें कई लोग अगले वर्ष के लिए अपने लक्ष्य को निर्धारित करते हैं। इस अवसर पर देश भर में विभिन्न कार्यक्रमों आयोजन किए जाते हैं जिनमें लोग अपने संकल्पों के बारे में बात करते हैं और उन्हें पूरा करने के लिए सुझाव देते हैं।

बलिदान दिवस 
30 दिसंबर को मेघालय के क्रांतिकारी उ कियांग नांगवा के बलिदान दिवस के रूप में मनाया जाता है। 18वीं शती में उन्होंने मेघालय की पहाड़ियों में अंग्रेजों से लोहा लिया और जनजातीय लोगों की सेना बनाकर जोनोई की ओर बढ़ रहे अंग्रेजों का मुकाबला किया और उन्हें पराजित कर दिया.अंग्रेजों ने वर्ष 1860 में सारे क्षेत्र पर दो रुपये गृहकर लगा दिया. जयन्तिया समाज ने इस कर का विरोध किया. उ कियांग नांगवा ने वंशी की धुन के साथ अपने समाज को तीर और तलवार उठाने का आह्वान किया । उ कियांग के आह्वान पर किसी ने कर नहीं दिया. इस पर अंग्रेजों ने उन भोले वनवासियों को जेलों में ठूंस दिया. इसके बाद उ कियांग ने योजना बनाकर एक साथ सात स्थानों पर अंग्रेज टुकड़ियों पर हमला बोला. सभी जगह उन्हें अच्छी सफलता मिली. अंग्रेजों ने पैसे का लालच देकर उ के साथी उदोलोई तेरकर को अपनी ओर मिला लिया और उन्हें पकड़ लिया। 30 दिसम्बर, 1862 को अंग्रेजों ने मेघालय के इस वनवासी वीर को सार्वजनिक रूप से जोनोई में ही फांसी दे दी। 

रिज़ल दिवस 
रिज़ल दिवस फिलीपींस में 30 दिसंबर को वहां के राष्ट्रीय नायक जोस रिज़ल के जीवन और कार्यों की याद में मनाया जाता है। 30 दिसंबर की तारीख़ मनीला के बागुम्बायन में 1896 में रिज़ल की फांसी की सालगिरह है।डॉ. जोस रिज़ल को स्पेनिश उपनिवेशवादियों के खिलाफ़ क्रांति शुरू करने में अहम भूमिका निभाने का श्रेय दिया जाता है। उनका जन्म 19 जून, 1861 को कैलाम्बा शहर में हुआ था। रिज़ल एक डॉक्टर और उपन्यासकार थे। 1887 में प्रकाशित अपने उपन्यास "नोली मी टैंगर" में उन्होंने स्पेनियों द्वारा फिलीपींस के भ्रष्ट शासन की निंदा की। कई इतिहासकार इस बात से सहमत हैं कि उस उपन्यास और "एल फ़िलिबस्टरिस्मो" (लालच का शासन) में उनके द्वारा उठाए गए विचारों ने क्रांति को प्रेरित किया।30 दिसंबर 1896 को, रिज़ल को बागुम्बायन मैदान में फायरिंग दस्ते द्वारा मार दिया गया। हालाँकि उन्होंने कभी किसी लड़ाई में हिस्सा नहीं लिया था, लेकिन उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया और उन पर देशद्रोह का मुकदमा चलाया गया। 1898 में, फिलीपींस के पहले राष्ट्रपति एमिलियो एगुइनाल्डो ने रिज़ल और फिलीपींस के स्पेनिश औपनिवेशिक शासन के सभी हताहतों के लिए राष्ट्रीय शोक दिवस के रूप में पहला रिज़ल दिवस मनाया। 1 फरवरी, 1902 को, फिलीपीन आयोग ने अधिनियम संख्या 345 को अधिनियमित किया, जिसने आधिकारिक तौर पर 30 दिसंबर को रिज़ल दिवस के रूप में घोषित किया। 9 जून, 1948 को राष्ट्रपति एल्पिडियो क्विरिनो ने गणतंत्र अधिनियम संख्या 229 पर हस्ताक्षर करके इसे कानून बना दिया ताकि इस आयोजन की गंभीरता सुनिश्चित की जा सके। यह कानून हर 30 दिसंबर को मुर्गों की लड़ाई, घुड़दौड़ और जय-अलाई पर प्रतिबंध लगाता है और पूरे देश में पूरे दिन झंडे आधे झुके रहथे हैं। (विविध स्रोत)

Saturday, December 28, 2024

29 दिसंबर

29 दिसंबर 
बलिदान दिवस 
29 दिसंबर 1857 को मेरठ के पास धौलाना में क्रांतिवीरों को अंग्रेजों ने फांसी दी थी। इसकी याद में प्रति वर्ष इस दिन बलिदान दिवस मनाया जाता है। 10 मई, 1857 को गाय और सूअर की चर्बी लगे कारतूसों को मुंह से खोलने से मना करने वाले भारतीय सैनिकों को जेल में बंद कर दिया गया. इसके बाद हजारों लोगों ने मेरठ आकर जेल पर धावा बोलकर उन सैनिकों को छुड़ा लिया.इसके बाद सबने अधिकारियों के घरों पर धावा बोलकर लगभग 25 अंग्रेजों को मार डाला.बहुत से लोगों ने धौलाना के थाने में आग लगा दी. मेरठ तब तक पुनः अंग्रेजों के कब्जे में आ चुका था. जिलाधिकारी ने सेना की एक बड़ी टुकड़ी यह कहकर धौलाना भेजी कि अधिकतम लोगों को फांसी देकर आतंक फैला दिया जाए, जिससे भविष्य में कोई राजद्रोह का साहस न करे. अंग्रेजों ने बौखलाकर सभी क्रांतिवीरों को 29 दिसम्बर, 1857 को पीपल के पेड़ पर फांसी लगवा दी. प्रतिवर्ष 29 दिसम्बर को हजारों लोग वहां एकत्र होकर उन क्रांतिवीरों को श्रद्धांजलि देते हैं.

Friday, December 27, 2024

28 दिसंबर

28 दिसंबर 
कांग्रेस का स्थापना दिवस 
Foundation Day of Congress 
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना 28 दिसंबर 1885 को हुई थी। कांग्रेस की स्थापना का श्रेय एक अंग्रेज एलन ऑक्टेवियन ह्यूम या एओ ह्यूम को जाता है। स्कॉटलैंड के एक रिटायर्ड अधिकारी एओ ह्यूम ने 28 दिसंबर 1885 को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना की थी। एओ ह्यूम को उनके जीते-जी कभी कांग्रेस के संस्थापक का दर्जा नहीं मिला। उनकी मौत के बाद 1912 में उन्हें कांग्रेस का संस्थापक घोषित किया गया।1857 की क्रांति के बाद अंग्रेज नहीं चाहते थे कि फिर कभी ऐसा हालात बनें। इसलिए उन्होंने एक ऐसा मंच बनाने की सोची, जहां हिंदुस्तानी लोग अपने मन की बात रख सकें और अपना विरोध भी जता सकें। इस मंच का उद्देश्य पढ़े-लिखे भारतीयों के बीच सरकार की पकड़ बढ़ाना था, जिससे ब्रिटिश राज और उनके बीच नागरिक और राजनीतिक मुद्दों पर बातचीत हो सके। इसके लिए एक अंग्रेज अफसर एओ ह्यूम को चुना गया। कांग्रेस पार्टी की स्थापना भले ही एक अंग्रेज ने की थी, लेकिन इसके अध्यक्ष भारतीय ही थे। पार्टी के पहले अध्यक्ष कलकत्ता हाईकोर्ट के बैरिस्टर व्योमेश चंद्र बनर्जी थे। पार्टी का पहला अधिवेशन पुणे में होना था, लेकिन उस वक्त वहां हैजा फैला हुआ था। इस वजह से इसे बंबई (अब मुंबई) में किया गया।ब्रिटिश सरकार के लगातार विरोध के कारण कांग्रेस की मांगें और अधिक उग्र हो गईं। इसे देखते हुए पार्टी ने भारत की आजादी के आंदोलन का समर्थन करने का फैसला किया, जिससे उभरने वाले नए राजनीतिक सिस्टम में कांग्रेस एक बड़ी पार्टी बन सकती थी। 1905 में बंगाल का बंटवारा हुआ और इससे ही कांग्रेस को नई पहचान मिली। कांग्रेस ने बंटवारे का खुलकर विरोध किया और अंग्रेजी सामानों का बहिष्कार किया। (भास्कर)

Thursday, December 26, 2024

27 दिसंबर

27 दिसंबर 
अंतरराष्ट्रीय महामारी तैयारी दिवस
International Day for Epidemic Preparedness 
27 दिसंबर को  पूरे विश्व में  अंतर्राष्ट्रीय महामारी तैयारी दिवस मनाया जाता है। इसका उद्देश्य स्थानीय, राष्ट्रीय, क्षेत्रीय और वैश्विक स्तर पर महामारी की रोकथाम और उससे निपटने के प्रभावी उपायों के रूप में जागरूकता बढ़ाना, सूचना, वैज्ञानिक ज्ञान और सर्वोत्तम प्रथाओं का आदान-प्रदान, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और समर्थन कार्यक्रम चलाना है । संयुक्त  राष्ट्र महासभा (UNGA) ने 7 दिसंबर, 2020 को एक प्रस्ताव पारित किया।  प्रस्ताव में  27 दिसंबर को अंतर्राष्ट्रीय महामारी तैयारी दिवस घोषित किया गया है।  यह महत्वपूर्ण दिन संक्रामक रोगों के वर्तमान खतरे और उनसे निपटने के लिए सक्रिय उपायों की महत्वपूर्ण आवश्यकता की याद दिलाता है।  कोविड-19 महामारी के मद्देनजर महामारी संबंधी तैयारियों का महत्व पहले कभी इतना अधिक नहीं रहा।इस दिन को मनाने की शुरुआत कोरोना की वजह से उत्पन्न हुए हालातों को देखते की गई थी। ऐसे में इसका उद्देश्य महामारी के बारे में जन जागरूकता बढ़ाना और उससे जुड़ी तैयारियों को लेकर प्रेरित करना था। आपको बता दें कि पहली बार यह दिवस UN और WHO द्वारा दिसंबर 2020 में मनाया गया था। 2019 में भयानक कोरोना वायरस ने पूरी दुनिया में हाहाकार मचा दिया था। देशभर में कोरोना के बढ़ते मामलों को देखते हुए यूएन ने 27 दिसंबर, 2020 को महामारी की तैयारी का पहला अंतर्राष्ट्रीय दिवस मनाया।

Wednesday, December 25, 2024

26 दिसंबर

26 दिसंबर 

राष्ट्रीय वीर बाल दिवस 

26 दिसंबर के दिन वीर बाल दिवस साहिबजादों की शहादत दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह सिख इतिहास और भारतीय संस्कृति में एक अत्यंत महत्वपूर्ण दिन है। इस दिन, सिखों के दसवें गुरु, गुरु गोबिंद सिंह के दो छोटे साहिबजादों, बाबा जोरावर सिंह और बाबा फतेह सिंह को श्रद्धांजलि दी जाती है, जिन्होंने छोटी सी उम्र में भी धर्म और सिद्धांतों की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दी। इस दिन को वीर बाल दिवस के रूप में मनाने का मुख्य कारण सिखों के दसवें गुरु गोबिंद सिंह जी के छोटे साहिबजादों जोरावर सिंह और उनके छोटे भाई पांच साल के बाबा फतेह सिंह की वीरता को सम्मानित किया गया। 26 दिसंबर, 1705 में इन महान सपूतों को धर्म नहीं बदलने पर मुगल सेनापति वजीर खान ने उन्हें जिंदा दीवार में चुनवाया था। बाबा जोरावर सिंह (9 वर्ष) और बाबा फतेह सिंह (7 वर्ष) ने मुगलों के सामने झुकने से इनकार कर दिया और धर्म की रक्षा के लिए अपने जीवन का बलिदान दिया। दोनों साहिबजादों को सरहिंद के नवाब द्वारा जिंदा दीवार में चुनवा दिया गया, लेकिन उन्होंने अपने विश्वास से कोई समझौता नहीं किया। गुरु गोबिंद सिंह और उनके परिवार की वीर गाथा को देश के हर कोने तक पहुंचाना। इतिहास की इन घटनाओं के माध्यम से भारतीय समाज को एकता और बलिदान का संदेश देना।  9 जनवरी 2023 को गुरु गोबिंद सिंह की जयंती पर प्रधानमंत्री मोदी ने घोषणा की थी कि 26 दिसंबर को सिख गुरु के बेटों जोरावर सिंह और फतेह सिंह की शहादत को ‘वीर बाल दिवस’ के रूप में मनाया जाएगा।