Tuesday, April 15, 2014

चंपारण के एक ‘युग’ का अवसान



चंपारण समेत पूरे बिहार में हिंदी साहित्य के प्रतिष्ठित अध्येता और मानस मर्मज्ञ प्रोफेसर रामाश्रय प्रसाद सिंह हमारे बीच नहीं रहे। हिंदी साहित्य के लब्धप्रतिष्ठ विद्वान होने के साथ-साथ अपनी सहृदयता, और अपने विचारों से लोगों के दिलों में अमिट छाप छोड़ने वाले प्रोफेसर सिंह ने अपने जीवनकाल में श्रीरामचरित मानस और गोस्वामी तुलसीदास पर सैकड़ों व्याख्यान दिए और अपने लेखों में उन्होंने मानस की विचार मीमांसा की परंपरा को समृद्ध किया।
प्रोफेसर रामाश्रय प्रसाद सिंह पूर्वी चंपारण जिले के मुख्यालय मोतिहारी में स्थित अंगीभूत एमएस कॉलेज के हिंदी विभागाध्यक्ष पद से सेवानिवृत होकर यहां की साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक गतिविधियों में लगातार सक्रिय भूमिका में थे। हिंदी के प्रोफेसर के रूप में उन्होंने बीआरए बिहार विश्वविद्यालय में 40 साल से ज्यादा की अवधि तक विश्वविद्यालय के शैक्षणिक स्तरोन्नयन में बहुमूल्य योगदान देकर प्रतिष्ठित स्थान बनाया। सन 1961 में मोतिहारी के मुंशी सिंह कॉलेज में कामकाज शुरु करने के बाद से प्रोफेसर सिंह हिंदी शोध, आलोचना और रचनात्मक लेखन के क्षेत्र में भी निरंतर सक्रिय रहे। प्राध्यापक के रूप में उनका सर्वश्रेष्ठ योगदान चंपारण की युवा पीढ़ी को उच्च शिक्षा में श्रेष्ठ कार्य करने की दिशा देना था। उनके द्वारा पढ़ाए गए और मार्गनिर्दिष्ट सुयोग्य छात्रों की बड़ी संख्या आज देश और विदेशों में आज उनके कीर्तिस्तंभ हैं। मध्यकालीन और आधुनिक साहित्य के गंभीर अध्येता होने के साथ-साथ प्रोफेसर रामाश्रय प्रसाद सिंह की संस्कृत और प्राकृत साहित्य पर भी व्यापक पकड़ रही। चंपारण के शिक्षण समुदाय के शिखर पुरुष के रूप में वो हमेशा याद किए जाते रहेंगे।
प्रोफेसर रामाश्रय प्रसाद सिंह की गोस्वामी तुलसीदास और श्रीरामचरित मानस में जीवनपर्यन्त गहरी अभिरुचि रही। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम उनके आदर्श नायक थे। उन्होंने मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम को जन-जन तक पहुंचाने के लिए मोतिहारी शहर के बीचोबीच स्थित गांधी स्मारक से सटे मंदिर के प्रांगण में श्रीरामचरित मानस नवाह्न पारायण यज्ञ का शुभारंभ किया था जिसका यह 43वां वर्ष है। इस यज्ञ में देश के कोने-कोने से विभिन्न पीठों के शंकराचार्य, मानसज्ञाता आचार्य, मानस कथा वाचक और साहित्य सेवी विद्वान आमंत्रित किए जाते हैं जिनके प्रवचन 9 दिनों तक सुनकर लोग ज्ञान, भक्ति और कर्म के त्रिवेणी संगम का लाभ उठाते हैं। प्रो. रामाश्रय प्रसाद सिंह ने न सिर्फ श्रीरामचरित मानस यज्ञ और पारायण की सालाना परंपरा की शुरुआत की, बल्कि तन-मन-धन से उसे आगे बढ़ाया और इसके जरिए इलाके के आम जन समुदाय के लिए धार्मिक आस्था और श्रद्धा के साथ-साथ सांस्कृतिक एकता का भी मजबूत मार्ग प्रशस्त किया। 

मोतिहारी के प्रमुख शिक्षा संस्थान मुंशी सिंह महाविद्यालय के हिंदी विभाग के आचार्य और अध्यक्ष पद से सेवानिवृत्त होने के बाद प्रोफेसर रामाश्रय प्रसाद सिंह ने अपना पूरा वक्त श्रीरामचरित मानस मीमांसा में गुजार दिया। उम्र के गुजरते पड़ावों पर रोग-व्याधि और पारिवारिक-सामाजिक व्यस्तताओं से दो-चार होते हुए प्रोफेसर सिंह का अधिकाधिक वक्त मोतिहारी रेलवे स्टेशन के पास शांतिपुरी मुहल्ले में अपने निवास पर ही गुजरा। बीच-बीच में अपने पुत्र, नाबार्ड के अधिकारी सुबोध कुमार, दिल्ली विश्वविद्यालय में प्राध्यापक पुत्रवधू रचना और पौत्री ताविशी के साथ वो दिल्ली प्रवास का भी आनंद लेते रहे।


मोतिहारी में य़शस्वी विद्वान प्रोफेसर रामाश्रय प्रसाद सिंह का निवास हमेशा हिंदी के साहित्यप्रेमियों, छात्र-छात्राओं और श्रीरामचरितमानस में श्रद्धा रखनेवालों से भरा रहता था। अजब संयोग है कि 1934 में पैदा हुए श्रीरामभक्त प्रोफेसर रामाश्रय प्रसाद सिंह ने हनुमान जयंती के दिन मंगलवार अपराह्न मोतिहारी स्थित निवास पर देह त्याग किया.. उनके निधन के समाचार से चंपारण के शिक्षा जगत एवं अध्यात्म से जुड़े लोगों में शोक की लहर है। उनके निधन से चम्पारण सहित बिहार के समस्त दिग्विद्या जगत में एक ऐसा स्थान रिक्त हो गया है, जो कभी पूरा नहीं हो सकेगा..वो लंबे समय तक भविष्य में लोगों के मन-प्राणों को स्पर्श करते रहेंगे और प्रेरणा देते रहेंगे। उन्हें क्षेत्र के असंख्य नर-नारी, छात्र और आम लोग अश्रुपूरित श्रद्धांजलि अर्पित कर रहे हैं।

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