भारत में टेलीविजन पर हिंदी
समाचार की शुरुआत और इसका विकास पत्रकारिता के स्वरूप में बदलाव का गवाह रहे हैं।
देश में टेलीविजन की शुरुआत सूचना और शिक्षा के माध्यम के तौर पर शुरु हुई थी और
50 साल से ऊपर बीत जाने पर न सिर्फ अब ये मनोरंजन का बड़ा माध्यम बन चुका है,
बल्कि बड़ा कारोबार भी बन चुका है। खासकर समाचार चैनलों के विस्तार और इसमें निजी
क्षेत्र के आने के बाद प्रतियोगिता और प्रतिद्वंद्विता बढ़ी है जिसकी वजह से
समाचार प्रसारण के तौर-तरीके काफी बदले हैं जिसके अच्छे और बुरे दोनों ही पहलू
हैं। लोकतंत्र के चौथे खंबे के रूप में मीडिया को स्थापित करने में टीवी के समाचार
चैनलों की अहम भूमिका साबित हुई है क्योंकि खबरें दिखाते हुए ये जनता की आवाज भी
बन चुके हैं। कुछ चैनलों पर निहित स्वार्थ के लिए कवरेज या पक्षपातपूर्ण कवरेज के
भी आरोप लगते हैं, लेकिन अब चैनलों की इतनी बाढ़ आ चुकी है कि दर्शकों के सामने
खबरें देखने और खबरों का हर पक्ष जानने के लिए चैनल बदलकर देखने का विकल्प भी
मौजूद है।
बहरहाल, बात समाचार चैनलों की
विकास यात्रा पर शुरु हुई थी, तो ये देखना होगा कि भारत में किस तरह टेलीविजन पर
समाचार प्रसारण की शुरुआत हुई। देश में टेलीविजन की शुरुआत सरकारी हाथों से
दूरदर्शन के जरिए हुई और 1965 में 15 अगस्त को पहले बुलेटिन का प्रसारण हुआ, ये
बात तमाम रिकॉर्ड्स में दर्ज है। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के अध्येता डॉ. देवव्रत सिंह
इसे भारतीय पत्रकारिता का ‘प्रयोगवादी
दौर’[1] मानते हैं क्योंकि उस दौर में संसाधन
बेहद सीमित थे या यूं कहें कि नहीं के बराबर थे, क्योंकि दूरदर्शन को खबरों के लिए
आकाशवाणी के संसाधनों पर निर्भर रहना पड़ता था। लेकिन प्रयोग के इस दौर से समाचार
प्रसारण के फलक का विस्तार हुआ और करीब 33 साल बाद यानी 1998 तक भारत में टीवी
पत्रकारिता के एक नए युग की शुरुआत हुई, जब प्राइवेट चैनलों के खिलाड़ी इस क्षेत्र
में पूरी तरह से उतरे। हालांकि ज़ीटीवी पर समाचारों की शुरुआत पहले हो चुकी थी,
लेकिन पूरी तरह 24 घंटे के समाचार चैनल लेकर पहले स्टार ग्रुप और फिर ज़ीटीवी ने
1998 में अपनी पारियां शुरु कीं। स्टार ग्रुप के चैनल ने भारत के मशहूर टीवी
प्रस्तोता डॉ. प्रणय रॉय से हाथ मिलाया और उनकी कंपनी एनडीटीवी स्टार के न्यूज़
चैनल के लिए कंटेंट मुहैया कराने लगी। फरवरी 1998 से शुरु हुआ स्टार-एनडीटीवी का सिलसिला
2003 तक चला जब स्टार अपने बलबूते भारत में समाचार चैनल लेकर आया और एनडीटीवी ने
भी हिंदी और अंग्रेजी में 2 समाचार चैनल उतार दिए। इससे पहले ये बता देना जरूरी
होगा कि एनडीटीवी के कंटेंट पर आधारित स्टार का न्यूज़ चैनल और ज़ीटीवी के समाचार
चैनल के कंटेंट भले ही देश में तैयार होते थे, लेकिन इनका प्रसारण विदेशों से यानी
हांगकांग और सिंगापुर से होता था क्योंकि भारत से अपलिंकिंग की अनुमति इन्हें नहीं
थी। स्टार ग्रुप को विदेशी समूह होने के चलते अपलिंकिंग की अनुमति मिलने में और
देर लगी, जबकि ज़ीटीवी में समूची पूंजी भारतीय होने की वजह से उसे पहले देसी धरती
से अपलिंकिंग की अनुमति मिल गई थी। हालांकि स्टार और ज़ी दोनों ही के न्यूज़
चैनलों पर शुरुआती दौर में अंग्रेजी का प्रभुत्व था और अंग्रेजी के ज्यादा बुलेटिन
प्रसारित होते थे। लेकिन बाद में हिंदी के बुलेटिनों की संख्या बढ़ी और तकरीबन आधे
घंटे अंग्रेजी और आधे घंटे हिंदी के बुलेटिन्स का फ़ॉर्मेट दोनों चैनलों में चलने
लगा। ज़ी के हिंदी बुलेटिन में अंग्रेजी-मिश्रित हिंदी यानी ‘हिंग्लिश’ का ज्यादा इस्तेमाल था, तो
स्टार-एनडीटीवी के बुलेटिन की उर्दू-मिश्रित भाषा उसकी खासियत थी।
भारत में समाचार
के कारोबार में तेजी 2001 में आई, जब इंडिया टुडे ग्रुप के टीवी सेक्शन टीवी टुडे
का चैनल ‘आजतक’ दिल्ली
से लांच किया गया। इससे पहले दूरदर्शन के मेट्रो चैनल पर प्रसारित होनेवाला टीवी
टुडे का ‘आजतक’
कार्यक्रम दर्शकों में अपनी खास पहचान बना चुका था, जिसका चैनल को जबर्दस्त फायदा
मिला और 24 घंटे के समाचार के बाजार में ‘आजतक’ को अपना पांव जमाते देर नहीं लगी। टीवी
कार्यक्रम के रूप में ‘आजतक’ का प्रसारण DD मेट्रो पर
1995 में शुरु हुआ था। समाचार चैनल के रूप में ये 31 दिसंबर 2000 को वजूद
में आया और हिंदी में चौबीस घण्टे प्रसारित होने वाला देश का पहला समाचार चैनल
बन गया।
शुरुआत में चैनल के रूप में लांच
होने पर ‘आजतक’ का संपादकीय नेतृत्व उदय शंकर के
हाथों में था, लेकिन ‘आजतक’ की खास पहचान बनानेवालों में
पत्रकार कमर वहीद नकवी प्रमुख थे, जिन्होंने हमेशा पर्दे के पीछे रहते हुए शो को बखूबी
अंजाम तक पहुंचाया। हालांकि वो शुरुआत में चैनल का हिस्सा नहीं रहे, लेकिन उदय
शंकर 2003 में स्टार न्यूज़ की टीम में शामिल हो गए तो ‘आजतक’ को चलाने के लिए फिर कमर वहीद नकवी को बुलाया गया। कमर
वहीद नकवी ने ‘आजतक’ में लंबी पारी खेली और 2012 में
उन्होंने अवकाश ले लिया। यहां बता दें कि ‘आजतक’ जब
डीडी मेट्रो चैनल का कार्यक्रम था, तो दिल्ली के कनॉट प्लेस में उसका दफ्तर हुआ
करता था। चैनल की लांचिंग दिल्ली के झंडेवालान एक्सटेंशन में स्थिति वीडियोकॉन
टॉवर से हुई और 2012 के सितंबर में ये चैनल नोएडा की फिल्म सिटी में अपने नए दफ्तर
इंडिया टुडे मीडियाप्लेक्स में आ गया। चैनल के नोएडा आने से पहले कमर वहीद नकवी
इससे विदा हो चुके थे और कमान सुप्रिय प्रसाद ने संभाली जो टीवी टुडे ग्रुप के सबसे
अनुभवी लोगों में से हैं।
‘आजतक’ के
12 साल के सफर के दौरान टीवी टुडे ने 3 और समाचार चैनल लांच किए। एक चैनल अंग्रेजी समाचारों का है- हेडलाइंस
टुडे । हिंदी में एक और चैनल 2005 में लांच किया गया-तेज़ जिसका मकसद था फटाफट
अंदाज में खबरों को पेश करना। इसके अलावा 2008 में दिल्ली-एनसीआर की खबरों के लिए
दिल्ली आजतक को लांच किया गया। इस तरह अब टीवी टुडे के 4 चैनल एक साथ चल रहे हैं। चैनल
के रूप में लांच होने के बाद ‘आजतक’ ने सबसे पहले 2001 के गुजरात भूकंप
की जबर्दस्त कवरेज की। इसके बाद तो एक से बढ़कर एक मामलों की कवरेज और प्रसारण इसके
नाम हो गए।
‘आजतक’ के
आने से साल-दो साल के अंदर सबसे बड़ा झटका ज़ीटीवी के न्यूज़ चैनल ज़ी न्यूज़ और
स्टार-एनडीटीवी के चैनल को लगा और इसी के साथ नए-नए प्राइवेट समाचार चैनलों की
शुरुआत का रास्ता भी प्रशस्त हो गया। 2003 में एनडीटीवी से अलग होकर स्टार ग्रुप
ने अपना अलग से समाचार चैनल लांच किया, जिसकी सीईओ थीं रवीना राज कोहली और संपादक
थे संजय पुगलिया जो पहले ‘आजतक’ के भी जाने-माने एंकर रह चुके थे और
इसके बाद ज़ी न्यूज़ को भी ‘आजतक’ के लांच होने के बाद झटकों से
उबारने में काफी कामयाब रहे थे।
स्टार ग्रुप ने एनडीटीवी से अलग होकर
अपना चैनल लांच करने की तैयारियां 2002 में ही शुरु कर दी थीं। 2003 में मुंबई से
बेहद तड़क भड़क के साथ ‘आपको
रखे आगे’ की टैगलाइन के साथ लांच हुए पूरी
तरह विदेशी पूंजी वाले स्टार न्यूज़ ने टीवी समाचार के कारोबार को नया कलेवर देने
की कोशिश शुरु की, लेकिन उसकी कोशिशों को तब ग्रहण लगने लगा, जब देश में
इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में शत-प्रतिशत विदेशी पूंजी का कड़ा विरोध शुरु हो गया।
चुंकि प्रिंट मीडिया में सिर्फ 26 फीसदी विदेशी पूंजी लगाने की ही अनुमति थी, लिहाजा
केंद्र सरकार ने इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर भी यही पाबंदी लगानी पड़ी। इसके बाद सितंबर
2003 में स्टार न्यूज़ को चालू रखने के लिए नए सिरे से MCCS नाम की कंपनी बनाई गई और 74 फीसदी
हिस्सेदारी के लिए कोलकाता के आनंद बाजार पत्रिका समूह को कंपनी से जोड़ा गया।
मार्च 2004 से स्टार न्यूज़ स्टार ग्रुप और ABP ग्रुप की हिस्सेदारी में आधिकारिक रूप से शुरु हुआ। स्टार और
आनंद बाजार पत्रिका समूह यानी ABP का
साथ करीब 8 साल चला और 2012 के अप्रैल महीने में स्टार ने ABP से अपना ब्रांड वापस लेने का फैसला
कर दिया। इसके बाद 1 जून 2012 से ये चैनल ABP न्यूज़ के रूप में काम करने लगा। MCCS के तहत बांग्ला और मराठी के भी दो
चैनल और एक बांग्ला एंटरटेनमेंट चैनल लांच किये गए, जो अब स्टार की जगह ABP की ब्रांडिंग से जाने जाते हैं।
‘आजतक’ से
स्टार न्यूज़ ( अब ABP
न्यूज़) में शुरुआती समानता ये थी कि तमाम ऐसे कर्मचारी उसमें काम कर रहे थे, जो ‘आजतक’ में भी काम कर चुके थे। साथ ही ज़ी न्यूज़ के भी चुने
हुए धुरंधर संजय पुगलिया की टीम में शामिल होकर स्टार न्यूज़ के सदस्य बने। चुंकि
स्टार की प्रतिद्वंद्विता मुख्य रूप से ‘आजतक’ से
थी, लिहाजा चैनल के लिए कर्मचारियों की टीम बनाते हुए इस बात का खास ख्याल रखा गया
कि जो लोग ‘आजतक’ की खबरिया मानसिकता से वाकिफ हों,
वही उसकी काट हो सकते हैं। स्टार न्यूज़ को चलाने के लिए MCCS नाम की कंपनी बनने के बाद संपादकीय
परिवर्तन भी हुए और संजय पुगलिया की जगह उदय शंकर ने ले ली, जो तब तक ‘आजतक’ के न्यूज़ डायरेक्टर हुआ करते थे। स्टार न्यूज़ में
आने के बाद उदय शंकर ने भी नई ऊंचाइयां छुईं। मर्डोक परिवार ने उनकी प्रतिभा को
पहचाना और शायद पहली बार एक भारतीय पत्रकार को विदेशी मीडिय़ा समूह के टॉप मैनेजमेंट
में शामिल होने का गौरव हासिल हुआ, 2007 में उदय शंकर स्टार इंडिया के हेड बना दिए
गए। उदय शंकर के बाद से शाजी ज़मां ने स्टार न्यूज़ ( अब ABP न्यूज़) की कमान संभाली। स्टार
न्यूज़ ने लांचिंग के बाद मुंबई में हुई भीषण बारिश के दौरान जोरदार कवरेज की और ‘आजतक’ समेत तमाम चैनलों को पीछे छोड़ दिया।
1998-99 में सबसे पहले भारतीय निजी
समाचार चैनल के रूप में अपनी खास पहचान बनानेवाले ज़ी न्यूज़ को 2001 के बाद के
झटकों से उबरने पर दिल्ली, उत्तर-पश्चिम भारत और गुजरात में अपने बड़े दर्शक वर्ग
का हमेशा फायदा मिलता रहा। इस चैनल में काफी संपादकीय बदलाव हुए। चैनल को स्थापित
करनेवाले शैलेष, आलोक वर्मा, उमेश उपाध्याय, रजत शर्मा के बाद शाजी ज़मां, संजय
पुगलिया, फिर विनोद कापड़ी, विष्णु शंकर, सतीश के. सिंह, अलका सक्सेना से लेकर
सुधीर चौधरी तक जैसे तमाम जाने-माने टीवी पत्रकार ज़ी न्यूज़ के संपादक बने और
चैनल को बड़े मुकाम तक पहुंचाने की कोशिश करते रहे। लेकिन तमाम कोशिशों के बावजूद
ये चैनल टीआरपी की होड़ में चौथे नंबर से ऊपर नहीं चढ़ सका, एक-दो मौके अपवाद हो
सकते हैं।
इधर, स्टार ग्रुप का साथ छूटने के
बाद एनडीटीवी ने भी अपने चैनल लाने की तैयारी शुरु की और 2003 में सफलतापूर्वक 2
चैनल लांच कर दिए। हिंदी चैनल के लांच के लिए ‘आजतक’ के
ही मशहूर चेहरे दिबांग को अपने साथ जोड़ा। ‘खबर वही सो सच दिखाए’ की टैगलाइन के साथ शुरु हुए हिंदी चैनल ‘एनडीटीवी इंडिया’ ने खबरों के प्रसारण के मामले में
तो अलग संपादकीय लाइन की वजह से अपनी खास पहचान बनाए रखी, लेकिन टीआरपी की होड़
में ये चैनल पीछे ही रहा। दिबांग के आक्रामक तेवर पर कई बार डॉ. प्रणय रॉय की
संपादकीय नीतियां भारी पड़ती दिखीं जिसकी वजह से खबर देखने वालों के लिए तो ‘एनडीटीवी इंडिया’ पसंदीदा चैनल बना रहा, लेकिन
मिक्स-मसाला के तौर पर खबरे परोसे जाने में फिसड्डी ही साबित हुआ। वैसे एक तरह से
देखा जाए तो NDTV
देश का सबसे
पुराना मीडिया हाउस है। 2012-13 में इसके 25 साल पूरे हो चुके हैं। दूरदर्शन के
लिए नवंबर 1988 से 'The World This Week' न्यूज़ मैगजीन की प्रस्तुति
और कंटेंट तैयार करने के बाद इस मीडिया हाउस ने स्टार ग्रुप के साथ हाथ मिलाया और
करीब 9-10 साल उन्हें 24 घंटे के चैनल के लिए कंटेंट उपलब्ध कराते रहे। आजकल (2013)
अनिंद्यो चक्रवर्ती इसके हिंदी चैनल ‘एनडीटीवी इंडिया’ के प्रमुख हैं, जबकि सुनील सैनी, मनोरंजन भारती, रवीश कुमार,
मनीष कुमार, अभिषेक शर्मा, निधि कुलपति इसके जानेमाने संपादकीय चेहरे और प्रस्तोता
हैं। मशहूर टीवी प्रस्तोता विनोद दुआ भी एनडीटीवी इंडिया पर खास करंट अफेयर्स
कार्यक्रम पेश करते हैं।
ज़ीटीवी से अलग होने के बाद अपना
मीडिया प्रोडक्शन हाउस ‘इंडिपेंडेंट
न्यूज़ सर्विसेज़ प्राइवेट
लिमिटेड’ चलानेवाले और ‘आपकी अदालत’ जैसे कार्यक्रम से मशहूर हुए
पत्रकार रजत शर्मा भी अपना समाचार चैनल लेकर आए जिसका नाम उन्होंने रखा- ‘इंडिया टीवी’। 20 मई 2004 को ‘आपकी आवाज’ की टैगलाइन के साथ लांच इस चैनल ने
शुरुआत में तो बॉलीवुड के कास्टिंग काउच और नेताओं के सेक्स स्कैंडल दिखाकर
लोकप्रियता बटोरने की कोशिश की, लेकिन लंबे समय तक खबरिया हथकंडों में कामयाबी
नहीं मिली, और ना ही रजत शर्मा को अपने
चेहरे की ब्रांडिंग का कोई फायदा मिला तो उन्होंने आखिरकार खांटी खबरिया संपादक औऱ
ज़ी न्यूज़ में अपने सहयोगी रहे विनोद कापड़ी को अपने साथ जोड़ा। विनोद कापड़ी की
अगुवाई में इंडिया टीवी ने कम वक्त में ही बुलंदियां हासिल कर ली और लगातार वो
टीआरपी के चार्ट में पहले से तीसरे नंबर तक अपनी जगह बनाने में कामयाब दिख रहा है।
रजत शर्मा 1992 से ही ज़ीटीवी से अपने खास टॉक शो ‘आपकी अदालत’ के साथ जुड़े हुए थे। वो ज़ी के डायरेक्टर भी रहे। ज़ी से
अलग होने के बाद एनडीटीवी के साथ चल रहे स्टार न्यूज़ में वो ‘जनता की अदालत’ लेकर आए, जो आज भी उनके अपने चैनल पर
चल रहा है।
देश में समाचार चैनलों की
दुनिया का विस्तार 2002 के बाद से बड़ी तेज़ी से हुआ। दूरदर्शन के मेट्रो चैनल से ‘आजतक’ कार्यक्रम की विदाई के बाद दूरदर्शन को भी एक 24 घंटे
के समाचार चैनल की जरूरत महसूस हुई। 3 नंवबर 2003 को मेट्रो चैनल के प्लेटफॉर्म पर
ही 24 घंटे के समाचार चैनल
डीडी न्यूज की शुरूआत की गई, जिसकी कमान सरकारी लोगों के हाथ में होने के अलावा ‘आजतक’ से अपनी पहचान बनानेवाले प्रमुख टीवी पत्रकार दीपक
चौरसिया को भी सौंपी गई थी। हालांकि बाद में वो इस चैनल से अलग हो गए, लेकिन DD न्यूज़ अपनी खास पहचान बनाने में
जरूर कामयाब हुआ है। 2013 में इसे नई ब्रैंडिंग और लोगो के साथ पेश किया गया है और
BBC के पूर्व भारत संपादक संजीव
श्रीवास्तव की अगुवाई में चलनेवाले इसके प्राइम टाइम शो न्यूज़ नाइट ने तो टीआरपी
की होड़ में भी अहम उपलब्धि हासिल करके चैनल को टीआरपी चार्ट में ऐतिहासिक स्तर तक
पहुंचा दिया।
निजी समाचार चैनलों की देश
में शुरुआत हुई, तो अखबार निकालनेवाले समूहों ने भी इसमें हाथ आजमाना शुरु किया।
टाइम्स ग्रुप ने तो अंग्रेजी में समाचार चैनल लांच किया, लेकिन दैनिक जागरण के
प्रकाशन समूह ने हिंदी चैनल लाने की योजना बनाई और अप्रैल 2005 में चैनल 7 के नाम
से चैनल लांच भी कर दिया। लेकिन जागरण ग्रुप इस चैनल को लंबे समय तक चलाने में
नाकाम रहा और आखिरकार 2006 में इस चैनल की बड़ी हिस्सेदारी नेटवर्क 18 और राजदीप
सरदेसाई के नेतृत्व वाले Global Broadcast News Ltd. (GBN) ग्रुप ने खरीद ली। इसके बाद चैनल का
नाम IBN7 हो गया और अब इस चैनल की
टैगलाइन है- ‘खबर हर कीमत पर’। इस तरह ये चैनल बिजनेस चैनल और अंग्रेजी समाचार
चैनल चलानेवाले TV
18-नेटवर्क 18 ग्रुप
में हिंदी समाचार चैनल के रूप में शामिल हो गया। शुरुआत में इस चैनल की कमान
जानेमाने एंकर अरूप घोष के हाथों में थी, इसके बाद अजीत साही और फिर ‘आजतक’ से आए आशुतोष ने मैनेजिंग एडिटर के रूप में इसका
संचालन संभाला। संजीव पालीवाल इसके प्रमुख कार्यकारी संपादक हैं। हार्डकोर खबरों और
उनके विश्लेषण पर केंद्रित रहना इस चैनल की खासियत है। चर्चित पत्रकारों राजदीप
सरदेसाई, आशुतोष, संदीप चौधरी की अगुवाई में ये चैनल सार्थक खबरिया पत्रकारिता के
झंडे गाड़ रहा है।
वित्तीय और कई और क्षेत्रों में हाथ आजमाने वाली कंपनी सहारा इंडिया ने भी
सन 2000 में इलाक्ट्रानिक मीडिया में कदम रखा और सन 2000 में सहारा टीवी लेकर आए,
जिस पर शुरुआत में समाचार भी चलते थे और एंटरटेनमेंट प्रोग्राम भी। मशहूर पत्रकार
विनोद दुआ इस चैनल पर रोजाना अपना समाचार आधारित कार्यक्रम प्रतिदिन और शनिवार को अपना
साप्ताहिक समाचार आधारित कार्यक्रम परख लेकर आते थे। सहारा ग्रुप ने 2002 -2003
में समाचार के लिए सहारा समय नाम से अलग से चैनल लांच कर दिया और मनोरंजन चैनल को
भी अलग कर दिय़ा गया। 2004 में मनोरंजन चैनल को सहारा वन नाम दे दिया गया और फिल्मों
के लिए भी 2 और चैनल लांच कर दिए गए। सहारा इंडिय़ा के समाचार चैनल सहारा समय के
साथ-साथ कई और क्षेत्रीय चैनल भी लांच किए गए, जो मध्य प्रदेश-छत्तीसगढ़,
यूपी-उत्तराखंड, बिहार-झारखंड, राजस्थान, दिल्ली-एनसीआर, मुंबई वगैरह की खबरें
दिखाते हैं। सहारा के समाचार चैनलों की कमान बदलती रही है। शुरुआती दौर में
राष्ट्रीय सहारा अखबार से जुड़े विभांशु दिव्याल और फिर प्रभात डबराल ने काफी समय
तक इसका संचालन किय़ा। इसके बाद अरुप घोष-शीरीन की जोड़ी इसे चलाती रही। ‘आजतक’ के जानेमाने चेहरे
पुण्य प्रसून वाजपेयी को भी इसकी कमान दी गई जिन्होंने इसका नाम सिर्फ ‘समय’ कर दिया। इसके बाद स्टार न्यूज़ से
जुड़े रहे उपेंद्र राय को भी इसकी जिम्मेदारी सौंपी गई। संपादक आते-जाते रहे लेकिन
ये चैनल चलता जा रहा है।
मशहूर पत्रकार अनुराधा प्रसाद
और पत्रकार से राजनेता बने राजीव शुक्ल की ओर से 1993 से चलाए जा रहे प्रॉडक्शन
हाउस BAG फिल्म्स भी समाचार चैनल लेकर
खबरों के बाजार में उतरा। 2007 में लांच हुए इस चैनल की टैगलइन है- ‘हर खबर पर नज़र’। अपनी प्रस्तुति की वजह से लांच
होने के चार साल के अंदर ये चैनल टीआरपी की होड़ में कई चैनलों को पीछे छोड़ चुका
है। इसका संपादकीय नेतृत्व अजीत अंजुम के हाथों में है।
समाचार चैनलों में एक नया नाम
P7 न्यूज़ का भी जुड़ा। ‘सच जरूरी है’ की टैगलाइन से 24 घंटे के इस चैनल को
Pearls Broadcasting Corporation
Limited की ओर से नवंबर 2008 में नोएडा से लांच
किया गया। टीआरपी चार्ट में तो ये चैनल कहीं खास नहीं है, लेकिन इसका कामकाज चार
साल से अच्छी तरह चलता जा रहा है और 2013 में तो इस ग्रुप की ओर से 2 और चैनल – एक
दिल्ली-एनसीआर के लिए और एक मध्य प्रदेश-छत्तीसगढ़ के लिए – लांच कर दिए गए हैं। इस
चैनल से जाने-माने नाम तो नहीं जुड़े हैं, लेकिन इसकी प्रस्तुति जरूर कसी हुई और
बेहतरीन लगती है।
समाचार चैनलों में सियासी
हस्तियों की दिलचस्पी जगजाहिर है। 11 फरवरी 2008 को दिल्ली के ITV मीडिय़ा ग्रुप ने ‘देश की धड़कन’ की टैग लाइन से इंडिया न्यूज़ लांच
किया जिसके कर्ता धर्ता कार्तिकेय शर्मा हरियाणा के कांग्रेस नेता विनोद शर्मा के
बेटे हैं। विनोद शर्मा के दूसरे बेटे मनु शर्मा दिल्ली के जेसिका लाल हत्याकांड
में सज़ायाफ्ता हैं। इस चैनल से 2013 में मशहूर पत्रकार दीपक चौरसिया भी जुड़ चुके
हैं और चैनल को नई पहचान देने में जुटे हैं। इस चैनल से जुड़े कई क्षेत्रीय चैनल
भी हैं- इंडिया न्यूज़ हरियाणा, इंडिया न्यूज़ मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़, इंडिया
न्यूज़ बिहार। साथ ही इस चैनल ने अंग्रेजी चैनल न्य़ूज़ एक्स को भी खरीद लिया है।
इस तरह ये एक बड़े मीडिया ग्रुप के रूप में उभर रहा है।
एक और समाचार चैनल जो टीआरपी
चार्ट में अपनी जगह के उतार-चढ़ाव को लेकर चर्चा में रहा- वो है – ‘लाइव इंडिया’। पहले पहल श्रीअधिकारी ब्रदर्स ने 2005
के आसपास ‘जनमत’ नाम से इस चैनल को लांच किया था।
इसके बाद इसकी हिस्सेदारी बिल्डर कंपनी HDIL को बिक गई और तब इसका नामकरण ‘लाइव इंडिया’ हुआ। एक स्टिंग ऑपरेशन को लेकर हुए विवाद को लेकर 2007 में
इस पर पाबंदी भी लगी। इसके बाद इस चैनल ने नए सिरे से अपनी पहचान बनानी शुरु की,
लेकिन अंदरूनी खस्ताहाली ने इसे एक बार फिर बिकने को मजबूर कर दिया। अब इसके
मालिकान पुणे के कारोबारी हैं। शुरुआत में इस चैनल के साथ हरीश गुप्ता, उमेश
उपाध्याय जैसे पत्रकार जुड़े थे, बाद में सुधीर चौधरी इसके संपादक बने और फिर सतीश
के सिंह को इसकी कमान मिली।
राष्ट्रीय समाचार चैनलों में
नवीनतम नाम न्यूज़ नेशन का है, जिसे 2013 में ही लांच किया गया है। चैनल की अगुवाई
वरिष्ठ पत्रकार शैलेष कर रहे हैं, जो ज़ी न्यूज़, आजतक जैसे चैनलों में लंबी पारी
खेल चुके हैं। साथ ही आजतक और स्टार न्यूज़ के नामी एंकर अजय कुमार भी इससे जुड़े
हुए हैं। इसके संपादकीय विभाग में वरिष्ठ पत्रकार सर्वेश तिवारी भी हैं। रोजगार पर
खतरे के संकट से गुजर रहे टीवी में काम करनेवाले तमाम युवाओं के लिए य़े चैनल आशा
की किरण बन कर लांच हुआ। चैनल से काफी उम्मीदें हैं बशर्ते ये सुचारू रूप से चलता
रहे।
समाचारों का प्रसारण राज्यसभा टीवी
पर भी होता है, जिसे 2011 में लांच किया गया, हालांकि इसकी कोई कारोबारी मानसिकता
नहीं है और खबरों के चयन का तरीका आम चैनलों से अलग है। लेकिन कम वक्त में ही ये
चैनल करंट अफेयर्स चैनलों में अपनी खास पहचान बनाने में सफल हुआ है। चैनल की कमान
गुरदीप सिंह सप्पल और राजेश बादल के हाथों में है।
देश में समाचार चैनलों की होड़ में
क्षेत्रीय चैनल भी काफी तेजी से शामिल हुए। इसकी शुरुआत तो सबसे पहले हैदराबाद के
इनाडु ग्रुप ने ही कर दी थी, जिसके नेटवर्क में पहले दक्षिण भारतीय भाषाओं के और
फिर ओडिशा, महाराष्ट्र, गुजरात, उत्तर प्रदेश/उत्तराखंड, बिहार/झारखंड, मध्य प्रदेश/ छत्तीसगढ़ और राजस्थान के लिए भी अलग-अलग चैनल आ गए जिन पर
समाचारों के अलावा मनोरंजन और करंट अफेयर्स के कार्यक्रम भी प्रसारित होते हैं। इनाडु
ग्रुप के मालिक रामोजी राव की अगुवाई में शुरु ये नेटवर्क अब टीवी 18 ग्रुप का
हिस्सा बन चुका है।
दिल्ली-एनसीआर की खबरों पर केंद्रित चैनलों में टोटल टीवी का भी नाम आता
है, जो 2005 में लांच हुआ। टोटल टीवी यूं तो पहला ऐसा सैटेलाइट चैनल है जो किसी
शहर पर केंद्रित हो, हालांकि अभी तक ये अपनी बड़ी पहचान बनाने में विफल रहा है।
क्षेत्रीय समाचार चैनलों में साधना
न्यूज़ भी है जिसका मध्य प्रदेश-छत्तीसगढ़ चैनल सबसे ज्यादा चर्चा में है। पहले
एनके सिंह, फिर एसएन विनोद और अब अंशुमान त्रिपाठी इसकी कमान संभाल रहे हैं।
देश में समाचार प्रसारण को कारोबार
बनाने के लालच ने कुछ ऐसे संगठनों और लोगों को भी समाचार चैनल लांच करने का मौका
दे दिया, जिन्होंने बड़ी संख्या में लोगों के रोजगार के साथ खिलवाड़ किया। ऐसा ही
एक चैनल था ‘वॉयस ऑफ इंडिया’ जो ब़ड़े ताम-झाम से
2007-2008 के दौरान लांच हुआ था, लेकिन चल नहीं सका और इसमें काम शुरु करनेवाले काफी
लोग महीनों बेकार रहने को मजबूर हो गए। इसी तरह एस-1 टेलीविजन के नाम से Senior Media Limited नाम के संगठन
ने अगस्त
2005 में नोएडा से चैनल लांच किया था और विस्तार के बड़े-बड़े दावे किए गए थे, जो
टांय-टांय फिस्स साबित हुए और कर्मचारियों को दिक्कतें झेलनी पड़ी। ये ऐसे संगठन
थे, जिनका समाचार से या मीडिया से कोई खास लेना-देना नहीं था और किराने के कारोबार
की तरह जल्दी-जल्दी मुनाफा हासिल करना चाहते थे।
ऐसा ही हाल फिल्मों
की दुनिया से जुड़े एक बड़े ग्रुप का भी हुआ। ग्रुप ने भोजपुरी दर्शकों पर
केंद्रित चैनल शुरु किए जिनमें एंटरटेनमेंट आधारित महुआ टीवी तो बखूबी चल रहा है,
लेकिन इसका समाचार चैनल- महुआ न्यूज़ चाहे जिस वजह से हो, नहीं चल सका। ऐसे कई
चैनलों के आगाज और अंत ने समाचार के कारोबार में कूदनेवालों को बड़ा सबक दिया है,
साथ ही टीवी समाचार चैनलों की तड़क-भड़क के वशीभूत होकर उनमें काम करने की इच्छा
रखनेवालों को भी पेशे को अपनाने के बारे में सोचने का मौका दिया है।
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कुमार कौस्तुभ
19.05.2013, 06.00 PM