एक तरफ 2017 में महात्मा गांधी के चंपारण आंदोलन की शतवार्षिकी की तैयारियां
चल रही हैं तो दूसरी तरफ बिहार के मोतिहारी में मोतिहारी से जुड़ी एक और शख्सियत
जॉर्ज ऑरवेल की स्मृतियां मिटाने की तैयारी हो रही है। वो भी सिर्फ इस नाम पर कि
ऑरवेल अंग्रेज थे, उस ब्रिटिश हुकूमत के एक अफसर की पैदाइश थे, जिसने हिंदुस्तान
को बरसों गुलाम बनाए रखा। मोतिहारी में इन दिनों बढ़ चढ़कर ऑरवेल की स्मृति में
पार्क और मेमोरियल बनाए जाने का विरोध हो रहा है। इसका मकसद आखिर क्या है? आप गांधीजी को मानते हैं। चंपारण में उनके आने और यहां अपने आंदोलन की शुरुआत
करने को लेकर फख्र महसूस करते हैं। आप ये भी चाहते हैं कि गांधीजी के नाम पर सरकारें
(केंद्र और राज्य) चंपारण और मोतिहारी के विकास में कुछ योगदान करें। लेकिन आप ये
भूल जाते हैं कि चंपारण के मोतिहारी की जमीन पर ही पैदा हुआ था ऑरवेल जैसा नामचीन
लेखक जिससे दुनिया में मोतिहारी की पहचान जुड़ी है। ऑरवेल की स्मृति मिटा देने का
कोई तार्किक मतलब नहीं है। न तो ऑरवेल को इस बात की सज़ा दी सकती है कि वो उस अंग्रेज
की औलाद थे, जिसने चंपारण पर शासन किय़ा, ना ही ऐसी किसी बात के लिए जो उन्होंने
कभी हिंदुस्तान के या गांधीजी के ही खिलाफ कही हो।
जिस वक्त गांधीजी मोतिहारी पधारे थे, उस वक्त ऑरवेल की उम्र महज 14-15 साल रही
होगी। गांधीजी की मौत के सिर्फ 2 साल बाद 1950 में ऑरवेल ने भी प्राण त्याग दिये।
लेकिन गांधीजी की मृत्यु के बाद उन्होंने बड़ी बेबाकी से जो कुछ उनके ऊपर लिखा वो
महत्वपूर्ण है। ऑरवेल का लेख ‘रिफ्लेक्शंस ऑन गांधी’ 1949 में पार्टिजन रिव्यू
नाम की पत्रिका में छपा था। शायद गांधीजी ने खुद भी वो लेख पढ़ा होता, तो ऑरवेल के
बेबाक अंदाज के कायल हो गए होते। ऐसा नहीं कि ऑरवेल ने गांधीजी की विचारधारा और
उनकी गतिविधियों पर सवाल नहीं उठाए हैं, लेकिन तमाम अंग्रेज और विदेशी लेखकों से
अलग हटकर निष्पक्ष तरीके से उन्होंने गांधीजी के व्यक्तित्व और कृतित्व की जो
व्याख्या की है उसे खारिज भी नहीं किया जा सकता। गांधीजी पर ऑरवेल का लेख और उस पर
लिखे गए तमाम और भी लेख इंटरनेट पर बड़ी आसानी से उपलब्ध हैं, कोई भी उन्हें तलाशकर
पढ़ सकता है। सवाल सिर्फ यही है कि मोतिहारी में ऑरवेल के मेमोरियल का विरोध क्यों
हो रहा है और इससे क्या हासिल होनेवाला है। ऑरवेल ने जो कुछ गांधीजी पर लिखा है,
उससे साफ है कि वो गांधीजी के विरोधी नहीं थे। वक्त और हालात ने उन्हें उसी
मोतिहारी की धरती पर पैदा किया जो गांधीजी की कर्मभूमि के नाम से मशहूर है। गांधी
और ऑरवेल अपने-अपने क्षेत्र के सम्माननीय़ व्यक्तित्व हैं और दोनों की एक-दूसरे से
न तो तुलना हो सकती है, ना ही एक के नाम पर दूसरे को खारिज किया जा सकता है। अगर मोतिहारी
के लोगों को गांधीजी के अपनी जमीन से जुड़ाव का गर्व है, तो उन्हें इस बात का भी
फख्र होना चाहिए कि ऑरवेल जैसे लेखक यहां की जमीन पर पैदा हुए।
एक और बात सामयिक है, वो ये कि अगर हम ऐसा चाहते हैं कि गांधीजी के चंपारण
आंदोलन की शतवार्षिकी पर मोतिहारी को कुछ फायदा हो, गांधीजी के नाम पर मोतिहारी और
चंपारण के विकास को कुछ और गति मिले, तो हमें ऑरवेल से क्यों द्रोह है? अगर सरकार ऑरवेल के नाम पर मोतिहारी में कुछ करना चाहती है तो उसका स्वागत
होना चाहिए। साथ ही, मोतिहारी के लोगों को विदेशों की उन एजेंसियों और संस्थाओं को
भी आमंत्रित करना चाहिए, जो ऑरवेल की स्मृति , उनकी विरासत को सहेजने में कुछ
योगदान कर सकती हों। मोतिहारी में प्रस्तावित महात्मा गांधी केंद्रीय
विश्वविद्यालय में ऑरवेल के नाम पर अध्ययन पीठ की स्थापना होनी चाहिए, ताकि
ब्रिटेन और अमेरिका के विद्य़ार्थी उस महान लेखक की जन्मभूमि पर आकर शोध और अनुसंधान
कर सकें। अगर इस तरह की गतिविधियां शुरु होती हैं तो निश्चित रूप से इसका फायदा
मोतिहारी और चंपारण क्षेत्र को ही मिलेगा, कोई नुकसान नहीं होगा। गांधीजी की
दुनिया में महत्ता निर्विवाद है और ऑरवेल भी लेखक के तौर पर दुनिया में कम मशहूर
नहीं। ऐसे में अगर गांधीजी के साथ-साथ ऑरवेल की विरासत को सहेजने की भी पहल होती
है, तो इसमें कोई बुराई नहीं दिखती। हां, चाहे गांधीजी का मेमोरियल हो, या ऑरवेल
का, उसके लिए जमीन अधिग्रहण जैसे विवाद नहीं पैदा होने चाहिए और ये तय करना सरकार
और प्रशासन का काम है कि कैसे किसी भी विवाद से बचकर विकास को गति दी जा सकती है।
गांधीजी तोड़ने में नहीं जोड़ने में विश्वास करते थे और अगर उस धरती पर , जहां का
नाम गांधीजी से जुड़ा है, वहां ऑरवेल जैसी शख्सियत की याद मिटाने की कोशिश हो, तो
उससे शर्मनाक कुछ भी नहीं होगा। इसलिए गांधीजी के ही नाम पर सही, ऐसी तमाम कोशिशों
को किनारे कर दिया जाना चाहिए, जो ऑरवेल के विरोध में शुरु हुई हैं और गांधीजी और
ऑरवेल को जोड़कर एक नई पहल होनी चाहिए जिसकी गूंज सात समुंदर पार तक सुनाई दे, न
कि ऐसी कोई कार्रवाई हो, जो गांधी की कर्मभूमि कहलानेवाली धरती का नाम दुनिया में
कलंकित करे।
1 comment:
acchi tippani hai aapki. ye suljha hua article hai jise unlogo ko padna chahiye jo iska virodh kar rahe hai. jis tarah se aapne parallel rup se Gandhi n Gewoge orwel ki tulna ki hai , prasansaniy hai.
Thanks for this article
ur Munna Kumar
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