20 दिसंबर
अंतरराष्ट्रीय मानव एकजुटता दिवस
International Human Solidarity Day
22 दिसम्बर 2005 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने प्रस्ताव 60/209 द्वारा एकजुटता को मौलिक और सार्वभौमिक मूल्यों में से एक माना, जो इक्कीसवीं सदी में लोगों के बीच संबंधों का आधार होना चाहिए, और इस संबंध में प्रत्येक वर्ष 20 दिसम्बर को अंतर्राष्ट्रीय मानव एकजुटता दिवस घोषित करने का निर्णय लिया। 20 दिसंबर 2002 को महासभा ने संकल्प 57/265 के तहत विश्व एकजुटता कोष की स्थापना की, जिसे फरवरी 2003 में संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम के एक ट्रस्ट फंड के रूप में स्थापित किया गया था । इसका उद्देश्य विकासशील देशों में, विशेष रूप से उनकी आबादी के सबसे गरीब तबके के बीच गरीबी को मिटाना और मानव और सामाजिक विकास को बढ़ावा देना है। अंतरराष्ट्रीय मानव एकजुटता दिवस विविधता में हमारी एकता का जश्न मनाने का दिन है। यह सरकारों को अंतर्राष्ट्रीय समझौतों के प्रति अपनी प्रतिबद्धताओं का सम्मान करने की याद दिलाने का दिन है। यह एकजुटता के महत्व के बारे में सार्वजनिक जागरूकता बढ़ाने का दिन है। साथ ही यह गरीबी उन्मूलन सहित सतत विकास लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए एकजुटता को बढ़ावा देने के तरीकों पर बहस और गरीबी उन्मूलन के लिए नई पहल को प्रोत्साहित करने हेतु कार्रवाई का दिन है। सहस्राब्दि घोषणा में एकजुटता को 21वीं सदी में अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के मूलभूत मूल्यों में से एक के रूप में पहचाना गया है, जिसके अनुसार जो लोग या तो कम पीड़ित हैं या जिन्हें सबसे कम लाभ हुआ है, उन्हें उन लोगों से मदद मिलनी चाहिए जो सबसे अधिक लाभान्वित हैं। परिणामस्वरूप, वैश्वीकरण और बढ़ती असमानता की चुनौती के संदर्भ में, अंतर्राष्ट्रीय एकजुटता को मजबूत करना अपरिहार्य है।इसलिए, संयुक्त राष्ट्र महासभा ने इस बात पर विश्वास किया कि एकजुटता की संस्कृति और साझा करने की भावना को बढ़ावा देना गरीबी से लड़ने के लिए महत्वपूर्ण है, इसलिए 20 दिसंबर को अंतर्राष्ट्रीय मानव एकजुटता दिवस के रूप में घोषित किया गया। गरीबी उन्मूलन के लिए विश्व एकजुटता कोष की स्थापना और अंतर्राष्ट्रीय मानव एकजुटता दिवस की घोषणा जैसी पहलों के माध्यम से, एकजुटता की अवधारणा को गरीबी के खिलाफ लड़ाई और सभी प्रासंगिक हितधारकों की भागीदारी में महत्वपूर्ण के रूप में बढ़ावा दिया गया।
संत गाडगे बाबा निर्वाण दिवस
महान कर्मयोगी राष्ट्रसंत संत गाडगे बाबा महाराज की पुण्यतिथि 20 दिसंबर को मनाई जाती है। उनका जन्म महाराष्ट्र के अमरावती जिले के शेणगांव अंजनगांव में 23 फरवरी 1876 को हुआ था। उनका बचपन का नाम डेबूजी झिंगराजी जानोरकर था। संत गाडगे सच्चे निष्काम कर्मयोगी थे। उन्होंने महाराष्ट्र के कोने-कोने में अनेक धर्मशालाएं, गौशालाएं, विद्यालय, चिकित्सालय तथा छात्रावासों का निर्माण कराया। यह सब उन्होंने भीख मांग-मांगकर बनावाया किंतु अपने सारे जीवन में इस महापुरुष ने अपने लिए एक कुटिया तक नहीं बनवाई। संत गाडगे बाबा हमेशा लोक सेवा के अपने जीवन के एकमात्र ध्येय पर अटल रहे । दीन-दुखियों तथा उपेक्षितों की सेवा को ही वे ईश्वर भक्ति मानते थे। धार्मिक आडंबरों का उन्होंने प्रखर विरोध किया। उनका विश्वास था कि ईश्वर न तो तीर्थस्थानों में है और न मंदिरों में व न मूर्तियों में। दरिद्र नारायण के रूप में ईश्वर मानव समाज में विद्यमान है। मनुष्य को चाहिए कि वह इस भगवान को पहचाने और उसकी तन-मन-धन से सेवा करें। संत गाडगे बाबा ने तीर्थस्थानों पर कईं बड़ी-बड़ी धर्मशालाएं इसीलिए स्थापित की थीं ताकि गरीब यात्रियों को वहां मुफ्त में ठहरने का स्थान मिल सके। नासिक में बनी उनकी विशाल धर्मशाला में सैकड़ों यात्री एकसाथ ठहर सकते हैं। दरिद्र नारायण के लिए वे प्रतिवर्ष अनेक बड़े-बड़े अन्नक्षेत्र भी किया करते थे, जिनमें अंधे, लंगड़े तथा अन्य अपाहिजों को कंबल, बर्तन आदि भी बांटे जाते थे। सन् 2000-01 में महाराष्ट्र सरकार ने 'संत गाडगे बाबा ग्राम स्वच्छता अभियान' की शुरुआत की, जिसके अंतर्गत जो लोग अपने गांवों को स्वच्छ और साफ-सुथरा रखते है उन्हें यह पुरस्कार दिया जाता है। संत गाडगे बाबा ने बुद्ध की तरह ही अपना घर परिवार छोड़कर मानव कल्याण के लिए अपना संपूर्ण जीवन समर्पित कर दिया। 20 दिसंबर 1956 को उनका निधन हुआ था।
सशस्त्र सीमा बल स्थापना दिवस
SSB Foundation Day
सशस्त्र सीमा बल(SSB) का स्थापना दिवस 20 दिसंबर को मनाया जाता है। सशस्त्र सीमा बल पहले विशेष सेवा व्यूरो के नाम से जाना जाता था का गठन 1962 के चीन के साथ हुए युद्ध के उपरांत सीमावर्ती क्षेत्र के निवासियों को देश की मुख्य धारा के साथ जोड़ने आदि के लिए 1963 में किया गया। ताकि सीमावर्ती लोगों के मन में अपने देश के प्रति विश्वास कायम किया जा सके I कारगिल युद्ध के बाद वन बार्डर-वन फोर्स की भारत सरकार की नीति के उद्देश्य से जनवरी 2001 में सशस्त्र सीमा बल , गृह मंत्रालय के अंतर्गत स्थानांतरित हुई एवं जून 2001 में सशस्त्र सीमा बल को भारत-नेपाल की 1751 किलोमीटर लम्बी सीमा पर तैनात किया गया I सशस्त्र सीमा बल की स्थापना मूलतः विशेष सेवा ब्यूरो (एसएसबी) के नाम से 15 मार्च 1963 को हुआ था।एसएसबी अधिनियम, 2007 को राष्ट्रपति की स्वीकृति की तिथि 20 दिसंबर है। बल का प्राथमिक कार्य इंटेलिजेंस ब्यूरो के विदेशी खुफिया प्रभाग रॉ को सशस्त्र सहायता प्रदान करना था । इसका दूसरा उद्देश्य सीमावर्ती आबादी में राष्ट्रीयता की भावना पैदा करना और तत्कालीन नेफा , उत्तरी असम (भारतीय राज्य असम के उत्तरी क्षेत्र ), उत्तर बंगाल (भारतीय राज्य पश्चिम बंगाल के उत्तरी क्षेत्र ) और उत्तर प्रदेश , हिमाचल प्रदेश और लद्दाख की पहाड़ियों में प्रेरणा , प्रशिक्षण, विकास, कल्याण कार्यक्रमों और गतिविधियों की एक सतत प्रक्रिया के माध्यम से प्रतिरोध के लिए उनकी क्षमताओं को विकसित करने में सहायता करना था । 2001 में, एसएसबी को रॉ से गृह मंत्रालय में स्थानांतरित कर दिया गया और नेपाल और भूटान की सीमाओं पर निगरानी रखने का काम सौंपा गया। अपनी नई भूमिका के अनुसार, एसएसबी का नाम बदलकर सशस्त्र सीमा बल कर दिया गया और यह गृह मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण में आ गया। एसएसबी पहला सीमा सुरक्षा बल है जिसने महिला बटालियनों की भर्ती करने का फैसला किया । (विविध स्रोत)