Wednesday, November 6, 2024

कमला की लुटिया ले डूबी बाइडेन की बरजोरी


#KamlaHarris #Trump #USElections #Biden
अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव 2024 में डेमोक्रेट उम्मीदवार कमला हैरिस को भले ही हार का सामना करना पड़ा लेकिन जितनी कड़ी टक्कर उन्होंने रिपब्लिकन उम्मीदवार डॉनल्ड ट्रंप को दी उसे नजरंदाज नहीं किया जा सकता। यह भी माना जाना चाहिए कि यदि कमला हैरिस को समय से राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया गया होता तो वे ट्रंप को हरा भी सकती थीं और आज नतीजे कुछ और होते। इसमें कहीं न कहीं निवर्तमान होने जा रहे राष्ट्रपति जो बाइडेन की महत्वाकांक्षा जरूर आड़े आई। 81 वर्ष के बाइडेन को यह समझने में बहुत देर लग गई कि उनकी उम्र और सेहत अब उनके लिए इस पद के माकूल नहीं है और इसका खामियाजा सीधे सीधे उपराष्ट्रपति कमला हैरिस को भुगतना पड़ा जिन्हें बहुत देर से डेमोक्रेटिक पार्टी की ओर से उम्मीदवार घोषित किया गया। तब तक बाइडेन पर हमलावर ट्रंप कहीं न कहीं लीड ले चुके थे। लिहाजा कमला हैरिस को ट्रंप के आक्रामक चुनाव प्रचार की चुनौती से निपटने के लिए अपेक्षाकृत बहुत ही कम समय मिला। वहीं कमला हैरिस के मैदान में आने के बाद ट्रंप उनकी छवि पर भी वार करने से नहीं चूके जो स्वाभाविक ही था। कुल मिलाकर हालात कमला के पक्ष में बनने से रह गये और अमेरिका एक बार फिर इतिहास रचने से चूक गया। कमला हैरिस अगर जीत गयी होती तो वे न केवल अमेरिका की पहली महिला राष्ट्रपति होतीं बल्कि अमेरिका में इस सर्वोच्च पद पर पहुंचने वाली पहली भारतवंशी भी होतीं। लेकिन, बाइडेन की बरजोरी के कारण अमेरिका में नया इतिहास बनने से रह गया। © कुमार कौस्तुभ 

Thursday, October 31, 2024

ग्लोबल होती दिवाली


#Diwali #Deepawali #FestivalofLights #Global #US #UK
दिवाली भारतीयों का पर्व है और दुनिया भर में रह रहे भारतीय चाहे जहां भी हों, बड़े उत्साह और उमंग से इसे मनाते हैं। दुनिया के विभिन्न देशों में भारतीय दूतावासों में भी दिवाली का आयोजन होता है जो स्वाभाविक है। लेकिन दूसरे देशों में सरकारी स्तर पर दिवाली से जुड़े उत्सव का आयोजन इसके प्रति दुनिया में बढ़ते रुझान को प्रकट करता है। इसका बड़ा कारण तमाम देशों में भारतीयों और भारतवंशियों की बढ़ी हैसियत ही है। अमेरिका में हिंदू मंदिरों में और भारतवंशियों के संगठन जगह जगह दिवाली से जुड़े कार्यक्रम किए जाते हैं तो पिछले कई वर्षों से अमेरिका के राष्ट्रपति निवास व्हाइट हाउस में भी धूमधाम से दिवाली समारोह का आयोजन हो रहा है। अमेरिका के न्यूयॉर्क में इस बार वर्ल्ड ट्रेड सेंटर को दिवाली की प्रतीकात्मक लाइटिंग से रोशन किया गया तो साथ ही साथ वहां के प्रशासन ने पहली बार स्कूलों में दिवाली की छुट्टी की घोषणा की। इधर नई दिल्ली में भारत में अमेरिका के राजदूत एरिक गार्सेटी भी दूतावास में दिवाली उत्सव में बड़े उत्साह से शामिल हुए।
वहीं ब्रिटिश राजधानी लंदन में भी दिवाली मेले का आयोजन किया गया। तो दिवाली के प्रति सरकारी रुझान भी दिखा। प्रख्यात साहित्यकार तेजेन्द्र शर्मा ने लंदन से फेसबुक पर सूचना दी - "मित्रो, आज पहली बार हमारी Overground Railways ने यात्रियों को दीपावली की शुभकामनाएं दीं और मिठाई भेंट की।हम भारतवंशियों के लिए गर्व का पल है।" 
ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी, यूरोप के अन्य देशों और पश्चिम एशिया और खाड़ी देशों में भी अच्छी भारतीय आबादी होने के कारण दिवाली उत्सव मनाने की खबरें आती हैं जबकि फ़िजी, मॉरिशस, ट्रिनिडाड टोबैगो जैसे देशों में भारतीय गिरमिटिया आबादी के कारण दिवाली तो वहां की परंपरा का हिस्सा है।
भारत के अलावा और भी देशों में दिवाली जैसे दीपों और रोशनी के त्योहार मनाए जाते हैं, जिनके नाम अलग हो सकते हैं और टाइमिंग अलग हो सकती है। 
लेकिन जब भारत में दीपावली मनाई जाती है तब दूसरे देशों में भी भारतीय समुदाय अपनी सांस्कृतिक परंपरा जारी रखते हुए इसे मनाते हैं। परन्तु, अब यह त्योहार केवल भारतीय समुदाय तक सीमित नहीं रहा है बल्कि विभिन्न देशों की सरकारें और प्रशासन भी इसमें रुचि ले रहे हैं क्योंकि उनके यहां रह रहे, कामकाज कर रहे और उनकी समृद्धि में योगदान दे रहे भारतीय लोग भी आखिर उनका अभिन्न अंग बन चुके हैं। एक और खास बात यह भी है कि दुनिया में भारत की साख बढ़ी है, सम्मान बढ़ा है। इसीलिए विभिन्न देशों के राष्ट्राध्यक्ष दिवाली और होली पर भारतीय लोगों और भारतीय राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री को संबोधित करके ऐसे पर्व-त्योहार पर बधाई और शुभकामनाएं देने में पीछे नहीं रहते। यह सुखद स्थिति है जो दुनिया में भारत और भारतीयों के बढ़ते असर को इंगित करती है। © कुमार कौस्तुभ 

Saturday, October 26, 2024

'मेरा मोतिहारी'

मोतिहारी, पूर्वी चंपारण के निवासी, चर्चित पत्रकार और बचपन के मित्र विकास चंद्र जी Vikas Chandra के हाथों में 'मेरा मोतिहारी'

चंपारण के प्रोफेसर मज़हर आसिफ बने जामिया के वीसी

#JNU के झेलम हॉस्टल के पूर्व प्रेसिडेंट और बिहार के चंपारण क्षेत्र के निवासी बड़े भाई विद्वान प्रोफेसर मज़हर आसिफ Mazhar Asif को जामिया मिल्लिया इस्लामिया केन्द्रीय विश्वविद्यालय #JMI का कुलपति नियुक्त किए जाने पर हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं!

Friday, October 25, 2024

भारत पर भरोसा जर्मनी का.. जुगलबंदी से दोनों का फायदा

#GermanyIndia #ModiScholz ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के तुरंत बाद जर्मनी के चांसलर की भारत यात्रा चीन को चिढ़ाने और चिंतित करने वाली है। सर्वविदित है कि कारोबार के क्षेत्र में जर्मनी अपने लिए चीन से हटकर भारत में जमीन तलाश रहा है ताकि चीन और पूर्वी एशियाई देशों पर उसकी निर्भरता खत्म नहीं तो कम जरूर हो सके। वहीं भारत के साथ रक्षा क्षेत्र में कारोबार पर भी उसकी निगाहें हैं। 
भारत और जर्मनी की जुगलबंदी पिछले कई वर्षों से बढ़ रही है। एक तरफ जहां जर्मनी की कंपनियां भारत में निवेश के लिए उत्सुक हैं वहीं भारतीय मैनपावर की भी जर्मनी में अच्छी मांग है। भारत के लिए इससे अच्छा और क्या हो सकता है कि देश में जर्मनी से निवेश बढ़े, पैसा आए और भारतीय लोगों के लिए जर्मनी से भारत तक रोजगार के अच्छे अवसर पैदा हों।
बदले में भारत जर्मनी को क्या दे सकता है? विश्लेषकों की मानें तो जर्मनी की निगाहें भारत के साथ पनडुब्बी सौदे पर हैं जिस पर भारत अपनी शर्तों के साथ आगे बढ़ सकता है। वहीं भारत के सहयोग से जर्मनी अपनी अर्थव्यवस्था में सुधार की भी उम्मीद कर रहा है जिसके लिए यह सौदा लाभकारी हो सकता है।
बहरहाल, जर्मनी की गिनती दुनिया के ताकतवर देशों में होती है और यूरोप में जर्मनी का अपना खास स्थान तो है ही। अब जिस तरह से भारत ने रक्षा क्षेत्र में फ्रांस के साथ कदम बढ़ाए हैं उस तरह प्रौद्योगिकी संबंधी दूसरे क्षेत्रों में अगर भारत को जर्मनी का साथ मिले तो यह अच्छी ही बात होगी। © कुमार कौस्तुभ 

Thursday, October 24, 2024

अपनी ही आग में जलेगा तुर्किए!


एशिया और यूरोप के बीच पुल कहलाने वाले देश तुर्किए में एक बार फिर हुआ आतंकवादी हमला अप्रत्याशित नहीं है। दरअसल एर्दोआन सरकार में तुर्किए जिस तरह से पाकिस्तान की राह पर चल रहा है, उसको देखते हुए ऐसे आतंकी हमले अवश्यंभावी माने जा सकते हैं। कुर्द संगठन पीकेके की तुर्किए सरकार से अदावत पुरानी है जिसकी अपनी वजहें हैं और इसी के चलते खूबसूरत देश तुर्किए १९८७ से ही आतंकी हमलों का शिकार हो रहा है। लेकिन उसके लिए जिम्मेदार वहां की सरकार, खासतौर से अब एर्दोआन सरकार की इस्लामपरस्त नीतियां भी मानी जा सकती हैं। 
आतंकवाद को शह देने वाले देश पाकिस्तान से तुर्किश की दोस्ती जगजाहिर है। इसके कारण तुर्किए अक्सर कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान का समर्थन करता रहा है। २०१४ में सत्ता में आने वाले एर्दोआन ने इस्तांबुल में स्थित विश्व धरोहर हागिया सोफिया को २०२० में म्यूजियम से मस्जिद बनाने का फैसला किया जो उनकी कट्टर इस्लामपरस्ती को जाहिर करता है। 
लेकिन, एर्दोआन इस्लाम धर्म को मानने वाले कुर्दों को उनका हक देना नहीं चाहते। एक तरफ एर्दोआन भारत के अभिन्न अंग कश्मीर में आतंकवाद फैलाने वाले पाकिस्तान को शह और समर्थन देते हैं लेकिन अपने देश में आजादी मांग रहे कुर्दों का दमन करते आ रहे हैं। तो खामियाजा भला कौन भुगतेगा? एर्दोआन हिन्दुस्तान में आतंक की आग लगाने वालों के चीयरलीडर बने घूमते हैं तो उन्हें यह भी समझना होगा कि वो खुद इससे बचे नहीं रह सकते जैसा कि पाकिस्तान के साथ भी हो रहा है। आतंक की आग उन्हें भी जला सकती है! © कुमार कौस्तुभ 

Wednesday, October 23, 2024

५ साल बाद औपचारिक मुलाकात, क्या बनेगी बिगड़ी बात?

#ChinaIndia #ModiJinping
भारत-चीन के आपसी रिश्तों के लिहाज से २३ अक्टूबर २०२४ की तारीख तवारीख में दर्ज हो गयी है, क्योंकि इसी दिन चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की औपचारिक बैठक पांच साल के लंबे अंतराल के बाद हुई। हालांकि २०१४ से २०२३ के बीच भी भारत और चीन के तनाव के बीच दोनों नेताओं की मुलाकात अंतरराष्ट्रीय मंचों पर होती रही लेकिन २०१९ के बाद उनकी पहली द्विपक्षीय वार्ता २०२४ में ही हुई है।
ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के दरम्यान रूस के कजान में हुई इस बैठक की अहमियत इसलिए भी है कि इससे चंद दिनों पहले ही भारत और चीन के बीच पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा के पास सीमा विवाद सुलझाने पर सहमति की खबरें आईं। भारतीय पक्ष ने इस बाबत बढ़ चढ़कर बयान दिए जबकि चीनी पक्ष इस पर गोलमोल बोलकर निकल गया।
 कजान में मुलाकात में पीएम मोदी ने सीमा पर शांति की आवश्यकता पर बल दिया और विवाद सुलझाने पर सहमति का जिक्र किया, लेकिन जिनपिंग केवल इतना ही बोल कर निकल गये कि दोनों देशों के बीच संवाद और सहयोग मजबूत होना चाहिए।
इससे पहले भी सीमा विवाद सुलझाने पर सहमति के मामले पर चीन ने ज्यादा कुछ नहीं कहा था और अब जिनपिंग भी इस मुद्दे पर चुप ही दिखे। 
दिलचस्प यह भी है कि जिनपिंग और मोदी की बैठक से पहले कई बार रूस के राष्ट्रपति पुतिन दोनों नेताओं के साथ दिखे जिससे यही संदेश गया है कि मोदी और जिनपिंग की बैठक रूस ने प्रायोजित की और रूस ने दोनों देशों के रिश्ते पर पड़ी बर्फ पिघलाने का प्रयास किया है। लेकिन हकीकत क्या है? अगर रूस की कोई भूमिका है भी तो क्या जिनपिंग और उनकी सरकार का भारत से संबंध सामान्य करने को लेकर रुख सकारात्मक है? ऐसा नहीं लगता। 
चीन संवाद और सहयोग की बात करता है लेकिन दोनों देशों के बीच कोर इश्यू पर बोलने से कतराता है। ऐसा लगता है जो भारत का कोर इश्यू है उसे चीन कोई मुद्दा मानता ही नहीं। शायद इसीलिए भूलकर भी LAC पर कंप्लीट डिस-इनगेजमेंट की बात भी नहीं करता ताकि कभी मीडिया इस सिलसिले में चीन का हवाला न दे सके। चीन का यह रवैया तो साफ साफ यही जाहिर करता है कि उसके तेवर बदले नहीं हैं। आने वाले कुछ दिनों में तस्वीरें और साफ होंगी जिससे चीन की असली मंशा क्या है यह पता चलेगा, क्योंकि २०१९ और २०२० का घटनाक्रम बहुत पुराना नहीं है। तो आखिर क्या चाहता है चीन, यह जानने के लिए अभी और इंतजार करना होगा। एक चीनी कहावत है - To win the battle, retain the surprise, और चीन हैरान करने में माहिर है, इससे भला कौन इनकार कर सकता है। © कुमार कौस्तुभ