Thursday, November 14, 2013

‘मंदिर’ बदलेगा किस्मत?



खबर है कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बिहार में देश का सबसे ऊंचा राम मंदिर बनवाने की तैयारी शुरु कर दी है। आईबीएन-खबर के मुताबिक, द्वारकापीठ के जगदगुरु स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज ने विराट रामायण मंदिर के मॉडल का अनावरण किया। इस विराट रायायण मंदिर की ऊंचाई करीब 405 फीट होगी। सियासी लोगों का मानना है कि बीजेपी से पीएम पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी द्वारा गुजरात में सरदार पटेल की ऊंची प्रतिमा बनाने के जवाब में बिहार में सबसे ऊंचे मंदिर का निर्माण किया जा रहा है। जो मोदी को नीतीश का जवाब हो सकता है द टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर के मुताबिक, 200 एकड जमीन पर बननेवाले इस मंदिर की ऊंचाई 2 हजार 800 फीट होगी और ये पटना से करीब डेढ़ से 200 किलोमीटर दूर पूर्वी चंपारण के केसरिया में बनेगा। शायद ये मंदिर अयोध्या में राम मंदिर के मुद्दे को भी भूल जाने के लिए लोगों को बाध्य करेगा और जैसा कि आईबीएन लिखता है, गुजरात में पटेल की प्रतिमा बनवाने पर मोदी को जवाब भी हो सकता है। बीजेपी से अलग होकर सेक्यूलरछवि बनाने की कवायद में जुटे सीएम नीतीश कुमार को इस मंदिर के जरिए हिंदूजनता को भी जीतने का मौका मिल सकता है क्योंकि मंदिर के मॉडल के अनावरण के वक्त ही उन्हें शंकराचार्य का आशीर्वाद भी मिल चुका है। तो खबर सियासी तौर पर बड़े मायने रखती है, लेकिन आम चंपारणवासियों के लिए इसका क्या मतलब है?

मुद्दे की बात  ये है कि मंदिर चाहे 405 फीट का हो, या 2800 फीट का ..सवाल ये है कि क्या बिहार, खासकर चंपारण के लोगों को इस मंदिर की कोई जरूरत है..महात्मा बुद्ध, सम्राट अशोक और महात्मा गांधी तक की विरासत सहेजकर रखनेवाले चंपारण में नीतीश कुमार की ओर से चुनावी माहौल में मंदिर की आधारशिला रखना कई अहम सवाल खड़े करता है। कहनेवाले कह सकते हैं कि इसकी योजना तो पहले से ही थी, अब जाकर इसके मॉडल का अनावरण हुआ है..ये भी अटकलें पुख्ता लगती हैं कि इस मंदिर के जरिए नीतीश की ओर से मोदी को जवाब देने की तैयारी है..मंदिर के जरिए मोदी के वोट बैंक में नीतीश सेंध लगाना चाहते हैं..वही भावनाओं की राजनीति कर रहे हैं, जो बीजेपी और मोदी करते रहे हैं..लेकिन एक आम चंपारणवासी का सवाल ये है कि इसके लिए चंपारण को ही क्यों मोहरा बनाया जा रहा है..आप नालंदा में भी ये मंदिर बनवा सकते थे, बाढ़ में भी, चाहते तो पटना के आसपास भी, जहां आप अपने धर्मानुरागी मन को ज्यादा आसानी से शांति दिला सकते थे..महात्मा बुद्ध, सम्राट अशोक और गांधी से जुड़ी इस धरती पर मंदिर-मस्जिद का क्या काम? आपके विकास के मॉडल में इस मंदिर की जगह कहां है? नीतीश बाबू, रेल मंत्री रहते हुए गांधी के नाम पर चंपारण के लिए आपने जो कुछ किया- दिल्ली से लेकर गुजरात तक के लिए सप्तक्रांति एक्सप्रेस और बापूधाम पोरबंदर एक्सप्रेस जैसी सीधी ट्रेनें चलने का ट्रैक तैयार किया- इसके लिए हर चंपारणवासी आपका शुक्रगुजार है। आप चाहते तो बुद्ध और गांधी सर्किट के नाम पर चंपारण में पर्यटन के विकास के लिए बहुत कुछ कर सकते थे, लेकिन आपकी योजनाओं में बुद्ध और गांधी से जुड़ी जगहों के विकास को कितनी जगह मिली है क्या कोई बता सकता है? विकास के नाम पर वोट बटोरने के लिए बड़ी जद्दोजहद करते हुए बिहार में स्थापित केंद्रीय विश्वविद्यालय का भी बंटवाराकिया गया और चंपारण में एक केंद्रीय विश्वविद्यालय खुलवाने की प्रक्रिया शुरु हुई, लेकिन वो प्रक्रिया जहां की तहां है, लगता है अगली सरकार आने के बाद भी चंपारण में विश्वविद्यालय शायद ही मूर्त रूप ले पाए। और बन भी जाए तो उसका सेहरा आपके साथ-साथ बीजेपी वाले भी जरूर बांधना चाहेंगे।
तो नीतीश बाबू, सवाल ये है कि बिहार के सीएम के रूप में 10 साल की पारी खेलने की तैयारी में चंपारण के लिए आपने क्या किया? आप ये जरूर कह सकते हैं कि राम मंदिर या रामायण मंदिर की 10 साल की परियोजना से लोगों को काम मिलेगा, लेकिन आप ये बखूबी जानते होंगे कि ये गरीबों को और गरीब बनाने, मजदूरों को और मजबूर बनाने की साजिश के अलावा कुछ और नहीं...ठीक उसी तरह जैसे मनरेगा और खाद्य सुरक्षा जैसी योजनाएं हैं जिनमें मजदूरी के रोजगार और मुफ्त भोजन के जरिए अकर्मण्यता का तोहफा दिया गया है। हमने ऐसी कई कहानियां सुनी हैं कि मजदूर का बेटा अफसर बन गया, लेकिन आप लोगों ने जैसी योजनाएं मजदूरों के लिए पेश की हैं, उनसे पीढ़ी दर पीढ़ी मजदूरी की मजबूरी के अलावा और क्या मिलेगा? आपकी दोस्त बनी केंद्र की कांग्रेस की सरकार बिहार को विशेष दर्जे के दबाव पर कुछ आर्थिक सहायता भले ही दे दे, लेकिन महंगाई का जो चाबुक जनता पर लगातार चलाया जा रहा है, क्या उससे आम लोगों को बचाने के लिए आपने कुछ किया? आपने तो पेट्रोल-डीज़ल के दाम बढ़ाने का न कभी विरोध किया, ना ही, अपने यहां टैक्सों में कुछ कमी करके लोगों को राहत दी।
बहरहाल, आपने दरभंगा को सॉफ्टवेयर टेक्नॉलॉजी पार्क देने का वादा किया है, जो सराहनीय है। कितना अच्छा होता, आप केसरिया की 200 एकड़ जमीन पर कुछ ऐसी विकास योजना बनाते, मंदिर के बजाय किसी मिनीया मेगाप्रोजेक्ट की आधारशिला रखते। कितना अच्छा होता, अगर आप चंपारण के विलुप्तप्राय थरुहटके विकास के लिए कुछ करते। कितना अच्छा होता, अगर आप चंपारण के गन्ना किसानों के लिए कुछ सोचते। कितना अच्छा होते, आप 15 से 25 साल पहले राज्य से हुए प्रतिभा पलायन को रिवर्स गियर में लाने के उपाय करते। लेकिन, आप तो पूरे राज्य के स्वामी हैं, चक्रवर्ती सम्राट बनने की तैयारी में हैं, तो प्राचीन भारतीय परंपरा के हिसाब से मंदिर बनवाने का पुण्य कमाने की सलाह तो आपके सलाहकारों ने जरूर दी होगी, माननीय शंकराचार्य ने भी आपकी तुलना राजाओंसे कर दी है, और पूर्व मुख्यमंत्री केबी सहाय का भी नाम आपके साथ लिया है जिनके लिए ये नारा भी प्रचलित हो चला था- गली-गली में शोर है, केबी सहाय चोर है। तो निहितार्थ और नतीजे जो भी हों, मंदिर के बहाने आपको आपकी सियासत चमकाने का मौका जरूर मिल रहा है..भले ही गरीब और गरीब होते जाएं..मजदूरों की मजबूरी कभी खत्म न हो..लेकिन आपका ये दांव कितना सटीक बैठेगा, ये अभी नहीं कहा जा सकता..आपके पास अभी मौके और भी हैं, जिस 350 करोड़ या 500 के बजट से आप मंदिर बनवानेवाले हैं, उससे आम लोगों का कुछ कल्याण कर सकें तो जनता आपको वोट भी देगी, और दुआ भी ( इस बजट का आधा हिस्सा तो जेबों में जाएगा, इतना सभी मानते हैं, बाकी आधा भी सही तरीके से इस्तेमाल हो तो चंपारण के विकास के लिए पर्याप्त होगा..)


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