महात्मा
गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय, मोतिहारी, बिहार के पहले कुलपति प्रो. अरविंद
अग्रवाल से खास बातचीत
इंटर
टॉपर घोटाले को लेकर चर्चित बिहार की शिक्षा व्यवस्था के अंधकारमय परिदृश्य में
रोशनी की तरह आई है एक नई खबर। पूर्वी चंपारण जिला मुख्यालय मोतिहारी में खुले
महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय में एडमिशन की प्रक्रिया आनेवाले चंद दिनों
में शुरु हो जाएगी और सबसे खास बात ये है कि इस विश्वविद्यालय में एमए, एमएससी,
एमफिल-पीएचडी के बजाय बीए, बीएससी, बीकॉम जैसे कोर्स पहले शुरु किये जा सकते हैं।
इस विश्वविद्यालय के रूप में बिहार को मिलने जा रहा है शिक्षा का एक और बड़ा
केंद्र जो इंटरमीडिएट के बाद आगे का रास्ता तलाशनेवाले बहुत से छात्रों को शानदार
करियर की राह दिखाएगा। इसकी शुरुआत महात्मा गांधी की भारत में पहली कर्मभूमि और अंग्रेज साहित्यकार जॉर्ज
ऑरवेल की जन्मभूमि, पूर्वी चंपारण जिले के मुख्यालय, मोतिहारी में हो रही है। भारत
में महात्मा गांधी के पहले सत्याग्रह- चंपारण सत्याग्रह के सौ साल पूरे होने के
मौके पर बिहार के पूर्वी चंपारण जिला मुख्यालय मोतिहारी में केंद्रीय
विश्वविद्यालय की स्थापना हुई है।
किस
तरह का होगा ये विश्वविद्यालय और बिहार के छात्रों को इससे क्या फायदे होंगे, इस
सिलसिले में विश्वविद्यालय के कुलपति और देश के जानेमाने समाजशास्त्री प्रो.
अरविंद अग्रवाल ने विस्तार से बताया। प्रो. अग्रवाल ने बिहार के माहौल, वहां की
शिक्षा और नए विश्वविद्यालय के बारे में हमसे बेबाक बातचीत की। पेश है, प्रो.
अग्रवाल से बातचीत-
“केंद्रीय
विश्वविद्यालय रोकेगा छात्रों का पलायन”
सवाल- महात्मा गांधी केंद्रीय
विश्वविद्यालय किस तरह का विश्वविद्यालय होगा, आपके मन में इसकी क्या रूपरेखा है,
विश्वविद्यालय के बारे में आपका क्या विजन है और इसका क्या उद्देश्य है?
प्रो.
अग्रवाल-
बिहार में स्कूल स्तर पर छात्र बहुत प्रतिभाशाली हैं। लेकिन होता ये है कि किसी
कारण से यहां की उच्चस्तरीय ग्रेजुएशन लेवल की पढ़ाई से ये विद्यार्थी संतुष्ट
नहीं होते, इसलिये वे देश के जानेमाने शहरों- जैसे दिल्ली. चंडीगढ़, मुंबई,
कोलकाता के शिक्षण संस्थानों में पढ़ने चले जाते हैं। और एक बार जो लड़के वहां चले
जाते हैं, एडमिशन ले लेते हैं, ग्रेजुएशन, पोस्ट-ग्रेजुएशन करते हैं, प्रोफेशनल
पढ़ाई पढ़ते हैं, वे लौटकर फिर बिहार नहीं आते, ये एक तरह से राज्य का नुकसान है
और कहीं न कहीं ये राज्य के लिए अच्छा नहीं है। तो केंद्रीय विश्वविद्यालय का
उद्देश्य ये है कि हम उन छात्रों का पलायन रोक पायें और उनको यहां पर ही अच्छी
शिक्षा दे पाएं। हमको अगर बहुत अच्छे मेधावी शोधकर्मी चाहिए, बहुत अच्छे साइंटिस्ट
चाहिए, और प्रोफेशनल विकसित करने हैं तो हमें उसके लिए नए और अच्छे छात्रों की
नर्सरी डेवलप करनी होगी।
“नए
किस्म के कोर्स होंगे, नए तरीके से पढ़ाई होगी”
सवाल-
इस विश्वविद्यालय में
किस तरह के कोर्स शुरु किये जाएंगे और दाखिले की प्रक्रिया क्या होगी?
प्रो.
अग्रवाल- मेरी
सोच ये है कि केंद्रीय विश्वविद्यालय को ग्रेजुएट कोर्स शुरु करने चाहिए, जैसे बीए
ऑनर्स, बीएससी आनर्स, बीए एलएलबी, बी कॉम एलएलबी ऑनर्स जैसे कोर्स मैं खोलूंगा।
एडमिशन के लिए परसेंटेज कट ऑफ और एक लिखित परीक्षा का कैरेटेरिया होगा। वो इसलिए
ताकि असल में मेधावी छात्रों को प्रवेश मिल सके। अभी ये खबर आई है कि एक मेधावी
विद्यार्थी बहुत अच्छे नंबर लाया, लेकिन उसको विषय का ज्ञान नहीं था यानी उसका
परसेंट तो हाई था, लेकिन वास्तव में उसकी मेधा उसके अनुरूप नहीं थी। तो लिखित
परीक्षा से ये साबित हो जाएगा। तो मूलतः हमारा उद्देश्य ये है कि समुचित रूप से
प्रतिभाशाली विद्यार्थी लिये जाएं और उनको यहां पर अच्छी तरह तैयार करें। मेरी एक
और कोशिश होगी यहां पर मॉड्यूलर कोर्सेस चलाने की जिसका मतलब ये है कि मान लीजिये
अगर कोई छात्र पीजी कर रहा है और पहला और दूसरा सेमेस्टर पढ़ने के बाद किसी नौकरी
के लिए कंपीटिशन में कहीं उसका सेलेक्शन हो गया, वो बैंक अधिकारी बन गया या कहीं
राज्य सरकार में उसको नौकरी मिल गई, तो ऐसी स्थितियों में होता ये है कि अधिकांश
बच्चों का 1 साल खराब हो जाता है और पढ़ाई छूट जाती है। तो मैं ये प्रावधान रख रहा
हूं कि वो छात्र हमसे एडवांस सर्टिफिकेट ले जाएगा और उसके बाद जब उसकी नौकरी की
ट्रेनिंग पूरी हो जाएगी, तब वह छुट्टी लेकर आएगा और फिर हमारे यहां उसी लेवल पर
पढ़ाई फिर से शुरु कर देगा और एक साल पढ़ाई करके अपनी पूरी डिग्री ले जाएगा।
कभी-कभी ऐसा होता है कि कई छात्रों की आर्थिक हालत खराब होती है, या किसी के घर
कोई हादसा हो गया, या फिर किसी लड़की की शादी हो गई, या कोई मैरिड लड़की पढ़ रही थी
और उसको मां बनना पड़ा, तो ऐसी स्थिति में वो पढ़ाई छोड़ देगी और एक-दो साल बाद
वापस आकर उसी स्तर पर पढ़ाई शुरु करके डिग्री ले सकेगी।
एक
बात और, हमारे देश की एक दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति ये है कि शिक्षा नदी का एक छोर है
और दूसरे छोर पर खेल हैं, संगीत है, एक्टिंग है, या आर्ट हैं, तो कोई ऐसा
विद्यार्थी है, जो पढ़ने में भी मेधावी है और खेलकूद में भी, या बहुत अच्छी
पेंटिंग बनाता है या बहुत अच्छा म्यूजिसियन है, उसमें वो प्रतिभा है। वो एमएससी
मैथ्स से कर रहा है और उसे म्यूजिक का भी शौक है- तो ये दो विपरीत दिशाएं हैं। वो
जब म्यूजिक सीखने जाता है, तो उसके मन में अपराध-भाव होता है कि मैं अपनी गणित की
पढ़ाई छोड़कर इसमें समय दे रहा हूं। तो ऐसे विद्यार्थियों के लिए मैं ऐसा करूंगा
कि वो 80 प्रतिशत कोर्स करे मेनस्ट्रीम के यानी मैथ्स, फिजिक्स, केमिस्ट्री,
बायोलॉजी वगैरह, लेकिन अगर वो 20 प्रतिशत कोर्स में म्यूजिक की क्लास एटेंड करता
है तो वो भी उसके एमएससी कोर्स का हिस्सा होगा, जैसा विदेशों में होता है। उससे
छात्रों का सर्वांगीण विकास होगा। ऐसा ही, अगर कोई छात्र बहुत अच्छा एथलीट है, या
बहुत अच्छा फुटबॉल खेलता है, तो स्कूल ऑफ फिजिकल एजुकेशन में वो 4 क्रेडिट का
कोर्स अपने खेल का कर सकता है और बाकी अपने साइंस, हिस्ट्री, सोशियोलॉजी, सोशल
वर्क, एमबीए वगैरह का । ये मेरी सोच है।
“सेशन
लेट शुरु होने से छात्रों का नुकसान नहीं होने देंगे”
सवाल-
विश्वविद्यालय में
पढ़ाई कब से शुरु होगी?
प्रो.
अग्रवाल- अभी
बुनियादी समस्याओं के कारण प्रवेश प्रक्रिया में देर हो रही है , लेकिन एडमिशन की
प्रक्रिया जल्द शुरु की जेगी। मेरी चिंता ये है कि जो यहां के अच्छे विद्यार्थी
हैं, वो तो कहीं न कहीं एडमिशन लेकर सेटल हो जाएंगे क्योंकि वे मेरे विश्वविद्यालय
के इंतजार में नहीं बैठ सकते। मैं इस बात को बखूबी समझता हूं। लेकिन मेरा भरपूर
प्रयास है कि मैं सेशन को जल्द शुरु कर दूं। भले ही सेशन 2 महीने लेट हो सकता है,
मैं पढ़ाई जुलाई में न शुरु करके 15 सितंबर से शुरु कर सकता हूं। आप कहेंगे कि
इससे बच्चों का नुकसान होगा, तो मैं बताऊं कि बच्चों का नुकसान इसलिए नहीं होगा कि
कोई भी कोर्स 1 साल का नहीं होगा, दो साल या तीन साल का होगा, पीजी होगा तो दो साल
यानी चार सेमेस्टर और अंडर ग्रेजुएट कोर्स छह सेमेस्टर का होगा। बीच में विंटर
ब्रेक आते हैं, गर्मी की छुट्टियां आती हैं जिन्हें कम करके उनको इस तरह से
पढ़ाऊंगा कि अगला सेशन आते-आते उनका कोर्स नॉरमलाइज़ हो जाएगा। यहां के, देश के
अन्य विश्वविद्यालयों के साथ ही उनका रिजल्ट आउट होगा और वो डिग्री लेकर नौकरी के
लिए निकलेंगे। मेरे भरपूर प्रयास रहेंगे कि मेरे जो विद्यार्थी यहां से निकलें, वो
नियोक्ताओं के यहां जाकर लाइन न लगाएं बल्कि नियोक्ता विश्वविद्यालय के दरवाजे पर
खड़ा हो और कहे कि नौकरी के लिए हमें आपके विद्यार्थी चाहिए क्योंकि वे बहुत
मेधावी हैं, बहुत अच्छे हैं।
“रोजगारपरक
होगा कोर्स स्ट्रक्चर”
अभी
हमारी शिक्षा में बड़ी कमी ये है कि वो छात्रों को प्रोफेशन के लिए, व्यवसाय के
लिए, वास्तविक जीवन के लिए तैयार नहीं कर रही है। कहीं न कहीं हमारी शिक्षा किताबी
शिक्षा हो रही है। तो मेरा जो कोर्स स्ट्रक्चर होगा उसका रुझान कुछ ऐसा रहेगा कि
उसमें पुस्तकीय सैद्धांतिक ज्ञान के अलावा ऐसी शिक्षा दी जाए जो छात्रों को
इंडस्ट्री और ग्लोबल मार्केट की जरुरतों के हिसाब से तैयार करे।
“विश्वविद्यालय
देश में बनाएगा खास पहचान”
सवाल-
बिहार में खुले इस
विश्वविद्यालय की रूपरेखा में बिहार के छात्रों के हित की बात तो है लेकिन, क्या
ऐसे कोर्स भी होंगे जो बाहर के छात्रों को यहां आकर पढ़ने के लिए आकर्षित करें?
प्रो.
अग्रवाल- ये बड़े सौभाग्य की बात है और मेरा आदर्शपूर्ण
लक्ष्य है कि केंद्रीय विश्वविद्यालय का चरित्र राष्ट्रीय हो। यहां केरल से कश्मीर
तक और अरुणाचल से राजस्थान-गुजरात तक के छात्र आएं, पढ़ें, और न केवल छात्र बल्कि
शिक्षक भी देशभर के हों। आज दिल्ली विश्वविद्यालय या जेएनयू की गुणवत्ता उच्च मानी
जाती है तो इसका कारण ये है कि उनका कहीं न कहीं राष्ट्रीय चरित्र है, जहां पर देश
के विभिन्न कोनों से बच्चे आते हैं और साथ रहकर पढ़ते हैं। तो उससे उनमें
सहिष्णुता, एक-दूसरे को समझने और कहीं न कहीं सर्वांगीण और संपूर्ण प्रतिभा का
विकास होता है। जहां तक छात्रों को आकर्षित करने की बात है, तो उसके लिए थोड़ी
मेहनत करनी पड़ेगी, थोड़ा धैर्य रखना पड़ेगा। आपने वनस्थली का नाम सुना होगा, BITS पिलानी के बारे में सुना होगा। चुंकि मैं राजस्थान का
रहनेवाला हूं, तो बता दूं कि ये दोनों संस्थाएं शहर से दूर रेगिस्तानी, जंगल
क्षेत्र में खोली गईं थीं आज से 50-60 साल पहले और देश-विदेश के मां-बाप अपने
बच्चों को इन संस्थाओं में पढ़ाते हैं। दोनों आज देश में ख्यातिनाम शिक्षण
संस्थाएं हैं। तो जो बहुत अच्छी शिक्षण संस्थाएं हैं वो न परिचय की मोहताज होती
हैं, और न इस बात की मोहताज होती हैं कि बच्चे आएंगे या नहीं। अगर यहां पर शिक्षण
प्रणाली, शिक्षक और शिक्षा का माहौल वातावरण इतना अच्छा रहेगा तो अपने-आप आएंगे
बच्चे।
“पढ़ाई
की ललक है बिहार के छात्रों में”
सवाल-
आपने विदेशों में भी
काम किया है, हिमाचल प्रदेश में भी काम किया और अब आप बिहार आए हैं, जहां जमीनी
हालात काफी अलग हैं। तो यहां के माहौल को आप शिक्षा के लिहाज से कैसा समझ रहे हैं?
प्रो.
अग्रवाल-
यहां आकर, खासतौर से मोतिहारी में आकर मैं बहुत उत्साहित हूं। एक तो मेरी
प्रतिबद्धता थी कि मैं मोतिहारी में काम शुरु करूं क्योंकि अधिकांश केंद्रीय
विश्वविद्यालय जो खुले, पता नहीं किन कारणों से उनका प्रारंभिक हेड क्वार्टर
राज्यों की राजधानियों में रखा गया था। मैं पहले दिन से इस बात के लिए प्रतिबद्ध
था कि मैं यहां आकर डेरा डालूंगा और जद्दोजहद करके विश्वविद्यालय शुरु करने की
कोशिश करूंगा। और इस प्रतिबद्धता को मैं कई महीनों से निभा रहा हूं। मैंने सोचा था
इस प्रक्रिया में मुझे यहां के जनजीवन, यहां के विद्यार्थी, यहां के शिक्षक, यहां
की संस्कृति को समझने का मौका मिलेगा और यही हुआ। थोड़ा समझा हूं, ज्यादा तो नहीं,
पर मैं इस बात से उत्साहित हूं कि यहां के विद्यार्थी में पढ़ने की बहुत ललक है।
मैं शाम को या सुबह अक्सर घूमने निकलता हूं तो देखता हूं यहां बच्चे पार्क में गोल
बनाकर बैठते हैं। मुझे शुरु में लगा कि वे ऐसे ही गप मारने बैठे होंगे, लेकिन
धीरे-धीरे मुझे पता चला कि वे आपस में एक-दूसरे से पूछ-पूछ कर प्रतियोगिताओं की
तैयारी करते हैं। ये देखकर मेरे मन में उत्प्रेरणा- मोटिवेशन का लेवेल बढ़ा और मैं
दंग रह गया। मैं यहां कई ऐसे लोगों से मिला और मुझे उनसे मिलकर ताज्जुब हुआ जब
उन्होंने बताया कि कोई अपने बच्चे को दार्जीलिंग में पढ़ा रहा है, तो कोई दून या
शिमला में स्कूल में छोड़कर आ रहा है। ये वो मां-बाप हैं जो अपने बच्चों को पब्लिक
स्कूलों में, अच्छे स्कूलों में पढ़ा रहे हैं। मैंने ये महसूस किया कि ये वो
मां-बाप हैं जो अति-समृद्ध नहीं, मध्यम वर्ग के हैं, तो वो जरूर अपनी जरुरतों को
काटकर बच्चों को पढ़ाते हैं। इसी तरीके से मैंने देखा कि यहां के कुछ बच्चे पार्ट
टाइम कुछ करके पढ़ाई कर रहे हैं, कॉम्पीटीशन की तैयारी कर रहे हैं और उनमें
एक-दूसरे को सहयोग देने की ललक भी है। जब मैं कुछ कर्मचारियों की भर्ती कर रहा था
तो किसी ने बताया कि वो अपने छोटे भाई को इंजीनियर बनाना चाहता है..तो ऐसे लोगों
को देखकर मेरा उत्साह, मेरी आशा बढ़ी है, मेरी ऊर्जा का स्तर भी बढ़ा है और मेरी
प्रतिबद्धता और दुगुनी हो गई है। चुंकि शुरु में मैं जब बिहार आया था तो एक जो
जनधारणा है, उसने मुझे कुछ हद तक आशंकित किया था, ये मैं बहुत ईमानदारी से कहूंगा
कि, मैं बिहार जा रहा हूं तो वहां पर सारा ही माहौल उल्टा-सीधा होगा, लेकिन बिहार
मेरी आशा से ज्यादा अच्छा लगा और यहां के लोग बहुत ही सहृदय, सरल और पर्यावरण,
प्रकृति- सभी कुछ बहुत ही अच्छा लगा। सड़कों का नेटवर्क बहुत अच्छा है। इसलिए मैं
कहूंगा कि मैं बहुत प्रभावित हूं।
- कुमार कौस्तुभ
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