Sunday, September 23, 2012

फिर बरसेंगे ‘कुंभीपाक’ झील के मोती



 

कुंभीपाक झील के मोती  
मोतिहारी शहर के बीचोबीच स्थित इस झील का सांस्कृतिक नाम मोतीझील है। नाम में मोती जुड़े होने के कारण ये अनुमान गाना गलत होगा कि इसके किनारे संतजनों का वास होगा या फिर इसमें हंसों का बसेरा होगा। पूर्वी चम्पारण के जिला मुख्यालय मोतिहारी के हृदयस्थल में बनी ये झील यहां के निवासियों को एक बहुमूल्य नैसर्गिक उपहार है। किन्तु, इस पर नगरवासियों से कहीं अधिक अधिकार अब गंदगी, कचरे और
सड़े-गले अपदार्थों का ही दिखाई देता है, जो असल में यहां के नागरिकों और प्रशासन की बेपरवाही की ही देन हैं। कमल पत्र पुष्पों के सौंदर्य को स्थाई आवास बना चुकी कुंभियों ने बेदखल कर दिया है। इस झील में कुंभी का इतना प्रबल प्रभाव है कि इसका नया नाम कुंभीपाक झील ही उचित प्रतीत होता है।  यहां वर्षभर होते रहनेवाले पूजा-पर्व-त्योहारों की विसर्जित प्रतिमाओं और सामग्रियों से भी इस सांस्कृतिक धरोहर की गंदगी का कोश दुगुना-तिगुना वृद्धि ब्याज-दर से समृद्ध होता रहता है। फिर भी सरकारी, अर्द्ध सरकारी, नागरिक स्मृति अभिलेखों में इसकी छवि मोतीझीलकी ही है। अपनी नायाब कुदरती खूबसूरती के लिए बार-बार याद की जानेवाली इस झील के वास्तविक मोती तो इसके सुंदरीकरण के नाम पर दी जानेवाली धनराशि है, जिस पर नगर सरदारों, नेताओं, ठेकेदारों की नजरें टिकी रहती हैं। सचमुच, ये झील मोती उगले न उगले, सरकारी आवंटन –अनुदान से इसके किनारे हर साल मोतियों की बरसात तो होती ही है । सब्र करो यारो! मोती फिर बरसेंगे इस कुंभीवासके किनारे!   - प्रोफेसर रामस्वार्थ ठाकुर

Thursday, September 13, 2012

Motihari in pictures



 मोतिहारी की एक शाम





MAY 2012

सितंबर में शहर मोतिहारी

फिर बरसेंगे 'कुंभीपाक' में मोती!

फिर बरसेंगे 'कुंभीपाक' में मोती!

फिर बरसेंगे 'कुंभीपाक' में मोती!

सितंबर में शहर मोतिहारी